तानाशाह : तीन कविताएँ

-कविता कृष्णपल्लवी

तानाशाह के मन की बात

तानाशाह जब लोगों से अपने मन की बात करता है
तो वह सब कुछ कहता है जो
उसके मन में कभी नहीं होता।
तब वह दरअसल अपने हृदय का सारा अन्धकार
सड़कों पर उड़ेल देना चाहता है,
उसे पूरे देश में फैला देना चाहता है।
तानाशाह का यह हृदय
दलाल स्ट्रीट के साँड के शरीर से निकाला गया है।
कुछ दिनों तक यह सजा हुआ रखा था
एण्टीलिया के एक भव्य ड्राइंग रूम में।
कभी यह सुशोभित हुआ करता था
वालमार्ट के शोरूम में।
*
तानाशाह अपना हृदय खोल रहा है और
पूरे देश में अँधेरा भरता जा रहा है,
गलियों से बहती ख़ून की धाराएँ
सड़कों पर आकर मिल रही हैं
और शहर डूबने के कगार पर हैं।
*
यह आम लोगों का ख़ून कभी व्यर्थ नहीं बहता।
इस ख़ून की बाढ़ में एक दिन
डूबकर मर जाना है तानाशाह को
अपने हृदय के सारे अन्धकार के साथ,
अपने ख़ून की सारी गन्दगी के साथ
और हर क़ीमत पर चिरकाल तक शासन करने के
अपने आततायी इरादों के साथ।
(7 अगस्त 2018)

तानाशाह जो करता है!

लाखों इन्सानों को हाँका लगाकर जंगल से खदेड़ने
और हज़ारों का मचान बाँधकर शिकार करने के बाद
तानाशाह कुछ आदिवासियों को राजधानी बुलाता है
और सींगों वाली टोपी और अंगरखा पहनकर
उनके साथ नाचता है
और नगाड़ा बजाता है।

बीस लाख लोगों को अनागरिक घोषित करके
तानाशाह उनके लिए
बड़े-बड़े कंसंट्रेशन कैम्प बनवाता है
और फिर घोषित करता है कि
जनता ही जनार्दन है।

एक विशाल प्रदेश को जेलखाना बनाने के बाद
तानाशाह बताता है कि
मनुष्य पैदा हुआ है मुक्त
और मुक्त होकर जीना ही
उसके जीवन की अन्तिम सार्थकता है।

लाखों बच्चों को अनाथ बनाने के बाद
तानाशाह कुछ बच्चों के साथ
पतंग उड़ाता है।

हज़ारों स्त्रियों को ज़ुल्म और वहशीपन का
शिकार बनाने के बाद तानाशाह अपने
महल के बारजे से कबूतर उड़ाता है,
सड़कों पर खून की नदियाँ बहाने के बाद
कवियों-कलावंतों को पुरस्कार और
सम्मान बाँटता है।

तानाशाह ऐसे चुनाव करवाता है
जिसमें हमेशा वही चुना जाता है,
ऐसी जाँचें करवाता है कि
अपराध का शिकार ही अपराधी
सिद्ध हो जाता है
ऐसे न्याय करवाता है कि वह तमाम
हत्यारों के साथ खुद
बेदाग़ बरी हो जाता है।
तानाशाह रोज़ सुबह संविधान का पन्ना
फाड़कर अपना पिछवाड़ा पोंछता है
और फिर बाहर निकलकर लोकतंत्र,
संविधान, न्याय और इस देश की जनता में
अपनी अटूट निष्ठा प्रकट करता है।

तानाशाह अपने हर जन्मदिन पर
लोगों की ज़िन्दगी से कुछ रंगों को
निकाल बाहर करता है
और फिर सुदूर जंगलों से बक्सों में भरकर लाई गई
रंग-बिरंगी तितलियों को राजधानी की
ज़हरीली हवा में आज़ाद करता है।

इस तरह तानाशाह सभी मानवीय, सुन्दर
और उदात्त क्रियाओं और चीजों को,
नागरिक जीवन की सभी स्वाभाविकताओं को,
सभी सहज-सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को
सन्दिग्ध बना देता है।

सन्देह में जीते हुए लोग उम्मीदों,
सपनों और भविष्य पर भी
सन्देह करने लगते हैं
और जबतक वे ऐसा करते रहते हैं
उन्हें तानाशाह की सत्ता का अस्तित्व
असन्दिग्ध लगता रहता है।

तानाशाह और भीड़

तानाशाह के पास
अपने वफ़ादार वर्दीधारी सैनिक थे,
अपने चुने हुए जन-प्रतिनिधि थे,
अपने अमले-चाकर थे,
अफ़सर-मुलाज़िम-कारकुन थे,
अपनी न्यायपालिका थी,
अपने शिक्षा-संस्थान थे जहाँ
टैंक खड़े रहते थे और तानाशाही तले
जीने की शिक्षा दी जाती थी।

पर तानाशाह की सबसे बड़ी ताक़त
हिंसक भेड़ियों के झुण्ड जैसी वह भीड़ थी
जो तानाशाह के लोगों ने
बड़ी मेहनत से तैयार की थी।
इसमें समाज के अँधेरे तलछट के लोग थे
और सीलन भरे उजाले के पीले-बीमार
चेहरों वाले लोग थे
और जड़ों से उखड़े हुए सूखे-मुरझाये हुए लोग थे।
यह भीड़ तानाशाह के इशारे पर
किसीको बोटी-बोटी चबा सकती थी,
सड़कों पर उन्माद का उत्पात मचा सकती थी,
बस्तियों को खून का दलदल बना सकती थी।

सम्मोहित-सी वह भीड़
हमेशा तानाशाह के पीछे चलती थी
और तानाशाह के इशारे का इंतज़ार करती थी।
तानाशाह इतना आश्वस्त था कि
यह सोच भी नहीं पाता था कि
किसी भी सम्मोहन का जादू
कुछ समय बाद टूटने लगता है।

एक दिन अपने लाव-लश्कर के साथ
तानाशाह जब सड़क पर निकला
तो उसने देखा कि भीड़
जो उसके पीछे चला करती थी,
वह उसका पीछा कर रही है!

मज़दूर बिगुल, अक्तूबर 2019


 

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