Category Archives: संघर्षरत जनता

श्रीराम पिस्टन, भिवाड़ी के मज़दूरों के आक्रोश का विस्फोट और बर्बर पुलिस दमन

गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी और खुशखेड़ा तक के कारख़ानों में लाखों मज़दूर आधुनिक गुलामों की तरह खट रहे हैं। लगभग हर कारख़ाने में अमानवीय वर्कलोड, ज़बरन ओवरटाइम, वेतन में कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकार छीने जाने जैसे साझा मुद्दे हैं। हमें यह समझना होगा कि आज अलग-अलग कारख़ाने की लड़ाइयों को जीत पाना मुश्किल है। अभी हाल ही में हुए मारुति सुजुकी आन्दोलन से सबक लेना भी ज़रूरी है जो अपने साहसपूर्ण संघर्ष के बावजूद एक कारख़ाना-केन्द्रित संघर्ष ही रहा। मारुति सुजुकी मज़दूरों द्वारा उठायी गयीं ज़्यादातर माँगें – यूनियन बनाने, ठेकाप्रथा ख़त्म करने से लेकर वर्कलोड कम करने – पूरे गुड़गाँव से लेकर बावल तक की औद्योगिक पट्टी के मज़दूरों की थीं। लेकिन फिर भी आन्दोलन समस्त मज़दूरों के साथ सेक्टरगत-इलाक़ाई एकता कायम करने में नाकाम रहा। इसलिए हमें समझना होगा कि हम कारख़ानों की चौहद्दियों में कैद रहकर अपनी माँगों पर विजय हासिल नहीं कर सकते, क्योंकि हरेक कारख़ाने के मज़दूरों के समक्ष मालिकान, प्रबन्धन, पुलिस और सरकार की संयुक्त ताक़त खड़ी होती है, जिसका मुकाबला मज़दूरों के बीच इलाक़ाई और सेक्टरगत एकता स्थापित करके ही किया जा सकता है

Warm Welcome for the Injured Worker Activists by Struggling Workers of Shriram Piston, Bhiwadi

If the millions of automobile workers of NCR region unite themselves in one powerful indpendent sectoral union, the money power and muslce power of the servants of capitalists will be useless and ineffective. The company management and owners as well as the governments are afraid of this very possibility and that is why they are cowardly attacking us. Ajay said that ‘Gurgaon Mazdoor Sangharsh Samiti’ has been participating in this movement and will continue to do so. Ajay said, “We will take legal action against the Shriram Piston management, goons and bouncers who attacked us and also the Ghaziabad Police which colluded with the factory management. This attack is an attack on the movement of struggling workers of Bhiwadi and workers will give a fitting reply to it. If need comes we will organize a demonstration at the central office of Shriram Piston in New Delhi.”

भिवाड़ी के संघर्षरत मज़दूर साथियों ने किया घायल मज़दूर कार्यकर्ताओं का गर्मजोशी भरा स्‍वागत

अगर राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लाखों ऑटोमोबाइल मज़दूर एकजुट हो जायें तो यह पैसे और बाहुबल की ताक़त भी धूल चाटने लगेगी। 26 अप्रैल और 5 मई का हमला दिखलाता है कि मालिकान और उनके तलवे चाटने वाली सरकारें इसी बात से डरती हैं। अजय ने कहा कि ‘गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति’ श्रीराम पिस्‍टन भिवाड़ी के मज़दूरों के संघर्ष में शामिल है और रहेगी और इस आंदोलन के पक्ष में पूरे राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पर्चा वितरण करेगी। जरूरत पड़ी तो श्रीराम पिस्‍टन के केंद्रीय कार्यालय का घेराव भी किया जायेगा जो कि नयी दिल्‍ली में है। साथ ही, इस हमले के विरोध में श्रीराम पिस्‍टन के मालिकों, प्रबंधन, गुण्‍डों और साथ ही गाजियाबाद पुलिस के विरुद्ध मुकदमा किया जायेगा। यह हमला भिवाड़ी के मज़दूरों के आंदोलन पर हमला है और इसका मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा।

Deadly attack on worker activists of Gurgaon Mazdoor Sangharsh Samiti and Bigul Mazdoor Dasta by the goons of Sriram Piston company

Goons of owner and management of Sriram Piston attacked the activists of Gurgaon Mazdoor Sangharsh Samiti and Bigul Mazdoor Dasta who were distributing pamphlets at the Ghaziabad plant of Sriram Piston in support of the struggling workers of Bhiwadi plant of Sriram Piston. The deadly attack by these goons took place around 5 PM and resulted in serious injuries to four worker activists Tapish Maindola, Anand, Akhil and Ajay.

गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति और बिगुल मज़दूर दस्‍ता के मज़दूर कार्यकर्ताओं पर श्रीराम पिस्‍टन के मालिकान और प्रबंधन के गुण्‍डों का जानलेवा हमला

आज शाम 5 बजे श्रीराम पिस्‍टन के भिवाड़ी के प्‍लाण्‍ट के मज़दूरों के पिछले 20 दिनों से जारी आन्‍दोलन के समर्थन में श्रीराम पिस्‍टन के ग़ाजि़याबाद के प्‍लाण्‍ट के बाहर पर्चा बांटने गये ‘गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति’ और ‘बिगुल मज़दूर दस्‍ता’ की संयुक्‍त टोली पर श्रीराम पिस्‍टन के मालिकान और प्रबंधन के गुंडों ने जानलेवा हमला किया। इस हमले में चार राजनीतिक कार्यकर्ताओं तपीश मैंदोला, आनंद, अखिल और अजय को गम्‍भीर चोटें आयी हैं।

श्रीराम पिस्टन (भिवाड़ी) के मज़दूरों का संघर्ष जि़न्दाबाद!

श्रीराम पिस्टन फैक्ट्री की यह घटना न सिर्फ हीरो होण्डा, मारुति सुजुकी और ओरिएण्ट क्राफ्ट के मज़दूर संघर्षों की अगली कड़ी है, बल्कि पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल-भिवाड़ी की विशाल औद्योगिक पट्टी में मज़दूर आबादी के भीतर, और विशेषकर आटोमोबील सेक्टर के मज़दूरों के भीतर सुलग रहे गहरे असन्तोष का एक विस्फोट मात्र है। यह आग तो सतह के नीचे पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक इलाकों में धधक रही है, जिसमें दिल्ली के भीतर के औद्योगिक क्षेत्रों के अतिरिक्त नोएडा, ग्रेटर नोएडा, साहिबाबाद, गुड़गाँव, फरीदाबाद और सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र भी आते हैं।

कम्बोडिया में मज़दूर संघर्षों का तेज़ होता सिलसिला

कम्बोडिया का यह मज़दूर उभार उस समय आया है जब विश्व पूँजीवाद भीषण आर्थिक मन्दी का शिकार है। मज़दूरों-मेहनतकशों के श्रम को किसी न किसी तरीक़े से अधिक से अधिक निचोड़कर मन्दी से छुटकारा हासिल करने की कोशिशें हो रही हैं। तेज़ी से बढ़ती महँगाई, महँगाई के मुकाबले मज़दूरी का बहुत कम बढ़ना, यहाँ तक कि वेतनों-भत्तों में कटौती होना, सरकार की तरफ़ से मिलने वाली सहूलियतों पर कटौती आदि विश्व पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में छाई मन्दी का ही नतीजा हैं। लेकिन जैसे-जैसे मज़दूरों-मेहनतकशों पर मन्दी का बोझ बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे जनाक्रोश भी बढ़ता जा रहा है। दुनिया के हर हिस्से में मज़दूरों-मेहनतकशों के आन्दोलन बढ़ते जा रहे हैं। कम्बोडिया के मज़दूर आन्दोलन का उभार विश्व मज़दूर आन्दोलन की एक नयी प्राप्ति है। यह साफ़ है कि नारकीय जीवन जैसे हालात में धकेल देने वाले पूँजीपति हुक़मरानों को मज़दूर वर्ग चैन की नींद नहीं लेने देगा।

ठेका प्रथा उन्मूलन के वायदे से मुकरी केजरीवाल सरकार!

क्या कारण है कि पूरी दिल्ली के सभी औद्योगिक क्षेत्रों में मालिकों और ठेकेदारों के संघ आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल को खुला समर्थन दे रहे हैं? क्या मज़दूरों का शोषण करने वाली ताक़तें, श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले लुटेरे अचानक सदाचारी और सन्त पुरुष हो गये हैं? जी नहीं साथियो! वास्तव में, अरविन्द केजरीवाल अन्दर ही अन्दर इन्हीं पूँजीपतियों और ठेकेदारों के हितों में काम कर रहा है। केजरीवाल जिस भ्रष्टाचार को दूर करने की बात कर रहा है उससे मालिकों और ठेकेदारों को ही फायदा होगा! वह यह चाहता है कि ठेकेदारों-मालिकों को अपने मुनाफ़े का जो हिस्सा घूस-रिश्वत के तौर पर नौकरशाहों, इंस्पेक्टरों, श्रम विभाग अधिकारियों को देना पड़ता है, वह न देना पड़े! इससे मालिकों के वर्ग का ही लाभ होगा। लेकिन जिस भ्रष्टाचार से मज़दूर पीड़ित है, उसके बारे में केजरीवाल और उसकी आम आदमी पार्टी की सरकार चुप है। और श्रम मन्त्री गिरीश सोनी ने साफ़ तौर पर बोल भी दिया कि केजरीवाल सरकार को ठेकेदारों और मालिकों के हितों की सेवा करनी है, मज़दूरों के लिए ठेका उन्मूलन क़ानून पास करने से उसने सीधे इंकार कर दिया। यानी ठेका उन्मूलन के वायदे से केजरीवाल सरकार खुलेआम मुकर गयी!

लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों की हड़ताल की जीत

मज़दूर संगठन की लगातार बढ़ती जा रही ताक़त से मालिक बौखलाहट में हैं। संगठन को कमज़ोर करने और तोड़ने के लिए वह लगातार कोशिशें कर रहे हैं। इस बार की हड़ताल से पहले अग्रणी भूमिका निभाने वाले और मज़दूरों को काम से निकालने की नीति मालिकों ने अपनायी है। सीज़नल काम होने की वजह से संगठन की ताक़त पूरे साल एक जैसी नहीं रहती। मज़दूर पीस रेट पर काम करते हैं और काम कम होने पर गाँव चले जाते हैं। मालिकों ने मन्दी के दिनों में अगुआ और सरगर्म भूमिका निभाने वाले मज़दूरों को काम से निकालना शुरू कर दिया, या गाँव से वापस आने पर उन्हें काम पर नहीं रखा। इस छँटनी को रुकवाने के लिए संगठन के पास अभी संगठित ताक़त की कमी है और आमतौर पर श्रम विभाग में शिकायत दर्ज करवाकर ही गुज़ारा करना पड़ता है। श्रम विभाग और श्रम अदालतों में मज़दूरों के केस लम्बे समय के लिए लटकते रहते हैं और इन्साफ़ नहीं मिलता। जिन कारख़ानों के मज़दूर संगठन के जीवन्त सम्पर्क में नहीं रहते, उन कारख़ानों में छँटनी की यह मुसीबत ज़्यादा आयी है। कारख़ानों से निकाले गये मज़दूर दूसरे इलाक़ों में जाकर काम कर रहे हैं, इससे अन्य इलाक़ों में भी संगठन के फैलाव की सम्भावना बनी है। दूरगामी तौर पर देखा जाये तो मालिकों के हमले के ये लाभ भी हुए हैं।

नेपाली क्रान्तिः गतिरोध और विचलन के बाद विपर्यय और विघटन के दौर में

वास्तव में नेपाल क्रान्ति की अग्रगति तो उस समय ही रुक गयी थी और उसका वह भविष्य तय हो चुका था (जो आज का वर्तमान है) जब नेपाल की और आज की दुनिया की “ठोस परिस्थितियों” के नाम पर प्रचण्ड ने और उनसे भी आगे बढ़कर भट्टराई ने सर्वहारा अधिनायकत्व के मार्क्सवादी-लेनिनवादी सिद्धान्तों को “संशोधित” करते हुए सोवियत सत्ता जैसी किसी प्रणाली के बरक्स बहुदलीय जनतंत्र के मॉडल को प्रस्तुत करना शुरू किया था। फिर उन्होंने जनता के जनवादी गणराज्य के पहले संघात्मक जनवादी गणराज्य जैसी एक और संक्रमणकालिक अवस्था का सिद्धान्त देना शुरू कर दिया ताकि संविधान सभा में अपने समझौतों, जोड़ों-तोड़ों और हर हाल में बने रहने का औचित्य-प्रतिपादन किया जा सके। पार्टी पहली संविधान सभा के मंच का रणकौशल (टेक्टिक्स) के रूप में इस्तेमाल करने की बात करती थी, लेकिन कालांतर में, किसी भी सूरत में संविधान-निर्माण और नये संविधान के तहत चुनाव लड़कर सत्तासीन होना ही उसका मुख्य उद्देश्य हो गया। जनमुक्ति सेना और आधार क्षेत्रों का विघटन-विसर्जन इसका स्पष्ट संकेत था। यानी चुनाव और संसद का इस्तेमाल पार्टी के लिए रणकौशल के बजाय रणनीति (स्‍ट्रैटेजी) का सवाल बन गया। जंगलों-पहाड़ों से चलकर “प्रचण्ड पथ” संसद के गलियारों में खो गया। हर संशोधनवादी पार्टी की तरह नेपाली पार्टी के नेता अलग-अलग बयानों में परस्पर-विरोधी बातें कहते रहे, अन्तरविरोधी बातें कहते रहते और बुनियादी विचारधारात्मक प्रश्नों पर या तो ‘नरो वा कुंजरो’ की भाषा में बात करते रहे, या फिर उनसे कन्नी काटते रहे।