Category Archives: संघर्षरत जनता

दिल्ली मेट्रो रेल के टॉम ऑपरेटरों की 5 घण्टे की चेतावनी हड़ताल

यूँ कहने को आज दिल्ली मेट्रो रेल ज़रूर दिल्ली-एनसीआर की लाइफ़लाइन बन चुकी है, रोज़ाना 20 लाख से ज़्यादा यात्री मेट्रो में सफ़र करते हैं, दुनियाभर में दिल्ली मेट्रो रेल को हम ठेका मज़दूरों और कर्मचारियों ने नम्बर 1 मेट्रो रेल बना दिया। मगर इस चमचमती मेट्रो रेल को चलाने वाले हज़ारों ठेका मज़दूर (टॉम ऑपरेटर, सफ़ाईकर्मी और सिक्योरिटी गार्ड) की ज़िन्दगी में अँधेरा ही है। लगभग 5 हज़ार से ज़्यादा ठेका मज़दूर दिन-रात मेट्रो रेल के बेहतर परिचालन के लिए कमर-तोड़ मेहनत करते हैं लेकिन बदले में डीएमआरसी और ठेका कम्पनियाँ बुनियादी श्रम-क़ानून जैसे न्यूनतम वेतन, ईएसआई, पीएफ़ या बोनस के क़ानून भी लागू नहीं करती हैं। यूँ तो प्रत्येक मेट्रो स्टेशन पर न्यूनतम मज़दूरी क़ानून के बोर्ड लगे हुए हैं लेकिन हम मज़दूर जानते हैं कि ये क़ानून सिर्फ़ बोर्ड या काग़ज़ों पर शोभा बढ़ाते हैं, असल में डीएमआरसी और ठेका कम्पनियाँ खुलेआम श्रम-क़ानूनों का उल्लंघन करते हैं, जिसके खि़लाफ़ यूनियन ने कई दफ़ा डीएमआरसी और ठेका कम्पनियों को श्रम विभाग में दोषी भी साबित किया है। लेकिन श्रम विभाग की मिलीभगत से मज़दूरों को उनका जायज़ हक़ नहीं मिलता।

ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड – गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ के खि़लाफ़ विशाल लामबन्दी, जुझारू संघर्ष

लुधियाना के ढण्डारी इलाक़े में एक साधारण परिवार की 16 वर्षीय बेटी और बारहवीं कक्षा की छात्र शहनाज़ को राजनीतिक शह प्राप्त गुण्डों द्वारा अगवा करके सामूहिक बलात्कार करने, मुक़दमा वापस लेने के लिए डराने-धमकाने, मारपीट और आखि़र घर में घुसकर दिन-दिहाड़े मिट्टी का तेल डालकर जलाये जाने के घटनाक्रम के खि़लाफ़ पिछले दिनों शहर के लोगों, ख़ासकर औद्योगिक मज़दूरों का आक्रोश फूट पड़ा। इंसाफ़पसन्द संगठनों के नेतृत्व में लामबन्द होकर लोगों ने ज़बरदस्त जुझारू आन्दोलन किया और दोषी गुण्डों को सज़ा दिलाने के लिए संघर्ष जारी है। शहनाज़ और उसके परिवार के साथ बीता यह दिल कँपा देनेवाला घटनाक्रम समाज में स्त्रियों और आम लोगों की बदतर हालत का एक प्रतिनिधि उदाहरण है। मामले को दबाने और अपराधियों को बचाने की पुलिस-प्रशासलन से लेकर पंजाब सरकार तक की तमाम कोशिशों के बावजूद बिगुल मज़दूर दस्ता व अन्य जुझारू संगठनों के नेतृत्व में हज़ारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर जुझारू लड़ी।

