Category Archives: मज़दूरों की क़लम से

एक छोटी सी जीत

मैं जितेन्द्र मैनपुरी (यू.पी.) का रहने वाला हूँ। मुझे गुड़गाँव आये 4 महीने हुए है और मैं गुड़गाँव पहली बार आया हूँ। हम अपने परिवार के तीन लोग साथ में है और तीनों एक ही फैक्ट्ररी ओरियण्ट क्रॉफ्ट, 7 पी सेक्टर-34 हीरो होण्डा चौक गुड़गाँव में चार महीने से काम कर रहे है। वैसे तो इस फैक्ट्री में कोई संगठन या एकता नहीं है। और न ही हो सकती है क्योंकि करीब 6 से 7 ठेकेदार के माध्यम से हेल्पर, कारीगर, प्रेसमैन, एक्पॉटर वगैरह भर्ती होते हैं जिनकी माँगे अलग है, काम अलग है और एक-दूसरे से कोई वास्ता नहीं है। मगर फिर भी एक छोटी सी जीत की खुशी तो होती ही है। ठीक इसी प्रकार बड़े पैमाने पर मज़दूर साथी लड़े तो हम सबकी ज़िन्दगी ही बदल जाये।

एक मज़दूर की आपबीती

दबी आवाज़ में एक ने कहा भी चलो हम सब मिलकर उससे (ठेकेदार) पूछते है कि ऐसा करने का तुमको क्या अधिकार बनता है? मगर साहस न हुआ किसी को। सब एकदूसरे का मुँह ताक रहे थे कि कोई आगे चल पड़े। किसी की हिम्मत न पड़ी क्योंकि सबको डर था कि कहीं मेहनत का पैसा भी न डूब जाये। और करीब 15-20 मज़दूरों ने तनख्वाह लेकर काम छोड़ दिया; जिसमें एक मैं भी था। फिर कल ठेकेदार सतीश का फोन आया कि आजा काम दबाकर चल रहा है तब मैंने फोन पर अपने दिल की भड़ास निकाली।

समयपुर, लिबासपुर का लेबर चौक

घटनाए और भी बहुत सारी है। मगर समस्या का दुखड़ा रोने से कुछ नहीं होता। मुख्य जड़ तो यही है। कि जब तक हम अपनी ताकत को नहीं पहचानते तब तक कुछ नहीं कर पाएंगे। एक आदमी आऐगा और दो सौ लोगों के बीच किसी में किसी एक मजदूर भाई को पीटकर चला जाऐगा।

एक मेहनतकश औरत की कहानी…

इस पूँजी की व्यवस्था में बिना पूँजी के लोगों की ऐसी ही हालत हो जाती है जैसे अभी पूजा की है। एकदम बेजान, चेहरा एकदम सूखा हुआ। 28 साल की उम्र में उसको स्वस्थ और सेहतमन्द होना चाहिए था मगर इस उम्र में जिन्दगी का पहाड़ ढो रही है और दिमागी रुप से असुन्तिल हो गयी है।

नम्बर एक हरियाणा की असलियत

सुबह 9:30 बजे से शाम 6:15 की ड्यूटी करने पर 8 घण्टे के पैसे मिलते हैं। इसमें से मज़दूर के 45 मिनट लंच के नाम पर कट जाते हैं। पूरे महीने की तनख्‍वाह 10 से 15 तारीख़ के बीच में मिलती है। 4300 रुपये महीना पर काम करने वाले वर्कर को 30 से 15 तारीख़ के बीच में अक्सर रुपयों की ज़रूरत पड़ जाती है। उस समय, ठेकेदार के आगे-पीछे भीख माँगते रहो, तब भी वे एक रुपया तक नहीं देते और ऐसे समय में 10 रुपये सैकड़ा के हिसाब से ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता है क्योंकि खाने-पीने का सामान, किराया-भाड़ा, दवा, सब्जी व किसी अन्य बुनियादी ज़रूरत का सामान उधारी की दुकान पर नहीं मिलता। इतना सब करने के बाद भी मज़दूर के घण्टे काटना व हाजिरी काट लेना जैसी चीज़ें चलती रहती हैं। अगर काम है तो जबरन ओवरटाइम करना पड़ता है, और अगर काम नहीं है तो जबरन भगा भी देते हैं। अगर कम्पनी में ही बने रहो तो हाजिरी ही नहीं चढ़ायेंगे। यहाँ काम करने के बाद हरियाणा के नम्बर एक होने की असलियत पता चली और यह अन्दाजा हुआ कि हरियाणा को असल में किन थैलीशाहों के लिए नम्बर एक कहा जाता होगा!

