Category Archives: संघर्षरत जनता

हेडगेवार अस्पताल के ठेका सफ़ाई कर्मचारियों के संघर्ष के आगे झुके अस्पताल प्रशासन और दिल्ली सरकार

डीएसजीएचकेयू की संयोजक शिवानी ने बताया कि हमारी मुख्य माँग तो यही है कि दिल्ली सरकार दिल्ली में नियमित प्रकृति के कार्य में ठेका प्रथा समाप्त करने के अपने वायदे को पूरा करे। उन्होंने कहा कि मज़दूरों की एकजुटता के चलते हमें आंशिक जीत तो मिली है पर हमारा संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है; हमारी यूनियन ठेका प्रथा समाप्त करने की माँग को लेकर दिल्ली सरकार के अन्य अस्पताल के ठेका कर्मियों को गोलबन्द करेगी। दिल्ली स्टेट गवर्मेण्ट हॉस्पिटल कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन ने इस जीत के बाद अब दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में ठेका प्रथा ख़त्म करवाने की माँग को लेकर सभी कर्मचारियों को एकजुट करने के लिए अभियान शुरू कर दिया है

25 मार्च की घटना के विरोध में देश के अलग-अलग हिस्सों में आम आदमी पार्टी के विरोध में प्रदर्शन

25 मार्च की घटना के विरोध दिल्ली, पटना, मुम्बई और लखनऊ में विरोध प्रदर्शन हुए। 1 अप्रैल को दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में मज़दूरों ने रैली निकाली और इलाके के आप विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। लखनऊ में भी 28 मार्च के दिन कई जनसंगठनों ने मिलकर जीपीओ पर प्रदर्शन किया और केजरीवाल सरकार की निन्दा की। पटना में 5 अप्रैल को नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन ने केजरीवाल का पुतला दहन किया और 25 मार्च की घटना के लिए लिखित माफ़ी की माँग की। मुम्बई में भी इसी दिन दादर स्टेशन के बाहर यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी व नौजवान भारत सभा ने मिलकर प्रदर्शन किया और केजरीवाल सरकार के प्रति भर्त्सना प्रस्ताव पास किया। सूरतगढ़ में भी नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में लोगों ने केजरीवाल सरकार का पुतला फूँका और विरोध प्रदर्शन किया।

हम हार नहीं मानेंगे! हम लड़ना नहीं छोड़ेंगे!

आम आदमी’ की जुमलेबाजी सिर्फ कांग्रेस और भाजपा से लोगों के पूर्ण मोहभंग से पैदा हुए अवसर का लाभ उठाने के लिए थी। चुनावों होने तक यह जुमलेबाजी उपयोगी थी। जैसे ही लोगों ने ‘आप’ के पक्ष में वोट दिया, किसी विकल्प के अभाव में, अरविंद केजरीवाल का असली कुरूप फासिस्ट चेहरा सामने आ गया।

वियतनाम में मज़दूरों की जुझारू एकजुटता ने ज़ुल्मी हुक़्मरानों को झुकाया

वियतनाम के मज़दूरों की यह हड़ताल इस मायने में महत्वपूर्ण रही कि मज़दूर केवल अपनी फैक्ट्री के मालिक के खि़लाफ़ ही नहीं बल्कि मालिकों के समूचे वर्ग की नुमाइंदगी करने वाली सरकार की नीतियों के खि़लाफ़ एकजुट हुए और उनकी माँगें सामाजिक सुरक्षा जैसे अहम मसले से जुड़ी थीं। वियतनाम जैसे देश में जहाँ मज़दूर आन्दोलन कम ही सुनने में आते हैं, इतनी बड़ी हड़ताल यह संकेत दे रही है कि भूमण्डलीकरण के दौर में नवउदारवादी नीतियों के खि़लाफ़ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मज़दूर वर्ग का गुस्सा स्वतःस्फूर्त रूप से फूट रहा है।

केजरीवाल सरकार न्यूनतम वेतनमान लागू कराने की ज़िम्मेदारी से मुकरी

न्यूनतम वेतन देने के लिए फैक्ट्री मालिकों पर दबाव बनाने की जगह आम आदमी पार्टी की सरकार कहती है कि मज़दूर ऐसी जगह काम तलाशें जहाँ न्यूनतम वेतन मिलता हो। परन्तु दिल्ली में 70 लाख आबादी ठेके पर काम करती है, उसे न तो न्यूनतम वेतन मिलता है और न ही अन्य श्रम क़ानूनों के तहत मिलने वाली सुविधाएँ, वे कौन सी फैक्ट्री में काम तलाशें?

केजरीवाल सरकार को वादों की याद दिलाने दिल्ली सचिवालय पहुँचे ठेका मज़दूरों पर पुलिस का बुरी तरह लाठीचार्ज

शांतिपूर्वक अपनी बात को मुख्यमन्त्री तक ले जाने के इरादे से आये दिल्ली भर के मज़दूरों और आम मेहनतकश जनता को वहशी तरीक़े से पीटा गया। पुलिस के पुरुष कर्मियों ने महिलाओं को बुरी तरह पीटा जिसके कारण अनेक महिलाओं को गंभीर चोटें आयी, एक युवा महिला कार्यकर्ता की टांग टूट गयी और बहुत से लोगों के सर फूट गये। इतने पर भी दिल्ली पुलिस को चैन नहीं आया, रैपिड एक्शन फोर्स और दिल्ली पिुलस ने मिलकर मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा, आँसू गैस के गोले बारिश की तरह बरसाए गये। प्रदर्शन में महिलायें व बच्चे भी शामिल थे मगर पुलिस ने उन्हें भी नहीं बक्शा।

हरियाणा के मनरेगा मज़दूरों का संघर्ष जारी!

