लुधियाना में टेक्सटाइल मज़दूर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर
मज़दूरों ने श्रम विभाग और प्रशासन तक अपनी आवाज़ पहुँचाई है। लेकिन सरकारी मशीनरी मज़दूरों के हक में कोई भी कदम उठाने को तैयार नहीं है। श्रम विभाग कार्यालय में पर्याप्त संख्या में अधिकारी और कर्मचारी ही नहीं हैं और जो हैं भी वो पूँजीपतियों के पक्के सेवक हैं। अन्य क्षेत्रों के कारखानों की तरह टेक्सटाइल कारखानों में भी श्रम कानून लागू नहीं होते हैं। मज़दूर पीस रेट पर काम करते हैं और कुछ महीने मज़दूरों को बेरोज़गारी झेलनी पड़ती है। बाकी समय उन्हें 12-14 घण्टे कमरतोड़ काम करना पड़ता है। देश-विदेश में बिकने वाले शाल व होज़री बनाने वाले इन मज़दूरों को बेहद गरीबी की ज़िन्दगी जीनी पड़ रही है। ‘बिगुल’ द्वारा इन मज़दूरों के बीच किये गये निरन्तर प्रचार-प्रसार और संगठन बनाने की कोशिशों की बदौलत अगस्त 2010 में टेक्सटाइल मज़दूरों के एक हिस्से ने अपना संगठन बनाकर एक नये संघर्ष की शुरुआत की थी। पिछले वर्ष तक इस संघर्ष की बदौलत 38 प्रतिशत पीसरेट/वेतन वृद्धि और ई.एस.आई. की सुविधा हासिल की गयी है। लेकिन लगातार बढ़ती जा रही महँगाई के कारण स्थिति फिर वहीं वापस आ जाती है। मालिकों के मुनाफे तो बढ़ जाते हैं लेकिन वे अपनेआप मज़दूरों की मज़दूरी बढ़ाने, बोनस देने तथा अन्य अधिकार देने को तैयार नहीं होते। एकजुट होकर लड़ाई लड़ने के सिवाय कोई अन्य राह मज़दूरों के पास बचती नहीं है।