Category Archives: श्रम क़ानून

Wide spread National protest demonstration by the workers of India against the Modi Government move to amend the existing Labour laws.

Bigul Mazdoor Dasta,other labour organizations and labour unions from across the country marched from Jantar mantar to Parliament street as a part of the protest demonstration against the Modi government’s move to amend the labour laws on 20.08.2014 and burnt an effigy of the Prime Minister.

बांगलादेश के गारमेण्ट मज़दूरों का जुझारू संघर्ष

बांगलादेशी मज़दूरों का भयंकर शोषण और उत्पीड़न जारी है। अपने वेतन के लिए तीन माह से संघर्ष कर रहे मज़दूरों को न भूख की परवाह है न ही पुलिस दमन की। पर्याप्त भोजन नहीं मिलने के कारण बहुत से मज़दूर कमजोर हो गए हैं, कई ने बिस्तर पकड़ लिया है और तमाम अस्पताल में भर्ती हैं लेकिन आन्दोलन का जोश बरकरार है। पिछले दो सप्ताह के दौरान हड़ताल के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस, सरकार और मालिकों के गुण्डों ने कई बार हमले किए और कुछ ही दिन पहले कब्जा की गयी फैक्ट्रियों में जबरन घुसकर यूनियन पदाधिकारियों को बेरहमी से पिटाई के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया। तुबा समूह के हड़ताली मज़दूरों का भयंकर उत्पीड़न और फैक्ट्री मालिकों और सरकार की बेरुखी के कारण स्थिति भयानक होती जा रही है। मज़दूर पिछले दो सप्ताह से भूख हड़ताल पर हैं। तुबा समूह का मालिक वही शख्स है जो ताजरीन फैक्ट्री का मालिक रह चुका है। ताजरीन फैक्ट्री में अग्निकांड के एक साल बाद फैक्ट्री मालिक की गिरफ्तारी हुई थी और अब उसने हड़ताल का फायदा उठाकर जमानत भी प्राप्त कर ली है।

मोदी सरकार का मज़दूरों के अधिकारों पर ख़तरनाक हमला

अगर देश का मज़दूर अपने ऊपर किये जा रहे इन हमलों का पुरज़ोर विरोध नहीं करता तो आने वाले समय में मज़दूरों से बंधुआ गुलामी करवाने के लिए मालिक वर्ग पूरी तरह आज़ाद हो जायेगा। श्रम कानूनों पर इन हमलों के ख़ि‍लाफ़ हम चुनावी पार्टियों की ट्रेड यूनियनों पर भरोसा नहीं कर सकते जो मोदी सरकार के तलवे चाटने का तैयार बैठी हैं। हमें स्वयं अपनी क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियनों व मज़दूर संगठनों के ज़रिये इन हमलों का जवाब देना होगा। इसीलिए हम सभी मज़दूर भाइयों और बहनों को ललकारते हैं कि 20 अगस्त को मोदी सरकार के मज़दूर-विरोधी कदमों का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए बड़ी से बड़ी संख्या में जन्तर-मन्तर पहुँचे।

मोदी सरकार का एजेण्डा नम्बर 1 – रहे-सहे श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाना

मोदी सरकार के 100 दिन के एजेण्डे में श्रम क़ानूनों में बदलाव को पहली प्राथमिकताओं में से एक बताया जा रहा है। पूँजीपतियों की तमाम संस्थाएँ और भाड़े के बुर्जुआ अर्थशास्त्री उछल-उछलकर सरकार के इन प्रस्तावित क़दमों का स्वागत कर रहे हैं और कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में जोश भरने और रोज़गार पैदा करने का यही रास्ता है। कहा जा रहा है कि आज़ादी के तुरन्त बाद बनाये गये श्रम क़ानून विकास के रास्ते में बाधा हैं, इसलिए इन्हें कचरे की पेटी में फेंक देना चाहिए और श्रम बाज़ारों को “मुक्त” कर देना चाहिए। विश्व बैंक ने भी 2014 की एक रिपोर्ट में कह दिया है कि भारत में दुनिया के सबसे कठोर श्रम क़ानून हैं जिनके कारण यहाँ पर उद्योग-व्यापार की तरक्की नहीं हो पा रही है। पूँजीपतियों के नेता बड़ी उम्मीद से कह रहे हैं कि निजी उद्यम को बढ़ावा देने और सरकार का हस्तक्षेप कम से कम करने के पक्षधर नरेन्द्र मोदी इंग्लैण्ड की प्रधानमन्त्री मार्गरेट थैचर या पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की तर्ज पर भारत में उदारीकरण को आगे बढ़ायेंगे। इनका कहना है कि सबसे ज़रूरी उन क़ानूनों में बदलाव लाना है जिनके कारण मज़दूरों की छुट्टी करना कठिन होता है।

