मज़दूरों में मालिक-भक्ति की बीमारी
मज़दूरों को मालिकों की ऐसी नौटंकियों के झाँसे में नहीं आना चाहिए। मालिक की परख करनी हो तो वेतन बढ़वाने, श्रम कानून लागू करवाने और रिहायशी सुविधाओं के लिए मालिक के मुनाफे में से हिस्सा आदि माँगें मालिक के सामने रखकर देखो। तुरन्त मालिक की अच्छाई और कल्याणकारी प्रवृति पर से मुखौटा उतर जाएगा और पूजा-पाठ करने वाले, देवी-देवताओं के भक्त मालिक के भीतर बैठा जानवर जाग उठेगा और पुलिस-शासन-प्रशासन को साथ लेकर मज़दूरों पर टूट पड़ेगा। मालिक मज़दूर के कल्याण के बारे में कभी नहीं सोच सकता। पँजीवादी व्यवस्था की यही सच्चाई है। मालिक सिर्फ मज़दूरों की एकता के आगे झुकता है। मालिक इसी से डरता है और मज़दूरों को एकता न बनाने देने के लिए और बनी हुई एकता तोड़ने के लिए सभी चालें चलता है। मालिक द्वारा पूजा-पाठ, भण्डारे, जागरण आदि करना भी ऐसी चालों में से एक है।