मज़दूर नायक : क्रान्तिकारी योद्धा
जर्मनी के क्रान्तिकारी मज़दूर – जोहान फि़लिप्प बेकर
जो मार्क्स और एंगेल्स के दोस्त भी थे
वर्ग-सचेत मज़दूरों के बहादुर बेटे जब एक बार अपनी मुक्ति के दर्शन को पकड़ लेते हैं, जब एक बार वे सर्वहारा क्रान्ति के मार्गदर्शक सिद्धान्त को पकड़ लेते हैं तो फिर उनकी अडिग निष्ठा, शौर्य, व्यावहारिक जीवन की जमीनी समझ और सर्जनात्मकता उन्हें हमारे युग के नये नायकों के रूप में ढाल देती है। ऐसे लोग उस करोड़ों-करोड़ आम मेहनतकश जनसमुदाय के उन सभी वीरोचित उदात्त गुणों को अपने व्यक्तित्व के जरिए प्रकट करते हैं, जो इतिहास के वास्तविक निर्माता और नायक होते हैं। इसलिए ऐसे लोग क्रान्तिकारी जनता के सजीव प्रतिनिधि चरित्र और इतिहास के नायक बन जाते हैं और उनकी जीवन-गाथा एक महाकाव्यात्मक आख्यान बन जाती है।
‘बिगुल’ के इस अनियमित स्तम्भ में हम दुनिया की सर्वहारा क्रान्तियों की ऐसी ही कुछ हस्तियों के बारे में उन्हीं के समकालीन किसी महान क्रान्तिकारी नेता या लेखक की संस्मरणात्मक टिप्पणी या रेखाचित्र समय-समय पर अपनी टिप्पणी के साथ प्रकाशित करते रहेंगे। ये ऐसे लोगों की गाथाएं होंगी जिन्होंने शोषण-उत्पीड़न की निर्मम-अंधी दुनिया के अंधेरे से ऊपर उठकर जिन्दगी भर उस अंधेरे से लोहा लिया औश्र क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्ग के प्रतिनिधि चरित्र बन गये। वे क्रान्तिकथाओं के ऐसे नायक थे, जो इतिहास-प्रसिद्धा तो नहीं थे पर जिनकी जिन्दगी से यह शिक्षा मिलती है कि श्रम करने वाले लोग जब ज्ञान तक पहुंचते हैं और अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ लेते हैं तो फिर किस तरह अडिग-अविचल रहकर वे क्रान्ति में हिस्सा लेते हैं। उनके भीतर ढुलमुलपन, कायरता, कैरियरवाद, उदारतावाद और अल्पज्ञान पर इतराने जैसे दुर्गुण नहीं होते जो मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों से आने वाले कम्युनिस्टों में क्रान्तिकारी जीवन के लम्बे समय तक बने रहते हैं और पार्टी में तमाम भटकावों को बल देने में अहम भूमिका निभाते हैं।
हमारा दृढ़ विश्वास है कि भारतीय मज़दूरों के बीच से भी ऐसे ही वर्ग-सचेत बहादुर सपूत आगे आयेंगे। सर्वहारा वर्ग की पार्टी के क्रान्तिकारी चरित्र के बने रहने की एक बुनियादी शर्त है कि मेहनतकशों के बीच के ऐसे सम्भावनायुक्त तत्वों की राजनीतिक शिक्षा-दीक्षा करके उन्हें निखारा-मांजा जायेगा और क्रान्तिकारी कतारों में भरती किया जाये।
सम्पादक
एक संक्षिप्त परिचय
आलोक रंजन
जोहान फिलिप्प बेकर एक जर्मन मज़दूर थे जिन्होंने तीसरे दशक में युवावस्था की दहलीज़ पर क़दम रखने के साथ ही मज़दूरों के बीच उभर रही आन्दोलनात्मक सरगर्मियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। उनकी राजनीतिक चेतना लगातार आगे विकसित होती रही। 1848-1849 में जब पूरे यूरोप में क्रान्तियों का दावानल भड़क उठा तो बेकर ने उसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जर्मनी में क्रान्तिकारी उभार के उतार के बाद वे स्विट्ज़रलैण्ड जाकर बस गये।
