Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

कमरतोड़ महँगाई और बेहिसाब बिजली कटौती के ख़िलाफ़ धरना

नौजवान भारत सभा, पंजाब के संयोजक परमिन्दर ने कहा कि इस महँगाई और बिजली की कमी के कारण प्राकृतिक नहीं हैं जैसा कि केन्द्र और पंजाब सरकार बकवास कर रही है। असल में यह तो मुनाफ़ाख़ोरी का नतीजा है और सरकार की मुट्टीभर पूँजीपतियों के पक्ष में और विशाल जनता के ख़िलाफ़ अपनायी गयी नीतियों का नतीजा है। पूँजीवादी सरकार जनता की पेट की भूख तक मिटाने को तैयार नहीं तो ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि सरकार जनता के फ़ायदे के लिए बिजली की पूर्ति के लिए कहाँ तक कोई क़दम उठायेगी। उन्होंने कहा कि कहने को तो 1947 में देश आज़ाद हो गया लेकिन यह एक कोरा झूठ है। ग़ैरबराबरी, ग़रीबी, भूख-प्यास, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य सुविधाओं का अकाल, अशिक्षा बस यही दिया है इस आज़ादी ने। इसलिए जनता की आज़ादी आनी अभी बाक़ी है। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि जब-जब भी मेहनतकश जनता के संघर्षों का तूफ़ान उठा है नौजवान उनकी अगली कतारों में लड़े हैं और आने वाला समय भी इसी बात की गवाही देगा।

दिशा छात्र संगठन-नौजवान भारत सभा ने शुरू किया ‘शहरी रोज़गार गारण्टी अभियान’

शहरों में ग़रीबी और बेरोज़गारी की स्थिति गाँवों से भी ज्यादा विकराल है। जनगणना और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के ऑंकड़ों से ही यह साफ़ पता चलता है कि पिछले दो दशकों में शहरों में बेरोज़गारी गाँवों के मुकाबले कहीं तेज़ रफ्तार से बढ़ी है। ऐसे में यदि गाँवों के ग़रीबों के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी योजना (नरेगा) बनायी और लागू की गयी है तो शहरी ग़रीब और बेरोज़गार भी ऐसी योजना के हक़दार हैं। नरेगा लागू करते समय सरकार ने स्पष्ट शब्दों में यह स्वीकार किया है गाँव के ग़रीबों और बेरोज़गारों को रोज़गार का अधिकार है और यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह उन्हें रोज़गार मुहैया कराये। क्या इसी तर्क से शहरी ग़रीब और बेरोज़गार रोज़गार के अधिकारी नहीं हैं? शहर के ग़रीब और बेरोज़गार भी भारत के उतने ही नागरिक हैं जितने कि गाँव के ग़रीब और बेरोज़गार। शहरों में जीवन कहीं ज्यादा कठिन होता है। यहाँ ग़रीब आबादी के लिए जीवनयापन ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है। सरकारी ऑंकड़े ही बताते हैं शहरों में कुपोषण और भुखमरी गाँवों की तुलना में अधिक है। इसीलिए आज नरेगा के तर्ज़ पर राष्ट्रीय शहरी रोज़गार गारण्टी योजना की सख्त ज़रूरत है।

पाँच क्रान्तिकारी जनसंगठनों का साझा चुनावी भण्डाफोड़ अभियान

देशभर में लोकसभा चुनाव के लिए जारी धमाचौकड़ी के बीच बिगुल मज़दूर दस्ता, देहाती मज़दूर यूनियन, दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, और स्‍त्री मुक्ति लीग ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पंजाब के अलग-अलग इलाकों में चुनावी भण्डाफोड़ अभियान चलाकर लोगों को यह बताया कि वर्तमान संसदीय ढाँचे के भीतर देश की समस्याओं का हल तलाशना एक मृगमरीचिका है। ऊपर से नीचे तक सड़ चुकी इस आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था को ध्वस्त कर बराबरी और न्याय पर टिका नया हिन्दुस्तान बनाने के लिए आम अवाम को संगठित करके एक नया इन्‍कलाब लाना होगा।

मई दिवस पर याद किया मज़दूरों की शहादत को

मई दिवस के दिन सुबह ही गोरखपुर की सड़कें ”दुनिया के मज़दूरों एक हो”, ”मई दिवस ज़िन्दाबाद”, ”साम्राज्यवाद-पूँजीवाद का नाश हो”, ”भारत और नेपाली जनता की एकजुटता ज़िन्दाबाद”, ”इंकलाब ज़िन्दाबाद” जैसे नारों से गूँज उठीं। नगर निगम परिसर में स्थित लक्ष्मीबाई पार्क से शुरू हुआ मई दिवस का जुलूस बैंक रोड, सिनेमा रोड, गोलघर, इन्दिरा तिराहे से होता हुआ बिस्मिल तिराहे पर पहुँचकर सभा में तब्दील हो गया। जुलूस में शामिल लोग हाथों में आकर्षक तख्तियाँ लेकर चल रहे थे जिन पर ”मेहनतकश जब जागेगा, तब नया सवेरा आयेगा”, ”मई दिवस का है पैगाम, जागो मेहनतकश अवाम” जैसे नारे लिखे थे।