गत 5 फरवरी को हरियाणा के फतेहाबाद जिला में हुए मनरेगा मज़दूर के प्रदर्शन के बाद तमाम जनसंगठनों ने आगे के संघर्ष के लिए एक साझा मोर्चे का निर्माण किया है जिसमें संघर्ष को चलाने के लिए एक माह की जनकार्रवाई की रूपरेखा तैयार की गई। तय किया गया की मनरेगा में काम के अधिकार के लिए फरवरी माह में फतेहाबाद के गांव-गांव में मोदी-खट्टर सरकार के पुतले दहन किये जाएँगे । साथ ही 27 फरवरी से 2 मार्च तक साझा मोर्चा के बैनर तले क्रमिक अनशन शुरू किया जाएगा।

मुख्यमंत्री केजरीवाल से मिलने गये मेट्रो मज़दूरों पर बरसी पुलिस की लाठी

डीएमआरसी में सभी टॉम ऑपरेटर, हाउसकीपर, सिक्योरिटी गार्ड, एयरपोर्ट लाइन का तकनीकी स्टाफ, ट्रैक ब्वॉय आदि नियमित प्रकृति का कार्य करने के बावजूद ठेके पर रखे जाते हैं। दिल्ली ही नहीं बल्कि भारत की शान मानी जानेवाली दिल्ली मेट्रो इन ठेका कर्मचारियों को अपना कर्मचारी न मानकर ठेका कम्पनियों जेएमडी, ट्रिग, एटूजेड, बेदी एण्ड बेदी, एनसीईएस आदि का कर्मचारी बताती है, जबकि भारत का श्रम कानून स्पष्ट तौर पर यह बताता है कि प्रधान नियोक्‍ता स्वयं डीएमआरसी है। ठेका कम्पनियाँ भर्ती के समय सिक्योरिटी राशि के नाम पर वर्कर्स से 20-30 हजार रुपये वसूलती हैं और ‘रिकॉल’ के नाम पर मनमाने तरीके से काम से निकाल दिया जाता है। ज़्यादातर वर्कर्स को न्यूनतम मज़दूरी, ईएसआई, पीएफ की सुविधाएँ नहीं मिलती हैं। यहाँ श्रम कानूनों का सरेआम उल्लंघन किया जाता है।

We Won’t Give In! We Won’t Give UP!

On 25th March, we witnessed one of the most brutal, probably the most brutal lathi charge on workers in Delhi in at least last 2 decades. It is noteworthy that this lathi-charge was ordered directly by Arvind Kejriwal, as some Police personnel casually mentioned when I was in Police custody.

यूनियन के पंजीकरण और मन्दी से घबराये मालिकों और दलालों द्वारा यूनियन के ख़िलाफ़ अफ़वाहें फैलाने की मुहिम

अगर छोटे मालिक और ठेकेदार पूँजीवादी मुनाफ़े के खेल को खेलने को तैयार हैं, तो अब रो क्यों रहे हैं? वे चाहते हैं कि उनके माल को विदेशी बाज़ार में मुफ्त एण्ट्री मिले, लेकिन उनके अपने बाज़ार में किसी विदेशी माल को न घुसने दिया जाये? वैसे भी अगर वज़ीरपुर के छोटे मालिकों को कोई बड़ी पूँजी वाला ख़रीद लेता है, तो इससे हम मज़दूरों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है। हमें चाहे छोटा मालिक लूटे या बड़ा मालिक लूटे, हमें तो लड़ना ही है! हम छोटे मालिक के दुख से क्यों जज़्बाती हों? उसने हमारे लिए क्या किया है? जब हमने मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में ‘सुधार’ के ख़िलाफ़ जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन किया था, तो क्या वज़ीरपुर का गरम रोला या ठण्डा रोला का मालिक हमारे साथ आया था? जब हम श्रम क़ानूनों को लागू करने की माँग कर रहे थे तो क्या इन मालिकों और ठेकेदारों ने हमारी माँग मानी थी? जब हमारे भाई इनके कारख़ानों में होने वाली दुर्घटनाओं में मरते हैं तो क्या ये हमें क़ानूनी मुआवज़ा देते हैं? क्या हमारी मज़दूरी में से काटा जाने वाला ईएसआई-पीएफ़ हमें दिया जाता है? तो फिर इन छोटे मालिकों और बड़े मालिकों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा में हम छोटे मालिकों के मोहरे क्यों बनें? बात जैसे को तैसा की नहीं है बल्कि इसकी वजह यह है कि हमारी बुनियादी माँगों पर ये मालिक हमें नौकरी से निकालने को तैयार रहते हैं और अपने हित साधने के लिए अब हमारी ताक़तवर यूनियन का इस्तेमाल करना चाहते हैं।