Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

दुनिया के मज़दूर भाई एक हो।

प्यारे साथियो, अब समय आ गया है कि हम कारख़ानों में काम करने वाले ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में कार्य करने वाला मज़दूर, चाहे वह इमारत बनाने वाला हो या फिर कार या मोटर साइकिल – सभी को मिलकर एक साथ पूँजीवाद के खि़लाफ़ आवाज़ उठानी होगी, क्योंकि आजतक मज़दूरों की आवाज़ दबायी जाती थी। लेकिन अब दुनिया के मज़दूर एक हो रहे हैं और एक दिन पूँजीवाद को ख़त्म करके ही रहेंगे। मज़दूर राज क़ायम करके रहेंगे।

An Appeal to all justice-loving citizens and workers

They wish to break the workers through hunger. But these steel workers are holding on; they are fighting even with half-filled stomach to secure their legitimate, legal and constitutional rights. Are they demanding anything unjust? No! They are just demanding their lawful rights and are fighting for them even with half-filled stomach. Many workers’ households have begun to face severe food crisis. In order to tackle this situation the ‘Garam Rolla Mazdoor Ekta Samiti’ is starting a community kitchen from Saturday 21 June onwards. We are determined not to let the strike broken under any circumstance.

सभी इंसाफ़पसन्द नागरिकों और मज़दूरों के नाम एक अपील

वे मज़दूरों को भूख से तोड़ना चाहते हैं। लेकिन ये इस्पात मज़दूर डटे हुए हैं; आधा पेट खाकर भी लड़ रहे हैं, ताकि उनके जायज़, कानूनी और संवैधानिक हक़ उन्हें मिल सकें। क्या वे कुछ ग़लत माँग रहे हैं? नहीं! वे तो बस अपने कानून-प्रदत्त अधिकार माँग रहे हैं और इसके लिए आधे पेट भी लड़ रहे हैं। कई मज़दूरों के घर खाने का भयंकर संकट पैदा हो चुका है। इस समस्या से निपटने के लिए ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ शनिवार (21 जून) से सामुदायिक रसोई की शुरुआत कर रही है। हम किसी भी हालत में हड़ताल को टूटने नहीं देंगे।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नाम मज़दूरों का खुला पत्र

प्रधानमन्त्री पद के लिए आपने जिस संविधान की शपथ ली, उसी संविधान के तहत हम मज़दूरों के लिए 260 श्रम क़ानून बने हुए हैं। लेकिन अफ़सोस की बात है कि आज़ादी के 66 साल बाद भी श्रम क़ानून सिर्फ़ काग़ज़ों की शोभा बढ़ाते हैं, असल में मज़दरों को न तो न्यूनतम मज़दूरी मिलती है न ही पीएफ़, ईएसआई की सुविधा। पूरे देश में ठेका प्रथा लागू करके मज़दूरों को आधुनिक गुलाम बना लिया गया है। इन सारे श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले फ़ैक्टरी मालिक या व्यापारी किसी न किसी चुनावी पार्टी से जुड़े हुए हैं या करोड़ों का चन्दा देते हैं, बाक़ी ख़ुद भाजपा के कई सांसदों, विधायकों, पार्षदों की फ़ैक्टरियाँ हैं जहाँ श्रम क़ानूनों की सरेआम धज्जियाँ उड़ायी जाती हैं। ऐसे में क्या आप या भाजपा इनके खि़लाफ़ मज़दूर हितों के लिए कोई संघर्ष चलाने वाले हैं?

आग उगलती गर्मी में भी श्रीराम पिस्टन के मज़दूरों का संघर्ष जारी!

भिवाड़ी स्थित श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स के मज़दूर पिछले 15 अप्रैल से अपनी लम्बी हड़ताल जारी किये हुए है। लगभग 60 दिनों से आग उगलती गर्मी में मज़दूर पहले 10 दिन फ़ैक्टरी के अन्दर डेरा जमाये हुए थे और फिर 26 अप्रैल को कम्पनी में हुए बर्बर लाठीचार्ज के बाद कम्पनी गेट पर बैठे हुए हैं। ज्ञात हो कि इस दमन की कार्रवाई में राजस्थान पुलिस ने 26 नेतृत्वकारी मज़दूरों को ज़बरदस्ती गिरफ़्तार करके उन पर हत्या के प्रयास व अन्य कई गम्भीर धाराएँ लगी दीं। फिर भी मज़दूरों ने बर्बर दमन के खि़लाफ़ अपना संघर्ष जारी रखा।

