Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति और बिगुल मज़दूर दस्‍ता के मज़दूर कार्यकर्ताओं पर श्रीराम पिस्‍टन के मालिकान और प्रबंधन के गुण्‍डों का जानलेवा हमला

आज शाम 5 बजे श्रीराम पिस्‍टन के भिवाड़ी के प्‍लाण्‍ट के मज़दूरों के पिछले 20 दिनों से जारी आन्‍दोलन के समर्थन में श्रीराम पिस्‍टन के ग़ाजि़याबाद के प्‍लाण्‍ट के बाहर पर्चा बांटने गये ‘गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति’ और ‘बिगुल मज़दूर दस्‍ता’ की संयुक्‍त टोली पर श्रीराम पिस्‍टन के मालिकान और प्रबंधन के गुंडों ने जानलेवा हमला किया। इस हमले में चार राजनीतिक कार्यकर्ताओं तपीश मैंदोला, आनंद, अखिल और अजय को गम्‍भीर चोटें आयी हैं।

श्रीराम पिस्टन (भिवाड़ी) के मज़दूरों का संघर्ष जि़न्दाबाद!

श्रीराम पिस्टन फैक्ट्री की यह घटना न सिर्फ हीरो होण्डा, मारुति सुजुकी और ओरिएण्ट क्राफ्ट के मज़दूर संघर्षों की अगली कड़ी है, बल्कि पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल-भिवाड़ी की विशाल औद्योगिक पट्टी में मज़दूर आबादी के भीतर, और विशेषकर आटोमोबील सेक्टर के मज़दूरों के भीतर सुलग रहे गहरे असन्तोष का एक विस्फोट मात्र है। यह आग तो सतह के नीचे पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक इलाकों में धधक रही है, जिसमें दिल्ली के भीतर के औद्योगिक क्षेत्रों के अतिरिक्त नोएडा, ग्रेटर नोएडा, साहिबाबाद, गुड़गाँव, फरीदाबाद और सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र भी आते हैं।

किस आम आदमी की दुहाई दे रही हैं राजनीतिक पार्टियाँ!

आज की सुखि़र्यों में एक ऐसी चीज़ ख़ास बनी हुई है, जो आज तक कभी ख़ास नहीं हुई। वो ख़ास चीज़ है ‘आम आदमी’। भाजपा से लेकर कांग्रेस तक, सारी राजनीतिक पार्टियाँ आम आदमी की बात करने में लगी हुई हैं। पर सवाल यह उठता है कि यह ‘आम आदमी’ आखि़र है कौन? यह सबसे बड़ा सवाल है। चुनावबाज़ पार्टियाँ किसे आम आदमी कहती हैं और किस आम आदमी के स्वराज की बात करती हैं? चलिये इसकी जाँच-पड़ताल करते हैं।

करावल नगर मज़दूर यूनियन ने दो दिवसीय मेडिकल कैम्प अयोजित किया।

करावल नगर मज़दूर यूनियन द्वारा आयोजित कैम्प का मक़सद झोला-छापा डॉक्टर व मुनाफ़े का धन्धा चलाने वाले डॉक्टरों के बरक्स जनता की पहलक़दमी पर जन-स्वास्थ्य सेवा को खड़ा करना है। यूनियन के नवीन ने बताया कि असल में स्वास्थ्य-शिक्षा-आवास-रोज़गार सरकार की बुनियादी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए, लेकिन मुनाफ़े और लूट पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था में ये भी एक बाज़ारू माल बना दिया जाता है और पूँजीपति इसे बेचकर मुनाफ़ा पीटता है। इसलिए मज़दूरों को अपनी लड़ाई सिर्फ़ वेतन-भत्ते तक नहीं लड़नी है, बल्कि स्वास्थ्य-शिक्षा-आवास जैसे मुद्दे को भी अपनी लड़ाई में शामिल करना होगा।

ओरियण्ट क्राफ़्ट में फिर मज़दूर की मौत और पुलिस दमन

गुड़गाँव स्थित विभिन्न कारख़ानों में आये दिन मज़दूरों के साथ कोई न कोई हादसा होता रहता है। परन्तु ज़्यादातर मामलों में प्रबन्धन-प्रशासन मिलकर इन घटनाओं को दबा देते हैं। मौत और मायूसी के इन कारख़ानों में मज़दूर किन हालात में काम करने को मजबूर हैं, उसका अन्दाज़ा उद्योग विहार इलाक़े में ओरियण्ट क्राफ़्ट कम्पनी में हुई हाल की घटना से लगाया जा सकता है। 28 मार्च को कम्पनी में सिलाई मशीन में करण्ट आने से एक मज़दूर की मौत हो गयी और चार अन्य मज़दूर बुरी तरह घायल हो गये। ज़्यादातर मज़दूरों का कहना था कि घायल लोगों में से एक महिला की भी बाद में मौत हो गयी। लेकिन इस तथ्य को सामने नहीं आने दिया गया।

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न इलाक़ों में चुनावी राजनीति का भण्डाफोड़ अभियान

अभियान के दौरान कार्यकर्ताओं की टोलियाँ पिछले 62 वर्ष से जारी चुनावी तमाशे का पर्दाफ़ाश करते हुए बड़े पैमाने पर बाँटे जा रहे विभिन्न पर्चों, नुक्कड़ सभाओं, कार्टूनों और पोस्टरों की प्रदर्शनियों तथा नुक्कड़ नाटकों के ज़रिये लोगों को बता रही हैं कि दुनिया के सबसे अधिक कुपोषितों, अशिक्षितों व बेरोज़गारों वाले हमारे देश में कुपोषण, बेरोज़गारी, महँगाई, मज़दूरों का भयंकर शोषण या भुखमरी कोई मुद्दा ही नहीं है! आज विश्व पूँजीवादी व्यवस्था गहराते आर्थिक संकट तले कराह रही है। ऐसे में किसी पार्टी के पास जनता को लुभाने के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं है। सब जानते हैं कि सत्ता में आने के बाद उन्हें जनता को बुरी तरह निचोड़कर अपने देशी-विदेशी पूँजीपति आकाओं के संकट को हल करने में अपनी सेवा देनी है। सभी पार्टियों में अपने आपको पूँजीपतियों का सबसे वफ़ादार सेवक साबित करने की होड़ मची हुई है।

