Category Archives: समाज

अस्पताल में मौत का तांडव : जि़म्मेदार कौन?

ऑक्सीजन की सप्लाई रुकी पड़ी थी और एक-एक कर बच्चों की मौत हो रही थी। अस्पताल के डॉक्टरों ने पुष्पा सेल्स के अधिकारियों को फ़ोन कर ऑक्सीजन भेजने की गुहार लगायी तो कम्पनी ने पैसे माँगे। तब कॉलेज प्रशासन भी नींद से जागा और 22 लाख रुपये बकाया के भुगतान की कवायद शुरू की। पैसे आने के बाद ही पुष्पा सेल्स ने लिक्विड ऑक्सीजन के टैंकर भेजने का फ़ैसला किया। लेकिन तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी और 40 बच्चे भी मर चुके थे। यह ख़बर आने तक कहा जा रहा था कि यह टैंकर शनिवार की शाम या रविवार तक ही अस्पताल में पहुँच पायेगा। मौत के ऊपर लापरवाही और लालच का यह खेल भी नया नहीं है। पिछले साल अप्रैल में भी इस कम्पनी ने 50 लाख बकाया होने के बाद इसी तरह ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दी थी।

गटर साफ़ करने के दौरान सफ़ाईकर्मियों की मौतों का जि़म्मेदार कौन?

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 1,80,657 परिवार ऐसे हैं जो गटर की सफ़ाई या मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं और इसी गणना में यह भी पाया गया कि क़रीब 7,94,000 लोग इस काम में लगे हुए हैं। अब इन आँकड़ों को वास्तविकता से कितना कम करके आँका गया है, उसका अनुमान इस बात से लग जाता है कि भारतीय रेलवे जो सफ़ाईकर्मियों का सबसे बड़ा नियोक्ता है, ख़ुद़ इस सेक्टर में लगे सफ़ाईकर्मियों की संख्या को क़ानूनी जामे में छिपा देता है। ग़ौरतलब बात यह है कि रेलवे इन सफ़ाईकर्मियों की नियुक्ति “मैला ढोने वाली श्रेणी में नहीं” बल्कि “क्लीनर” की श्रेणी के तहत करता है या फिर इस काम को ठेके पर दे देता है।

“संस्कारी देशभक्तों” के कुसंस्कारी शोहदे – सत्ता की शह पर बेख़ौफ़ गुण्डे!

”बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” वाली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने बेटे को बेटियों के बारे में कैसे संस्कार दिये हैं, इस घटना से सहज ही समझा जा सकता है व साथ ही पानी की तरह साफ़ केस में सत्ता पक्ष के लोग तरह-तरह की दलीलें देकर आरोपी को बचाने की हरसम्भव कोशिश कर रहे हैं और पूरे घटनाक्रम को देखते हुए सरकारी दबाव के चलते पुलिस की मिलीभगत भी अब किसी से छिपी नहीं है। हालाँकि बाद में देश-भर में चण्डीगढ़ पुलिस के इस ग़ैर-जि़म्मेदाराना व सत्तापरस्त रवैये के खि़लाफ़ उठी विरोध की आवाज़ों ने पुलिस को फिर से धाराएँ लगाकर दोनों को गिरफ़्तार करने पर मज़बूर कर दिया।

गोरखपुर में मासूमों की मौत – अब भी चेत जाओ वरना हत्यारों-लुटेरों का यह गिरोह पूरे समाज की ऑक्सीजन बन्द कर देगा!

इस वर्ष के बजट में चिकित्सा शिक्षा का आवंटन घटाकर आधा कर दिया गया है। जान लें कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज और अन्य सरकारी कॉलेजों को इसी मद में पैसे मिलते हैं। ऐसे 14 मेडिकल कॉलेजों और उनके साथ जुड़े टीचिंग अस्पतालों का बजट पिछले वर्ष के 2344 करोड़ से घटाकर इस वर्ष 1148 करोड़ कर दिया गया है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज का आवंटन पिछले वर्ष 15.9 करोड़ से घटकर इस वर्ष केवल 7.8 करोड़ रह गया है। इतना ही नहीं, मशीनों और उपकरणों के लिए इसे मिलने वाली राशि पिछले वर्ष 3 करोड़ से घटाकर इस वर्ष केवल 75 लाख कर दी गयी है।

‘आज़ादी कूच’ : एक सम्भावना-सम्पन्न आन्दोलन के अन्तरविरोध और भविष्य का प्रश्न

हम एक बार यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि हमारी इस कॉमरेडाना आलोचना का मकसद है इस आन्दोलन के सक्षम और युवा नेतृत्व के समक्ष कुछ ज़रूरी सवालों को उठाना जिनका जवाब भविष्य में इसे देना होगा। आज समूचा जाति-उन्मूलन आन्दोलन और साथ ही हम जैसे क्रान्तिकारी संगठन व व्यक्ति जिग्नेश मेवानी की अगुवाई में चल रहे इस आन्दोलन को उम्मीद, अधीरता और अकुलाहट के साथ देख रहे हैं। किसी भी किस्म का विचारधारात्मक समझौता, वैचारिक स्पष्टवादिता की कमी और विचारधारा और विज्ञान की कीमत पर रणकौशल और कूटनीति करने की हमेशा भारी कीमत चुकानी पड़ती है, चाहे इसका नतीजा तत्काल सामने न आये, तो भी।

