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बादाम मज़दूरों के नेता रिहा

करावलनगर इलाके में चौथे दिन भी हज़ारों की संख्या में मज़दूर हड़ताल स्थल पर मौजूद रहे। हड़ताल के जारी रहने से करावलनगर का पूरा बादाम संसाधन उद्योग ठप्प पड़ गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के नवीन ने कहा कि करावलनगर पुलिस थाने के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और मज़दूरों की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ न कराए जाने के कारण यूनियन सीधे पुलिस उपायुक्त, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पास शिकायत दर्ज़ कराएगी और अगर तब भी कार्रवाई नहीं होती है तो फिर हमारे पास अदालत जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। ग़ौरतलब है कि बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष से बादाम मज़दूर अपने कानूनी हक़ों की माँग कर रहे हैं और साथ ही बादाम संसाधन उद्योग को सरकार द्वारा औपचारिक दर्ज़ा दिये जाने की माँग कर रहे हैं। फिलहाल, सभी बादाम गोदाम मालिक गैर-कानूनी ढंग से बिना किसी सरकारी लाईसेंस या मान्यता के ठेके पर मज़दूरों से अपने गोदामों में काम करवा रहे हैं। इसमें बड़े पैमाने पर महिला मज़दूर हैं लेकिन उनके लिए शौचालय या शिशु घर जैसी कोई सुविधा नहीं है। बादाम मज़दूरों को तेज़ाब में डाल कर सुखाए गए बादामों को हाथों, पैरों और दांतों से तोड़ना पड़ता है। उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं और उन्हें टी.बी., खांसी, आदि जैसे रोग आम तौर पर होते रहते हैं। महिला मज़दूरों के बच्चे भी काफ़ी कम उम्र में ही जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में मज़दूरों की जुझारू हड़ताल तीसरे दिन भी जारी

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के करावलनगर क्षेत्र में करीब 30 हज़ार मज़दूर परिवार बादाम तोड़ने का काम करते हैं। यह पूरा व्यवसाय देशव्यापी नहीं, बल्कि विश्वव्यापी है। बेहद आदिम परिस्थितियों में गुलामों की तरह खटने वाले ये मज़दूर जिन कम्पनियों के बादाम का संसाधन करते हैं, वे कम्पनियाँ भारत की नहीं बल्कि अमेरिका, आस्‍ट्रेलिया और कनाडा की हैं। ये भारत के सस्ते श्रम के दोहन के लिए अपने ड्राई फ्रूट्स की प्रोसेसिंग यहाँ करवाते हैं। दिल्ली की खारी बावली पूरे एशिया की सबसे बड़ी ड्राई फ्रूट मण्डी है। खारी बावली के बड़े मालिक सीधे विदेशों से बादाम मँगवाते हैं और उन्हें संसाधित करके वापस भेज देते हैं। ये मालिक संसाधन का काम छुटभैये ठेकेदारों से करवाते हैं जिन्होंने दिल्ली के करावलनगर, सोनिया विहार, बुराड़ी-संतनगर और नरेला में अपने गोदाम खोल रखे हैं। इन गोदामों कोई भी सरकारी मान्यता या लाईसेंस नहीं प्राप्त है और ये पूरी तरह से गैर-कानूनी तरह से काम कर रहे हैं। एक-एक गोदाम में 20 से लेकर 40 तक मज़दूर काम करते हैं। इनके काम के घंटे अधिक मांग के सीज़न में कई बार 16 घण्टे तक होते हैं। इन्हें बादाम की एक बोरी तोड़ने पर मात्र 50 रुपये दिये जाते हैं। इनमें महिला मज़दूर बहुसंख्या में हैं। उनके साथ मारपीट, गाली-गलौज और उनका उत्पीड़न आम घटनाएँ हैं।

बादाम तोड़ने वाले 25-25 हज़ार मज़दूर हड़ताल पर

नई दिल्‍ली के करावल नगर इलाके में बादाम तोड़ने वाले मज़दूरों ने हड़ताल की घोषणा कर दी है। ‘बादाम मज़दूर यूनियन’ के बैनर तले इन मज़दूरों के हड़ताल पर जाने से अमेरिका और ऑस्‍ट्रेलिया सहित कई यूरोपीय देशों में बादाम निर्यात प्रभावित हो गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजक आशीष ने कहा कि सरकार ने 1970 में ठेका मज़दूरी क़ानून के तहत जो बुनियादी अधिकार दिए थे उनका यहां कोई पालन नहीं हो रहा है। श्रम क़ानूनों के उल्‍लंघन से यहां के 20 हज़ार से ज्‍़यादा मज़दूर त्रस्‍त हैं। यूनियन के सदस्‍य राहुल ने कहा कि बेहिसाब महंगाई में न्‍यूनतम मज़दूरी भी न मिलने से मज़दूरों के परिवारों के सामने दाल-रोटी की चिंता बढ़ गयी है। लिहाज़ा मज़दूरों ने काम बंद कर दिया है।

बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजकों पर हमला, पुलिस ने गुण्‍डो की जगह संयोजकों को ही गिरफ्तार किया