एहरेस्टी के मज़दूरों की एकजुटता तोड़ने के लिए बर्बर लाठीचार्ज

मज़दूरों की एकजुटता को तोड़ने और प्लाण्ट ख़ाली करवाने के लिए कम्पनी ने 31 मई को हरियाणा पुलिस से साँठगाँठ कर मज़दूरों पर बर्बर लाठीचार्ज करवाया, जिसमें 30 से ज़्यादा मज़दूरों को गम्भीर चोटें आयी हैं। इस बर्बर दमन ने साफ़ कर दिया है कि चाहे भाजपा की वसुन्धरा सरकार या कांग्रेस की हुड्डा सरकार, वे तो बस पूँजीपतियों के हितों को सुरक्षित करने का काम कर रहे हैं। 

एक मज़दूर की ज़िन्दगी

मैं रामकिशोर (आजमगढ़ यू.पी.) का रहने वाला हूँ। गुड़गाँव की एक फ़ैक्टरी में काम करता हूँ। मुझे मज़दूर बिगुल अख़बार पढ़ना बहुत ज़रूरी लगता है, क्योंकि यह हम मज़दूरों की ज़िन्दगी की सच्चाई बताता है और इस घुटनभरी ज़िन्दगी से लड़ने का तरीक़ा बताता है, और मैं तो अपने बीवी-बच्चों को भी यह अख़बार पढ़कर सुनाता हूँ। मुझे ज़रूरी लगा इसलिए अपनी यह चिट्ठी ‘मज़दूर बिगुल’ कार्यालय में सम्पादक जी को भेज रह हूँ।

दुनियाभर में अमानवीय शोषण-उत्पीड़न के शिकार हैं प्रवासी कामगार

असमान आर्थिक विकास की बदौलत देशों के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र और एक देश से दूसरे देश की तरफ़ (आमतौर पर अविकसित से विकसित की तरफ़) मज़दूरों का प्रवास जारी रहता है। स्थानीय मज़दूरों की संघर्ष की ताक़त अधिक होने के कारण विश्वभर के लुटेरे पूँजीपति स्थानीय की बजाय प्रवासी मज़दूरों को काम पर रखना पसन्द करते हैं। एक तो इन प्रवासी मज़दूरों से कम तनख़्वाह पर काम लिया जाता है, दूसरा स्थानीय और प्रवासी के झगड़े खड़े करके मज़दूरों की एकता की राह में अड़चनें पैदा की जाती हैं।

वज़ीरपुर के गरम रोला के मज़दूरों की जुझारू हड़ताल नौवें दिन भी जारी

मज़दूरों के दबाव के कारण आज श्रम विभाग की तरफ से गरम रोला के सभी 26 कारखानों के मालिकों को गरम रोला मज़दूर एकता समिति के प्रतिनिधिमण्डल के साथ वार्ता के लिए बुलाया गया था, किन्तु कारखाना मालिक तो कोई नहीं पहुँचा लेकिन उन्होंने अपने एक मैनेजर को भेज दिया जिसे श्रम विभाग ने बैरंग लौटा दिया। उन्होनें आगे कहा कि भले ही मालिक आज समझौते की टेबल पर आने के लिए तैयार न हों किन्तु देर-सबेर उन्हें मज़दूरों की जायज कानूनी मांगों को मानना ही पड़ेगा।

गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्‍व में वज़ीरपुर के मज़दूरों की हड़ताल आठवें दिन भी जारी

दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक इलाके के 26 गरम रोला कारखानों के करीब 1600 मज़दूर विगत 6 जून से हड़ताल पर हैं। मज़दूरों की मांग है कि सभी श्रम कानूनों को सख्ती से लागू किया जाये। वज़ीरपुर में स्टील की बहुत बड़ी इण्डस्ट्री है। यहां पर लोहे को पिघलाकर और ढालकर बर्तन और स्टील का अन्य सामान बनाया जाता है। काम करने की परिस्थितियां बेहद अमानवीय हैं। लोहा पिघलाने की भट्ठियों के पास खड़े होकर और स्टील की बेहद धारदार पत्तियों के बीच मज़दूरों को काम करना पड़ता है। मज़दूरों को न तो कोई श्रम कानून नसीब होता है और न ही काम करने की जगह पर सुरक्षा का ही कोई इन्तजाम होता है। ऐसे में मज़दूर अपने श्रम अधिकारों को हासिल करने के लिए गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में हड़ताल पर हैं। यूनियन के अधिकारी रघुराज का कहना है कि पिछले साल 2013 में भी हड़ताल हुई थी जिसमें कुछ चीजें हासिल हुई थी। किन्तु हर साल 1500 रुपये मज़दूरी बढ़ाने और पी एफ , ईएसआई देने से फैक्टरी मालिक मुकर गये। ऐसे में मज़दूरों को फिर से हड़ताल पर उतरना पड़ा।