बरगदवा, गोरखपुर में दो कारखानों के मज़दूरों का डेढ़ माह से जारी जुझारू आन्दोलन निर्णायक मुकाम पर

बिगुल संवाददाता

गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित मॉडर्न लेमिनेटर्स लि. और मॉडर्न पैकेजिंग लि. के करीब एक हजार मज़दूरों का डेढ़ महीने से जारी आन्दोलन अब निर्णायक मुकाम पर पहुँच गया है। गत तीन अगस्त को उपश्रमायुक्त को माँगपत्रक देने से इस आन्दोलन की शुरुआत हुई थी।

मालिकों और श्रम विभाग की मिलीभगत और ज़िला प्रशासन की शह से जारी टालमटोल के चलते मालिकान डेढ़ महीने से वार्ताओं के बहाने इसे लटकाये हुए हैं। इस बीच मज़दूरों को डराने-धमकाने-ललचाने और आन्दोलन के नेतृत्व में अगुआ भूमिका निभा रहे बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं को आतंकित करने की तमाम कोशिशों के बावजूद मज़दूर न सिर्फ एकजुट रहे हैं बल्कि आन्दोलन का तेवर और जुझारू हो गया है।

एक महीने से जारी वार्ताओं में मालिकों के टालमटोली रवैये और श्रम विभाग के पक्षपात के विरोध में मज़दूरों ने 11 सितम्बर को जिलाधिकारी कार्यालय पर ज़ोरदार प्रदर्शन करके क्रमिक अनशन शुरू कर दिया। दोनों कारखानों के सैकड़ों मज़दूर धरने पर बैठ गये। मज़दूरों के जुझारू तेवर से घबराये ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने देर रात अनशन स्थल पर पहुँचकर मज़दूरों के सामने उपश्रमायुक्त को बुलाकर आश्वासन दिया कि 12 सितम्बर की सुबह मालिक की मौजूदगी में एसडीएम के सामने वार्ता कराकर समझौता कराया जायेगा। इसके बाद मज़दूरों ने अगले दिन तक अपना अनशन व धरना सशर्त स्थगित कर दिया।

लेकिन इससे पहले प्रशासन ने मज़दूरों और उनके नेताओं को डराने की पूरी कोशिश की। रात करीब 9 बजे धरना स्थल पर पहुँचे एस.डी.एम. ने पुलिस बुला ली और संघर्ष समिति के अगुआ सदस्य तथा बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ता प्रशान्त को गिरफ्तार करवा दिया। प्रशान्त ने जब कहा कि मैं ख़ुद आपके साथ थाने चल रहा हूँ तो एस.पी. महोदय ने उद्दण्डता से कहा कि ”तुझे तो मैं घसीटकर ले जाऊँगा।” हालाँकि मज़दूरों के तीखे तेवर देखकर वे शान्त हो गये और चुपचाप प्रशान्त को थाने भेज दिया गया। लेकिन कुछ ही देर बाद मौके पर पहुँचे एस.एस.पी. के आदेश से पुलिस को प्रशान्त को वापस लेकर आना पड़ा।

जिला प्रशासन के दबाव डालने पर मालिक पवन बथवाल और किशन बथवाल 12 सितम्बर को एस.डी.एम. के समक्ष वार्ता के लिए पहुँचे लेकिन ”बाहरी लोगों” यानी बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं को वार्ता में शामिल नहीं करने पर अड़ गये। प्रशासन की ओर से पाँच अगुआ मज़दूरों को वार्ता के लिए बुलाया गया लेकिन उन मज़दूरों ने भीतर जाते ही ऐलान कर दिया कि ‘बिगुल’ के साथियों के बिना वार्ता नहीं होगी। मज़दूरों के अड़ जाने पर एस.डी.एम. ने ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के तपीश मैंदोला और प्रशान्त को भी बुला लिया। काफी हील-हुज्जत के बाद दोनों मालिक न्यूनतम मज़दूरी के बराबर रेट से भुगतान करने के लिए तैयार हो गये। एसडीएम द्वारा डी.एल.सी. के सामने लिखित समझौता करने का निर्देश देने के बाद मज़दूर राज़ी हुए कि 13 सितम्बर से काम पर लौट आयेंगे। लेकिन डी.एल.सी. कार्यालय में मालिक के प्रतिनिधि फिर अपनी बात से पलट गये और न्यूनतम मज़दूरी देने से साफ इंकार कर दिया। अख़बार प्रेस में जाने तक वार्ता टूट चुकी थी और मज़दूर फिर से जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना और अनशन शुरू करने की तैयारी कर रहे थे।

