Category Archives: संघर्षरत जनता

गुड़गाँव में हज़ारों-हज़ार मज़दूर सड़कों पर उतरे – यह सतह के नीचे धधकते ज्वालामुखी का संकेत भर है

बीस अक्टूबर को राजधानी दिल्ली से सटे गुड़गाँव की सड़कों पर मज़दूरों का सैलाब उमड़ पड़ा। एक लाख से ज्यादा मज़दूर इस हड़ताल में शामिल हुए। पूरे गुड़गाँव मानेसर औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन लगभग ठप हो गया। पूरी गुड़गाँव-धारूहेड़ा पट्टी में बावल और रेवाड़ी तक के कारख़ानों पर हड़ताल का असर पड़ा।

सबसे ज्यादा जुझारू तेवर के साथ अन्त तक डटी रहीं स्त्री मज़दूर

गोरखपुर के मज़दूर आन्दोलन ने इतिहास के इस सबक को एक बार फिर साबित कर दिया कि आधी आबादी को साथ लिये बिना मज़दूर वर्ग की मुक्ति असम्भव है। इस आन्दोलन में स्त्री मज़दूरों ने बहादुराना संघर्ष किया और उनके जुझारू तेवर और एकजुटता ने मालिक-प्रशासन के गँठजोड़ को छठी का दूध याद दिला दिया। पवन बथवाल एंड कम्पनी को लगता था कि हमेशा चुपचाप सहन कर जाने वाली स्त्री मज़दूरों को दबाना-धमकाना आसान होगा, लेकिन इस आन्दोलन में उनके होश ठिकाने आ गये। हालत यह हो गई थी कि बथवाल स्त्री मज़दूरों को काम पर वापस नहीं लेने पर अड़ गया। उसे समझ आ गया था कि स्त्री मज़दूरों के जुझारू तेवर को दबाना सम्भव नहीं है।

देशभर से मज़दूर आन्दोलन के साथ खड़े हुए मज़दूर संगठन, नागरिक अधिकार कर्मी, बुद्धिजीवी और छात्र-नौजवान संगठन

गोरखपुर मज़दूर आन्दोलन के समर्थन और इसके दमन के विरोध में देशभर में जितने बड़े पैमाने पर मज़दूर संगठन,नागरिक अधिकार कर्मी, बुद्धिजीवी और छात्र-नौजवान संगठन आगे आये उससे सत्ताधारियों को अच्छी तरह समझ आ गया होगा कि ज़ोरो- ज़ुल्म के ख़िलाफ उठने वाले आवाज़ों की इस मुल्क में कमी नहीं है।

गोरखपुर में मज़दूर आन्दोलन की शानदार जीत

आज के दौर में जब कदम-कदम पर मज़दूरों को मालिकों और शासन-प्रशासन के गँठजोड़ के सामने हार का सामना करना पड़ रहा है, गोरखपुर के मज़दूरों की यह जीत बहुत महत्वपूर्ण है। इसने दिखा दिया है कि अगर मज़दूर एकजुट रहें, एक जगह लड़ रहे मज़दूरों के समर्थन में मज़दूरों की व्यापक आबादी एकजुटता का सक्रिय प्रदर्शन करे, विश्वासघातियों और दलालों की दाल न गलने दी जाये और एक कुशल नेतृत्व की अगुवाई में साहस तथा सूझबूझ से पूँजीपतियों और प्रशासन की सभी चालों का मुकाबला किया जाये तो इस कठिन समय में भी मज़दूर छोटी-छोटी जीतें हासिल करते हुए बड़ी लड़ाई में उतरने की तैयारी कर सकते हैं। इस आन्दोलन ने देशभर में, विशेषकर मज़दूर संगठनों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा है और इससे गोरखपुर ही नहीं, पूरे पूर्वी प्रदेश में मज़दूर आन्दोलन का नया एजेण्डा सेट करने की शुरुआत हो गयी है। इस आन्दोलन के सबकों और इसके दौरान सामने आये कुछ ज़रूरी सवालों पर आगे भी चर्चा जारी रहेगी।

गोरखपुर मजदूर आन्दोलन ने नयी राजनीतिक हलचल पैदा की

गोरखपुर श्रमिक अधिकार समर्थक समिति की ओर से ‘श्रमिक अधिकार और नागरिक समाज का दायित्व’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि बरगदवां के मजदूर आन्दोलन ने गोरखपुर में काफी समय से व्याप्त अराजनीतिक माहौल को तोड़कर एक नयी राजनीतिक हलचल पैदा की है। वक्ताओं का मानना था कि इस आन्दोलन ने मज़दूरों के मुद्दों को पुरज़ोर ढंग से समाज के सामने रखने का बड़ा काम किया है। अधिकांश वक्ताओं का कहना था कि मुख्यधारा के मीडिया और मध्यवर्गीय शिक्षित आबादी की नज़रों से मज़दूरों के हालात और उनकी समस्याएँ प्रायः छिपी ही रहती हैं। लेकिन पिछले कुछ महीनों के दौरान इस आन्दोलन ने लोगों को इन सवालों पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। गोष्ठी में शहर के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, ट्रेडयूनियन कर्मियों, वामपन्थी संगठनों और नागरिक अधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। वक्ताओं ने एक स्वर से शासन और प्रशासन से श्रम क़ानून लागू कराने की माँग की तथा मजदूर आन्दोलन के खिलाफ उद्योगपतियों की ओर से किये जा रहे दुष्प्रचार की कड़ी निन्दा की।

