वक़्फ़ क़ानून में नये संशोधनों पर मज़दूर वर्ग का नज़रिया क्या होना चाहिए?
वक़्फ़ सम्पत्तियों के कुप्रबन्धन और उनमें व्याप्त भ्रष्टाचार के तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता। परन्तु वक़्फ़ ही क्यों, सच तो यह है कि इस देश में धर्म-कर्म के नाम पर सभी धर्मों की धार्मिक व धर्मार्थ संस्थाओं ने सम्पत्ति का विशाल अम्बार खड़ा किया हुआ है जिनके प्रबन्धन में भी कोई जवाबदेही या पारदर्शिता नहीं है और इस मामले में हिन्दू धर्म के मन्दिरों, ट्रस्टों आदि में जो अरबों-खरबों का भ्रष्टाचार होता है, उसका तो किसी अन्य धर्म में कोई मुक़ाबला ही नहीं है। ऐसे में केवल इस्लाम धर्म की किसी संस्था में भ्रष्टाचार को लेकर ही अमित शाह के पेट में मरोड़ क्यों उठ रहा है? शाह इतने भोले तो हैं नहीं कि उन्हें यह पता ही न होगा कि इस देश में तमाम मन्दिरों, मठों, गुरुद्वारों, गिरजाघरों और बाबाओं के तमाम आश्रमों ने लोगों की धार्मिक आस्था के नाम पर अकूत सम्पदा इकट्ठी कर रखी है और उनके प्रबन्धन में भी ज़बर्दस्त भ्रष्टाचार होता है। वास्तव में, सबसे ज़्यादा समृद्ध तो तमाम हिन्दू मन्दिरों के ट्रस्ट व बोर्ड आदि हैं, जिनके पास जमा अथाह सम्पत्ति व धन-दौलत पर दशकों से गम्भीर सवाल उठते रहे हैं। इसी प्रकार तमाम गुरुद्वारों व गिरजाघरों और मठों के पास जमा चल व अचल सम्पत्ति का कोई हिसाब नहीं है।