यहाँ हम जोहान फिलिप्प बेकर (1809-1886) के बारे में विश्व सर्वहारा के महान नेता और शिक्षक फ़्रेडरिक एंगेल्स द्वारा लिखी गयी उस टिप्पणी का एक अंश दे रहे हैं जो उन्होंने बेकर की मृत्यु के बाद उन्हें याद करते हुए लिखी थी। इसके साथ ही हम अगस्त बेबेल के नाम एंगेल्स का एक पत्र भी दे रहे हैं जिसमें उन्होंने बेकर के दुर्लभ क्रान्तिकारी गुणों की चर्चा की है। अगस्त बेबेल 19वीं सदी के यूरोपीय मज़दूर आन्दोलन की एक हस्ती थे जो जर्मन सामाजिक जनवादी पार्टी व दूसरे इण्टरनेशनल के संस्थापकों में से एक थे तथा मार्क्स-एंगेल्स के मित्र थे।
बेकर जर्मनी के मज़दूरों की उस पहली पीढ़ी के सदस्य थे जिसने कम्युनिज़्म के सिद्धान्तों को स्वीकार किया था और सर्वहारा वर्ग की राजनीतिक पार्टी के निर्माण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
उन्होंने पहले इण्टरनेशनल (इण्टरनेशनल वर्किंगमेंस एसोसिएशन, 1864 में गठित) की स्थापना में हिस्सा लिया और स्विट्ज़रलैण्ड में रहते हुए उसकी जेनेवा शाखा को संगठित करने का काम भी किया। स्विट्ज़रलैण्ड में रहते हुए बेकर ने इण्टरनेशनल की जर्मन शाखाओं के अख़बार ‘अग्रदूत’ का सम्पादन किया। 1871 में मार्क्स-एंगेल्स के साथ मिलकर दक्षिणी फ़्रांस में विद्रोह पैदा करने की जी-तोड़ कोशिश की थी ताकि पहले मज़दूर राज्य पेरिस कम्यून को बचाया जा सके। 21 जुलाई, 1871 के एक पत्र में बेकर ने लिखा है : “इसके लिए हमने मनुष्य के शक्ति योग्य सबकुछ न्योछावर किया, जोखिम मोल लिया… यदि हमारे पास मार्च तथा अप्रैल में अधिक धन होता, तो हम पूरी दक्षिणी फ़्रांस को उठ खड़ा करते और पेरिस कम्यून को बचाते।” यूरोपीय मज़दूर आन्दोलन में वैज्ञानिक समाजवाद के विचारों का विरोध करने वालों के खि़लाफ़ बेकर हमेशा अडिग-अविचल रूप से सक्रिय रहे। उनकी दोस्ती मार्क्स, एंगेल्स, बेबेल आदि से आजीवन बनी रही। बुढ़ापे से अप्रभावित ज़िन्दादिल, बहादुर, जीवन्त मज़दूर योद्धा बेकर आखि़री साँस तक एक सच्चे भौतिकवादी और क्रान्तिकारी मज़दूर की ज़िन्दगी जिये। 1886 में 77 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हुई।
मज़दूरों के महान शिक्षक फ्रेडरिक एंगेल्स की कलम से जोहान फि़लिप्प बेकर का परिचय
बेकर दुलर्भ चरित्र के इन्सान थे। केवल एक शब्द से ही उनका पूरा चरित्र उजागर हो जाता है : यह शब्द है स्वस्थ। शरीर और दिमाग़ दोनों ही दृष्टि से वह पूरे तौर से स्वस्थ थे। बलशाली देह और ज़बरदस्त शारीरिक शक्ति वाले वह एक ख़ूबसूरत आदमी थे; अपनी ख़ुशमिजाज़ी तथा स्वस्थ गतिविधियों से उन्होंने अपने मस्तिष्क को भी, जोकि शिक्षित न होते हुए भी असंस्कृत कदापि नहीं था, समन्वित रूप से अपने शरीर के समान ही विकसित कर लिया था। वह उन चन्द लोगों में से थे जिनके लिए सही मार्ग पर चलने के लिए इतना ही पर्याप्त होता है कि वह अपनी सहज प्रवृत्तियों का अनुसरण करते जायें। यही कारण था कि क्रान्तिकारी आन्दोलन के विकास के हर क़दम के साथ क़दम मिलाकर चलते जाना तथा उसके आगे की पाँतों में अठहत्तरवें वर्ष में भी उसी उत्साह और लगन के साथ खड़ा होना उनके लिए आसान था – जिससे अपनी उम्र के अठारहवें वर्ष में वह खड़े होते थे। जो बालक 1814 में अपने देश के अन्दर से गुजरने वाले कज़्ज़ाकों के साथ खेला था और 1820 में जिसने कोत्सेबू के हत्यारे जान्द को मौत के घाट उतारा जाता देखा था, वह तीसरे दशक के डाँवाँडोल विपक्षी की स्थिति से विकसित होकर और भी आगे बढ़ गया था तथा 1886 में भी आन्दोलन के उच्चतम स्थान पर मौजूद था। 