फ़र्ज़ी मुठभेड़ों, पुलिस हिरासत में प्रतिदिन 4 बेकसूर मारे जाते हैं
पूरे देश के पैमाने पर पुलिस, सेना और अन्य सशस्त्र बलों द्वारा अधिकतर अवैध और कभी-कभी वैध तरीक़े से लोगों को हिरासत में लेना और टॉर्चर करके उन्हें मार डालना एक आम प्रवृत्ति बन गयी है, जो साल दर साल बढ़ती जा रही है। एक तरफ़ तो इस जघन्य अपराध की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ़ सरकार, प्रशासन या न्यायपालिका की तरफ़ से इसके ख़िलाफ़ कोई प्रभावी क़दम उठाने की पहल होती नज़र नहीं आ रही है। निश्चित तौर पर इस उदासीनता का एक प्रमुख कारण यह है कि वर्दीधारियों की अमानवीयता का शिकार होने वालों में सबसे बड़ी संख्या ग़रीब और निम्नमध्यवर्गीय लोगों की होती है, और सम्पत्ति को ही अन्तिम पैमाना मानने वाली इस व्यवस्था में जिनके जान की क़ीमत कुछ ख़ास नहीं समझी जाती।