Category Archives: इतिहास

मई दिवस को मज़दूर वर्ग के जुझारू संघर्ष की नयी शुरुआत का मौक़ा बनाओ!

मई दिवस का नाम हम सभी जानते हैं। हममें से कुछ हैं जो 1 मई, यानी मज़दूर दिवस या मई दिवस, के पीछे मौजूद गौरवशाली इतिहास से भी परिचित हैं। लेकिन कई ऐसे भी हैं, जो कि इस इतिहास से परिचित नहीं हैं। यह भी एक त्रासदी है कि हम मज़दूर अपने ही तेजस्वी पुरखों के महान संघर्षों और क़ुर्बानियों से नावाकि़फ़ हैं। जो मई दिवस की महान अन्तरराष्ट्रीय विरासत से परिचित हैं, वे भी आज इसे एक रस्मअदायगी क़वायदों में डूबता देख रहे हैं। कहीं न कहीं हमारे जीवन की तकलीफ़ों में हम भी जाने-अनजाने इसे रस्मअदायगी ही मान चुके हैं। यह मज़दूर वर्ग के लिए बहुत ख़तरनाक बात है। क्यों?

पितृसत्ता के ख़िलाफ़ कोई भी लड़ाई पूँजीवाद विरोधी लड़ाई से अलग रहकर सफल नहीं हो सकती!

इस बार 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के 111 साल पूरे हो जायेंगे। यह दिन बेशक स्त्रियों की मुक्ति के प्रतीक दिवस के रूप में मनाया जाता है परन्तु जिस प्रकार बुर्जुआ संस्थानों द्वारा इस दिन को सिर्फ़ एक रस्मी कवायद तक सीमित कर दिया गया है, जिस प्रकार स्त्री आन्दोलन को सिर्फ़ मध्यवर्गीय दायरे तक सीमित कर दिया गया है, जिस प्रकार इस दिन को उसकी क्रान्तिकारी विरासत से धूमिल किया जा रहा है और जिस प्रकार उसे उसके इतिहास से काटा जा रहा है, ऐसे में ज़रूरी है कि हम यह जानें कि कैसे स्त्री मज़दूरों के संघर्षों को याद करते हुए अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी।

फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे दुर्गम यात्राओं पर चलने के संकल्प जगाने होंगे

7 नवम्बर 2021 को रूस की महान अक्तूबर समाजवादी क्रान्ति के 104 वर्ष पूरे हो गये। इस क्रान्ति के साथ मानव समाज के इतिहास का एक नया अध्याय शुरू हुआ था और बीसवीं सदी के इतिहास को यदि किसी घटना ने सबसे ज़्यादा परिभाषित किया था, तो वह यह क्रान्ति थी। यह कोई साहित्यिक दावा या मुहावरे के रूप में कही गयी बात नहीं है, बल्कि शब्दश: सच है। इस क्रान्ति ने मानव इतिहास में मज़दूर वर्ग की पहली व्यवस्थित राज्यसत्ता स्थापित की और समाजवाद के पहले महान प्रयोग की शुरुआत की।

तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष के 75 साल उपलब्धियाँ और सबक़ (दूसरी व अन्तिम क़िस्त)

पिछली क़िस्त में हमने देखा कि किस प्रकार 1940 के दशक की शुरुआत में हैदराबाद के निज़ाम की सामन्ती रियासत में आने वाले तेलंगाना के जागीरदारों और भूस्वामियों द्वारा किसानों के ज़बर्दस्त शोषण व उत्पीड़न के विरुद्ध शुरू हुआ आन्दोलन 1946 की गर्मियों तक आते-आते सामन्तों के ख़िलाफ़ एक सशस्त्र विद्रोह में तब्दील हो गया। निज़ाम की सेना और रज़ाकारों द्वारा इस विद्रोह को बर्बरतापूर्वक कुचलने की सारी कोशिशें विफल साबित हुईंं।

तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष के 75 साल उपलब्धियाँ और सबक़ (पहली क़िस्त)

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चले तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष (तेलुगु में ‘तेलंगाना रैतुंगा सायुध पोराटम’) की शानदार विरासत को भारत के हुक्मरानों द्वारा साज़िशाना ढंग से छिपा देने की वजह से देश के अन्य हिस्सों में आमजन तेलंगाना के किसानों और मेहनतकशों की इस बहादुराना बग़ावत से अनजान हैं, हालाँकि तेलंगाना में यह शौर्यगाथा लोकसंस्कृति के तमाम रूपों में जनमानस के बीच आज भी ज़िन्दा है।

