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गोरखपुर में मज़दूर आन्दोलन की शानदार जीत

आज के दौर में जब कदम-कदम पर मज़दूरों को मालिकों और शासन-प्रशासन के गँठजोड़ के सामने हार का सामना करना पड़ रहा है, गोरखपुर के मज़दूरों की यह जीत बहुत महत्वपूर्ण है। इसने दिखा दिया है कि अगर मज़दूर एकजुट रहें, एक जगह लड़ रहे मज़दूरों के समर्थन में मज़दूरों की व्यापक आबादी एकजुटता का सक्रिय प्रदर्शन करे, विश्वासघातियों और दलालों की दाल न गलने दी जाये और एक कुशल नेतृत्व की अगुवाई में साहस तथा सूझबूझ से पूँजीपतियों और प्रशासन की सभी चालों का मुकाबला किया जाये तो इस कठिन समय में भी मज़दूर छोटी-छोटी जीतें हासिल करते हुए बड़ी लड़ाई में उतरने की तैयारी कर सकते हैं। इस आन्दोलन ने देशभर में, विशेषकर मज़दूर संगठनों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा है और इससे गोरखपुर ही नहीं, पूरे पूर्वी प्रदेश में मज़दूर आन्दोलन का नया एजेण्डा सेट करने की शुरुआत हो गयी है। इस आन्दोलन के सबकों और इसके दौरान सामने आये कुछ ज़रूरी सवालों पर आगे भी चर्चा जारी रहेगी।

गोरखपुर मजदूर आन्दोलन ने नयी राजनीतिक हलचल पैदा की

गोरखपुर श्रमिक अधिकार समर्थक समिति की ओर से ‘श्रमिक अधिकार और नागरिक समाज का दायित्व’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि बरगदवां के मजदूर आन्दोलन ने गोरखपुर में काफी समय से व्याप्त अराजनीतिक माहौल को तोड़कर एक नयी राजनीतिक हलचल पैदा की है। वक्ताओं का मानना था कि इस आन्दोलन ने मज़दूरों के मुद्दों को पुरज़ोर ढंग से समाज के सामने रखने का बड़ा काम किया है। अधिकांश वक्ताओं का कहना था कि मुख्यधारा के मीडिया और मध्यवर्गीय शिक्षित आबादी की नज़रों से मज़दूरों के हालात और उनकी समस्याएँ प्रायः छिपी ही रहती हैं। लेकिन पिछले कुछ महीनों के दौरान इस आन्दोलन ने लोगों को इन सवालों पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। गोष्ठी में शहर के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, ट्रेडयूनियन कर्मियों, वामपन्थी संगठनों और नागरिक अधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। वक्ताओं ने एक स्वर से शासन और प्रशासन से श्रम क़ानून लागू कराने की माँग की तथा मजदूर आन्दोलन के खिलाफ उद्योगपतियों की ओर से किये जा रहे दुष्प्रचार की कड़ी निन्दा की।

गोरखपुर में मजदूरों की एकजुटता के आगे झुके मिल मालिक

इस आन्दोलन ने दिखा दिया कि अगर मजदूर एकजुट रहें तो पूँजीपति-प्रशासन-नेताशाही की मिली-जुली ताकत भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। उल्टे इन शक्तियों का जनविरोधी चेहरा बेनकाब हो गया। प्रशासन ने मजदूरों को धमकाने और आतंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एल.आई.यू. और एस.ओ.जी. के लोग फैक्टरी इलाके में जाकर लगातार पूछताछ करते थे – तुम्हारे ये अगुवा नेता कहाँ से आये हैं। पुलिस अधिकारियों द्वारा लगातार धमकी देना कि मजदूरों को भड़काना बनद करो और जिला छोड़कर चले जाओ वरना एनकाउण्टर या जिलाबदर करने में देर नहीं लगेगी। मालिक ने भी बदहवासी में बहुत कुछ योजनाएँ बनायीं, लेकिन मजदूरों को एकजुट देखकर कुछ करने की हिम्मत नहीं पड़ी। कम्पनी के एक ठेकेदार की पत्नी ने कुछ महिला मजदूरों को बताया कि अपने नेता लोगों को सावधन कर दो कि सूरज डूबने के बाद बरगदवा चौराहा की ओर मत आयें, उसने अपने पति के मुँह से सुना था कि आज नेताओं का ”इन्तजाम” कर दिया जायेगा। ऐसी हर कोशिश के साथ मजदूरों की एकता और मजबूत होती गयी। मॉडर्न उद्योग के 51 दिन चले आन्दोलन के दौरान अंकुर उद्योग लि., वी.एन. डायर्स धगा व कपड़ा मिल तथा जालानजी पॉलीटेक्स के मजदूर लगातार साथ में जमे रहे। अंकुर उद्योग के मजदूरों ने आटा इकट्ठा करके दिया तो सारी फैक्टरियों के मजदूरों ने चन्दा लगाकर सहयोग दिया। जब 10 बजे रात को अन्य कम्पनियों की शिफ्ट छूटती थी तो रात को ही 500 से ज्यादा मजदूरों की मीटिंग होती थी, मजदूरों की वर्ग एकता जिन्दाबाद का नारा लगता था।