मजदूर की कलम से कविता : मैंने देखा है… / आनन्‍द

मैंने देखा है…
वो महीने की 20 तारीख़ का आना
और 25 तारीख़ तक अपने ठेकेदार से
एडवांस के एक-एक रुपये के लिए गिड़गिड़ाना
और उस निर्दयी जालिम का कहना कि
‘तुम्हारी समस्या है।
मुझे इससे कोई मतलब नहीं,’ – मैंने देखा है।

एक मजदूर से बातचीत

साम-दाम-दण्ड-भेद जो तरीक़ा चले उन्हें चलाकर ये मालिक कारीगरों को निकालकर हेल्पर भरती कर रहा है। कारीगर महोदय अभी तक किसी एक पेशे के कारीगर हुआ करते थे। अब दर-दर की ठोकर खाकर घूम रहे हैं। अभी तक आराम के 7000 रुपये उठा रहे थे। अब हेल्परी के (3500-4000) रु. पा रहे हैं। मालिक तभी तक खुश रहता है जब तक उसको मुनाफा होता रहता है। तुम्हारी जी-हुजूरी से और बाबूजी-बाबूजी कहने से मालिक नहीं खुश होता है। किसी मजदूर को अगर बैठाकर तनख्वाह देनी पड़ जाये तो ज्यादा से ज्यादा कोई भी मालिक एक महीना तक तनख्वाह देगा उसके बाद भी अगर काम न आया तो फैक्ट्री में ताला डाल देगा। तुम चाहे कितने भी पुराने क्यों न हो। आज के दौर में अगर हमें ज़िन्दा रहना है तो मजदूर वर्ग के रूप में एकजुट होना होगा।

रणवीर की आपबीती

मासू इण्टरनेशनल, बादली में मैं काम करता हूँ। रणवीर शाहजहाँ पुर उ.प्र. का रहने वाला है। आज फैक्ट्री सुपरवाइजर सरदार ढिलन सिंह के तेवर रणवीर के खिलाफ सख़्त थे। बेचारे रणवीर को क्या पता कि आखिर कौन सी क़यामत आई है। रणवीर रोज जितना काम करता था। आज उससे तीन गुना काम उस पर पड़ रहा है। क्या आज सरदार ढिलन सिंह सुबह-सुबह ही 4 पैग ज़्यादा लगाकर आये हैं। नहीं ऐसा नहीं है।
आखिर शाम तक रणवीर जी की हालत खस्ता हो गई। वैसे तो रणवीर रोज ओवरटाइम व नाइट नहीं छोड़ता था। मगर आज 5.30 बजे ही छुट्टी करने का निर्णय लिया है। मगर रणवीर ने यह भी निर्णय किया कि इस क़यामत का राज जानकर ही जाऊँगा।
रणवीर – सर जी, हमसे कोई ग़लती हो गई जो आज आपने हमको टारगेट बना लिया।
ढिलन सिंह – अब आयी तेरी अकल ठिकाने। अब बताता हूँ। ऐसा क्यों किया। कल तूने सी.आई.टी.यू. के कार्यकर्ता त्यागी के सामने कारीगरों के साथ यूनियन लगाने के लिए अपना नाम क्यों लिखाया। अभी तुझे आये दो महीने भी हुए नहीं और चला यूनियन करने।

मज़दूरों की लाचारी (मालिक भी खुश, मज़दूर भी खुश)