क्रान्तिकारी मार्क्सवाद से भयाक्रान्त चीन के नक़ली कम्युनिस्ट शासक

चीन में तेज़ होते मज़दूर आन्दोलनों और जनता में बढ़ते असन्तोष के दौर में वहाँ के पूँजीवादी शासक समाजवाद के नाम पर चल रही अपनी शोषक सत्ता की वैधता साबित करने के लिए आजकल नये सिरे से मार्क्सवाद की दुहाई देने में लगे हुए हैं। मई 2018 में, कार्ल मार्क्स के 200वें जन्मदिन पर राष्ट्रपति शी ज़िनपिङ ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों से फिर से मार्क्स की कृतियों, ख़ासकर ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ का अध्ययन करने के लिए कहा।

चीन के लुटेरे शासकों के काले कारनामे महान चीनी क्रान्ति की आभा को मन्द नहीं कर सकते

यह लेख चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की 90वीं वर्षगाँठ पर ‘मज़दूर बिगुल’ में प्रकाशित हुआ था। चीन की नाममात्र की कम्युनिस्ट पार्टी इस महीने स्थापना की 100वीं वर्षगाँठ मनाने जा रही है मगर यह लेख लिखे जाने के बाद से उसके चरित्र में कोई बदलाव नहीं हुआ है। उसके शासन में चीन एक साम्राज्यवादी देश बनने की राह पर तेज़ी से बढ़ रहा है जिसका आधार अपने देश ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों के मेहनतकशों का शोषण है।

कल और आज

युगों-युगों से इन्सान मकड़ी की तरह, यत्नपूर्वक, तार-दर-तार, पूरी सावधानी से सांसारिक जीवन का मज़बूत मकड़जाल बुनता गया, और झूठ व लालच से इसके पोर-पोर को अधिकाधिक सिक्त करता गया। इन्सान अपने सगे-सहोदर इन्सानों के रक्त-मांस पर पलता रहा। उत्पादन के साधन इन्सानों के दमन का साधन थे – इस मानवद्वेषी झूठ को निर्विकल्प, निर्विवाद सत्य समझा जाता रहा।

क्रान्तिकारी चीन में स्वास्थ्य प्रणाली

ऐसे में पड़ोसी मुल्क चीन के क्रान्तिकारी दौर (1949-76) की चर्चा करेंगे, जब मेहनतकश जनता के बूते बेहद पिछड़े और बेहद कम संसाधनों वाले “एशिया के बीमार देश” ने स्वास्थ्य सेवा में चमत्कारी परिवर्तन किया, साथ ही स्वास्थ्यकर्मियों और जनता के आपसी सम्बन्ध को भी उन्नत स्तर पर ले जाने का प्रयास किया। आज का पूँूजीवाद चीन भारी पूँजीनिवेश और सख़्त नौकरशाहाना तरीक़ों के दम पर कोरोना के नियंत्रण आदि के काम कर ले रहा है, पर बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी उस सुलभ और मानवीय चिकित्सा सेवा से वंचित हो गयी है जो समाजवाद ने उन्हें कम संसाधनों में भी उपलब्ध करायी थी। डॉ. विक्टर सिडेल और डॉ. रुथ सिडेल की पुस्तक ‘सर्व दि पीपल’ के एक लेख के आधार पर एक अनुभवी चिकित्सक का लिखा यह लेख चीन में हुए स्वास्थ्य सेवा ओं में क्रान्तिकारी बदलावों की एक झलक पेश करता है।

क्रान्तिकारी समाजवाद ने किस प्रकार महामारियों पर क़ाबू पाया

पिछले डेढ़ वर्ष से जारी कोरोना वैश्विक महामारी ने न सिर्फ़ तमाम पूँजीवादी देशों की सरकारों के निकम्मेपन को उजागर किया है बल्कि पूँजीवादी चिकित्सा व्यवस्था के जनविरोधी चरित्र को भी पूरी तरह से बेनक़ाब कर दिया है और पूँजीवाद के सीमान्तों को उभारकर सामने ला दिया है। मुनाफ़े की अन्तहीन सनक पर टिके पूँजीवाद की क्रूर सच्चाई अब सबके सामने है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी की विलक्षण प्रगति का इस्तेमाल महामारी पर क़ाबू पाने की बजाय ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के नये अवसर तलाशने के लिए किया जा रहा है।