Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

गीता प्रेस – धार्मिक सदाचार व अध्यात्म की आड़ में मेहनत की लूट के ख़ि‍लाफ़ मज़दूर संघर्ष की राह पर

धर्म बहुत लम्बे समय से अनैतिकता, अपराध, लूट व शोषण की आड़ बनता रहा है। परन्तु मौजूदा समय में गलाजत, सड़ान्ध इतने घृणास्पद स्तर पर पहुँच चुकी है कि धर्म की आड़ से गन्दगी पके फोड़े की पीप की तरह बाहर आ रही है। आसाराम, रामपाल जैसे इसके कुछ प्रातिनिधिक उदाहरण हैं। इसी कड़ी में धर्म और अध्यात्म की रोशनी में मज़दूरों की मेहनत की निर्लज्ज लूट का ताज़ा उदाहरण गीता प्रेस, गोरखपुर है। कहने को तो गीता प्रेस से छपी किताबें धार्मिक सदाचार, नैतिकता, मानवता आदि की बातें करती हैं, लेकिन गीता-प्रेस में हड्डियाँ गलाने वाले मज़दूरों का ख़ून निचोड़कर सिक्का ढालने के काम में गीता प्रेस के प्रबन्धन ने सारे सदाचार, नैतिकता और मानवता की धज्जियाँ उड़ाकर रख दिया है। संविधान और श्रम कानून भी जो हक मज़दूरों को देते हैं वह भी गीता प्रेस के मज़दूरों को हासिल नहीं है! क्या इत्तेफ़ाक है कि गीता का जाप करनेवाली मोदी सरकार भी सारे श्रम कानूनों को मालिकों के हित में बदलने में लगी है। इसी माह प्रबन्धन के अनाचार, शोषण को सहते-सहते जब मज़दूरों का धैर्य जवाब दे गया तो उनका असन्तोष फूटकर सड़कों पर आ गया।

गोरखपुर के नागरिकों के नाम गीता-प्रेस के मज़दूरों की एक अपील

गोरखपुर के नागरिकों के नाम गीता-प्रेस के मज़दूरों की एक अपील दोस्तो, कहने को तो गीता प्रेस से छपी किताबें धार्मिक सदाचार, नैतिकता, मानवता आदि की बातें करती हैं लेकिन…

हीरो मोटोकार्प में भर्ती प्रक्रिया की एक तस्वीर!

करीब 250 लड़के अपनी क़िस्मत आज़माने के लिए गेट के बाहर अपने पहचान-पत्र व डिग्रियाँ हाथ में लिये खड़े थे। सहसा कम्पनी के अन्दर से ठेकेदार के दो मज़दूर आये और उन्होंने लड़कों को भर्ती होने की प्रक्रिया के बारे में बताया कि तुम लोग शोर बहुत मचा रहे हो, अब चुपचाप अनुशासन में मेरी बात सुनो। भर्ती उसी लड़के की होगी, जिसका वज़न 50 किलो से ऊपर होगा, जिसकी 10वीं, 12वीं की मार्कशीट व पहचान पत्र की ओरिजनल (असली) कापी उसके पास होगी, जिसका खाता किसी बैंक में होगा, जिसको अंग्रेज़ी का अच्छा ज्ञान होगा। जो इन शर्तों को पूरा करता हो वो यहाँ रुके बाक़ी सब यहाँ से चले जायें। और हाँ (आईटीआई) वाले लड़कों को भी नहीं लिया जायेगा। इतनी शर्तों के बाद आधी संख्या तो घट गयी और बची आधी संख्या तो उसकी भर्ती प्रक्रिया का ज़िक्र हमने पहले ही कर दिया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लफ़ाज़ी और मज़दूर आबादी!

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लफ्फ़ाज़ियाँ उनके तमाम भाषणों, टी.वी. पर विज्ञापनों व अख़बारों में विज्ञापनों के ज़रिये आम आबादी को ज़बरदस्ती सुननी या देखनी ही पड़ती हैं, जिसमें मोदी सरकार ग़रीबों को समर्पित प्रधानमन्त्री जन-धन योजना, मेक इन इण्डिया, जापान के 2 लाख 10 हज़ार करोड़ के निवेश से भारत में रोज़गार का सृजन होगा, 2019 तक स्वच्छ भारत अभियान से स्वच्छ भारत का निर्माण होगा आदि-आदि। मीडिया और अख़बारों में ऐसे नारों से और जुमलों से पूरी मज़दूर आबादी भ्रमित होती है कि भइया, मोदी सरकार तो ग़रीबों और मज़दूरों की सरकार है। मगर जब वास्तविकता में महँगाई से पाला पड़ता है तो इस सरकार के खि़लाफ़ गुस्सा भी यकायक फूट पड़ता है।

मुनाफ़े की व्यवस्था में हम मज़दूरों का कोई भविष्य नहीं

मज़दूर भाइयो, यह केवल मेरी कहानी नहीं है बल्कि देश के करोड़ों मज़दूरों की ऐसी ही कहानियाँ हैं। आज हम एकजुट होकर ही मुनाफ़े की इस व्यवस्था के खि़लाफ़ लड़ सकते हैं। हमें इस लड़ाई में मिठबोले मालिकों, धन्धेबाज वकीलों, और दलाल यूनियनों से भी सावधान रहना होगा।