मध्य प्रदेश में रोज़ाना 64 बच्चों की मौत

मध्य प्रदेश भारत में ग़रीबी रेखा के नीचे सबसे ज़्यादा आबादी वाले 14 राज्यों में शामिल है और सबसे अधिक मृत्यु दर वाले राज्यों में से एक है। यहाँ 1000 के पीछे 52 बच्चों की मौत एक वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है और नवजात बच्चों का वज़न ढाई किलोग्राम से भी कम होता है। भारत में 31 प्रतिशत बच्चों का क़द आयु के अनुसार कम है और 42 प्रतिशत बच्चों का वज़न भी उनकी आयु के मुताबिक़ कम है। भारत के कुल कुपोषित बच्चों में 60 प्रतिशत मध्यप्रदेश और झारखण्ड के हैं।

इक्कीसवीं सदी में भी नन्हीं जिन्दगियों को बाल विवाह की बलि चढ़ा रहा है समाज

पूँजीवाद ने जनता को ग़ुलाम और पिछड़ा बनाये रखने के लिए तमाम तरह के सामन्ती मूल्य-मान्यताओं के साथ समझौता करके न सिर्फ़ उन्हें बनाये रखा है बल्कि लगातार बढ़ावा भी दे रहा है। इस पूँजीवादी समाज व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए राजनीतिक और आर्थिक संघर्ष चलाने के साथ ही पिछड़ी सोच और संस्‍कृति से भी लड़ना होगा। पहले के संघर्षों और सामाजिक परिवर्तन द्वारा स्त्रियों ने कुछ हद तक सम्मान से जीने का हक़ पाया है। बराबरी का हक़ पाने के लिए पूँजीवादी व्यवस्था को ही बदलना होगा।

नोएडा में ज़ोहरा के साथ हुई घटना : घरेलू कामगारों के साथ बर्बरता की एक बानगी

यह सब कुछ बताता है कि आज ग़रीब बिखरी हुई आबादी के लिए अपने हक़ों के लिए आवाज़ उठाना कितना मुश्किल हो गया है और जब तक कि वे संगठित नहीं हो जाते हैं, तब तक उनके सामने ये मुश्किलें बनी रहेंगी। साथ ही साथ यह घटना बताती है कि आम मेहनतकशों की एकता को तोड़ने और उनके खि़लाफ़ नफ़रत फैलाने के लिए फासीवादी ताक़तें बेशर्मी के साथ धर्म का इस्तेमाल करती हैं ताकि असली मुद्दे पर पर्दा डाला जा सके।

मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक

संघ और उसके तमाम अनुषंगी संगठन ऐसे झूठ फैलाकर हिन्दू जनता में मुस्लिमों के प्रति विद्वेष पैदा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ऐसे हज़ारों झूठ होते हैं जो रोज़ सोशल मीडिया पर फैलाये जाते हैं। इतने कि सबका जवाब देना सम्भव भी नहीं है। उनकी एक नीति यही है कि हम झूठ बोलते जायेंगे, तुम कितनों का पर्दाफ़ाश करोगे। तुम जब तक एक का पर्दाफ़ाश करोगे, हम 256 और झूठ बोल चुके होंगे। और हमारा झूठ करोड़ों लोगों तक पहुँच चुका होगा।

अधिक अनाज वाले देश में बच्चे भूख से क्यों मर रहे हैं?

भारत में रोज़ाना 5000 बच्चे भूख और कुपोषण के कारण मर जाते हैं। इसका कारण पूछने पर हुक्मरान इसे ग़रीबों की आबादी या भगवान की करनी पर छोड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन उनके ये झूठ तर्क के दरबार में एक पल भी नहीं खड़े हो पाते। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़़ भारत में कुल आबादी की ज़रूरतों से ज़्यादा अनाज पैदा हो रहा है और ये अनाज गोदामों में पड़ा-पड़ा सड़ रहा है, तो भुखमरी, कुपोषण जैसी भयानक बीमारियों का कारण भगवान की मर्ज़ी या आबादी नहीं हो सकता। इसके कारण दस्त जैसी बीमारियाँ, जिनके कारण और इलाज कई दशक पहले ही ढूँढ़े जा चुके हैं, वो भी नहीं हैं। इसका कारण यह है कि आज का समाज भी एक वर्गीय समाज है। मतलब कुछ लोग उत्पादन के साधनों पर क़ब्ज़ा किये हुए हैं। बहुसंख्यक आबादी इन साधनों की मुहताज़ है।