बाल कुपोषण के भयावह आँकड़े व सरकारों की अपराधी उदासीनता
बीती 13 जनवरी को झारखण्ड की रघुबर सरकार ने मिड डे मील के तहत बच्चों को मिलने वाले अण्डों में कटौती की घोषणा करते हुए इसे हफ़्ते में तीन से दो करने का फै़सला ले लिया। सरकार ने इसका कारण बताया है कि हर दिन बच्चों को अण्डा खिलाना सरकार के लिए “महँगा” सौदा पड़ रहा है। ताज्जुब की बात है कि राज्य की खनिज सम्पदाओं, जंगलों, पहाड़ों को अपने कॉर्पोरेट मित्रों के हाथों औने-पौने दाम पर बेचना सरकार को कभी “महँगा” नहीं पड़ा। ग़ौरतलब है कि झारखण्ड देश के सबसे कुपोषित राज्यों में से एक है और खनिज व प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस राज्य के 62% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। राज्य के कुल कुपोषित बच्चों में से 47% बच्चों में ‘स्टण्टिंग’ यानी उम्र के अनुपात में औसत से कम लम्बाई पायी गयी है जो कि कुपोषण की वजह से शरीर पर पड़ने वाले अपरिवर्तनीय प्रभावों में से एक है। पूरे देश के कुपोषण के आँकड़ों पर नज़र डालें तो UNICEF के अनुसार भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के 39% बच्चे स्टण्टिंग के शिकार हैं।