Category Archives: स्‍त्री विरोधी अपराध

फ़ासिस्टों के “रामराज्य” में स्त्रियों के विरुद्ध बढ़ते बर्बर अपराध

पिछले दिनों देश के गृहमंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था की तारीफ़ में बोल गये कि यहाँ आधी रात को कोई महिला गहने पहनकर निकल सकती है और उसे कुछ नहीं होगा! लेकिन कोई अन्धभक्त भी शायद ही इस जुमले को सही मानेगा। सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश में हत्याओं और बर्बर यौन हिंसा सहित तमाम तरह के अपराध बेरोकटोक जारी हैं। केवल पिछले चन्द हफ़्तों के भीतर उत्तर प्रदेश में और देश के कई राज्यों में स्त्रियों के विरुद्ध बर्बर अपराधों की जैसे बाढ़ आ गयी, मगर गृहमंत्री से लेकर संसद में ड्रामे करने वाली भाजपा की महिला सांसद शान्त हैं।

कोरोना काल में भी बदस्तूर जारी है औरतों के ख़िलाफ़ दरिन्‍दगी

कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से चोरी, लूटपाट जैसे कई क़िस्म के अपराधों में तो कुछ कमी आयी, लेकिन औरतों के ख़िलाफ़ होने वाले विभिन्न क़िस्म के अपराधों में कमी आना तो दूर, उल्‍टे वे बढ़े ही हैं। इस साल जुलाई के महीने में राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा जारी की गयी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कोरोना महामारी के दौरान औरतों द्वारा आयोग में की गयी शिकायतों में पहले की तुलना में 25 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

हाथरस और बलरामपुर जैसी बर्बरता का ज़ि‍म्‍मेदार कौन? मज़दूर वर्ग उससे कैसे लड़े?

हाथरस में एक मेहनतकश घर की दलित लड़की के साथ बर्बर बलात्कार और उसके बाद उसकी जीभ काटकर और रीढ़ की हड्डी तोड़कर उसकी हत्या कर दी गयी। इस भयंकर घटना ने हरेक संवेदनशील इन्सान को झकझोर कर रख दिया है। अभी इस घटना की पाशविकता और बर्बरता पर लोग यक़ीन करने की कोशिश ही कर रहे थे कि उत्तर प्रदेश के ही बलरामपुर में भी ऐसी ही एक भयंकर घटना ने लोगों को चेतन-शून्य बना दिया। हर इन्सान अपने आप से और इस समाज से ये सवाल पूछ रहा है कि हम कहाँ आ गये हैं? क्यों बढ़ रही हैं ऐसी भयावह घटनाएँ? कौन है इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार? दुश्मन कौन है और लड़ना किससे है?

‘बच्चों का कारख़ाना’

पूँजीवाद अपने जन्मकाल से ही हर चीज़ को बिकाऊ माल में तब्दील करने की फ़‍िराक में रहता है। इंसानी रिश्‍ते-नाते और भावनाएँ तक ख़रीदफ़रोख्‍़त की चीज़ बन जाती हैं। लेकिन अब मुनाफ़े की अन्धी हवस में पूँजीवाद इतना गिर चुका है कि वह बच्चा पैदा करने की एक फ़ैक्टरी तक खोलने लगा है जिसमें महिलाओं और बच्चों की ख़रीदफ़रोख्‍़त होती है। नाइजीरिया के दक्षिणी-पश्चिमी राज्य आगन में ऐसी ही एक ‘बेबी फैक्ट्री’ हाल में पकड़ी गयी।

पुलिस हमारी रक्षक है या इस लुटेरी व्यवस्था की रक्षा में तैनात दमन-उत्पीड़न का हथियार?

हैदराबाद में पिछले महीने जिस युवा स्त्री डॉक्‍टर के साथ दरिन्दगी हुई, उसके परिजन जब मदद के लिए पुलिस के पास गये तो 10 घण्टे तक पुलिस उन्हें यहाँ-वहाँ दौड़ाती रही। चारों ओर से हो रही थू-थू के बीच अचानक ख़बर आयी कि पुलिस ने घटना के चारों आरोपियों को मुठभेड़ में मार गिराया। पुलिस की बतायी कहानी साफ़ तौर पर फ़र्ज़ी एनकाउण्टर की ओर इशारा कर रही थी मगर फिर भी देश में मध्यवर्गीय सफ़ेदपोशों के साथ ही प्रगतिशील माने जाने वाले अनेक बुद्धिजीवी भी पुलिस की शान में क़सीदे पढ़ते हुए पाये गये।

स्त्रियों के विरुद्ध जारी बर्बरता – निरन्तर और संगठित प्रतिरोध की ज़रूरत है

पिछले चन्‍द हफ़्तों के भीतर उत्तर प्रदेश में और पूरे देश में स्त्रियों के विरुद्ध बर्बर अपराधों की जो बाढ़ आ गयी वह हर नागरिक के लिए चिन्ता और ग़ुस्‍से का सबब है, मगर यह तो होना ही था।