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन हुई पंजीकृत

गत 7 ज़नवरी को वज़ीरपुर औद्योगिक इलाक़े में यूनियन पंजीकृत होने के मौक़े पर मज़दूर हुंकार रैली निकाली गयी जिसमें करीब हज़ार मज़दूरों ने भागीदारी कर अपनी एकजुटता का परिचय दिया। गरम रोला के मज़दूरों की हड़ताल से जन्मी यह यूनियन आज पूरी स्टील लाइन के मज़दूरों की यूनियन बन चुकी है। गरम रोला के आन्दोलन में 27 अगस्त की आम सभा में यह तय हुआ था कि ऐसी यूनियन बनानी होगी जो स्टील उद्योग के सभी तरह के काम करने वाले मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करे। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन ऐसी ही यूनियन के रूप में उभरकर सामने आयी। आज इसके सदस्य गरम रोला, ठण्डा रोला, तेज़ाब, तपाई, तैयारी, रिक्शा, पोलिश आदि यानी हर तरह के मज़दूर साथी हैं तथा सदस्यता संख्या में लगातार विस्तार हो रहा है।

मज़दूर विरोधी “श्रम सुधारों” के खि़लाफ़ रोषपूर्ण प्रदर्शन

केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा नवउदारवादी नीतियों के तहत श्रम क़ानूनों में मज़दूर विरोधी संशोधनों के खि़लाफ़ बीती 20 नवम्बर को टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन और कारख़ाना मज़दूर यूनियन की ओर से डी.सी. कार्यालय पर ज़ोरदार प्रदर्शन किया गया। मज़दूर संगठनों ने तथाकथित श्रम सुधारों की तीखी आलोचना करते हुए भारत सरकार से घोर मज़दूर विरोधी नीति रद्द करने की माँग की। डी.सी. लुधियाना के ज़रिये भारत सरकार को इस सम्बन्धी माँगपत्र भेजा गया है। संगठनों के वक्ताओं ने प्रदर्शन को सम्बोधित करते हुए कहा कि पहले ही पूँजीपति मज़दूरों की मेहनत की भयंकर लूट कर रहे हैं, जिसके चलते मज़दूर ग़रीबी-बदहाली की ज़िन्दगी जीने पर मज़बूर हैं। “श्रम सुधारों” के कारण मज़दूरों की लूट ओर तीखी होगी। इसके खि़लाफ़ मज़दूरों में भारी रोष है। अगर यह नीति रद्द नहीं होती तो हुक्मरानों को तीखे मज़दूर आन्दोलन का सामना करना होगा।

फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के इन्तज़ाम की माँग को लेकर मज़दूरों ने किया प्रदर्शन

दस दिसम्बर को वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के ठण्डा रोला और पावर प्रेस सहित सभी फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम की माँग उठाते हुए श्रम विभाग नीमड़ी कॉलोनी का घेराव किया। बैनर, पोस्टर और नारों के साथ सड़क पर मार्च करता हुआ यह दस्ता बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहा था।

अस्ति का मज़दूर आन्दोलन ऑटो सेक्टर मज़दूरों के संघर्ष की एक और कड़ी!

अस्ति में मज़दूरों पर अन्याय, शोषण, अत्याचार की यह अकेली घटना नहीं है। ऑटो सेक्टर की यह पूरी बेल्ट में इस तरह मज़दूरों की हड्डियाँ का चूरा बनाकर कम्पनियाँ मुनाफ़ा कूट रही हैं। और इसके विरुद्ध मज़दूरों की आवाज़ अलग-अलग समय पर अलग-अलग फ़ैक्टरी से उठती ही रही हैं। लेकिन फ़ैक्टरी-कारख़ानों की चौहद्दी में कैद होकर ये आन्दोलन टूट और बिखराव का शिकार हो जाता है। इसलिए अस्ति के मज़दूरों को अपनी फ़ौरी लड़ाई लड़ते हुए भी अपनी दूरगामी लड़ाई के लिए भी तैयार रहना होगा। क्योंकि आज पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल में ठेका, कैजुअल, ट्रेनी मज़दूर बेहद शोषण और अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए बेबस है। जिन कम्पनियों में यूनियन बनी है, उसका फ़ायदा भी सिर्फ़ स्थायी मज़दूरों को मिलता है। जबकि हम सभी जानते हैं कि मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में बदलाव के बाद स्थायी कर्मचारियों के भी हक़-अधिकारों पर हमला होना तय है। इसलिए स्थायी, कैजुअल और ठेका मज़दूरों को अपनी ठोस एकता कायम करनी होगी, साथ ही पूरे ऑटो सेक्टर के आधार पर गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल के मज़दूरों की “ऑटो मज़दूर यूनियन” का निर्माण करना होगा। ज़ाहिरा तौर ऐसी ऑटो सेक्टर मज़़दूर यूनियन मज़दूर आन्दोलन से ग़द्दारी कर चुकी केन्द्रीय ट्रेड से स्वतन्त्र होनी चाहिए।