दिल्ली मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की सफल हड़ताल

‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ ने घोषणा की कि जब तक कर्मचारियों की जायज माँगें पूरी नहीं हो जाती तब तक अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रहेगी। मेट्रो फीडर की इस हड़ताल को प्रिण्ट व इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी कवर किया। मीडिया में खबरें आने के बाद डी.एम.आर.सी. अपनी जान बचाने के लिए कर्मचारियों पर पुलिस प्रशासन से दबाव डलवाने लगा और ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ को लांछित और बदनाम करने की पुरजोर कोशिश करने लगा। परन्तु मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की अटूट एकजुटता और एकता के आगे ये तमाम चालबाजियाँ और हथकण्डे धरे के धरे रह गये।

जब एक हारी हुई लड़ाई ने जगाई मजदूरों में उम्मीद और हौसले की लौ…

इस छोटे से संघर्ष ने ही यह दिखा दिया कि हमारे देश में लोकतन्त्र की असलियत क्या है! मजदूरों को उनके हक से वंचित करने के लिए मिल मालिक ने साम-दाम-दण्ड-भेद की हर चाल चली। पहले ही दिन जब 4 अक्टूबर की शाम को मजदूर आन्दोलन की नोटिस देने के लिए शाहाबाद डेयरी थाने में गये तो मालिक के इशारे पर वहाँ पहले से तैयार पुलिस वालों ने उन पर हमला किया और सभी मजदूरों तथा साथ गये ‘बिगुल मजदूर दस्ता’ के दो साथियों को बुरी तरह पीटा। लेकिन जब मजदूर अपनी बात पर अड़े रहे तो आखिरकार पुलिस को नोटिस स्वीकार करना पड़ा। इसके बाद भी लगभग हर दिन धरना स्थल पर पुलिस के लोग आकर मजदूरों को डराने-धमकाने की कोशिश करते थे, लेकिन मजदूरों की एकजुटता के आगे उनकी एक न चली। मजदूरों ने 5 अक्टूबर को धरने पर बैठने से पहले ही डी.एल.सी. कार्यालय में ज्ञापन देकर सारी स्थिति से उन्हें अवगत करा दिया था लेकिन श्रम विभाग के अधिकारी केवल काग़जी कार्रवाई ही करते रहे। 8 अक्टूबर को उपश्रमायुक्त (डीएलसी) के कार्यालय में मालिक के साथ वार्ता रखी गयी थी, लेकिन मालिक ने चिट्ठी भिजवा दी कि ये मजदूर उसके कर्मचारी ही नहीं हैं, जबकि ये मजदूर 3 से 6 साल तक से उस मालिक के लिए काम रहे हैं। इन मजदूरों की कमरतोड़ मेहनत के दम पर मालिक ने करोड़ों का मुनाफा बटोरा है, लेकिन मजदूरों को उनका थोड़ा-सा जायज हक देने से बचने के लिए उसने एक मिनट में उन्हें दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया।

रामपुर-चंदौली के पाँच बोरा कारखानों के मजदूरों के आन्दोलन की आंशिक जीत

इलाके का थानेदार सपा शासन में मुलायम सिंह यादव का खास रहा बताया जाता है और एनकाउण्टर स्पेशलिस्ट के रूप में कुख्यात है। 11 अक्टूबर को वह अचानक पुलिस फोर्स के साथ फैक्टरी गेट पर पहुँचा और बिगुल मजदूर दस्ता के साथियों को जीप में बैठाकर कुछ दूर ले गया। उसके बाद उसने फैक्‍ट्री गेट पर मिल मालिकों को बुलाकर आनन-फानन में मजदूरों के सामने समझौते की घोषणा करा दी। इसके अनुसार मजदूरों की मजदूरी 10 प्रतिशत बढ़ायी जायेगी और सभी मजदूरों को कम्पनी का आई-कार्ड दिया जायेगा। तालमेल की कमी और नेताओं की गैर-मौजूदगी से फैले भ्रम तथा पुलिसिया आतंक के कारण अधिकांश मजदूर तो उसी समय फैक्टरी में चले गये लेकिन करीब 60-70 मजदूर डटे रहे। मजबूरन पुलिस को ‘बिगुल’ के साथियों को वापस लेकर आना पड़ा। मजदूरों के बीच यह फैसला किया गया कि फिलहाल यहाँ की स्थिति में इस समझौते को मानकर आन्दोलन समाप्त करने के सिवा कोई चारा नहीं है। अब पूरी तैयारी के बाद संगठित तरीके से संघर्ष छेड़ना होगा। मालिकान साम-दाम-दण्ड-भेद से किसी तरह मजदूरों को झुकाने में कामयाब हो गये लेकिन इस हार से मिले सबकों से सीखकर मजदूरों ने भविष्य की निर्णायक लड़ाई के लिए कमर कसकर तैयारी शुरू कर दी है।