बेटी बचाओ, भाजपाइयों से! भाजपा नेताओं के कुकर्मों की शिकार हुई एक और बेटी

‘बेटी के सम्मान में, भाजपा मैदान में’ और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे लुभावने नारों के शोरगुल के बीच इस देश की बेटियों के साथ लगातार होने वाली बर्बरता को छि‍पाने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन 6 सालों में हुए स्त्री-विरोधी अपराध के आँकड़े चीख-चीख कर ये बता रहे हैं कि भाजपा सरकार के खोखले नारे महज़ वोट बटोरने की नौटंकी हैं। कठुआ और उन्नाव जैसी बर्बर,मानवद्रोही, स्त्री-विरोधी घटनाओं की याद अभी ताज़ी ही है कि एक नया प्रकरण हमारे सामने है।

पूरे देश भर में बच्चियों का आर्तनाद नहीं, बल्कि उनकी धधकती हुई पुकार सुनो!

अभी न जाने कितने और ऐसे बालिका गृह हैं जहाँ सत्ता की साँठ-गाँठ से ऐसे कुकृत्य अभी भी जारी होंगे! केन्द्र द्वारा कोर्ट में पेश की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार देश के विभिन्न भागों में आश्रय गृहों में 286 लड़कों सहित 1575 बच्चों का शारीरिक शोषण या यौन उत्पीड़न किया गया है। इस पूरे मामले को हम एक सामान्य घटना के तौर पर नहीं देख सकते! महज़ कुछ ब्रजेश ठाकुर जैसे लोग या प्रशासनिक लापरवाही इसकी ज़िम्मेदार नहीं, बल्कि सत्ता में बैठे कई लोग भी शामिल हैं इसमें! सरकार द्वारा संचालित इन बालिका गृहों में यौन शोषण और यहाँ तक कि जिस्मों की ख़रीद-बिक्री की इन घटनाओ ने आज पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया है। यह घटना मानवद्रोही, सड़ान्ध मारती पूँजीवादी व्यवस्था की प्रातिनिधिक घटना है। इस घटना ने राजनेताओं, प्रशासन, नौकरशाही, पत्रकारिता व न्यायपालिका सबको कटघरे में खड़ा कर दिया है!

किसी भी रूप में बलात्कार का समर्थन करने वालाें के लिए इस समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए!

दिल्ली के संसद मार्ग पर कठुआ और उन्नाव के दोषियों को सज़ा दिलाने और बढ़ते स्त्री विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए सैकड़ों की संख्या में आम नागरिक, छात्र, युवा इकट्ठे हुए। स्त्री मुक्ति लीग, नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन ने भी इस प्रदर्शन में हिस्सेदारी की और कहा कि कठुआ और उन्नाव में हुए बलात्कारों की बर्बरता और इन अपराधों के दोषियों को सत्ता में बैठे नेता-मंत्रियों द्वारा बचाने की कवायद बेहद ही शर्मनाक है। मोदी सरकार द्वारा ‘न्यू इंडिया’ का जो गुब्बारा फुलाया जा रहा है उसकी सच्चाई को वास्तव में बढ़ते हुए स्त्री विरोधी, दलित और अल्पसंख्यक विरोधी, आम मेहनतकश अवाम और मज़दूर विरोधी घटनाओं से बखूबी समझा जा सकता है। इस प्रदर्शन के माध्यम से प्रदर्शनकारियों ने बलात्कारियों को सख़्त सज़ा देने की माँग को उठाया।

सत्ता पर काबिज़ लुटेरों-हत्यारों-बलात्कारियों के गिरोह से देश को बचाना होगा!

यूँ तो पिछले कई वर्षों से भारतीय समाज एक भीषण सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक और नैतिक संकट से गुज़र रहा है, परन्तु अप्रैल के महीने में सुर्खियों में रही कुछ घटनाएँ इस ओर साफ़ इशारा कर रही हैं कि यह चतुर्दिक संकट अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुँचा है। जहाँ एक ओर कठुआ और उन्नाव की बर्बर घटनाओं ने यह साबित किया कि फ़ासिस्ट दरिंदगी के सबसे वीभत्स रूप का सामना औरतों को करना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका द्वारा असीमानन्द जैसे भगवा आतंकी और माया कोडनानी जैसे नरसंहारकों को बाइज्जत बरी करने और जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत की उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच तक कराने से इनकार करने के बाद भारत के पूँजीवादी लोकतंत्र का बचा-खुचा आखिरी स्तम्भ भी ज़मींदोज़ होता नज़र आया। कहने की ज़रूरत नहीं कि ये सब फ़ासीवाद के गहराते अँधेरे के ही लक्षण हैं।