आम जनता की बदहाली और दमन के बीच जी-20 का हो-हल्ला

आशीष

इसी वर्ष 9-10 सितम्बर को दिल्ली के प्रगति मैदान में जी-20 का 18वाँ शिखर सम्मेलन हो रहा है। जी-20 यानी बीस का समूह। इस समूह में भारत, अर्जेण्टीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इण्डोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन शामिल हैं। इसके अलावा जी-20 सम्मेलन में हर वर्ष कई और देश अतिथि देश के रूप में भाग लेते हैं। 1999 में यह समूह अस्तित्व में आया था।

इस समूह के प्रत्येक सदस्य देश के शासक वर्ग यानी कि पूँजीपतियों की नुमाइन्दगी करने वाली सरकार के प्रमुख अपने-अपने देश के शासक वर्ग के हितों के हिसाब से जी-20 के मंच का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार के मंचों का इस्तेमाल विभिन्न देशों के पूँजीपति वर्ग श्रमशक्ति की लूट की होड़, सस्ते कच्चे मालों पर कब्ज़े तथा व्यापारिक सौदेबाजी में अधिक से अधिक हिस्सा प्राप्त करने के लिए करते हैं। भारत में मज़दूर वर्ग के शोषण का बड़ा हिस्सा यहाँ का पूँजीपति वर्ग लेता है, छोटा हिस्सा दूसरे देश के पूँजीपति वर्ग प्राप्त करते हैं, विशेष तौर पर, उन्नत साम्राज्यवादी देशों के पूँजीपति वर्ग। मज़दूर वर्ग की श्रमशक्ति के लूट के एक छोटे से हिस्से को देकर बदले में यहाँ का पूँजीपति वर्ग बाहर से पूँजी और उन्नत तकनोलॉजी की मदद लेता है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मज़दूर वर्ग के शोषण एक छोटा हिस्सा पाने के बदले भारतीय पूँजीपति वर्ग बाहर के लुटेरों को भारत में लूट का अवसर देता है, हालाँकि भारत के भीतर मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा वह स्वयं अपने नियन्त्रण में रखता है। जी-20 समूह के सभी देशों के वित्त मन्त्री और केन्द्रीय बैंकों के गवर्नर सामंजस्य बैठाकर काम करते हैं, हर किसी की कोशिश यही होती है कि अपने देश के पूँजीपतियों को अधिक से अधिक लाभ दिला सके। जी-20 के सम्मेलन में तमाम विकसित साम्राज्यवादी देशों और विकासशील पूँजीवादी देशों के शासक वर्गों के बीच इन्हीं प्रश्नों को लेकर सौदेबाज़ी होती है।

भारत में जी-20 के शिखर सम्मेलन को लेकर गोदी मीडिया द्वारा किये जा रहे प्रचार की हक़ीक़त को समझना ज़रूरी है। गोदी मीडिया इस सम्मेलन को देश के लिए गौरव का अवसर बता रहा है। मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता को लूटने-खसोटने वाले शासक वर्ग के प्रतिनिधियों के सम्मेलन तो सबके लिए गौरव का अवसर नहीं हो सकता। अगर यह सम्मेलन भारत में हो रहा है तो भारत के पूँजीपतियों के लिए यह गौरव का उत्सव अवश्य है। लेकिन मज़दूर और मेहनतकश आपसी कुत्ताघसीटी और सौदेबाज़ी के लिए हो रहे लुटेरों के इस मजमे पर किसलिए गर्व महसूस करे?

