Category Archives: संघर्षरत जनता

काले क़ानून के खि़लाफ़ रैली में औद्योगिक मज़दूरों की विशाल भागीदारी

पंजाब सरकार का यह काला क़ानून रैली, धरना, प्रदर्शन, आदि संघर्ष के रूपों के आगे तो बड़ी रुकावटें खड़ी करता ही है वहीं हड़ताल को अप्रत्यक्ष रूप से गैर-क़ानूनी बना देता है। इस क़ानून के मुताबिक हड़ताल के दौरान मालिक/सरकार को पड़े घाटे की भरपाई हड़ताली मज़दूरों और उनके नेताओं को करनी होगी। इसके साथ ही घाटा डालने के ज़रिए सार्वजनिक या निजी सम्पत्ति को पहुँचाये नुक्सान के “अपराध” में जेल और जुर्माने का सामना भी करना पड़ेगा। हड़ताल होगी तो घाटा तो होगा ही। इस तरह हड़ताल या यहाँ तक कि रोष के तौर पर काम धीमा करना भी गैरक़ानूनी हो जायेगा। हड़ताल मज़दूर वर्ग के लिए संघर्ष का एक बेहद महत्वपूर्ण रूप है। हड़ताल को गैरक़ानूनी बनाने की कार्रवाई और इसके लिए सख्त सजाएँ व साथ ही रैली, धरना, प्रदर्शन, जुलूस आदि करने पर नुक्सान के दोष लगाकर जेल, जुर्माने आदि की सख्त सज़ाएँ बताती हैं कि यह क़ानून मज़दूर वर्ग पर कितना बड़ा हमला है। मज़दूर वर्ग को इस हमले के खिलाफ़ अन्य मेहतनकशों के साथ मिलकर सख़्त लड़ाई लड़नी होगी। इसलिए पंजाब सरकार के काले क़ानून के खि़लाफ़ टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन व कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में लुधियाना के कारख़ाना मज़दूरों का आगे आना महत्वपूर्ण बात है।

छात्र-युवा आन्दोलन में नया उभार और भविष्य के संकेत

ऐसे कितने ही छात्र-युवा आन्दोलन आज दुनिया भर में देखने को मिल रहे हैं। ये सब अपने-अपने देश के शासकों को यही चेतावनी दे रहे हैं कि हम अपने अधिकारों पर हो रहे हमलों को चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेंगे। जैसे-जैसे शिक्षा के क्षेत्र में बाज़ारीकरण और निजीकरण को लागू किया जायेगा, वैसे-वैसे आम घरों के बेटे-बेटियों के लिए अच्छी शिक्षा प्राप्त कर पाना मुश्किल होता जायेगा जिसका नतीजा छात्रों में बढ़ते असन्तोष के रूप में सामने आयेगा और ज़्यादा से ज़्यादा छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतरेंगे। इसके साथ ही इस विरोध को कुचलने के लिए सत्ता के दमन का पहिया भी तेज़ होता जायेगा। शिक्षा के बाज़ारीकरण के विरोध की इस लड़ाई को छात्र सिर्फ़ अपने दम पर नहीं जीत सकते। इसके लिए उन्हें अपनी लड़ाई को मज़दूर वर्ग की पूँजीवाद विरोधी लड़ाई के साथ जोड़ना होगा।

मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में बदलाव की कवायद के विरोध में संसद भवन पर मज़दूरों का जुझारू प्रदर्शन!

संसद के पिछले सत्र में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित श्रम क़ानूनों में बदलाव के विरोध में 20 अगस्त को बिगुल मज़दूर दस्ता और देश के अलग-अलग इलाकों से आये विभिन्न मज़दूर संगठनों तथा मज़दूर यूनियनों ने दिल्ली के संसद मार्ग तक मार्च किया और प्रधानमन्त्री का पुतला दहन किया। इस प्रदर्शन में मज़दूरों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की।

इलाकाई एकता की वजह से बैक्सटर मेडिसिन कम्पनी के मज़दूरों को मिली आंशिक जीत!

बैक्सटर आन्दोलन में मज़दूरों को मिली जीत ने फिर साबित कर दिया है कि आज उत्पादन प्रणाली में जिस गति से असेम्बली लाइन को तोड़ा जा रहा हैं और मज़दूरों को जिस तरह से बिखरा दिया गया है ऐसे समय मे एक फ़ैक्टरी का मज़दूर अपने अकेले के संघर्ष के दम पर नहीं जीत सकता। आज मज़दूर सेक्टरवार, इलाकाई एकता क़ायम करके ही कामयाब लड़ाई लड़ सकते हैं। हमें इसी की तैयारी करनी चाहिए।

दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना

गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में संगठित हुए मज़दूरों ने अपने संगठन को विस्तारित करते हुए उसे वज़ीरपुर व दिल्ली के अन्य इलाकों के मज़दूरों की यूनियन के रूप में पंजीकृत कराने का फैसला किया है। यह फैसला मज़दूरों ने 27 अगस्त को अपनी आम सभा में ध्वनि मत के जरिये पारित किया व दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना की।

मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव की कवायद के विरोध में देश भर के मज़दूरों का विशाल प्रदर्शन

संसद के वर्तमान सत्र में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित श्रम कानूनों में बदलाव के विरोध में बिगुल मज़दूर दस्ता और देश भर से आये विभिन्न मज़दूर संगठनों तथा मज़दूर यूनियनों ने दिल्ली के जन्तर-मन्तर से संसद मार्ग तक मार्च किया और प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया। इस प्रदर्शन में मज़दूरों ने विशाल संख्या में भागीदारी की।

Wide spread National protest demonstration by the workers of India against the Modi Government move to amend the existing Labour laws.

