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जन सरोकारों के कवि वीरेन डंगवाल की स्मृति में उनकी कविता – हमारा समाज

कुछ चिंताएँ भी हों, हाँ कोई हरज नहीं
पर ऐसी भी नहीं कि मन उनमें ही गले घुने
हौसला दिलाने और बरजने आसपास
हों संगी-साथी, अपने प्यारे, ख़ूब घने।
पापड़-चटनी, आँचा-पाँचा, हल्ला-गुल्ला
दो चार जशन भी कभी, कभी कुछ धूम-धांय
जितना संभव हो देख सकें, इस धरती को
हो सके जहाँ तक, उतनी दुनिया घूम आयें
यह कौन नहीं चाहेगा?

गीत – क्या मैं अब भी कसूरवार नहीं हूँ? / बेर्निस जॉनसन रीगन Song – Are My Hands Clean? / Bernice Johnson Reagon

साउथ कैरोलिना की बर्लिंगटन मिलों में
उस कपास की पहली मुलाक़ात
डूपोंट की न्यू जर्सी स्थित पेट्रोकेमिकल मिल्स से आए
पोलिएस्टर के रेशों से होती है
डूपोंट के इन रेशों की कहानी
दक्षिण अमरीका के एक देश
वेनेजुएला से शुरू हुई थी
जहाँ तेल निकालने के काम में लगे मज़दूर
महज़ छः डॉलर के मेहनताने पर
खतरों से खेलते हुए धरती के गर्भ से तेल निकालते हैं

कविता – साहब! एक बात पूछूँ?

साहब! एक बात पूछूँ?
हाँ-हाँ, पूछो!
देश में भुखमरी क्यूँ है?
अरे बस! इतनी सी बात, जनसंख्या बढ़ रही है
नहीं भई! ये बात हज़म नहीं हुई,
देखो तो गोदामों में, कितना गेहूँ सड़ रहा है।
भैया एक सवाल और…?
हाँ-हाँ पूछो!
लोग नंगे क्यूँ हैं?
अरे जनसंख्या ज़्यादा है,
क्या! समझ में नहीं आया लफड़ा?
नहीं-नहीं भाई, ये बात भी ग़लत,
जाकर देखो तो दुकानों में,
ख़ूब पड़ा है कपड़ा

कविता – एक दिवालिये की रिपोर्ट / समी अल कासिम

अगर मुझे अपनी रोटी छोड़नी पड़े
अगर मुझे अपनी कमीज़ और अपना बिछौना बेचना पड़े
अगर मुझे पत्थर तोड़ने का काम करना पड़े
या कुली का
या मेहतर का
अगर मुझे तुम्हारा गोदाम साफ़ करना पड़े
या गोबर से खाना ढूँढ़ना पड़े
या भूखे रहना पड़े
और ख़ामोश
इंसानियत के दुश्मन
मैं समझौता नहीं करूँगा
आखि़र तक मैं लड़ूँगा

पाब्‍लो नेरूदा की कविता ‘सड़को, चौराहों पर मौत और लाशें’ का एक अंश

मैं दण्ड की माँग करता हूँ
अपने उन शहीदों के नाम पर
उन लोगों के लिए
मैं दण्ड की माँग करता हूँ
जिन्होंने हमारी पितृभूमि को
रक्तप्लावित कर दिया है
उन लोगों के लिए
मैं दण्ड की माँग करता हूँ
जिनके निर्देश पर
यह अन्याय, यह ख़ून हुआ
उसके लिए मैं दण्ड की माँग करता हूँ

निकारागुआ के महाकवि एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता: सेलफ़ोन Poem – Cell Phone / Ernesto Cardenal

आप अपने सेलफ़ोन पर बात करते हैं
करते रहते हैं,
करते जाते हैं
और हँसते हैं अपने सेलफ़ोन पर
यह न जानते हुए कि वह कैसे बना था
और यह तो और भी नहीं कि वह कैसे काम करता है
लेकिन इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है
परेशानी की बात यह कि
आप नहीं जानते
जैसे मैं भी नहीं जानता था
कि कांगो में मौत के शिकार होते हैं बहुत से लोग
हज़ारों हज़ार
इस सेलफ़ोन की वजह से

वे घबरा चुके हैं

वे घबरा चुके हैं
हमारे सीने में उफनते तूफानों से
वे घबरा चुके हैं
हमारे सृजन सरोकारों से
वे घबरा चुके हैं
हमारी अध्ययन गति
और वैचारिक प्रतिबद्धता से

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की तीन कविताएँ – कसीदा श्रृंखला Three poems of Bertolt Brecht – Praise series

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की तीन कविताएँ 1. कसीदा इंक़लाबी के लिए 2. कसीदा द्वंद्ववाद के लिए 3. कसीदा कम्युनिज़्म के लिए

एक आस्तिक की पुकार

एक नास्तिक एक बार
मुझसे भिड़ गया था
या कहो कि
मैंने ही उसे पकड़ लिया था
तो मैंने उसे नर्क दिखाया
स्वर्ग से ललचाया
इस जीवन को सुधारने का मंत्र दिया
तो नास्तिक बोला –
तेरा भगवान क्रान्ति कर
सकता है क्या
और वो मुझे एक पर्चा थमा गया

आओ गीत एक गाता हूँ

आओ गीत एक गाता हूँ
गीत एक सुनाता हूँ
आओ नौजवान साथियों
आओ मिलकर कहें इंकलाब साथियों
अशफ़ाक, बिस्मिल,
भगत का यह सन्देश
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
सबका यह देश
आओ मिलकर चलें हम सब