1848 के ‘संजीदा’ प्रजातन्त्रवादियों में से अधिकांश लोगों की तरह वह कोई निरानन्द, उच्च सिद्धान्त वाले ज्ञानशून्य आदमी भी नहीं थे; बल्कि प्रफुल्लित पफाल्ज़ के सच्चे पुत्र थे, जीवन के प्रति ज़बदस्त लगाव रखने वाले। वह ऐसे आदमी थे जो अन्य सभी लोगों की तरह मदिरा, स्त्रियों तथा गीत-संगीत से प्रेम करते थे। वह निबेलुंग के सम्बन्ध में गीत के देश में ‘वर्म्स’ के समीप बड़े हुए थे। अपने जीवन के बाद वर्षों में भी वह प्राचीन महाकाव्यों के किसी पात्र की ही तरह लगते थे। तलवारों के प्रहारों के बीच शत्रु को ख़ुशी-ख़ुशी और व्यंग्यपूर्वक ललकारते हुए तथा, जब प्रहार करने के लिए कोई न होता, तो लोकगीतों की रचना करते हुए वह, वायलिनवादक फोल्कर के इसी रूप में और केवल इसी रूप में दिखलायी पड़ते रहे होंगे।
जोहान फि़लिप्प बेकर के नाम मार्क्स का पत्र
‘लीबनिज’ तथा ‘सब तुच्छ’ से सम्बन्धित आपको दोनों लघु कविताएँ मुझे बेहद पसन्द आयीं; अच्छा होगा यदि आप (मेरे सुझाव से सहमत हों तो) इन दोनों को एक चिट्ठी में रखकर फ़ौरन वेडेमेयर के पास भेज दें।
9 अप्रैल, 1860
अगस्त बेबेल के नाम एंगेल्स का पत्र
बुढ़ापे में भी प्रफुल्लचित्त, संघर्ष के लिए तैयार
प्रिय बेबेल,
यह पत्र तुम्हें मैं उस बातचीत के सम्बन्ध में लिख रहा हूँ जो चिरप्रिय जोहान फिलिप्प बेकर से मेरी हुई है। वह दस दिन तक यहाँ मेरे साथ रुके थे और अब पेरिस होकर (जहाँ अचानक उनकी बेटी की मृत्यु हो गयी थी) वह जेनेवा वापस पहुँच गये होंगे। उस वृद्ध महाबली को एक बार फिर देखकर मेरा मन ख़ुशी से भर गया था। शारीरिक रूप से यद्यपि वह ढल गये हैं, किन्तु अब भी वह बहुत हँसमुख हैं और उनके अन्दर संघर्ष की भावना भरी हुई है। वह हमारी राइनी, फ्रॉकिश गाथा में से ही निकले हुए एक महापुरुष हैं जो निबेलुंग के गीत में मूर्तमान हो गये हैं – वह साक्षात वायलिनवादक फोल्कर हैं।
वर्षों पहले मैंने उनसे आग्रह किया था कि वह अपने संस्मरण और अनुभवों को लिख डालें। अब उन्होंने मुझे बतलाया कि तुमने तथा दूसरों ने भी इसके लिए उन्हें उत्साहित किया था, कि वह स्वयं भी उन्हें लिखने के बहुत इच्छुक हैं और कई बार तो उन्होंने लिखना शुरू भी किया था, किन्तु केवल छिटपुट ही प्रकाशन होने की वजह से उनके अन्दर वास्तविक उत्साह नहीं पैदा हो सका (उदाहरण के लिए, न्यू बेल्ट (222) के पास छपने के लिए उन्होंने कई वर्ष पहले कई बहुत बढ़िया चीज़ें भेजी थीं, किन्तु, जैसाकि लीबनेख़्त ने मोत्तेलर के माध्यम से उन्हें सूचित किया था, वे चीज़ें पर्याप्त रूप से ‘उपन्यासात्मक’ नहीं पायी गयी थीं!)
8 अक्टूबर, 1886
बिगुल, अगस्त 1999
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन