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मज़दूरों के जुझारू संघर्ष और देशव्यापी जनदबाव से गोरखपुर में मजदूर आन्दोलन को मिली आंशिक जीत

कल ‘मज़दूर सत्याग्रह’ के लिए शान्तिपूर्ण ढंग से आयुक्त कार्यालय पर जा रहे मजदूरों पर शहर में जगह-जगह हुए लाठीचार्ज, गिरफ्तारी, सार्वजनिक वाहनों तक से उतारकर मजदूरों की पिटाई और महिला मजदूरों के साथ पुलिस के दुव्यर्वहार की चैतरफा भर्त्‍सना और सैकड़ों मजदूरों के टाउनहाल पर भूख हड़ताल शुरू कर देने के बाद प्रशासन भारी दबाव में आ गया था। अधिकारियों ने देर शाम हिरासत में लिए गए सभी मजदूर नेताओं और मजदूरों को रिहा कर दिया तथा मालिकों को वार्ता के लिए बुलाया था। कुछ मांगों पर मालिक की सहमति तथा आज औपचारिक वार्ता तय होने के बाद कल रात अधिकांश मजदूरों द्वारा भूख हड़ताल स्थगित कर धरना हटा लिया गया था लेकिन करीब 25 मजदूरों का जत्था भूख हड़ताल जारी रखे था।

About 100 workers including women workers arrested, after second round of lathicharge in GORAKHPUR

The brutal crackdown on workers continues in Gorakhpur. The workers peacefully agitating for justice in the case of firing on workers were lathicharged and attacked with water cannons when they tried to proceed to the commissioner’s office. The workers dispersed and tried to get to the collectorate in small groups but the police were searching on all routes and stopped a large number of workers en route.

Urgent: Please act now! District administration attacked the peaceful demonstration of workers in Gorakhpur, leaders arrested

The district administration today attacked the peaceful demonstration of workers in Gorakhpur who were proceeding to the Divisional Commissioner’s office to start a Mazdoor Satyagrah to demand justice in the case of firing on workers injuring 19 workers and a girl student.

गोरखपुर में मजदूरों पर फायरिंग तथा जिला प्रशासन के दमनात्मक रवैये की व्यापक निन्दा

गोरखपुर में गत 3 मई को मजदूरों पर हुई फायरिंग के बाद आज तक दोषियों पर कार्रवाई न होने और मजदूरों तथा मजदूर नेताओं के विरुद्ध प्रशासन के दमनात्मक रवैये की कठोर निन्दा करते हुए देशभर के वरिष्ठ न्यायविदों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कर्मियों और ट्रेडयूनियन नेताओं ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से इस मामले में अविलम्ब हस्तक्षेप कर मजदूरों को इंसाफ दिलाने की माँग की है। ज्ञातव्य है कि इस घटना में 19 मजदूर गोली से घायल हो गये थे जिनमें से एक की हालत अब भी गंभीर बनी हुई है।

जनवादी अधिकार कर्मियों, कवियों-लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों के नाम एक अपील

मई दिवस की 125वीं वर्षगांठ के मौके पर दिल्‍ली में रैली करने तथा सरकार को मांगपत्रक सौंपने के लिए आये गोरखपुर के मज़दूर लौटकर जैसे ही काम पर गये, अंकुर उद्योग लिमिटेड नामक एक कारख़ाने के मालिक द्वारा बुलाये गुण्‍डों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं जिससे 19 मज़दूर घायल हो गये। एक मज़दूर की रीढ़ में गोली लगी है और वह ज़िंदगी के लिए जूझ रहा है। यह हमला प्रशासन और पुलिस की पूरी मिलीभगत के साथ सुनियोजित ढंग से किया गया। करीब 50-60 हमलावरों को मज़दूरों ने घंटों तक कारख़ाने में घेरकर रखा था लेकिन उन्‍हें गिरफ़्तार करने के बहाने पुलिस गुण्‍डों को निकाल कर ले गयी और उन्‍हें छोड़ दिया। नामज़द रिपोर्ट के बावजूद गोली चलाने वाले कुख्‍यात हिस्‍ट्रीशीटर प्रदीप सिंह और मिलमालिक अशोक जालान (जो लगातार मौके पर मौजूद था) को गिरफ़्तार नहीं किया गया है। उल्‍टे मज़दूर नेताओं को फर्जी मामलों में फंसाकर गिरफ़्तार करने की साज़ि‍शें जारी हैं।