Bigul Mazdoor Dasta,other labour organizations and labour unions from across the country marched from Jantar mantar to Parliament street as a part of the protest demonstration against the Modi government’s move to amend the labour laws on 20.08.2014 and burnt an effigy of the Prime Minister.

बावल औद्योगिक क्षेत्र श्रमिक संयुक्त कमेटी ने बुलाया पहला श्रमिक सम्मेलन

बावल (रेवाड़ी) औद्योगिक क्षेत्र में पिछले लम्बे समय से पास्को और मिंडा फुरुकावा कम्पनी के मज़दूर अपनी जायज मांगों को लेकर संघर्षरत हैं। पहली अगस्त को बावल औद्योगिक क्षेत्र श्रमिक संयुक्त कमेटी ने बावल के मज़दूरों के साथ हो रहे शोषण-दमन के खिलाफ गुड़गांव- मानेसर-धारूहेड़ा-बावल के मज़दूरों का सम्मेलन करके ये तय कर दिया है कि बावल के मज़दूर चुपचाप मालिकों-प्रशासन-श्रमविभाग की तानाशाही नहीं बर्दाश्त करेगें। बावल में हुए सम्मेलन में तमाम ट्रेड यूनियनों, मज़दूर संगठनों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन की अध्यक्षता एआईएस के महेन्द्र सिंह ने की। मज़दूर सम्मेलन में निम्न प्रस्तावों को पारित किया गया।

बांगलादेश के गारमेण्ट मज़दूरों का जुझारू संघर्ष

बांगलादेशी मज़दूरों का भयंकर शोषण और उत्पीड़न जारी है। अपने वेतन के लिए तीन माह से संघर्ष कर रहे मज़दूरों को न भूख की परवाह है न ही पुलिस दमन की। पर्याप्त भोजन नहीं मिलने के कारण बहुत से मज़दूर कमजोर हो गए हैं, कई ने बिस्तर पकड़ लिया है और तमाम अस्पताल में भर्ती हैं लेकिन आन्दोलन का जोश बरकरार है। पिछले दो सप्ताह के दौरान हड़ताल के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस, सरकार और मालिकों के गुण्डों ने कई बार हमले किए और कुछ ही दिन पहले कब्जा की गयी फैक्ट्रियों में जबरन घुसकर यूनियन पदाधिकारियों को बेरहमी से पिटाई के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया। तुबा समूह के हड़ताली मज़दूरों का भयंकर उत्पीड़न और फैक्ट्री मालिकों और सरकार की बेरुखी के कारण स्थिति भयानक होती जा रही है। मज़दूर पिछले दो सप्ताह से भूख हड़ताल पर हैं। तुबा समूह का मालिक वही शख्स है जो ताजरीन फैक्ट्री का मालिक रह चुका है। ताजरीन फैक्ट्री में अग्निकांड के एक साल बाद फैक्ट्री मालिक की गिरफ्तारी हुई थी और अब उसने हड़ताल का फायदा उठाकर जमानत भी प्राप्त कर ली है।

हिन्दू दिलों और बुर्जुआ दिमागों को छूकर चीन से होड़ में आगे निकलने की क़वायद

पिछली 3-4 अगस्त के बीच सम्पन्न नरेन्द्र मोदी की दो दिवसीय नेपाल यात्रा को भारत और नेपाल दोनों ही देशों की बुर्जुआ मीडिया ने हाथों हाथ लिया। एक ऐसे समय में जब घोर जनविरोधी नव-उदारवादी नीतियों की वजह से त्राहि-त्राहि कर रही आम जनता में “अच्छे दिनों” के वायदे के प्रति तेजी से मोहभंग होता जा रहा है, मोदी ने नेपाल यात्रा के दौरान सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने वाले कुछ हथकण्डे अपनाकर अपनी खोयी साख वापस लाने की कोशिश की। अपनी यात्रा के पहले दिन मोदी ने नेपाल की संसद/संविधान सभा में सस्ती तुकबन्दियों, धार्मिक सन्दर्भों और मिथकों से सराबोर एक लंबा भाषण दिया जिसे सुनकर ऐसा जान पड़ता था मानो एक बड़ा भाई अपने छोटे भाई को अपने पाले में लाने के लिए पुचकार रहा हो और उसकी तारीफ़ के पुल बाँध रहा हो। हीनताबोध के शिकार नेपाल के बुर्जुआ राजनेता इस तारीफ़ को सुन फूले नहीं समा रहे थे। यात्रा के दूसरे दिन मोदी ने पशुपतिनाथ मन्दिर के दर्शन के ज़रिये भारत और नेपाल दोनों देशों में अपनी छवि ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ के रूप में स्थापित करने के लिए कुछ धार्मिक एवं पाखण्डपूर्ण टिटिम्मेबाजी की। बुर्जुआ मीडिया भला इस सुनहरे अवसर को कैसे छोड़ सकती थी! मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के बाद यह पहला ऐसा मौका था जब उसे एक बार फिर से मोदी की लोकप्रियता का उन्माद खड़ा करने के लिए मसाला मिला और उसने उसे जमकर भुनाया और अपनी टीआरपी बढ़ायी। नेपाली मीडिया में भी मोदी की नेपाल यात्रा को नेपाल के लोगों के दिल और दिमाग को छू लेने वाला बताया। इस बात में अर्धसत्य है कि मोदी ने नेपाल के लोगों के दिलो-दिमाग को छुआ, पूरी सच्चाई यह है कि दरअसल मोदी ने हिन्दू दिलों और बुर्जुआ दिमागों को छुआ।