देश के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अभूतपूर्व सैन्य आक्रमण शुरू करने की भारत सरकार की योजना के ख़िलाफ ज्ञापन

पहले ग़रीबों का जंगल, जमीन, नदियों, चरागाह, गाँव के तालाब और साझा सम्पत्ति वाले संसाधनों पर जो भी थोड़ा-बहुत अधिकार था, वे भी विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) और खनन, औद्योगिक विकास, सूचना प्रौद्योगिकी पार्कों आदि से सम्बन्धित अन्य ”विकास” परियोजनाओं की आड़ में भारत राज्य के लगातार निशाने पर हैं। जिस भौगोलिक क्षेत्र में सरकार द्वारा सैन्य या अर्द्ध-सैनिक हमले करने की योजना है, वहाँ खनिज, वन सम्पदा और पानी जैसे प्रचुर प्राकृतिक स्रोत हैं, और ये इलाके बड़े पैमाने पर अधिग्रहण के लिए अनेक कॉरपोरेशनों के निशाने पर रहे हैं। विस्थापित और सम्पत्तिविहीन किये जाने के खिलाफ स्थानीय मूल निवासियों के प्रतिरोध के कारण कई मामलों में सरकार के समर्थन प्राप्त कॉरपोरेशन इन क्षेत्रों में अन्दरूनी भाग तक जाने वाली सड़कें नहीं बना सके हैं। हमें डर है कि यह सरकारी हमला इन कॉरपोरेशनों के प्रवेश और काम करने को सुगम बनाने के लिए और इस क्षेत्र के प्राकृतिक स्रोतों एवं लोगों के अनियन्त्रित शोषण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए ऐसे लोकप्रिय प्रतिरोधों को कुचलने का प्रयास भी है। बढ़ती असमानता और सामाजिक वंचना तथा ढाँचागत हिंसा की समस्याएँ, और जल-जंगल-जमीन से विस्थापित किये जाने के खिलाफ ग़रीबों और हाशिये पर धकेल दिए गये लोगों के अहिंसक प्रतिरोध का राज्य द्वारा दमन किया जाना ही समाज में गुस्से और उथल-पुथल को जन्म देता है एवं ग़रीबों द्वारा राजनीतिक हिंसा का रूप अख्तियार कर लेता है। समस्या के स्रोत पर धयान देने के बजाय, भारतीय राजसत्ता ने इस समस्या से निपटने के लिए सैन्य हमला शुरू करने का निर्णय लिया है : ग़रीबी को नहीं ग़रीब को खत्म करो, भारत सरकार का छिपा हुआ नारा जान पड़ता है।

गोरखपुर में मजदूरों की एकजुटता के आगे झुके मिल मालिक

इस आन्दोलन ने दिखा दिया कि अगर मजदूर एकजुट रहें तो पूँजीपति-प्रशासन-नेताशाही की मिली-जुली ताकत भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। उल्टे इन शक्तियों का जनविरोधी चेहरा बेनकाब हो गया। प्रशासन ने मजदूरों को धमकाने और आतंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एल.आई.यू. और एस.ओ.जी. के लोग फैक्टरी इलाके में जाकर लगातार पूछताछ करते थे – तुम्हारे ये अगुवा नेता कहाँ से आये हैं। पुलिस अधिकारियों द्वारा लगातार धमकी देना कि मजदूरों को भड़काना बनद करो और जिला छोड़कर चले जाओ वरना एनकाउण्टर या जिलाबदर करने में देर नहीं लगेगी। मालिक ने भी बदहवासी में बहुत कुछ योजनाएँ बनायीं, लेकिन मजदूरों को एकजुट देखकर कुछ करने की हिम्मत नहीं पड़ी। कम्पनी के एक ठेकेदार की पत्नी ने कुछ महिला मजदूरों को बताया कि अपने नेता लोगों को सावधन कर दो कि सूरज डूबने के बाद बरगदवा चौराहा की ओर मत आयें, उसने अपने पति के मुँह से सुना था कि आज नेताओं का ”इन्तजाम” कर दिया जायेगा। ऐसी हर कोशिश के साथ मजदूरों की एकता और मजबूत होती गयी। मॉडर्न उद्योग के 51 दिन चले आन्दोलन के दौरान अंकुर उद्योग लि., वी.एन. डायर्स धगा व कपड़ा मिल तथा जालानजी पॉलीटेक्स के मजदूर लगातार साथ में जमे रहे। अंकुर उद्योग के मजदूरों ने आटा इकट्ठा करके दिया तो सारी फैक्टरियों के मजदूरों ने चन्दा लगाकर सहयोग दिया। जब 10 बजे रात को अन्य कम्पनियों की शिफ्ट छूटती थी तो रात को ही 500 से ज्यादा मजदूरों की मीटिंग होती थी, मजदूरों की वर्ग एकता जिन्दाबाद का नारा लगता था।