बरगदवा, गोरखपुर में दो कारखानों के मज़दूरों का डेढ़ माह से जारी जुझारू आन्दोलन निर्णायक मुकाम पर

मज़दूर एकदम एकजुट हैं और किसी भी उकसावे में आये बिना धीरज और हौसले के साथ मैदान में डटे हुए हैं। कुछ ही दिन पहले बरगदवा के तीन कारखानों के मज़दूरों की जीत ने उनमें यह भरोसा पैदा किया है कि फौलादी एकजुटता और सूझबूझ के दम पर ही जीत हासिल की जा सकती है। मालिक की अघोषित तालाबन्दी वाले दिन से ही फैक्ट्री गेट पर लगातार 400-500 मज़दूर सुबह-शाम मीटिंग करते हैं। फैक्ट्री में काम करने वाली करीब 25 महिलाएँ पूरे जोश के साथ आन्दोलन के हर कदम में शिरकत कर रही हैं। अपने आन्दोलन से अनेक माँगें मनवाने में कामयाब हुए बरगदाव के तीन कारखानों – अंकुर उद्योग, वी.एन डायर्स धागा मिल एवं कपड़ा मिल के मज़दूर भी अपने संघर्षरत मज़दूर भाइयों के साथ एकजुट हैं और हर मीटिंग, जुलूस और धरने में उनके प्रतिनिधि शामिल होते हैं। मज़दूर आन्दोलन के बिखराव के इस दौर में गोरखपुर के मज़दूरों की यह बढ़ती एकजुटता हर इलाके के मज़दूरों को राह दिखा रही है। अगर मज़दूर अपने बीच पैदा किये गये तरह-तरह के बँटवारों और फूट-बिखराव को दूर करके एकजुट हो गये तो कुछेक आन्दोलनों में तात्कालिक असफलता से भी उनकी हार नहीं होगी। मज़दूरों की व्यापक एकजुटता की ताकत के सामने मालिकों और सरकार को झुकना ही पड़ेगा।

गोरखपुर में मज़दूरों की बढती एकजुटता और संघर्ष से मालिक घबराये

गोरखपुर में पिछले दिनों तीन कारखाने के मज़दूरों के जुझारू संघर्ष की जीत से उत्‍साहित होकर बरगदवा इलाके के दो और कारखानों के मजदूर भी आन्‍दोलन की राह पर उतर पड़े हैं। इलाके के कुछ अन्‍य कारखानों मे भी मजदूर संघर्ष के लिए कमर कस रहे हैं। वर्षों से बुरी तरह शोषण के शिकार, तमाम अधिकारों से वंचित और असंगठित बरगदवा क्षेत्र के हज़ारों मज़दूरों में अपने साथी मज़दूरों के सफल आन्दोलन ने उम्मीद की एक लौ जगा दी है।

गोरखपुर में तीन कारखानों के मजदूरों के एकजुट संघर्ष की शानदार जीत

गोरखपुर के तीन कारखानों के मज़दूरों ने अपने एकजुट संघर्ष से मालिकों को झुकाकर अपनी सभी प्रमुख माँगें मनवाकर एक शानदार जीत हासिल की है। अंकुर उद्योग लि. की धागा मिल, वी.एन. डायर्स एण्ड प्रोसेसर्स की धागा मिल और इसी की कपड़ा मिल के करीब बारह सौ मजदूरों की इस जीत का महत्‍व इसलिए और भी ज्यादा है क्योंकि यह ऐसे समय में हासिल हुई है, जब मजदूरों को लगातार पीछे धकेला जा रहा है और ज्यादातर जगहों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बेहद पिछड़े इलाके में मजदूरों के इस सफल संघर्ष ने यह दिखा दिया है कि अगर मजदूर एकजुट रहें, भ्रष्ट, धन्धेबाज ट्रेड यूनियन नेताओं के बहकावे में न आयें और मालिक-पुलिस-प्रशासन-नेताशाही की धमकियों और झाँसों के असर में आये बिना अपनी लड़ाई को सुनियोजित ढंग से लड़ें तो अपने बुनियादी अधिकारों की लड़ाई में ऐसी जीतें हासिल कर सकते हैं।

