Category Archives: मज़दूरों की क़लम से

कौन लेगा गरीबों की सुध?

हम एक कमरे में 6-10 लोग रहते है जिससे हम पर किराये का बोझ कम पड़ता हैं क्योंकि हम पाई-पाई जोड़कर साल-छह महीने में कुछ हजार रुपये इकट्ठा कर लेते हैं और उसे गांव में परिवार-जन के लिए भेजते हैं। हम लोग कुछ ज्यादा कमाने के लिए कोल्हू के बैल की तरह काम करते है फ़ि‍र भी बचत के नाम पर कुछ नहीं होता। क्योंकि हमें हमारी मेहनत के अनुसार पैसा भी नहीं मिलता है। आज दिल्ली में हैल्पर के आठ घण्टे काम का वेतन 5278 रु है लेकिन मिलता कितना को है। कहीं पर 2500 या ज्यादा से ज्यादा 3500 रु तक। ऊपर से महंगाई कमर तोड़े रहती है। रोज काम भी नहीं मिलता और कभी शरीर दगा दे देता है। इस हालात में भला हम लोग अपने बच्चों का पेट कैसे भरते होंगे ये तो खुद ही समझने वाली बात है।

कविता – तुम्हारी चुप्पी को क्या समझा जाए!

जब जिंदा रहने की शर्त
कमरतोड़ मेहनत के बराबर हो जाए
तब तुम्हारी उपस्थिति को किस तरह
आँका जाये?
तुम्हारी चुप्पी का क्या अर्थ
निकाला जाये
क्योंकि चुप रहने का भी मतलब
होता है
तटस्थ होता कुछ भी नहीं!

शहीदों के सपनों को साकार करना होगा

‘कल करे सो आज कर, आज करे सो अब’ – कबीर दास के इस दोहे को चरितार्थ करने का समय अब आ गया है। मजदूर भाइयो, अब वह समय अब आ गया है जब हमें पूँजी की सत्ता का खुलकर विरोध करना चाहिए और इसके लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए। हमें अब अपने ऊपर हो रहे जुल्मों को और बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। समाज के ऊपर हावी हो रही पूँजी तथा इसके चाटुकारों, दलालों, कमीशनखोरों को सबक सिखाना ही होगा। वरना हमारी हालत दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती चली जाएगी।

मालिकों के लिए हम सिर्फ मुनाफा पैदा करने की मशीन के पुर्जे हैं

एक दिन वह पावर प्रेस की मशीन चला रहा था। मशीन पुरानी थी, मिस्त्री उसे ठीक तो कर गया था, लेकिन चलने में उसमें कुछ दिक्कत आ रही थी। तो उस नौजवान ने सोचा चलो मालिक को बता दे कि यह मशीन अब ठीक होने लायक नहीं रह गयी है। जैसे ही वह उठा, खुली हुई मशीन की गरारी में उसका स्वेटर फँस गया और मशीन ने उसकी बाँह को खींच लिया। स्वेटर को फाड़ती हुई, माँस को नोचती हुई मशीन से उसकी हड्डी तक में काफी गहरी चोट आयी। अगर उसके बगल वाले कारीगर ने तुरन्त उठकर मशीन बन्द नहीं कर दी होती तो वह उसकी हड्डी को भी पीस देती! उसके ख़ून की धार बहने लगी, पूरी फैक्ट्ररी में निराशा छा गयी। चूँकि उसका ई.एस.आई. कार्ड नहीं बना था। इसलिए मालिक ने एक प्राइवेट अस्पताल में उसे चार-पाँच दिन के लिए भर्ती कराया और कोई भी पुलिस कार्रवाई नहीं हुई। कोई हाल-चाल पूछने जाये तो किसी को कुछ भी बताने से मना कर देता और कहता, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!! शायद वह इसलिए नहीं बता रहा था कि कहीं मालिक को पता न लग जाये और वह जो कर रहा है, कहीं वह भी करना बन्द न कर दे।

कविता – मुनाफ़ाखोर व्यापारी की प्रार्थना

भाइयो इस महँगाई के दौर में एक तरफ जब लोग कुपोषण से बीमार पड़ रहे हैं, भूख से मर रहे हैं, लोगों का जीना दुश्वार हो गया है वहीं दूसरी तरफ सरकारी गोदामों में सैकड़ों टन अनाज़ सड़ाया जा रहा है। एक तो सरकार हम गरीबों के दिये टैक्स के पैसों से अमीर किसानों से महँगा अनाज खरीदती है,दूसरी ओर उस अनाज को गोदामों में सड़ा कर जमाखोरों को फायदा पहुँचाती है। ऐसे में एक जमाखोर क्या सोच रखता है, मुनाफा कमाने का क्या-क्या तरीका सोचता है, मैं अपनी कविता के जरिए बिगुल के पाठकों को बताना चाहता हूँ

