Category Archives: संघर्षरत जनता

सभी इंसाफ़पसन्द नागरिकों और मज़दूरों के नाम एक अपील

वे मज़दूरों को भूख से तोड़ना चाहते हैं। लेकिन ये इस्पात मज़दूर डटे हुए हैं; आधा पेट खाकर भी लड़ रहे हैं, ताकि उनके जायज़, कानूनी और संवैधानिक हक़ उन्हें मिल सकें। क्या वे कुछ ग़लत माँग रहे हैं? नहीं! वे तो बस अपने कानून-प्रदत्त अधिकार माँग रहे हैं और इसके लिए आधे पेट भी लड़ रहे हैं। कई मज़दूरों के घर खाने का भयंकर संकट पैदा हो चुका है। इस समस्या से निपटने के लिए ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ शनिवार (21 जून) से सामुदायिक रसोई की शुरुआत कर रही है। हम किसी भी हालत में हड़ताल को टूटने नहीं देंगे।

आग उगलती गर्मी में भी श्रीराम पिस्टन के मज़दूरों का संघर्ष जारी!

भिवाड़ी स्थित श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स के मज़दूर पिछले 15 अप्रैल से अपनी लम्बी हड़ताल जारी किये हुए है। लगभग 60 दिनों से आग उगलती गर्मी में मज़दूर पहले 10 दिन फ़ैक्टरी के अन्दर डेरा जमाये हुए थे और फिर 26 अप्रैल को कम्पनी में हुए बर्बर लाठीचार्ज के बाद कम्पनी गेट पर बैठे हुए हैं। ज्ञात हो कि इस दमन की कार्रवाई में राजस्थान पुलिस ने 26 नेतृत्वकारी मज़दूरों को ज़बरदस्ती गिरफ़्तार करके उन पर हत्या के प्रयास व अन्य कई गम्भीर धाराएँ लगी दीं। फिर भी मज़दूरों ने बर्बर दमन के खि़लाफ़ अपना संघर्ष जारी रखा।

एहरेस्टी के मज़दूरों की एकजुटता तोड़ने के लिए बर्बर लाठीचार्ज

मज़दूरों की एकजुटता को तोड़ने और प्लाण्ट ख़ाली करवाने के लिए कम्पनी ने 31 मई को हरियाणा पुलिस से साँठगाँठ कर मज़दूरों पर बर्बर लाठीचार्ज करवाया, जिसमें 30 से ज़्यादा मज़दूरों को गम्भीर चोटें आयी हैं। इस बर्बर दमन ने साफ़ कर दिया है कि चाहे भाजपा की वसुन्धरा सरकार या कांग्रेस की हुड्डा सरकार, वे तो बस पूँजीपतियों के हितों को सुरक्षित करने का काम कर रहे हैं। 

वज़ीरपुर के गरम रोला के मज़दूरों की जुझारू हड़ताल नौवें दिन भी जारी

मज़दूरों के दबाव के कारण आज श्रम विभाग की तरफ से गरम रोला के सभी 26 कारखानों के मालिकों को गरम रोला मज़दूर एकता समिति के प्रतिनिधिमण्डल के साथ वार्ता के लिए बुलाया गया था, किन्तु कारखाना मालिक तो कोई नहीं पहुँचा लेकिन उन्होंने अपने एक मैनेजर को भेज दिया जिसे श्रम विभाग ने बैरंग लौटा दिया। उन्होनें आगे कहा कि भले ही मालिक आज समझौते की टेबल पर आने के लिए तैयार न हों किन्तु देर-सबेर उन्हें मज़दूरों की जायज कानूनी मांगों को मानना ही पड़ेगा।

गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्‍व में वज़ीरपुर के मज़दूरों की हड़ताल आठवें दिन भी जारी

दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक इलाके के 26 गरम रोला कारखानों के करीब 1600 मज़दूर विगत 6 जून से हड़ताल पर हैं। मज़दूरों की मांग है कि सभी श्रम कानूनों को सख्ती से लागू किया जाये। वज़ीरपुर में स्टील की बहुत बड़ी इण्डस्ट्री है। यहां पर लोहे को पिघलाकर और ढालकर बर्तन और स्टील का अन्य सामान बनाया जाता है। काम करने की परिस्थितियां बेहद अमानवीय हैं। लोहा पिघलाने की भट्ठियों के पास खड़े होकर और स्टील की बेहद धारदार पत्तियों के बीच मज़दूरों को काम करना पड़ता है। मज़दूरों को न तो कोई श्रम कानून नसीब होता है और न ही काम करने की जगह पर सुरक्षा का ही कोई इन्तजाम होता है। ऐसे में मज़दूर अपने श्रम अधिकारों को हासिल करने के लिए गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में हड़ताल पर हैं। यूनियन के अधिकारी रघुराज का कहना है कि पिछले साल 2013 में भी हड़ताल हुई थी जिसमें कुछ चीजें हासिल हुई थी। किन्तु हर साल 1500 रुपये मज़दूरी बढ़ाने और पी एफ , ईएसआई देने से फैक्टरी मालिक मुकर गये। ऐसे में मज़दूरों को फिर से हड़ताल पर उतरना पड़ा।

श्रम-कानूनों को लागू करवाने के लिए वजीरपुर स्टील मज़दूरों की हड़ताल छठे दिन भी जारी!

