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दो फ़िलिस्तीनी कविताएँ / समीह अल-कासिम. इब्राहीम तुकन

नौजवान थकेंगे नहीं
उनका लक्ष्य तेरी आज़ादी है
या फिर मौत
हम मौत का प्याला पी लेंगे
पर अपने दुश्मनों के ग़ुलाम नहीं बनेंगे
हम हमेशा के लिए
अपमान नहीं चाहते
और न अभावग्रस्त ज़िन्दगी
हम अपनी महानता
लौटायेंगे मेरे देश
ओ मेरे देश

गाज़ा : दो कविताएँ

स्कूल अब हज़ारों लोगों के लिए
घर और पनाहगाह है।
विद्यार्थी विस्थापित हैं या मर चुके हैं,
जख़्मी हैं या
अनाथ हो चुके हैं।
अध्यापिका बच्चों को छिपाने के लिए
लेट जाती है उन पर।
किताबें धुएँ और राख में तब्दील हो चुकी हैं।
गणित यह है
51 दिन, 2,200 मृत, 10,000 ज़ख़्मी

कविता – हमारा श्रम / आनन्द, गुड़गाँव

अगर हमें मौक़ा मिले तो
इस धरती को स्वर्ग बना सकते हैं
मगर बेड़ियाें से जकड़ रखा है हमारे
जिस्म व आत्मा को इस लूट की व्यवस्था ने
हम चाहते हैं अपने समाज को
बेहतर बनाना मगर
इस मुनाफ़े की व्यवस्था ने
हमारे पैरों को रोक रखा है

कविता – फ़िलिस्तीन / कात्यायनी

जब संगीनों के साये और बारूदी धुएँ के बीच
“अरब वसन्त” की दिशाहीन उम्मीदें
बिखर चुकी होती हैं
तब चन्द दिनों के भीतर पाँच सौ छोटे-छोटे ताबूत
गाज़ा की धरती में बो दिये जाते हैं
और माँएँ दुआ करती हैं कि पुरहौल दिनों से दूर
अमन-चैन की थोड़ी-सी नींद मयस्सर हो बच्चों को
और ताज़ा दम होकर फिर से शोर मचाते
वे उमड़ आयें गलियों में, सड़कों पर
जत्थे बनाकर।

रोशनाबाद श्रृंखला की तीन कविताएँ

दु:खों का इतिहास अगर एक हो
और वर्तमान भी अगर साझा हो
तो प्यार कई बार ताउम्र ताज़ा बना रहता है,
सीने के बायीं ओर दिल धड़कता रहता है
पूरी गर्मजोशी के साथ
और इन्सान बार-बार नयी-नयी शुरुआतें
करता रहता है ।

केदारनाथ अग्रवाल की तीन छोटी कविताएँ

जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

तानाशाह : तीन कविताएँ

कविता की कुछ पंक्तियां
..सम्मोहित-सी वह भीड़
हमेशा तानाशाह के पीछे चलती थी
और तानाशाह के इशारे का इंतज़ार करती थी।
तानाशाह इतना आश्वस्त था कि
यह सोच भी नहीं पाता था कि
किसी भी सम्मोहन का जादू
कुछ समय बाद टूटने लगता है।

एक दिन अपने लाव-लश्कर के साथ
तानाशाह जब सड़क पर निकला
तो उसने देखा कि भीड़
जो उसके पीछे चला करती थी,
वह उसका पीछा कर रही है!

गौहर रज़ा की नज़्म – साज़िश (उन्नाव की बेटी के नाम)

जब मन्दिर, मस्जिद, गिरजा में
हर एक पहचान सिमट जाये
जब लूटने वाले चैन से हों
और बस्ती, बस्ती भूख उगे

कविताएं – लड़ाई का कारोबार / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poems – The business of war / Bertolt Brecht

युद्ध जो आ रहा है पहला युद्ध नहीं हैI
इससे पहले भी युद्ध हुए थेI
पिछला युद्ध जब ख़त्म हुआ
तब कुछ विजेता बने और कुछ विजित।
विजितों के बीच आम आदमी भूखों मरा
विजेताओं के बीच भी मरा वह भूखा ही।

हरियाणवी रागनी – दौर-ए-संकट / रामधारी खटकड़

किसान परिवार में जन्मे रामधारी खटकड़ हरियाणा की मेहनतकश जनता की बुलन्द आवाज़ के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। ये काव्य की रागनी/रागिनी या रागणी की विशिष्ट हरियाणवी शैली में लिखते हैं। इनकी कविताई बड़े ही सहज-सरल और साफ़गोई के साथ सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत करने में सक्षम है।