गोरखपुर में मज़दूरों पर गोलीबारी में कम से कम 20 मज़दूर घायल :: मालिकों और प्रशासन की मिली-भगत – पुलिस गुंडों को बचाने में लगी

गोरखपुर (उ.प्र.) के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र की अंकुर उद्योग लि. नामक फैक्‍ट्री के मालिक द्वारा बुलाए गए गुण्‍डों ने आज (3 मई) सुबह मज़दूरों पर हमला किया। गुण्‍डों द्वारा की गई गोलीबारी से कम से कम 20 मज़दूर गम्‍भीर रूप से घायल हो गये हैं जिन्‍हें जिला अस्‍पताल में भरती कराया गया है। यह हमला प्रशासन की पूरी मिली-भगत के साथ किया गया है। अंकुर उद्योग के मालिक ने सहजनवां क्षेत्र के कुख्‍यात हिस्‍ट्री शीटर प्रदीप सिंह और उसके गुंडों को भाड़े पर लेकर यह काम कराया है। मज़दूरों ने फैक्‍ट्री को घेर रखा है ताकि प्रदीप सिंह और उसके गुण्‍डे निकल कर भाग न सकें। पुलिस बल घटनास्‍थल पर पहुंच गया है और फैक्‍ट्री गेट पर मौजूद है लेकिन उसने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। उन्‍होंने अब तक प्राथमिकी भी नहीं दर्ज की है। पुलिस की पूरी कोशिश है कि मज़दूरों को तितर-बितर करके गुंडों को वहां से निकाल दिया जाये। लेकिन मज़दूर वहां घेरा डाले हुए हैं।

मजदूर मांगपत्रक आंदोलन 2011 – हर इंसाफ़पसन्‍द नागरिक से समर्थन की अपील

लम्बे संघर्षों और क़ुर्बानियों की बदौलत जो क़ानूनी अधिकार मज़दूरों ने हासिल किये थे, आज उनमें से ज़्यादातर छीने जा चुके हैं। जो पुराने श्रम क़ानून (जो क़तई नाकाफ़ी हैं) काग़ज़ों पर मौजूद हैं, उनका व्यवहार में लगभग कोई मतलब नहीं रह गया है। दिखावे के लिए सरकार जो नये क़ानून बना रही है, वे ज़्यादातर प्रभावहीन और पाखण्डपूर्ण हैं या मालिकों के पक्ष में हैं। श्रम क़ानून न केवल बेहद उलझे हुए हैं, बल्कि न्याय की पूरी प्रक्रिया अत्यन्त जटिल और लम्बी है और मज़दूरों को शायद ही कभी न्याय मिल पाता है। श्रम विभाग के कार्यालयों, अधिकारियों, कर्मचारियों की संख्या ज़रूरत से काफ़ी कम है और श्रम क़ानूनों को लागू करवाने के बजाय यह विभाग प्राय: मालिकों के एजेण्ट की भूमिका निभाता है। श्रम न्यायालयों और औद्योगिक ट्रिब्यूनलों की संख्या भी काफ़ी कम है। भारत की मेहनतकश जनता के लिए संविधानप्रदत्त जीने के मूलभूत अधिकार का कोई मतलब नहीं है। नागरिक आज़ादी और लोकतान्त्रिक अधिकार उनके लिए बेमानी हैं।इन हालात में, भारत के मज़दूर, भारत की संसद और सरकार को बता देना चाहते हैं कि उन्‍हें यह अन्‍धेरगर्दी, यह अनाचार-अत्याचार अब और अधिक बर्दाश्त नहीं। मज़दूर वर्ग को हर क़ीमत पर हक़ और इंसाफ़ चाहिए और इसके लिए एक लम्बी मुहिम की शुरुआत कर दी गयी है। इसके पहले क़दम के तौर पर, संसद में बैठे जन-प्रतिनिधियों और शासन चलाने वाली सरकार के सामने, सम्मानपूर्वक जीने के लिए,अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करते हुए जीने के लिए, अपने न्यायसंगत और लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए, और इस देश की तमाम तरक़्क़ी में अपना वाजिब हक़ पाने के लिए मज़दूरों का एक माँग-पत्रक प्रस्तुत किया जा रहा है। इस माँग-पत्रक में कुल 26 श्रेणी की माँगें हैं जोभारत के मज़दूर वर्ग की लगभग सभी प्रमुख आवश्‍यकताओं का प्रतिनिधित्‍व करती हैं और साथ ही उसकी राजनीतिक माँगों को भी अभिव्‍यक्‍त करती हैं।