आन्दोलन के इन डेढ़ महीनों के दौरान मालिकों ने मामले को लम्बा खींचकर मज़दूरों को थका डालने के लिए हर हथकण्डे अपनाये।

12 अगस्त की पहली वार्ता में मालिकों की ओर से मैनेजमेण्ट का कोई प्रतिनिधि आने के बजाय उनका वकील आया। फिर 21 अगस्त को वार्ता तय हुई। इससे पहले 18-19 की रात को मालिकों ने 2 लूम खुलवाकर फैक्ट्री से बाहर भिजवा दिये और प्रचार करवाया कि फैक्ट्री बन्द होने वाली है। लेकिन इससे डरने की बजाय मज़दूरों ने पूरी घटना की लिखित शिकायत डी.एल.सी. कार्यालय में की।

21 अगस्त की वार्ता में भी मैनेजमेण्ट का कोई व्यक्ति नहीं आया। 22 अगस्त को मालिक ने यह कहकर अघोषित तालाबन्दी कर दी कि जिसे न्यूनतम मज़दूरी चाहिए वह फैक्ट्री से बाहर रहे। इस पर सभी मज़दूरों ने काम बन्द कर दिया और फैक्ट्री से बाहर आ गये। 23 अगस्त को वार्ता में मालिक की ओर से उसके श्रम सलाहकार ने कहा कि फैक्ट्री चले या न चले, मालिक न्यूनतम दर से मज़दूरी नहीं देगा, मीटर रेट ही चलेगा। 25 अगस्त की वार्ता में मज़दूरों ने कहा कि वे फिलहाल मीटर रेट से मज़दूरी लेने को तैयार हो सकते हैं बशर्ते मीटर रेट की गणना सही तरीके से की जाये। इस पर प्रोडक्शन के आँकड़े लेकर आने की बात कहकर श्रम सलाहकार ने फिर 2 सितम्बर तक का समय ले लिया।

2 सितम्बर को मैनेजमेण्‍ट की ओर से श्रम सलाहकार जो आँकड़े लेकर आया वे एकदम फर्ज़ी थे और मज़दूर प्रतिनिधियों ने कुछ ही सवालों में उसकी पोल खोल दी। इसके बाद 5 सितम्बर और 8 सितम्बर की वार्ताओं में भी यही कहानी दोहरायी गयी। मज़दूरों ने जब प्रति लूम प्रोडक्शन के आँकड़े माँगे तो मालिक ने साफ झूठ बुलवा दिया कि ऐसे आँकड़े कम्प्यूटर से रोज़ हटा दिये जाते हैं और उनके पास कोई रिकार्ड नहीं है।

इस बीच वार्ताओं के समानान्तर मज़दूरों ने सड़कों पर जुझारू प्रदर्शन और अपनी न्यायोचित माँगों के जनता के बीच प्रचार का काम जारी रखा। 27 अगस्त से 5 सितम्बर के बीच उन्होंने बरगदवा क्षेत्र में तीन बड़े जुलूस निकाले और इलाके के सभी कारखानों के सामने से गुज़रते हुए अपनी बात हज़ारों मज़दूरों तक पहुँचायी। 7 सितम्बर को सैकड़ों मज़दूर जुलूस की शक्ल में गोरखपुर से मोहद्दीपुर इलाके में पहुँचे जहाँ मालिकों की विशाल कोठी स्थित है। करीब 5 घण्टे तक मज़दूरों ने बारिश में भीगते हुए पूरे इलाके में नारेबाज़ी और नुक्कड़ सभाएँ करके अपनी माँगों और आक्रोश से स्थानीय आबादी को परिचित कराया। इस बीच 6 सितम्बर से ही मज़दूरों ने आसपास के गाँवों से आटा, दाल, आलू, कण्डा आदि इकट्ठा करके फैक्ट्री के गेट पर सामूहिक भोजनालय शुरू कर दिया जिसमें पहले दिन 350 और दूसरे दिन करीब 400 मज़दूरों ने भोजन किया और लगातार गेट पर ही जमे रहे।

8 सितम्बर की वार्ता के दिन सैकड़ों मज़दूरों ने फिर जिलाधिकारी कार्यालय पर पहुँचकर धरना दिया और 9 सितम्बर को पुलिस को चकमा देते हुए शहर की विभिन्न सड़कों पर जुलूस निकालकर प्रशासन और मैनेजमेण्‍ट के खिलाफ जमकर नारे लगाये।

