Category Archives: समाज

बदहाली के सागर में लुटेरों की ख़ुशहाली के जगमगाते टापू – यही है देश के विकास की असली तस्वीर

सरकार और उसके भाड़े के अर्थशास्त्रियों द्वारा पेश किये जा रहे आँकड़ों की ही नज़र से अगर कोई देश के विकास की तस्वीर देखने पर आमादा हो तो उसे तस्वीर का यह दूसरा स्याह पहलू नज़र नहीं आयेगा। उसे तो बस यही नज़र आयेगा कि नोएडा में सैमसंग की विशाल मोबाइल फ़ैक्टरी खुल गयी है। चौड़े एक्सप्रेस-वे बन रहे हैं जिन पर महँगी कारें फ़र्राटा भर रही हैं। पिछले वर्ष के दौरान देश में 17 नये ”खरबपति” और पैदा हुए जिससे भारत में खरबपतियों की संख्या शतक पूरा कर 101 तक पहुँच गयी। देश की शासक पार्टी का 1100 करोड़ रुपये का हेडक्वाटर आनन-फ़ानन में बनकर तैयार हो गया है और देश की सबसे पुरानी शासक पार्टी का ऐसा ही भव्य  मुख़यालय तेज़ी से बनकर तैयार हो रहा है।

देशभर में लगातार जारी है जातिगत उत्पीड़न और हत्याएँ

जुझारू संघर्ष मेहनतकश दलितों को ही खड़ा करना होगा और इस लड़ाई में उन्हें अन्य जातियों के ग़रीबों को भी शामिल करने की कोशिश करनी होगी। ये रास्ता लम्बा है क्योंकि जाति व्यवस्था के हज़ारों वर्षों के इतिहास ने ग़रीबों में भी भयंकर जातिगत विभेद बनाये रखा है पर इसके अलावा कोई अन्य रास्ता भी नहीं है। जातिगत आधार पर संगठन बनाकर संघर्ष करने की बजाय सभी जातियों के ग़रीबों को एकजुट कर जाति-विरोधी संगठन खड़े करने होंगे तभी इस बदनुमा दाग से छुटकारा पाने की राह मिल सकती है।

एससी/एसटी एक्ट को कमज़ोर करने के खि़लाफ़ नौभास द्वारा महाराष्ट्र में चलाया गया अभियान

20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षित दलित आबादी पर होने वाले अत्याचार के खि़लाफ़ 1989 में बने क़ानून को कमज़ोर करने का फ़ैसला सुनाया गया। जिसके अनुसार कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के बाद अब एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी गयी है और साथ ही अग्रिम जमानत पर से रोक को हटा दिया गया है। इस फ़ैसले का देशभर में विरोध हुआ और 2 अप्रैल को क़ानून के बदलाव के विरोध में भारत बन्द का भी आह्वान किया गया था। नौजवान भारत सभा ने भी सरकार द्वारा एससी/एसटी एक्ट को कमज़ोर करने के विरोध में महाराष्ट्र के मुम्बई, पुणे और अहमदनगर इलाक़ों में अभियान चलाया।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी क़ानून में ”बदलाव” – जनहितों में बने क़ानूनों को कमज़ोर या ख़त्म करने का गुजरात मॉडल

सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी क़ानून में ”बदलाव” – जनहितों में बने  क़ानूनों को कमज़ोर या ख़त्म करने का गुजरात मॉडल सत्यनारायण (अखिल भारतीय जाति विरोधी मंच, महाराष्ट्र) न्यारपालिका जब किसी अत्यन्त…

किसी भी रूप में बलात्कार का समर्थन करने वालाें के लिए इस समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए!

दिल्ली के संसद मार्ग पर कठुआ और उन्नाव के दोषियों को सज़ा दिलाने और बढ़ते स्त्री विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए सैकड़ों की संख्या में आम नागरिक, छात्र, युवा इकट्ठे हुए। स्त्री मुक्ति लीग, नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन ने भी इस प्रदर्शन में हिस्सेदारी की और कहा कि कठुआ और उन्नाव में हुए बलात्कारों की बर्बरता और इन अपराधों के दोषियों को सत्ता में बैठे नेता-मंत्रियों द्वारा बचाने की कवायद बेहद ही शर्मनाक है। मोदी सरकार द्वारा ‘न्यू इंडिया’ का जो गुब्बारा फुलाया जा रहा है उसकी सच्चाई को वास्तव में बढ़ते हुए स्त्री विरोधी, दलित और अल्पसंख्यक विरोधी, आम मेहनतकश अवाम और मज़दूर विरोधी घटनाओं से बखूबी समझा जा सकता है। इस प्रदर्शन के माध्यम से प्रदर्शनकारियों ने बलात्कारियों को सख़्त सज़ा देने की माँग को उठाया।

सत्ता पर काबिज़ लुटेरों-हत्यारों-बलात्कारियों के गिरोह से देश को बचाना होगा!

यूँ तो पिछले कई वर्षों से भारतीय समाज एक भीषण सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक और नैतिक संकट से गुज़र रहा है, परन्तु अप्रैल के महीने में सुर्खियों में रही कुछ घटनाएँ इस ओर साफ़ इशारा कर रही हैं कि यह चतुर्दिक संकट अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुँचा है। जहाँ एक ओर कठुआ और उन्नाव की बर्बर घटनाओं ने यह साबित किया कि फ़ासिस्ट दरिंदगी के सबसे वीभत्स रूप का सामना औरतों को करना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका द्वारा असीमानन्द जैसे भगवा आतंकी और माया कोडनानी जैसे नरसंहारकों को बाइज्जत बरी करने और जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत की उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच तक कराने से इनकार करने के बाद भारत के पूँजीवादी लोकतंत्र का बचा-खुचा आखिरी स्तम्भ भी ज़मींदोज़ होता नज़र आया। कहने की ज़रूरत नहीं कि ये सब फ़ासीवाद के गहराते अँधेरे के ही लक्षण हैं।

लगातार बढ़ती मज़ूदरों की असुरक्षा

भारत जैसे देश में जहाँ 90 प्रतिशत से ज़्यादा मज़दूर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने को मजबूर हैं, मज़ूदरों का जीवन तमाम कि़स्मे की असुरक्षाओं से घिरा रहता है। वैकल्पिक रोज़गार की अनुपलब्धता, वेतन की कमी व अनियमितता, छँटनी का ख़तरा, कार्यस्थल पर सुरक्षा उपकरणों की कमी, अपर्याप्त स्वास्थ्य   सुविधाएँ, आवास की तंगी और सामाजिक असुरक्षा उनके जीवन के जोखिम को लगातार बढ़ाती रहती हैं। कार्यस्थल पर बदसलूकी, भेदभाव और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएँ लगातार बढ़ती रही हैं।

असली मुद्दों को कस के पकड़ रहो और काल्पनिक मुद्दों के झूठ को समझो।

गुड़गाँव के एक औद्योगिक क्षेत्र के पास एक मज़दूर बस्ती में हज़ारों मज़दूर रहते हैं, जो मारुती और होण्डा जैसी बड़ी कम्पनियों और उनके लिए पुर्जे बनाने वाली अनेक छोटी-छोटी कम्पनियों में मज़दूरी करते हैं। इस बस्ती में अन्दर जाने पर हम देखेंगे कि यहाँ बनी लाॅजों के 10×10 फि़ट के गन्दे कमरों में एक साथ 4 से 6 मज़दूर रहते हैं जो कमरे पर सिर्फ़ खाने और सोने के लिए आते हैं। इसके सिवाय ज़्यादातर मज़दूर दो शिफ़्टों में काम करने के लिए सप्ताह के सातों दिन 12 से 16 घण्टे कम्पनी में बिताते हैं, जिसके बदले में उन्हें 6 से 14 हज़ार मज़दूरी मिलती है जो गुड़गाँव जैसे शहर में परिवार के साथ रहने के लिए बहुत कम है।

जाति अहंकार में चूर गुण्डों द्वारा दलित छात्र की सरेआम पीट-पीटकर हत्या

पिछले दिनों इलाहाबाद में दिलीप सरोज नाम के एक दलित छात्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। इस घटना का सीसीटीवी फ़ुटेज और वीडियो जब वायरल हुआ तो देखने वाला हर शख्स स्तब्ध रह गया है। इस घटना स्थल से सिर्फ़ 200 मीटर की दूरी पर इलाहाबाद के एसएसपी और उसके 100 मीटर आगे डीएम का ऑफि़स था। लेकिन घटना होने के बहुत देर बाद भी पुलिस वहाँ नहीं पहुँची। पुलिस प्रशासन की संवेदनहीनता इतनी कि इलाहाबाद के विभिन्न छात्र संगठनों और जनसंगठनों की ओर से जब इस मुद्दे पर व्यापाक आन्दोलन की शुरुआत की गयी, तब जाकर पुलिस ने 24 घण्टे बाद एफ़आईआर दर्ज किया।

”रामराज्य” में गाय के लिए बढ़ि‍या एम्बुलेंस और जनता के लिए बुनियादी सुविधाओं तक का अकाल!

एक ओर लखनऊ में उपमुख्यमन्त्री केशव प्रसाद मौर्य ने गाय ”माता” के लिए सचल एम्बुलेंस का उद्घाटन किया तो दूसरी ओर राजस्थान सरकार ने अदालत में स्वीकार किया है कि साल 2017 में अक्टूबर तक 15 हज़ार से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है। नवम्बर और दिसम्बर के आँकड़े इसमें शामिल नहीं हैं। उनको मिलाकर ये संख्या और बढ़ जायेगी। डेढ़ हज़ार से अधिक नवजात शिशु तो केवल अक्टूबर में मारे गये। सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कोठारी को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार भारत में नवजात बच्चों के मरने का आँकड़ा बड़ा ही भयावह है और इसमें मध्य प्रदेश और यूपी सबसे टॉप पर हैं।