Category Archives: मज़दूर अख़बार

लेनिन – मज़दूर अख़बार – किस मज़दूर के लिए

और अन्त में, औसत मज़दूरों के संस्तर के बाद वह व्यापक जनसमूह आता है जो सर्वहारा वर्ग का अपेक्षतया निचला संस्तर होता है। बहुत मुमकिन है कि एक समाजवादी अख़बार पूरी तरह या तक़रीबन पूरी तरह उनकी समझ से परे हो (आख़िरकार पश्चिमी यूरोप में भी तो सामाजिक जनवादी मतदाताओं की संख्या सामाजिक जनवादी अख़बारों के पाठकों की संख्या से कहीं काफ़ी ज्‍़यादा है), लेकिन इससे यह नतीजा निकालना बेतुका होगा कि सामाजिक जनवादियों के अख़बार को, अपने को मज़दूरों के निम्नतम सम्भव स्तर के अनुरूप ढाल लेना चाहिए। इससे सिर्फ़ यह नतीजा निकलता है कि ऐसे संस्तरों पर राजनीतिक प्रचार और आन्दोलनपरक प्रचार के दूसरे साधनों से प्रभाव डालना चाहिए – अधिक लोकप्रिय भाषा में लिखी गयी पुस्तिकाओं, मौखिक प्रचार तथा मुख्यत: स्थानीय घटनाओं पर तैयार किये गये परचों के द्वारा।

‘बिगुल’ के लक्ष्य और स्वरूप पर एक बहस और हमारे विचार

कुछ राजनीतिक कार्यकर्ताओं की यह राह है कि मज़दूर वर्ग के बीच सीधे-सीधे विचारधारात्मक-राजनीतिक प्रचार से अख़बार को बचना चाहिए और आर्थिक संघर्षों के मुद्दों एवं कार्रवाइयों तथा आम जनवादी अधिकार के सवालों के इर्दगिर्द लेख-टिप्पणियाँ-रपटें आदि छापकर आम मज़दूरों की चेतना के स्तर को ऊँचा उठाना चाहिए। ऐसे लोगों का मानना है कि इसी प्रक्रिया में आम मज़दूरों में से कुछ वर्ग-सचेत मज़दूर और उनमें से कुछ क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट तैयार होंगे। यह अर्थवाद और सामाजिक जनवाद की एक नयी मेंशेविक प्रवृत्ति है, यह एक तरह की अराजकतावादी संघाधिपत्यवादी प्रवृत्ति है जो मज़दूर वर्ग की पार्टी की अपरिहार्यता के बजाय यूनियन के संघर्षों को ही मुक्ति का मार्ग मानती है या महज़ आर्थिक लड़ाइयाँ लड़ने व यूनियनें खड़ी करना सर्वोपरि ”क्रान्तिकारी काम” मानती है और सोचती है कि इसी के ज़रिये मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी के गठन और निर्माण का काम भी पूरा हो जायेगा। चुनावी वामपन्थी तो ऐसा सोचते ही थे, क्रान्तिकारी शिविर में भी कुछ हिस्से मज़दूर वर्ग के बीच इसी तरह से काम करने के बारे में सोच रहे हैं और अर्थवाद के समान्तर जुझारू अर्थवाद और ट्रेडयूनियन के सामने जुझारू ट्रेडयूनियनवाद का मॉडल खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोगों को इस विषय पर लेनिन की शिक्षाओं के ककहरे से परिचित होने की ज़रूरत है।

इतने ही लाल… और इतने ही अन्तरराष्ट्रीय की आज ज़रूरत है

‘बिगुल’ का गहरा लाल रंग यदि आपको (चाहे व्यंग्य करने के लिए ही सही!) 1905 से 1917 की रूसी क्रान्ति की याद दिलाता है, तो यह गर्व की बात है हमारे लिए। मगर हमारे इस उद्यम में आपको ”लाल-लाल दिखावा” लगता है तो हम कुछ नहीं कर सकते। हाँ, बिना किसी लाल-लाल दिखावे के आप मज़दूर वर्ग के बीच प्रचार और संगठन की जो भी कार्रवाइयाँ कर रहे हों, उनके अनुभवों से हमें तथा ‘बिगुल’ के पाठकों को अवश्य शिक्षित कीजियेगा। बिना अन्तरराष्ट्रीय और लाल-लाल दिखावे के आप भारतीय जनता को लामबन्द करने के लिए अपने एक-एक लफ़्ज़ का इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं और एक सही पार्टी-निर्माण के लिए क्या कुछ कर रहे हैं, अवश्य सूचित कीजियेगा। ‘बिगुल’ पर हम जो ‘द्रव्य और श्रम’ व्यर्थ ख़र्च कर रहे हैं, उसकी चिन्ता के लिए धन्यवाद!

कुछ ज्‍़यादा ही लाल… कुछ ज्‍़यादा ही अन्तरराष्ट्रीय

और अगर आपने द्रव्य और श्रम ख़र्च करने का बीड़ा उठा ही लिया है तो उसका इस्तेमाल मार्क्‍सवाद के प्रचार-प्रसार के लिए कम और मज़दूर-किसानों से सरोकार रखने वाले संघर्षों के लिए ज्‍़यादा हो। मैं उम्मीद करता हूँ आप ग़ौर करेंगे। बिगुल को इण्डियन वर्किंग क्लास ओरियण्टेड बनाना चाहिए न कि महज़ अन्तरराष्ट्रीयवादी!

एक नये क्रान्तिकारी मज़दूर अख़बार की ज़रूरत

हम समझते हैं कि व्यावहारिक ठोस कामों के नाम पर सिर्फ़ आर्थिक माँगों तक सीमित रहना, या फिर इन्हें एकदम ही छोड़ देना दोनों ग़लत है। मज़दूर वर्ग को आर्थिक माँगों के साथ ही उसके राजनीतिक अधिकारों के लिए भी लड़ने की शिक्षा देनी होगी तथा साथ ही उनके बीच क्रान्तिकारी राजनीतिक प्रचार की कार्रवाई को तेज़ करना होगा। इस तरह विभिन्न कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी ग्रुपों की सोच प्रयोगों में उतरेगी, उनके बीच का ठहराव टूटेगा और आपसी बहस-विचार को नयी गति मिलेगी।
हम ‘बिगुल’ को इसका साधन बनाना चाहते हैं। हम इसके माध्यम से सभी सर्वहारा क्रान्तिकारियों को भारतीय क्रान्ति की समस्याओं पर खुली बहस का न्यौता देते हैं। यह अच्छा रहेगा। इससे मेहनतकश आबादी की राजनीतिक शिक्षा का काम भी तेज़ होगा और भविष्य में बनने वाली क्रान्तिकारी पार्टी का उनमें व्यापक आधार तैयार होगा।