गोरखपुर में मज़दूर नेताओं को फर्ज़ी आरोप में गिरफ्तार किया। थाने पर बात करने गए मज़दूरों पर बार-बार लाठीचार्ज, कई घायल

गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र में आज दोपहर पुलिस ने बिगुल मज़दूर दस्ता और टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन से जुडे़ दो मज़दूर नेताओं तपीश मैन्दोला और प्रमोद कुमार को झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में थाने पर गए मज़दूरों पर बुरी तरह लाठीचार्ज किया गया और थानाध्‍यक्ष से बात करने गए दो अन्य मज़दूर नेताओं प्रशांत तथा राजू को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी जानकारी मिलते ही कई कारखानों के मज़दूर जैसे ही थाने पर पहुंचे उन पर फिर से लाठीचार्ज किया गया। मालिकों के इशारे पर कुछ असामाजिक तत्वों ने पथराव करने की कोशिश की जिसे मज़दूरों ने नाकाम कर दिया। स्पष्ट है कि ये कार्रवाइयां मज़दूरों को उकसाने के लिए की जा रही हैं जिससे पुलिस को दमन का बहाना मिल सके। दरअसल, पिछले कुछ समय से मज़दूर ‘मांगपत्रक आन्दोलन-2011’ की तैयारी में गोरखपुर के मज़दूरों की भागीदारी और उत्साह देखकर गोरखपुर के उद्योगपति बौखलाए हुए हैं। उद्योगपतियों और स्थानीय सांसद की शह पर लगातार मज़दूरों को इस आन्दोलन के खिलाफ़ भड़काने की कोशिश की जा रही है और फर्जी नामों से बांटे जा रहे पर्चों-पोस्टरों के जरिए और ज़बानी तौर पर मज़दूरों और आम जनता के बीच यह झूठा प्रचार किया जा रहा है कि यह आन्दोलन माओवादियों द्वारा चलाया जा रहा है।

बादाम मज़दूरों की 15 दिन लम्बी ऐतिहासिक हड़ताल समाप्त

इस हड़ताल के समापन के साथ दिल्ली के असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की अब तक की विशालतम हड़ताल का समापन हुआ। बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में हज़ारों असंगठित मज़दूरों ने सिद्ध किया कि वे लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं। जाहिर है कि मज़दूर अपनी सभी माँगों को नहीं जीत सके। लेकिन इस हड़ताल का महत्व महज़ इतना नहीं रह गया था कि मज़दूरी कितनी बढ़ती है और कितनी नहीं। एक ऐसे उद्योग में जहाँ मज़दूरों को मालिक और ठेकेदार गुलामों की तरह खटाते थे, उनकी साथ लगातार बदसलूकी की जाती थी और उन्हें इंसान तक नहीं समझा जाता था, वहाँ मज़दूरों ने एक ऐतिहासिक और जुझारू लड़ाई लड़कर इज्जत का अपना हक हासिल किया। मालिकों को पहली बार मज़दूरों की ताक़त का अहसास हुआ और उनकी यह गलतफहमी दूर हो गयी कि मज़दूर उनकी ज़्यादतियों को चुपचाप बर्दाश्त करते रहेंगे और कभी कुछ नहीं बोलेंगे। हड़ताल के अंत के दौर तक मालिक मज़दूरों के सामने हर तरह से झुकने लगे थे। इसके अतिरिक्त, न सिर्फ मालिकों को मज़ूदरों की ताक़त का अन्दाज़ा चला, बल्कि पूरे इलाके में संगठित मज़दूरों की ताक़त एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी।

2000 मज़दूरों ने विशाल चेतावनी रैली निकाली

यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी तादाद में एकजुट होकर करावलनगर के मज़दूरों ने हड़ताल की है। इसके पहले भी कुछ छिटपुट हड़तालें हुई थीं, लेकिन तब बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के मज़दूर एकजुट नहीं हो पाते थे और हड़तालें सफल नहीं हो पाती थीं। बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में यह पहला मौका है जब सभी मज़दूर जाति, गोत्र और क्षेत्र के बँटवारों को भुलाकर अपने वर्ग हित को लेकर एकजुट हुए हैं।