यू.आई.डी. : जनहित नहीं, शासक वर्ग के डर का नतीजा
सरकार के अच्छी शासन व्यवस्था के दावों के विपरीत यू.आई.डी. योजना नागरिकों के निजी जीवन के संवेदनशील पहलुओं में ख़तरनाक दख़लअन्दाज़ी है। यह योजना नागरिकों की निजी जानकारी के खुला हो जाने का गम्भीर ख़तरा पैदा करेगी और उनके जीवन की असुरक्षा को बहुत अधिक बढ़ा देगी। यह नागरिक आज़ादी पर एक बड़ा हमला है। काग़ज़ों पर ही सही लेकिन भारतीय संविधान नागरिकों को थोड़ी निजी आज़ादी की बात तो कहता ही है। यू.आई.डी. अभियान संविधान में दर्ज निजी गुप्तता के अधिकार की स्पष्ट अवहेलना करता है। संविधान में अनेक कानून हैं जो नागरिकों की निजी जानकारी खुला करने पर पाबन्दी लगाते हैं। यू.आई.डी.ए.आई. को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अदालत या राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र कम से कम संयुक्त सचिव पद के अधिकारी के निर्देशों पर किसी नागरिक की व्यक्तिगत जानकारी खुला कर सकती है। लेकिन इससे पहले मौजूद भारतीय कानूनों के तहत तो ऐसा केन्द्र या प्रान्त के गृह सचिव के आदेशों पर ही किया जा सकता था।