हालात बदलने के लिए एक होना होगा

मेरा नाम मो. हाशिम है। मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ। ज़िला अलीगढ़ का रहने वाला हूँ। मेरे पापा मज़दूर थे। मेरे घर में बहुत परेशानी थी जब मैं केवल आठ साल का था तभी से गाँव में मेहनत करता था, इसके लिए मैं एक धनी किसान के पास काम करता था। वो मुझसे बहुत काम लेता था। जिस कारण मैं पढ़ नहीं पाया। बाद में मैं गाँव से अपने माँ-बाप को लेकर शहर में आया। मैं परिवार के साथ श्रीराम कालोनी, खजूरी खास दिल्ली में अपने मामा के पास मज़दूरी करता था। यहाँ भी मामा मुझे बहुत मारते थे। इनके पास मैंने करीब साल भर काम किया। एक दिन मुझे मज़दूर बिगुल अख़बार मिला। जिसको पढ़ने के बाद मुझे घुटन भरी ज़िन्दगी से लड़ने का तरीक़ा पता चला। बहुत से मेरे भाई आज भी उन्हीं फ़ैक्टरियों में काम करते हैं और मालिक की मार-फटकार सहते हैं। हम सब जैसे-तैसे ज़िन्दगी की गाड़ी खींच रहे हैं। मैं अब एक दूसरी जगह काम करता हूँ। मेरी उम्र तक़रीबन 24 साल है। वहाँ के मालिक से मैं अगर कारीगरों के हक़ के बारे में बोलता हूँ तो मालिक मुझसे चिढ़ता है और मशीन में ताला लगवा देता है। असल में सभी मालिकों की एक ही नीयत होती है – कैसे ज़्यादा से ज़्यादा मज़दूरों का ख़ून-पीसना निचोड़ा जाये।

लाज एक्सपोर्ट के मज़दूर और किराये के नेता!

एक महिला मज़दूर ने बताया कि उनके काम के हालात बेहद ख़राब हैं। कम्पनी किसी भी क़िस्म की सुविधा नहीं देती। यहाँ तक कि कम्पनी के भीतर प्राथमिक उपचार तक की सुविधा नहीं है। उसने बताया कि एक महिला को नर्स के तौर पर पेश किया जाता है, लेकिन हक़ीकत में वो एक ऑपरेटर है और कम्पनी में मज़दूरी करती है। महिला मज़दूरों की सुरक्षा को लेकर कम्पनी कितनी फ़ि‍क्रमन्द है इसका अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विक्रम गुप्ता नाम का कम्पनी अधिकारी महिला शौचालयों तक में घुस जाता है। मज़दूरों ने बताया कि उन्हें क़ानूनी तौर पर नियत छुट्टियाँ जैसे ईएल, पीएल, सीएलएसएल आदि तक नहीं मिलती। मज़दूरी में बढ़ोतरी की बात तो छोड़ ही दी जाये, नियमित रूप से लगने वाले महँगाई भत्ते का भुगतान भी नहीं किया जाता।

वजीरपुर स्टील उद्योगः मौत और मायूसी के कारखाने

वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र जो कि भारत के सबसे बड़े स्टील उद्योगों में से एक है। जहाँ ‘स्टेनलेस स्टील’ के बर्तन बनाने का काम होता है। लेकिन इन

कारखानों में काम की परिस्थिति बेहद खतरनाक है, आये दिन मज़दूरों की मौत होना, बेहद उच्च ताप पर झुलसना तो रोज की घटना है। ऊपर से औद्योगिके कचरे की वजह से झुग्गियों की यह हालत है कि बजबजाती नालियों में मच्ठर भी पैदा होने से डरते हैं, क्योंकि वहाँ सिर्फ गन्दा पानी ही नहीं बहता, तेजाब भी बहता है।

अक्टूबर क्रान्ति के सत्तानवे वर्ष पूरे होने के अवसर पर वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में सांस्कृतिक सन्ध्या का आयोजन

आज से 97 वर्ष पहले रूस में 7 नवम्बर 1917 को मज़दूर वर्ग ने रूस के निरंकुश ज़ारशाही पूँजीपतियों की लुटेरी व्यवस्था को उखाड़ फेंका था और अपना राज स्थापित किया था। इतिहास में इसे अक्टूबर क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। अक्टूबर क्रान्ति दुनिया भर के मज़दूरों के लिए ऐसी जलती हुई मशाल है जिसकी रोशनी में मज़दूर वर्ग आनेवाले समय का निर्णायक युद्ध लड़ेगा। रूस में सम्पन्न हुई इस मज़दूर क्रान्ति के 97 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के बी-ब्लॉक स्थित राजा पार्क में ‘बिगुल मज़दूर दस्ता, दिल्ली’ द्वारा सांस्कृतिक सन्ध्या का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में ‘दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन’ ने भी अपना सक्रिय सहयोग दिया। यह कार्यक्रम इस सोच के तहत आयोजित किया गया कि आज के इस प्रतिक्रियावादी दौर में सर्वहारा वर्ग को उसके गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हुए आज के संघर्षों के लिए तैयार करना और उसे उसके ऐतिहासिक मिशन यानी मज़दूर राज की स्थापना की ओर उन्मुख करना एक अहम कार्यभार है।

देखो देखो!

मजदूर हड़ताल पर बैठे हैं
पर यहाँ एक आश्चर्य की बात है
इसमें न तो कोई हिंदू है
और न ही सिख या मुस्लिम
यहाँ सबका एक ही धर्म है
वो है मेहनतकशों का धर्म
देखो-देखो
मजदूर जाग रहे हैं…