गोरखपुर के संगठित मज़दूरों के नाम

ओ मज़दूर साथी निकलो बनके संघर्ष के सिपाही,
लोग देखेंगे अरमान से अपनी शक्ति ऊँची आसमान से।
पैसे वालों से न डरना ख़ूब मेहनत से लड़ना,
जीत होगी अपनी शान से अपनी शक्ति ऊँची आसमान से।

कविता – अब तो देसवा में फैल गईल बिमारी

अब तो देसवा में फैल गईल बिमारी,
तो सुनो भइया देश के जनता दुखियारी।
मज़दूर ग़रीब रात दिन कमाये,
फुटपाथ पर सो-सो के अपना जीवन बिताये।
तो ओकरे जीवन में दुख भारी,
तो सुनो भइया देश के जनता दुखियारी

मज़दूर वर्ग के हक में

हमारे आज के वर्ग विभाजित समाज में पूँजीपति वर्ग का बोलबाला है। राजतन्त्र उसी के हाथ में है और जो भी सरकार बनती है यह बाहरी तौर पर लोकतन्त्र का दिखावा करते हुए असल में इसी वर्ग के हितों को पूरा करती है। पूँजीपति वर्ग के लिए ही नीतियाँ बनती हैं और उन्हीं पर अमल किया जाता है। ज्यों-ज्यों पूँजीपति वर्ग और शक्तिशाली हो रहा है, त्यों-त्यों मेहनतकश वर्ग का शोषण और बढ़ता जा रहा है। उनके हकों और सहूलियतों को नजरअन्दाज किया जा रहा है। अगर मेहनतकश वर्ग को अपने हकों की रक्षा करनी है तो पूँजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एक लड़ाई लड़नी होगी। विभिन्न मोर्चों पर लामबन्दी कर, शासक वर्ग को यह चेताना होगा कि हम कमज़ोर नहीं हैं।

एक मज़दूर की अन्तरात्मा की आवाज़

मेरे प्यारे गरीब मजदूर-किसान भाइयो एवं साथियो। आज की पूँजीवादी व्यवस्था में आला अफसरों, अधिकारियों, नेताओं, फैक्टरी मालिकों, साहूकारों, पुलिस अफसरों में मजदूरों का दमन करने की होड़ लगी हुई है। कोई भी साधारण से साधारण व्यक्ति जब ऊंचे ओहदे वाला अधिकारी बन जाता है तो वह अपनी नैतिक जिम्मेवारी छोड़कर धनाढ्य बनने का सपना देखने लगता है। उसके पास बंगला-गाड़ी हो, चल-अचल सम्पत्ति की भरमार हो इसलिए जनता को लूटना-खसोटना शुरू कर देता है। नेता लोग गरीबों-दलितों को अपने समर्थन में लेने के लिए बड़े-बड़े वायदे करते हैं। गरीबों के उत्थान, रोजी-रोटी, कपड़ा और मकान का वादा करते हैं। गरीबों और दलितों के समर्थन से जब नेता कुर्सी पा जाते हैं तो गरीबों के ख्वाब ख्वाब ही रह जाते हैं। दलित उत्थान का ख्वाब अधर में ही लटक जाता है। सभी नेताओं का यही हाल है चाहे लालू प्रसाद यादव हो, रामविलास पासवान या यूपी की मुख्यमन्त्री बहन मायावती। यह सभी पूँजीपति का साथ पाकर ही सरकार चलाते हैं। इसलिए शोषित मजदूर साथियो, किसान भाइयो, इनके राजनीतिक खेल को समझो और इनके झूठे वायदों में न आओ। जिस तरह नदी के दो किनारे होते हैं और एक किनारे को पकड़कर ही हमारा जीवन बच सकता है, उसी तरह देश में दो अलग-अलग वर्ग हैं। एक पूँजीपति वर्ग है जो ज़ुल्म, अत्याचार, लूट-खसोट करता है। दूसरी तरफ मजदूर वर्ग है जो समाज की हर चीज पैदा करता है। लेकिन जिसे समाज में कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। हर एक मजदूर सारे मजदूर वर्ग के साथ खड़े होकर ही इन्साफ पा सकता है।

कविता – सरकारी अस्पताल

यहाँ मरीजों की भरमार है मगर दवाओं का अकाल है
पर्चियाँ लेकर घूमते लोग हैं यह शहर का सरकारी अस्पताल है
यहाँ मरीजों को मुफ्त इलाज के लिए बुलाया जाता है
फिर टेस्ट के बहाने दौड़ाया जाता है
बाद में दवाओं के अभाव का रोना रोते हैं
उचित इलाज करने के लिए अपने क्लिनिक का पता देते हैं
एक तो सरकार की उँची तनख़्वाह है दूसरे डॉक्टरी का बिजनेस भी बहाल है