भगतसिंह के शहादत दिवस पर कार्यक्रम

भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस (23 मार्च) के अवसर पर राहुल फाउण्डेशन ने लखनऊ के हज़रतगंज में एक पोस्टर प्रदर्शनी आयोजित की। पोस्टर में भगतसिंह के उद्धरण “अगर कोई सरकार जनता को उसके बुनियादी हक़ों से वंचित रखती है तो उस देश के नौजवानों का हक़ ही नहीं, आवश्यक कर्त्तव्य बन जाता है कि वह ऐसी सरकार को उखाड़ फेंके या तबाह कर दें।” को लेकर प्रदर्शनी स्थल पर नागरिकों व नौजवानों के बीच काफी बहस-मुबाहिसे का माहौल उपस्थित था। प्रदर्शनी आयोजक सदस्य लालचंद का कहना था कि इस जगह प्रदर्शनी लगाने का उद्देश्य भगतसिंह के विचारों को आम लोगों के बीच ले जाना है, उन्हें इन विचारों से परिचित करना और भगतसिंह के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए उनका आह्वान करना है। शालिनी का कहना था कि आज देश के वर्तमान हालत को बदलने के लिए भगतसिंह के विचारों के आधाशर पर एक क्रान्तिकारी संगठन बनाने के काम में हम लोग लगे हुए हैं और यह बताना चाहते हैं कि भगतसिंह के विचार जीवित हैं और उनके सपनों के हिन्दुस्तान को बनाने के लिए आज के युवा आगे आयेंगे।

जनता की कार, जनता पर सवार

नैनो कार का बहुसंख्यक आबादी के लिए न होने और उससे इसका कोई सरोकार न होने के बावजूद इसी बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी की टैक्स के रूप में जमा गाढ़ी कमाई के बदौलत इसे तैयार किया गया है। प. बंगाल में मुख्य कारखाना हटने और गुजरात में लगने के बाद मोदी सरकार ने इसमें विशेष रूचि दिखायी और जनता का करोड़ो रूपया पानी की तरह इसपर बहा दिया। एक अनुमान के मुताबिक 1 लाख की कीमत वाली हरेक नैनो कार पर जनता की गाढ़ी कमाई का 60,000 रूपया लगा है। नैनो संयंत्र के लिए गुजरात सरकार ने टाटा को 0.1 प्रतिशत साधारण ब्याज की दर से पहले चरण के लिए 2,900 करोड़ का भारी-भरकम कर्ज दिया है जिसकी अदायगी बीस वर्षों में करनी है। कम्पनी को कौड़ियों के भाव 1,100 एकड़ जमीन दी गयी है। इसके लिए स्टाम्प ड्यूटी और अन्य कर भी नहीं लिये गये हैं। कम्पनी को 14,000 घनमीटर पानी मुफ्त में उपलब्ध कराया जा रहा है साथ ही संयंत्र में बिजली पहुँचाने का सारा खर्च सरकार वहन करेगी।

निठारी के बच्चों की नरबलि हमारे विवेक और संवेदना के दरवाजों पर दस्तक देती रहेगी!

मुनाफ़े की हवस को शान्त करने के लिए इंसान के श्रम को निचोड़ने के बाद बचे–खुचे समय में आज पूँजीपति वर्ग और उसकी लग्गू–भग्गू जमातें अपनी विलासिता और भोग की पाशविक लालसा को शान्त करने के लिये मनुष्यता को, समस्त मानवीय मूल्यों को निचोड़ डाल रही हैं ।इस नव–धनिक जमात को किसी चीज़ का डर नहीं है । न पुलिस–प्रशासन का, न कानून– अदालत का । इन्हें कोई सामाजिक भय भी नहीं है । क्योंकि उससे बचने के लिये उन्होंने कानूनी–गैर कानूनी संगठित हथियारबन्द दल बना रखे हैं और मुद्रारूपी सर्वशक्तिमान सत्ता के ये स्वामी हैं । इसी शक्ति के मद में चूर थे मानव भेस धरे वहशी भेड़िये बेखौफ हो इंसानियत को रौंदते–कुचलते हुए राजमार्गों पर फर्राटा भरते हैं, शिकारों की तलाश में गली–कूचों में मँडराते हैं । मोहिन्दर जैसे लोग इसी जमात से आते हैं जो इंसानी खून और हड्डियों के बीच लोट लगाते हैं और पाशविक यौनाचार के लिये अपनी बीवियों–बच्चों को भी नहीं बख्शते । ये आधुनिक पूँजीवादी सभ्यता और संस्कृति की चरम पतनशीलता के वाहक प्रतीक चेहरे हैं ।