गीता प्रेस – धार्मिक सदाचार व अध्यात्म की आड़ में मेहनत की लूट के ख़ि‍लाफ़ मज़दूर संघर्ष की राह पर

धर्म बहुत लम्बे समय से अनैतिकता, अपराध, लूट व शोषण की आड़ बनता रहा है। परन्तु मौजूदा समय में गलाजत, सड़ान्ध इतने घृणास्पद स्तर पर पहुँच चुकी है कि धर्म की आड़ से गन्दगी पके फोड़े की पीप की तरह बाहर आ रही है। आसाराम, रामपाल जैसे इसके कुछ प्रातिनिधिक उदाहरण हैं। इसी कड़ी में धर्म और अध्यात्म की रोशनी में मज़दूरों की मेहनत की निर्लज्ज लूट का ताज़ा उदाहरण गीता प्रेस, गोरखपुर है। कहने को तो गीता प्रेस से छपी किताबें धार्मिक सदाचार, नैतिकता, मानवता आदि की बातें करती हैं, लेकिन गीता-प्रेस में हड्डियाँ गलाने वाले मज़दूरों का ख़ून निचोड़कर सिक्का ढालने के काम में गीता प्रेस के प्रबन्धन ने सारे सदाचार, नैतिकता और मानवता की धज्जियाँ उड़ाकर रख दिया है। संविधान और श्रम कानून भी जो हक मज़दूरों को देते हैं वह भी गीता प्रेस के मज़दूरों को हासिल नहीं है! क्या इत्तेफ़ाक है कि गीता का जाप करनेवाली मोदी सरकार भी सारे श्रम कानूनों को मालिकों के हित में बदलने में लगी है। इसी माह प्रबन्धन के अनाचार, शोषण को सहते-सहते जब मज़दूरों का धैर्य जवाब दे गया तो उनका असन्तोष फूटकर सड़कों पर आ गया।

गोरखपुर के नागरिकों के नाम गीता-प्रेस के मज़दूरों की एक अपील

गोरखपुर के नागरिकों के नाम गीता-प्रेस के मज़दूरों की एक अपील दोस्तो, कहने को तो गीता प्रेस से छपी किताबें धार्मिक सदाचार, नैतिकता, मानवता आदि की बातें करती हैं लेकिन…

लुधियाना के टेक्सटाइल मजदूरों के संघर्ष की शानदार जीत

टेक्सटाइल होजरी कामगार यूनियन के नेतृत्व में लुधियाना के लगभग 50 पावरलूम कारखानों के मजदूरों का संघर्ष इस वर्ष 8 से 12 प्रतिशत वेतन/पीस रेट बढ़ोत्तरी और बोनस लेने का समझौता करवाकर जीत से समाप्त हुआ। पिछले पाँच वर्षों से पावरलूम मजदूरों ने संघर्ष करते हुए अब तक वेतन/पीस रेटों में 63 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी करवाई है, ज्यादातर कारखानों में ईएसआई कार्ड बनाने के लिए मालिकों को मजबूर किया और पिछले तीन वर्षों से मालिकों को बोनस देने के लिए भी मजबूर किया है।

पंजाब सरकार के फासीवादी काले क़ानून को रद्द करवाने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर तीन विशाल रैलियाँ

पंजाब सरकार सन् 2010 में भी दो काले क़ानून लेकर आयी थी। जनान्दोलन के दबाव में सरकार को दोनों काले क़ानून वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। रैलियों के दौरान वक्ताओं ने ऐलान किया कि इस बार भी पंजाब सरकार को लोगों के आवाज़ उठाने, एकजुट होने, संघर्ष करने के जनवादी अधिकार छीनने के नापाक इरादों में कामयाब नहीं होने दिया जायेगा।