वजीरपुर गरम रोला मज़दूरों ने अपनी हड़ताल छठे दिन भी जारी रखी। ज्ञात हो कि औद्योगिक इलाके से सटकर ही निमड़ी कॉलोनी में लेबर कोर्ट है जिसके बावजूद श्रम कानूनों का उल्लंघन धड़ल्ले से किया जाता है। वज़ीरपुर के औद्योगिक इलाके में स्टील का बड़ा उद्योग है जहाँ करीब 600 फैक्टरियां हैं जिनमे आये दिन मज़दूरों के हाथ कटते रहते हैं और कारखानों में बिल्कुल अमानवीय हालत में मज़दूर लगातार मालिकों का मुनाफा बढ़ाते रहते हैं। वजीरपुर में ही भविष्य निधि भवन का दफ्तर है लेकिन शायद ही किसी मज़दूर को पी.एफ. की सुविधा मिलती है। 6 जून को करीब 2000 मज़दूरों ने इलाके में व्यापक रैली निकाल कर अपनी हड़ताल की घोषणा की थी। आज वजीरपुर इंडस्ट्रियल इलाके के ए ब्लॉक, और बी ब्लॉक में जितनी भी स्टील लाईन फैक्टरियां थी उनमें से ज्यादातर बंद रहीं। विकराल रैली से घबराकर मालिकों ने पुलिस को आगे कर दिया परन्तु मज़दूर अपनी रैली शांतिपूर्वक तरीके से चलाते हुए राजा पार्क में पहुंचे जहां फिर से सभा की गयी। इस सभा में करीब 1500 मज़दूरों ने भागीदारी की।

Steel workers strike continue on sixth day for implementation of labour laws

Workers of Wazirpur hot rolling steel plants continued to strike work for the sixth day. It should be noted that despite there being a labour court adjoining the industrial area in Nimri colony, labour laws are being flouted openly here. In the Wazirpur Industrial area, there are about 600 factories for steel production. It is not uncommon for workers here to have their hands bruised or cut during work. They work in extremely inhuman conditions. This is how profit is being accumulated.

भगाणा काण्ड: हरियाणा में बढ़ते दलित और स्त्री उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष की एक मिसाल

हरियाणा में पिछले एक दशक में दलित और स्त्री उत्पीड़न की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। गोहाना, मिर्चपुर, झज्जर की घटनाओं के बाद पिछले 25 मार्च को हिसार जिले के भगाणा गाँव की चार दलित लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार की दिल दहला देने वाली घटना घटी। इस घृणित कुकृत्य में गाँव के सरपंच के रिश्तेदार और दबंग जाट समुदाय के लोग शामिल हैं। यह घटना उन दलित परिवारों के साथ घटी है जिन्होंने इन दबंग जाटों द्वारा सामाजिक बहिष्कार की घोषणा किये जाने के बावजूद गाँव नहीं छोड़ा था, जबकि वहीं के अन्य दलित परिवार इस बहिष्कार की वजह से पिछले दो साल से गाँव के बाहर रहने पर मजबूर हैं।

दुनियाभर में पूँजीवादी संकट के बढ़ते कहर के ख़िलाफ़ मज़दूर जुझारू संघर्ष के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं

दुनिया भर में मज़दूर इस बर्बर लूट का जमकर प्रतिरोध कर रहे हैं और अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं। वैसे तो संकट की शुरुआत के साथ सरकारी ख़र्च घटाने के विभिन्न क़दमों के विरोध में अमेरिका और यूरोप के अनेक देशों में व्यापक प्रदर्शनों और हड़तालों का सिलसिला शुरू हो गया था जो अब भी जारी है। लेकिन पिछले 2-3 वर्षों के दौरान तीसरी दुनिया के पूँजीवादी देशों में उभर रहे मज़दूर संघर्ष इनसे काफी अलग हैं। उन्नत पूँजीवादी देशों के मज़दूर, जो ज़्यादातर यूनियनों में संगठित हैं, मुख्यतया अपनी सुविधाओं में कटौती और रोज़गार के घटते अवसरों के विरुद्ध सड़कों पर उतरते रहे हैं। इनका बड़ा हिस्सा उस अभिजन मज़दूर वर्ग का है जिसे तीसरी दुनिया की जनता की बर्बर लूट से कुछ टुकड़े मिलते रहे थे और इसका जीवन काफी हद तक सुखी और सुरक्षित था। ग्रीस जैसे देशों की स्थिति अलग है जो पहले भी दूसरी दुनिया के देशों की निचली कतार में थे और वित्तीय संकट की मार से लगभग तीसरी दुनिया की हालत में पहुँच गये हैं। मगर भारत, बंगलादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका से लेकर मलेशिया, इण्डोनेशिया, कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्राज़ील, मेक्सिको, चीन, क्रोएशिया आदि देशों में एक के बाद उठ रहे जुझारू आन्दोलन इन देशों के उस मज़दूर वर्ग की बढ़ती बेचैनी और राजनीतिक चेतना का संकेत दे रहे हैं जो हर तरह के अधिकारों से वंचित और सबसे बर्बर शोषण का शिकार है।

चीन की जूता फैक्ट्रियों में काम करने वाले हज़ारों मज़दूर हड़ताल पर

चीन में रह-रह कर हो रहे इन संघर्षों से एक बात बिल्कुल साफ है कि कम्युनिस्टों का मुखौटा लगाकर मज़दूरों के खुले शोषण और उत्पीड़न के दम पर पैदा हो चुके नवधनाड्य पूँजीवादी जमातों के हितो की रक्षा करने वाले मज़दूर वर्ग के इन गद्दारों का असली चेहरा मेहनतकश चीनी जनता के सामने बेनकाब हो रहा है। इस तरह के मज़दूर संघर्ष आने वाले दौर में सच्चे क्रान्तिकारी मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारों के लिए जमीन तैयार करने का भी काम कर रहे है।