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कज़ाख़स्तान में आम मेहनतकश जनता की बग़ावत

कज़ाख़स्तान में इस साल की शुरुआत बग़ावत के स्तर तक पहुँच गये मज़दूरों और आम जनता के सत्ता-विरोधी प्रदर्शनों के साथ हुई। ये विरोध प्रदर्शन कज़ाख़स्तान के लगभग सभी बड़े शहरों में हुए और प्रदर्शनकारियों द्वारा कई शहरों और प्रदेशों के प्रशासनिक व पुलिस प्रतिष्ठानों पर क़ब्ज़ा कर लिया गया। देश के सबसे बड़े शहर अलमाती में हवाई अड्डे पर भी प्रदर्शनकारियों ने क़ब्ज़ा कर लिया। राष्ट्रपति कासिम तोकायेव द्वारा तत्काल ही प्रदर्शनकारियों की आर्थिक माँगों को एक हद तक मान लिया गया, देश की सरकार को भंग कर दिया गया तथा ‘कज़ाख़स्तान की सुरक्षा परिषद्’ के चेयरमैन और परदे के पीछे से अभी तक शासन पर नियंत्रण रख रहे भूतपूर्व राष्ट्रपति नूर सुल्तान नज़रबायेव को भी हटा दिया गया।

क्रान्तिकारी चीन में स्वास्थ्य प्रणाली

ऐसे में पड़ोसी मुल्क चीन के क्रान्तिकारी दौर (1949-76) की चर्चा करेंगे, जब मेहनतकश जनता के बूते बेहद पिछड़े और बेहद कम संसाधनों वाले “एशिया के बीमार देश” ने स्वास्थ्य सेवा में चमत्कारी परिवर्तन किया, साथ ही स्वास्थ्यकर्मियों और जनता के आपसी सम्बन्ध को भी उन्नत स्तर पर ले जाने का प्रयास किया। आज का पूँूजीवाद चीन भारी पूँजीनिवेश और सख़्त नौकरशाहाना तरीक़ों के दम पर कोरोना के नियंत्रण आदि के काम कर ले रहा है, पर बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी उस सुलभ और मानवीय चिकित्सा सेवा से वंचित हो गयी है जो समाजवाद ने उन्हें कम संसाधनों में भी उपलब्ध करायी थी। डॉ. विक्टर सिडेल और डॉ. रुथ सिडेल की पुस्तक ‘सर्व दि पीपल’ के एक लेख के आधार पर एक अनुभवी चिकित्सक का लिखा यह लेख चीन में हुए स्वास्थ्य सेवा ओं में क्रान्तिकारी बदलावों की एक झलक पेश करता है।