गोरखपुर में मज़दूर नेताओं पर मिल मालिकों का क़ातिलाना हमला

गोरखपुर में आज सुबह जब वी.एन. डायर्स की कपड़ा मिल के मज़दूर कारखाना गेट पर मीटिंग करने के बाद लौट रहे थे तो मिल मालिक, उसके बेटे और कंपनी के कुछ कर्मचारियों ने उन पर जानलेवा हमला किया। शुरू से आन्दोलन में अहम भूमिका निभा रहे बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं को उन्होंने खास तौर पर निशाना बनाया। मिल मालिक ने अपनी पिस्तौल के कुन्दे से मार-मारकर बिगुल मज़दूर दस्ता के उदयभान का सिर बुरी तरह फोड़ दिया जबकि प्रमोद को कारखाने के भीतर ले जाकर लोहे की छड़ों और डण्डों से बुरी तरह पीटा गया। हमले में कई मज़दूर भी घायल हो गये।

मई दिवस पर याद किया मज़दूरों की शहादत को

मई दिवस के दिन सुबह ही गोरखपुर की सड़कें ”दुनिया के मज़दूरों एक हो”, ”मई दिवस ज़िन्दाबाद”, ”साम्राज्यवाद-पूँजीवाद का नाश हो”, ”भारत और नेपाली जनता की एकजुटता ज़िन्दाबाद”, ”इंकलाब ज़िन्दाबाद” जैसे नारों से गूँज उठीं। नगर निगम परिसर में स्थित लक्ष्मीबाई पार्क से शुरू हुआ मई दिवस का जुलूस बैंक रोड, सिनेमा रोड, गोलघर, इन्दिरा तिराहे से होता हुआ बिस्मिल तिराहे पर पहुँचकर सभा में तब्दील हो गया। जुलूस में शामिल लोग हाथों में आकर्षक तख्तियाँ लेकर चल रहे थे जिन पर ”मेहनतकश जब जागेगा, तब नया सवेरा आयेगा”, ”मई दिवस का है पैगाम, जागो मेहनतकश अवाम” जैसे नारे लिखे थे।

गोरखपुर में शराब माफिया के ख़िलाफ़ नौजवान भारत सभा का संघर्ष रंग लाया

छोटे-छोटे काम-धन्धे करके मेहनत-मशक्कत से गुजारा करने वाले लोग जीवन की परेशानियों, तकलीफों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं लेकिन इसी चक्कर वे कब पेशेवर पियक्कड़ बन जाते हैं उन्हें खुद ही पता नहीं चलता है। जब उनकी खुमारी उतरती है तो अपने-आप को पहले से ज्यादा परेशान और जकड़ा हुआ पाते हैं। वे खुद तो तबाह होते ही हैं, उनका पूरा परिवार और बच्चों का भविष्य भी तबाह हो जाता है। सरकार सबकुछ जानकर भी दोगली नीति चलाती है। एक ओर वह करोड़ों रुपये खर्च करके शराबखोरी के खिलाफ प्रचार करती है और दूसरी ओर बस्ती-बस्ती में शराब की दुकानें खोलती है। इस मलिन बस्ती में मुहल्लेवासियों की इच्छा के खिलाफ सरकारी गुण्डई के दम पर दारू का अड्डा खोले रखना क्या साबित करता है? सरकार को आम नागरिकों और उनके परिवारों की फिक्र नहीं है बल्कि शराब की बिक्री से होने वाली अरबों रुपये की कमाई की चिन्ता है। हकीकत तो यह है कि सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, सब यही चाहती हैं कि हम अपने शोषण-अत्याचार, गरीबी-बेरोजगारी, महंगाई-भ्रष्टाचार और रोज-रोज होने वाले अपमान के बारे में न सोचें और नशे में डूबे रहें।