पुलिस की इस अंधेरगर्दी से पूरे क्षेत्र के मज़दूरों में गुस्‍से की लहर दौड़ गयी। इस पूरे इलाके में क़रीब 25,000 मज़दूर बादाम तोड़ने का काम करते हैं। इन मज़दूरों के ठेकेदार बेहद निरंकुश हैं और क़रीब-क़रीब मुफ्त में मज़दूरों से काम करवाने के आदि हैं। बादाम मज़दूर यूनियन ने गुण्‍डों द्वारा मारपीट और पुलिस की मालिक परस्‍त भूमिका की तीखे शब्‍दों में निंदा की है। यूनियन ने बताया कि कल एक प्रतिनिधिमण्‍डल पुलिस के उच्‍चाधिकारियों से मिलेगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेगा। युनियन का कहना हैकि यदि उन्‍हें न्‍याय नहीं मिला तो वे आन्‍दोलनात्‍मक रुख अपनाने के लिए तैयार रहेंगे।

दैनिक हिन्‍दुस्‍तान में ‘बिगुल’ की चर्चा

आज (28/10/09) के दैनिक हिन्‍दुस्‍तान में प्रकाशित अपने कॉलम ‘ब्‍लॉग चर्चा’ में चर्चित पत्रकार और ब्‍लॉगर रवीश कुमार ने ‘बिगुल’ के ब्‍लॉग का विस्‍तृत उल्‍लेख किया है। साथ ही उन्‍होंने मुख्‍यधारा के मीडिया में मजदूरों और मजदूर आन्‍दोलनों की अनदेखी पर भी सवाल उठाया है। वे लिखते हैं कि मुख्‍यधारा के मीडिया में मजदूरों के मुद्दों के प्रति सहनशीलता खत्‍म होती जा रही है। मजदूरों के आन्‍दोलन खबर तभी बनते हैं जब वे कैमरों के लिए हंगामेदार और नजरें खींचने वाली तस्‍वीरें दे सकें। रवीश ने ‘बिगुल’ में प्रकाशित विभिन्‍न आन्‍दोलन और मजदूरों के शोषण की रिपोर्टों का भी जिक्र किया है। मजदूरों और मजदूरों के इस ब्‍लॉग की बातें व्‍यापक पाठक समुदाय तक पहुंचाने के लिए हम उनके आभारी हैं।

कविता – सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना – पाश

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से भर जाना
न होना तड़प का, सब सहन कर जाना,
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

अमेरिका की सूत मिलों में ज़िन्दगी की एक झलक — मदर जोंस

पूँजीवादी व्यवस्था को सिरे से उखाड़कर फेंक दिया जाये, इसके सिवा और कोई रास्ता मुझे दिखायी नहीं देता। जो बाप इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए वोट देता है, वह मेरी नजर में वैसा ही हत्यारा है मानो उसने पिस्तौल लेकर अपने बच्चों को गोली मार दी हो। लेकिन मुझे अपने चारों ओर समाजवाद की नई सुबह फूटने की निशानियाँ दिखायी दे रही हैं, और हर जगह अपने भरोसेमन्द साथियों के साथ मैं उस बेहतर दिन को लाने के लिए काम करूँगी और कामना करूँगी कि वह जल्दी आये।

मदर जोंस : मज़दूरों की बूढ़ी अम्मा और पूँजीपतियों के लिए ”अमेरिका की सबसे खतरनाक औरत”

आज़ादी और बराबरी के लिए मज़दूरों की लम्बी लड़ाई ने सैकड़ों ऐसी महिलाओं को जन्म दिया है जिन्होंने न केवल मुनाफाखोर लुटेरों के दिलों में दहशत पैदा कर दी बल्कि दुनियाभर में नये समाज के लिए लड़ने वालों के लिए एक मिसाल बन गई। इन्हीं में से एक थीं अमेरिका की मैरी जोंस जिन्हें मज़दूर प्यार और आदर से मदर जोंस कहकर पुकारते थे और पूँजीपतियों के अखबार ‘‘अमेरिका की सबसे खतरनाक औरत’’ कहते थे।

गोरखपुर में मज़दूर नेताओं पर मिल मालिकों का क़ातिलाना हमला

गोरखपुर में आज सुबह जब वी.एन. डायर्स की कपड़ा मिल के मज़दूर कारखाना गेट पर मीटिंग करने के बाद लौट रहे थे तो मिल मालिक, उसके बेटे और कंपनी के कुछ कर्मचारियों ने उन पर जानलेवा हमला किया। शुरू से आन्दोलन में अहम भूमिका निभा रहे बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं को उन्होंने खास तौर पर निशाना बनाया। मिल मालिक ने अपनी पिस्तौल के कुन्दे से मार-मारकर बिगुल मज़दूर दस्ता के उदयभान का सिर बुरी तरह फोड़ दिया जबकि प्रमोद को कारखाने के भीतर ले जाकर लोहे की छड़ों और डण्डों से बुरी तरह पीटा गया। हमले में कई मज़दूर भी घायल हो गये।

ज़िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम लड़ो

ज़िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम रचो,
तुम रचो, तुम रचो
तुम रचो हवा, पहाड़, रौशनी नयी
ज़िन्‍दगी नयी महान आत्‍मा नयी
सांस-सांस भर उठे अमिट सुगन्‍ध से
और फिर,
प्‍यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते।