अब ज़रा सोचिये! एक तरफ ये माया-मुक्त सन्त समाज है और दूसरी तरफ देश की 84 करोड़ जनता, जो सुबह से शाम तक खटने के बावजूद एक दिन में 20 रु. से अधिक नहीं कमा पाती। 9000 बच्चे भूख और कुपोषण से रोज़ मर जाते हैं और 36 करोड़ लोग बेघर या झुग्गी-झोंपड़ीवासी है। इस आबादी को भौतिक सुखों या ‘‘माया’’ से दूर रहने, कम से कम में जीने में ही आत्मिक सन्तोष प्राप्त करने का प्रवचन देने वाले बाबाओं का भोग-विलास देखकर तो आप भी शायद मेरी तरह यही कहेंगे – ग़रीब जनता के अमीर सन्तो! जनता को माया त्यागकर (जो कि वस्तुतः उसके पास है ही नहीं) परलोक सुधारने का उपदेश देने वालो! तुम्हारे परलोक का क्या होगा? तुम्हारी माया देखकर तो इन्द्र भी ख़ुशी-ख़ुशी स्वर्ग का सिंहासन छोड़ देंगे! तुम्हारे विलासी फूहड़ माया प्रदर्शन पर जितना धन ख़र्च होता है वो जनता पर किया जाता, तो परलोक की कौन जाने पर इहलोक से उनकी कुछ समस्याओं का अन्त ज़रूर हो जाता। हाँ! एक बात छूट रही थी कि भक्तों की जगह इन धर्मगुरुओं के हृदय में होती है (अब बाबा लोग तो यही बताते हैं!)। देखा नहीं, चिदानन्द स्वामी प्रीति जिंटा को साथ लेकर घूम रहे थे। यह ज़रूर है कि क्लास (वर्ग) का ध्यान बाबा लोग भी रखते हैं। तभी तो शाही स्नान का मार्ग सार्वजनिक कर दिये जाने पर अखाड़ा परिषद के महन्त ज्ञानदास मेला प्रशासन पर बिफ़र पड़े। उन्होंने बताया कि इससे इष्ट देव का अपमान होता है। इनके इष्ट देव को केवल एसी गाड़ियों में घूमने वाले साफ़-सुथरे, चिकने-चिकने लोग ही पसन्द हैं। पर धर्मगुरुओ, आपको कम से कम झूठ तो नहीं बोलना चाहिए!