सी.सी. टीवी से मज़दूरों पर निगरानी

फैक्ट्री में ईवा कम्पनी का चप्पल एवं जूता बनता है, जिसमें काफी प्रदूषण होता है, जिससे मज़दूर टीबी एवं दमा के शिकार हो जातेे हैं। 2007 में एक मज़दूर का हाथ कट गया था, उस मज़दूर का ई.एस.आई. लगवाकर छोड़ दिया गया और काम से भी निकाल दिया गया। फैक्ट्री में इतनी कड़ाई है कि एक लेबर दूसरे से बात नहीं कर सकता है। फैक्ट्री में तो मालिक ने सीसीटीवी भी लगा रखा है जिससे वह मज़दूरों पर हर समय नज़र रखता है। ऐसा लगता है कि हम एक कैदखाने में काम करते हैं, ज़रा नज़रें उठायीं तो गाली-गलौज सुनो!

मैट्रिक्स क्लोथिंग, गुड़गाँव में मजदूरों के हालात!

कहने को इस कम्पनी मे जगह-जगह बोर्ड लगे हुए हैं। जो कि मज़दूरों को उनके श्रम कानूनों, उनके यूनियन बनाने के अधिकार से परचित कराते रहते हैं। मगर सारे श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ती रहती हैं। और रही बात यूनियन बनाने की तो ब्रम्हा जी भी वहाँ यूनियन नहीं बना सकते। श्रम कानूनों मे से एक श्रम कानून का बोर्ड हमको यह बताता है। कि आपसे (किसी भी वर्कर से) एक हफ्ते मे 60 घण्टे से ज्यादा कोई काम नहीं ले सकता और ओवरटाइम का दोगुने रेट से भुगतान होगा। इसके उलट व्यवहार मे कम्पनी का नियम यह है कि ओवरटाइम लगाने से कोई मना नहीं कर सकता अगर सण्डे को कम्पनी खुली है तो भी आना पड़ेगा। कम्पनी की इसी मनमानी के चलते अधिकतर मज़दूर काम छोड़ते रहते हैं। और जो नही छोड़ते वो बीमार होकर मजबूरी मे गाँव की राह देखते हैं (सितम्बर 2013 मे 3 मज़दूरों ने छाती दर्द) की वजह से गाँव जाने की छुट्टी ली। अक्टूबर मे 5 नए मज़दूरों ने काम छोड़ दिया। उनकी तबीयत नहीं साथ दे रही थी। जिसमे एक को तो टायफाइड हो गया और एक यह बता रहा था। कि फैक्ट्री के अन्दर जाते हैं तो चक्कर सा आने लगता है व उल्टी सी होने लगती है। खैर ये आँकड़े तो आँखों देखे व कानों सुने हैं, असल हकीकत तो इससे भी भयंकर है ।

आपस की बात

‘‘पार्टी आप’’ ‘‘पार्टी आप’’
डाल माल प्रवचन सुनाये
गाल बजाये तोंद फुलाये
बुद्धि के ठेकेदार
ढंग कुढंगी बेढब संगी
चोली दामन का साथ।
जेपी लोहिया की कब्र उखाड़
टेम्प्रेचर का लेकर नाप
क्रान्ति होगी मोमबत्ती छाप

हमें मज़दूर बिगुल क्यों पढ़ना चाहिए?

आज भारत की 88 प्रतिशत मेहनतकश आबादी जो हर चीज अपनी मेहनत से पैदा करती है जिसके दम पर यह सारी शानौ-शौकत है वो खुद जानवरों सी जिन्‍दगी जीने को मजबूर है। आये दिन कारखानों में मज़दूरों के साथ दुर्घटनाएँ होती रहती हैं और कई बार तो इन हादसों में मज़दूरों को अपनी जान तक गँवानी पड़ी है, पर किसी भी दैनिक अखबार में इन हादसों को लेकर कोई भी खबर नही छपती है। अगर कोई इक्का-दुक्का अखबार इन खबरों को छाप भी दे तो वह भी इसे महज एक हादसा बता अपना पल्ला झाड़ लेता है जबकि यह कोई हादसे नहीं है बल्कि मालिकों द्वारा ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफा कमाने की हवस मे मज़दूरों की लगातार की जा रही निर्मम हत्याएँ हैं। दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और इन जैसे ही अन्य अखबार कभी भी मज़दूरों कि माँगों और उनके मुद्दों से संबंधित ख़बरें नही छापेंगे क्योंकि यह सब पूँजीपतियों के पैसे से निकलने वाले अखबार है और यह हमेशा मालिकों का ही पक्ष लेगे। मज़दूरों की माँगो, मुद्दों और उनके संघर्षों से जुड़ी ख़बरे तो एक क्रान्तिकारी मज़दूर अखबार में ही छप सकती हैं और ऐसा ही प्रयास मज़दूर बिगुल का भी है जो मज़दूरों के लिए मज़दूरों के अपने पैसे से निकलने वाला हमारा अपना अखबार है, जिसका मुख्य उद्देश्य मज़दूरों के बीच क्रान्तिकारी प्रचार प्रसार करते हुए उन्हे संगठित करना है।