लड़ाई का कारोबार

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट, अनुवाद : मोहन थपलियाल

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जर्मनी के प्रसिद्ध कवि बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की नौ छोटी कविताएँ जो उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के ठीक पहले लिखी थीं जब पूरा जर्मनी हिटलर की अगुवाई में नात्सियों द्वारा भड़काए गए युद्धोन्माद के नशे में डूबा हुआ था! अंतिम कविता ब्रेष्ट ने 1945 में युद्ध की समाप्ति के बाद लिखी थी जब पूरे यूरोप और सोवियत संघ पर तबाही का कहर बरपा करने के बाद जर्मनी भी युद्ध में पराजित और पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था I युद्धोन्मादी अंधराष्ट्रवाद और फासिस्ट बर्बरता के नतीजे भुगतने के बाद, जर्मनी इस ऐतिहासिक अपराध-बोध में डूबा हुआ था कि वह नात्सियों द्वारा भड़काए गए जुनून में बह गया था जिसकी कीमत पूरी मनुष्यता ने चुकाई! ब्रेष्ट की यह कविता इसी माहौल और मनःस्थिति को अभिव्यक्त करती है!

(1) लड़ाई का कारोबार

एक घाटी पाट दी गयी है 
और बना दी गयी है एक खाई ।

(2) यह रात है

विवाहित जोड़े 
बिस्तरों में लेटे हैं 
जवान औरतें 
अनाथों को जन्म देंगी।

(3) ऊपर बैठने वालों का कहना है

ऊपर बैठने वालों का कहना है :
यह रास्ता महानता का है 
जो नीचे धँसे हैं, उनका कहना है :
यह रास्ता क़ब्र का है।

(4) दीवार पर खड़िया से लिखा था

दीवार पर खड़िया से लिखा था : 
वे युद्ध चाहते हैं
जिस आदमी ने यह लिखा था 
पहले ही धराशायी हो चुका है।

(5) जब कूच हो रहा होता है

जब कूच हो रहा होता है 
बहुतेरे लोग नहीं जानते 
कि दुश्मन उनकी ही खोंपड़ी पर 
कूच कर रहा है I
वह आवाज़ जो उन्हें हुक्म देती है 
उन्हीं के दुश्मन की आवाज़ होती है 
और वह आदमी जो दुश्मन के बारे में बकता है 
खुद दुश्मन होता है।

(6) युद्ध जो आ रहा है

युद्ध जो आ रहा है 
पहला युद्ध नहीं है I
इससे पहले भी युद्ध हुए थे I
पिछला युद्ध जब ख़त्म हुआ
तब कुछ विजेता बने और कुछ विजित।
विजितों के बीच आम आदमी भूखों मरा 
विजेताओं के बीच भी मरा वह भूखा ही।

(7) जो शिखर पर बैठे हैं, कहते हैं

वे जो शिखर पर बैठे हैं, कहते हैं :
शांति और युद्ध के सारतत्व अलग-अलग हैं 
लेकिन उनकी शान्ति और उनका युद्ध 
हवा और तूफ़ान की तरह हैं 
युद्ध उपजता है उनकी शान्ति से 
जैसे माँ की कोख से पुत्र 
माँ की डरावनी शक्ल की याद दिलाता हुआ 
उनका युद्ध ख़त्म कर डालता है 
जो कुछ उनकी शांति ने रख छोड़ा था।

(8) नेता जब शान्ति की बात करते हैं

नेता जब शांति की बात करते हैं 
आम आदमी जानता है 
कि युद्ध सन्निकट है 
नेता जब युद्ध को कोसते हैं 
मोर्चे पर जाने का आदेश 
हो चुका होता है I

(9) जर्मनी 1945

घरों के भीतर प्लेग से मौत है 
घरों के बाहर ठण्ड से मौत है 
तब हमारा ठिकाना कहाँ हो ?

सुअरी ने हग डाला है अपने बिस्तर पर 
सुअरी मेरी माँ है, मैंने कहा :
ओ मेरी माँ, ओ मेरी माँ, 
तुमने यह क्या कर डाला मेरे साथ ?

The business of war

Bertolt Brecht

 (1) The business of war
A valley has been filled up
And a trench has been dug up

(2) IT IS NIGHT

The married couples
Lie in their beds.
The young women Will bear orphans.

(3) THOSE AT THE TOP SAY:

Those at the top say:
This way to glory.
Those down below say:
This way to the grave.

(4) ON THE WALL WAS CHALKED:

On the wall was chalked:
They want war.
The man who wrote it
Has already fallen.

(5) WHEN IT COMES TO MARCHING MANY DO NOT KNOW

When it comes to marching
Many do not know
That their enemy is marching at their head.
The voice which gives them their orders
Is their enemy’s voice and
The man who speaks of the enemy
Is the enemy himself.

(6) THE WAR WHICH IS COMING

The war which is coming
Is not the first one. There were
Other wars before it.
When the last one came to an end
There were conquerors and conquered.
Among the conquered the common people
Starved. Among the conquerors
The common people starved too.

 (7) THOSE AT THE TOP SAY:

Those at the top say:
Peace and war
Are of different substance.
But their peace and their war
Are like wind and storm.

War grows from their peace
Like son from his mother
He bears
Her frightful features.

Their war kills
Whatever their peace
Has left over.

 (8) WHEN THE LEADERS SPEAK OF PEACE

When the leaders speak of peace
The common folk know
That war is coming.
When the leaders curse war
The mobilization order is already written out.

 (9) GERMANY 1945

Indoors is death by plague
Outdoors is death by cold.
So where are we to be?
The sow has shat in her bed
The sow’s my mum. I said:
0 mother mine, o mother mine
What have you done to me?


 

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