मीडिया, सोशल मीडिया और बड़े-बड़े होर्डिंग के माध्यम से इस बात का प्रचार-प्रसार भी जोरों पर है कि भारत में यह सम्मेलन होना मोदी सरकार की महान कामयाबी है, जो कि वास्तव में  बहुत ही हास्यास्पद बात है। हर बार के सम्मेलन में किसी एक देश को इसकी अध्यक्षता दी जाती है और अगला सम्मेलन अध्यक्ष देश के मेज़बानी में उसी देश में होता है। यह मौका चक्रीय क्रम से इस समूह में शामिल सब देशों को ही मिलता है। अबकी बार भारत की बारी आयी है, तो यह कोई महान उपलब्धि नहीं है। भारत में नरेन्द्र मोदी की जगह कोई चमगादड़ दास या कद्दू प्रसाद नाम का व्यक्ति भी सरकार का प्रमुख होता तो भी यह सम्मेलन भारत में ही होता। इस शिखर सम्मेलन का भारत में आयोजन होने में मोदी सरकार का कोई योगदान नहीं है, क्योंकि अगला सम्मेलन कहाँ होगा रोटेशन अथवा क्रमिक तौर पर तय होता है। पिछले वर्ष यह सम्मेलन 15-16 नवम्बर 2022 को इण्डोनेशिया के बाली में हुआ था। अगले वर्ष 2024 में यह सम्मेलन ब्राज़ील की अध्यक्षता में होगा और यदि ब्राज़ील की सरकार इसे अपनी महान उपलब्धि बताना शुरू करें तो यह भी झूठ और कॉमेडी के अलावा कुछ नहीं होगा। 2022 के सम्मेलन में 1 दिसम्बर 2022 से 30 नवम्बर 2023 तक के लिए भारत को जी-20 की अध्यक्षता दी गयी थी। भारत की अध्यक्षता के अवधि में देश के 50 से अधिक शहरों में लगभग 200 बैठकें निर्धारित की गयीं जिनमें से कई बैठकें हो चुकी है और शेष बैठकें शिखर सम्मेलन तक हो जायेंगी।

विभिन्न राज्यों के शहरों में बैठक और राजधानी दिल्ली में शिखर सम्मेलन की तैयारियों में मोदी सरकार ने खज़ाना ही खोल दिया है।  जनता से वसूले गये टैक्स के पैसों को जमकर ख़र्च किया जा रहा है। सरकार की वाहवाही करते हुए विज्ञापन निकाले जा रहे हैं। दिल्ली में तो जी-20 के थीम पर एक नये पार्क का निर्माण किया जा रहा है। इसके साथ ही केन्द्र सरकार जी-20 के नाम पर ग़रीबों के ख़िलाफ़ खुलकर काम कर रही है। मसलन कड़कड़ाती सर्दी, चिलचिलाती धूप व गर्मी और बेमौसम बारिश के दिन भी कई स्थानों पर झुग्गी बस्तियों को तोड़ दिया गया। कई स्थानों पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर सड़क किनारे रेहड़ी पटरी लगाकर या छोटी दुकान चलाने वाले मेहनतकश लोगों का माल ज़ब्त कर लिया गया तथा उससे वह जगह छीन ली गयी। मुम्बई में जब जी-20 के प्रतिनिधि बैठक में भाग लेने पहुँचे तो वहाँ के झुग्गियों को छुपाने के लिए माहिम, वर्ली, बान्द्रा से लेकर बोरिवली तक इलाक़े को बड़े बड़े पर्दों से ढँक दिया गया। स्थानीय लोगों ने मीडिया को बताया कि यहाँ जितनी साफ-सफाई दिख रही है ऐसा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा।