समयपुर, बादली में नेभको बैटरीज़ के नाम से एक कम्पनी है। इसमें न ही कोई सुपरवाइजर है, न ही कोई फोर्डमैन, न कोई कम्प्यूटर ऑपरेटर और न कोई बाबू। मालिक भी सप्ताह दो सप्ताह में कभी घूमने चला आया तो गनीमत। स्टॉफ के नाम पर मालिक ने एक मैनेजर रखा है। फिर भी रोज फैक्टरी में 4000 पॉजिटिव और 4000 निगेटिव बैटरी की प्लेटें तैयार होकर सप्लाई के लिए निकलती हैं जो कि सिर्फ नेभको कम्पनी अपने लिए नहीं तैयार करती। बल्कि पूरे देश भर में कई बड़ी पार्टियों को सप्लाई करती है। अनुमान लगाने में हो सकता है कि आप लोग कुछ ज़्यादा ही अनुमान लगा लें। इसलिए हम आपको बताना चाहते हैं कि ये फैक्टरी 150 व 200 गज के प्लॉट में बनी हुई है जिसमें टीन की छत है और इसमें मज़दूरों की संख्या भी कुछ खास नहीं है। क़रीब-क़रीब 35 मज़दूर इस फैक्टरी में काम करते हैं और इसमें मज़दूर की तनख्वाह भी बहुत ज़्यादा नहीं है। नये हेल्पर की (8 घण्टे) तनख्वाह 2600 रु. महीना। जो जितने साल पुराना कर्मचारी हो उसका उस हिसाब से। मगर फिर भी जो 10 साल पुराने भी हैं उनकी तनख्वाह 3500 रु. से ज़्यादा नहीं है। फिर भी ये फैक्टरी कैसे चलती है इसकी तारीफ तो मालिक की करनी ही होगी। ये ऐसी-ऐसी चालें चलते हैं कि एक मज़दूर की समझ के बाहर होती है। ख़ैर, इस फैक्टरी के मालिक ने प्रोडक्शन सिस्टम बना रखा है जो जितना माल तैयार करेगा उसकी उतनी दिहाड़ी बनेगी।

मज़दूर भाइयों के नाम चिट्ठी

मेरा देवर ही एक दीदी से हमको मिलाया था जो कि महिलाओं का संगठन बनाने का काम करती हैं। उनके संगठन का नाम है ‘स्त्री मज़दूर संगठन’। दीदी ने हमको और मेरे पति दोनों को समझाया कि कोई लूला, लँगड़ा या बीमार व्यक्ति हो तो उसकी सेवा करना ठीक भी है। मगर एक अच्छी-खासी महिला की दुनिया सिर्फ कमरे तक ही समेटकर उसको बीमार करने में क्यों लगे हो। अभी तुम अकेले दोनों लोगों का खर्चा उठाते हो। ज़्यादा मेहनत करते हो। दोनों मिलकर काम करो। आठ-आठ घण्टे भी काम करोगे तो सोलह घण्टे हो जायेंगे और मिल-बाँटकर घर का काम करो, एक-दूसरे को ज्यादा समय दो, प्यार करो और एक अच्छी ज़िन्दगी जिओ। अभी आप 12 घण्टे काम करके थक जाते हैं ओर ये कमरे में पड़े-पड़े रहकर थक जाती हैं। ये बात मेरे पति को समझ में आ गयी। और अब हम दोनों मिलकर कमाते हैं। आठ घण्टा काम करते हैं। टीवी भी ले लिया है। रविवार को सिनेमा भी देख आते हैं। कभी छुट्टी मारकर दिल्ली भी घूम आते हैं। और हम दोनों एक-दूसरे के जीवनसाथी बनकर एक अच्छी जिन्दगी जी रहे हैं। हमको ज़्यादा पढ़ना-लिखना नहीं आता तो दीदी हमें हर शुक्रवार को शहीद पुस्तकालय में शाम 6 बजे पढ़ाती हैं। मगर हम ये चिट्ठी अपने देवर से लिखा रहे हैं।