इस बीच एक सितम्बर को शहर के बुद्धिजीवियों के एक प्रतिनिधिमण्डल ने ज़िलाधिकारी से मिलकर उन्हें दोनों कारखानों में मज़दूरों की बुरी स्थिति की जानकारी दी तथा इस मामले में हस्तक्षेप करके जल्दी समाधान कराने की माँग की। प्रतिनिधिमण्डल में वरिष्ठ पत्रकार गिरिजेश राय, कथाकार मदनमोहन, वरिष्ठ राजनीतिक कार्यकर्ता फतेहबहादुर सिंह और फिल्मकार प्रदीप सुविज्ञ शामिल थे।

10 सितम्बर की वार्ता में मालिकों का वकील एक बार फिर फर्ज़ी आँकड़ों का पुलिन्दा लेकर आ गया। आँकड़े इस कदर झूठे थे कि जब मज़दूर प्रतिनिधियों ने उसकी एक प्रति माँगी तो उसने देने से मना कर दिया। यहाँ तक कि डी.एल.सी. के कहने के बावजूद उसने मज़दूरों को आँकड़े नोट करने तक का मौका नहीं दिया कि कहीं झूठ का भाँडा न फूट जाये।

इस आन्दोलन ने मालिकों के साथ श्रम विभाग और जिला प्रशासन की मिलीभगत को एकदम नंगा कर दिया है। एक महीने से वार्ताओं का नाटक जारी है लेकिन आज तक किसी भी वार्ता में न मालिक खुद आया और न ही मैनेजमेण्‍ट का कोई वरिष्ठ अधिकारी। तरह-तरह बहानों से सिर्फ तारीख आगे बढ़ायी जाती रही। मालिकों की ओर से एकदम फ़र्जी आँकड़े पेश किये जाते रहे और मज़दूरों की तरफ से पेश किये तथ्यों की सीधे अनदेखी की जाती रही। श्रम विभाग या प्रशासन ने बार-बार कहने पर भी एक बार भी फैक्ट्री के हालात का खुद ज़ायज़ा लेने की कोशिश नहीं की। गोरखपुर के तथाकथित जनप्रतिनिधियों का भी मालिकों को वरदहस्त है। इसी के दम पर मालिकान अब तक अड़े हुए हैं। मालिक वार्ता में तो नहीं आते हैं लेकिन मज़दूरों को धौंस में लेने के लिए बातचीत के वास्ते उन्हें अपनी कोठी पर या अपने क्लार्क होटल में आने का बुलावा भेजते रहते हैं।

दूसरी ओर मज़दूर एकदम एकजुट हैं और किसी भी उकसावे में आये बिना धीरज और हौसले के साथ मैदान में डटे हुए हैं। कुछ ही दिन पहले बरगदवा के तीन कारखानों के मज़दूरों की जीत ने उनमें यह भरोसा पैदा किया है कि फौलादी एकजुटता और सूझबूझ के दम पर ही जीत हासिल की जा सकती है। मालिक की अघोषित तालाबन्दी वाले दिन से ही फैक्ट्री गेट पर लगातार 400-500 मज़दूर सुबह-शाम मीटिंग करते हैं। फैक्ट्री में काम करने वाली करीब 25 महिलाएँ पूरे जोश के साथ आन्दोलन के हर कदम में शिरकत कर रही हैं। अपने आन्दोलन से अनेक माँगें मनवाने में कामयाब हुए बरगदाव के तीन कारखानों – अंकुर उद्योग, वी.एन डायर्स धागा मिल एवं कपड़ा मिल के मज़दूर भी अपने संघर्षरत मज़दूर भाइयों के साथ एकजुट हैं और हर मीटिंग, जुलूस और धरने में उनके प्रतिनिधि शामिल होते हैं। मज़दूर आन्दोलन के बिखराव के इस दौर में गोरखपुर के मज़दूरों की यह बढ़ती एकजुटता हर इलाके के मज़दूरों को राह दिखा रही है। अगर मज़दूर अपने बीच पैदा किये गये तरह-तरह के बँटवारों और फूट-बिखराव को दूर करके एकजुट हो गये तो कुछेक आन्दोलनों में तात्कालिक असफलता से भी उनकी हार नहीं होगी। मज़दूरों की व्यापक एकजुटता की ताकत के सामने मालिकों और सरकार को झुकना ही पड़ेगा।

बिगुल, सितम्‍बर 2009


 

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