आगरा में ताजमहल के आसपास आवारा कुत्तों और बन्दरों को पकड़-पकड़कर वहाँ की व्यवस्था को चाक-चौबन्द किया गया, क्या यह काम सरकार पहले नहीं करवा सकती थी? वैसे सभी सनातनी हिन्दुओं को सोचना चाहिए कि मोदी सरकार ने अपने विदेशी यवन मित्रों की आवभगत के लिए हनुमान के नुमाइन्दे बन्दरों के साथ ऐसा बुरा बर्ताव क्यों किया!? राँची में अतिक्रमण हटाने के नाम पर सड़क पर दुकान लगाने वाले लगभग डेढ़ सौ लोगों के सामान ज़ब्त कर लिये गये और उन्हें उस जगह से बेदखल कर दिया गया। देश की राजधानी दिल्ली में चमचमाती लाईट, अद्भुत चित्रकला और फूलों की सजावट के पीछे मजदूरों के आँसू और सिसकियाँ हैं, झूठे जश्न के शोर में जिसे दबाया जा रहा है। अपनी छवि चमकाने की सरकार की कोशिश ने लाखों ग़रीबों को बेघर कर दिया है। विदेशी मेहमानों के रास्ते में आने वाली झुग्गी बस्तियाँ ज़मींदोज़ कर दी गयी हैं। इनमें रहने वाले लोगों के पास न तो कोई दूसरा ठिकाना है और ना ही सरकार के पास उन्हें फिर से बसाने के लिए कोई योजना है। दिल्ली में 260 से अधिक साइटों को अतिक्रमण के रूप में चिन्हित किया गया है। जी-20 पार्क बनाने के चक्कर में महरौली में एक दर्जन मकानों को तोड़ा गया। सराय काले खाँ बस टर्मिनल के पास बने रैन बसेरा को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया। 2014 से मौजूद इस रैन बसेरा में बिहार यूपी से आने वाले मज़दूर रुकते थे। तुगलकाबाद, मयूर विहार, धौला कुआँ, कश्मीरी गेट और सुभाष कैम्प के पास की झुग्गियों के ऊपर भी ख़तरे की घण्टी बजी, इनमें से कई जगहों पर तोड़फोड़ की कार्रवाई पूरी हो चुकी है। दिल्ली के प्रगति मैदान में जहाँ शिखर सम्मेलन होना है वहीं पर नज़दीक में बसी जनता कॉलोनी नामक झुग्गी बस्ती को भी तोड़ने का नोटिस निकाला गया। जनता कॉलोनी के लोग यह माँग कर रहे थे कि हमारे ऊपर भी पर्दा डाल दो छुपा लो लेकिन हमें बेघर मत करो। प्रशासन के तरफ़ से कोई मदद की उम्मीद नहीं होने पर लोगों ने न्यायालय का रुख किया। न्यायालय में ज़मीन के मालिकाने में असमंजस को लेकर बुलडोजर से जनता कॉलोनी को ध्वस्त करने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी, इसी कारण यह कॉलोनी बची हुई है। जहाँ-जहाँ भी तोड़फोड़ की कार्रवाई हुई है उसमें लगभग सभी मज़दूर बस्तियाँ हैं। अतिक्रमण हटाने के नाम पर सबसे ज्यादा उन लोगों पर कार्रवाई हुई जो अपने गाँव से उजड़कर शहर में रोज़ी-रोटी कमाने आये थे।

जी-20 शिखर सम्मेलन की आड़ में मोदी सरकार सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश क्यों कर रही है? इसका जवाब पूरी तरह तरह स्पष्ट है। अगले वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और केन्द्र सरकार के जनता विरोधी रवैये के कारण नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता लगातार गिरती जा रही है। मोदी सरकार 2014 में “अच्छे दिन आने वाले हैं” की बात करते हुए आयी थी लेकिन अच्छे दिन मालिकों-पूँजीपतियों-अमीरों के आये, मज़दूरों के बुरे दिन चल रहे थे वह और बुरे हो गये। “बहुत हुई महँगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार” जैसे जुमले का भी वही हाल हुआ। ग़रीबों की कमाई नहीं बढ़ी लेकिन महॅंगाई आसमान पर है। गैस सिलेण्डर, पेट्रोल-डीजल, राशन, फल, टमाटर एवं अन्य सब्जियों के दाम में आग लगी हुई है। हर साल 2 करोड़ रोजगार देने की भी असलियत यही है। “भ्रष्टाचार पर वार” और “काला धन वापस लायेंगे” के दावों का शोर भी शान्त पड़ चुका है। हिण्डनबर्ग रिपोर्ट में अदाणी के भ्रष्टाचार की बात उजागर हो चुकी है। भाजपा जिन विपक्षी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती है वही नेता जब भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो उनके सारे पाप धुल जाते हैं। इन सारी समस्याओं का सबसे बड़ा भुक्तभोगी मज़दूर वर्ग में है। इसीलिए मज़दूर वर्ग के बीच और जनता के अन्य हिस्सों के बीच भी अपने 9 साल के कार्यकाल के बाद मोदी सरकार अलोकप्रिय होती जा रही है। कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में मोदी के ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार के बाद भी वहाँ के परिणाम मोदी की “विराट” छवि के ह्रास का संकेत है। ऐसे में साम्प्रदायिक उन्माद तथा अन्धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करके ही भाजपा की हार को टालने के मक़सद से भाजपा-आरएसएस परिवार और इसके आनुषंगिक संगठन तथा गोदी मीडिया पूरा दमखम लगा रहे हैं। जी-20 समूह का शिखर सम्मेलन भारत में हो रहा है जो देश के लिए गौरव का क्षण है – इस प्रकार की बातें करना भी अन्धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करने के परियोजना का ही एक हिस्सा है। मालिकों के वर्ग का वफ़ादार और जनता का और ख़ासकर मज़दूर वर्ग का सबसे बड़ा दुश्मन फ़ासिस्ट मोदी सरकार के खेल की असलियत को समझना होगा, अगर नहीं समझे तो धोखा मिलना निश्चित है।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2023


 

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