पूँजीपतियों को श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाने की और भी बड़े स्तर पर खुली छूट

पूँजीवादी लेखकों से इसके पक्ष में लेख लिखवाकर श्रम अधिकारों को क़ानूनी तौर पर ख़त्म करने का माहौल बनाया जा रहा है। इसका एक उदाहरण है झुनझुनवाला का 8-7-14 को दैनिक जागरण में छपा लेख। वह लिखता है कि श्रम क़ानूनों का ढीला करने से रोज़गार बढ़ेंगे, मज़दूरों का भला होगा। वह कहता है कि मनरेगा योजना भी ख़त्म कर दी जानी चाहिए और इस पर सरकार के सालाना ख़र्च होने वाले चालीस करोड़ रुपये पूँजीपतियों को सब्सिडी के रूप में देने चाहिए। उसके हिसाब से इस तरीके से रोज़गार बढ़ेगा। वह मोदी सरकार को कहता है कि राजस्थान की तरज पर तेज़ी से श्रम क़ानूनों में बदलाव किया जाये। झुनझुनवाला की ये बातें पूरी तरह मुनाफ़ाख़ोरों का हित साधने के लिए हैं। मज़दूर हित की बातें तो महज़ दिखावा है।

गरम रोला कारखाने के मज़दूरों का जन्तर-मन्तर पर विशाल प्रदर्शन

आज वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के गरम रोला कारखाने के मज़दूरों ने जन्तर-मन्तर पर विशाल प्रदर्शन किया। जन्तर-मन्तर से संसद मार्ग तक 500 की संख्या में मज़दूरों ने रैली निकाली और श्रम मंत्रालय तथा प्रधानमंत्री कार्यालय को अपना ज्ञापन सौंपा। ज्ञात हो कि पिछले बीस दिनों से गरम रोला कारखाने के मज़दूर गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में अपनी माँगों को लेकर हड़ताल पर हैं। गरम रोला एकता समिति के रघुराज ने बताया कि वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में सरेआम श्रम कानूनों का उल्लंघन होता है। लेबर कोर्ट पास में ही नीमड़ी काॅलोनी में है लेकिन ठीक उनकी नाक के नीचे मज़दूरों का शोषण बदस्तूर जारी है। इसलिए मज़दूर इन कारखानों में श्रम कानूनों को लागू करवाने की अपनी माँग को लेकर हड़ताल पर हैं। वजीरपुर का यह वही औद्योगिक क्षेत्र है जहाँ लोहे को पिघला कर स्टेनलेस स्टील बनायी जाती है। बेहद खतरनाक और जोखिम भरे माहौल में मज़दूरों को बारह से चौदह घण्टे खटना पड़ता है। यहाँ न तो कोई न्यूनतम मज़दूरी दी जाती है और न ही किसी तरह की कोई सुरक्षा है। आए दिन दुर्घटनायें होती रहती हैं।

वज़ीरपुर स्टील उद्योग के गरम रोला के मज़दूर फि़र से जुझारू संघर्ष की राह पर

इस हड़ताल का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि 26 फ़ैक्टरियों के मज़दूरों ने हर कारख़ाने की कमेटी बनाकर इस हड़ताल का संचालन किया, जो ट्रेडयूनियन जनवाद की मिसाल है। यह हमारी इस लड़ाई का सकारात्मक पहलू है। अब गरम रोला मज़दूरों को इन सकारात्मक अनुभवों को आगे बढ़ाते हुए क्या करना होगा? बिगुल मज़दूर दस्ता का यह मानना है कि गरम रोला मज़दूर एकता समिति को अपने संघर्ष को गरम रोला के साथ ही स्टील लाइन से जुड़े तमाम अन्य पेशों जैसे ठण्डा रोला, सर्किल, तेज़ाब, तैयारी, फुडाई और पैकिंग व वज़ीरपुर इलाक़े की सभी फ़ैक्टरियों के मज़दूरों के साथ जोड़ना होगा। 700 कारख़ानों में मज़दूरों की ज़्यादातर माँगें समान हैं। वज़ीरपुर इलाक़े के मज़दूर उधम सिंह पार्क, शालीमार बाग़ व सुखदेव नगर की झोपड़पट्टियों में रहते हैं और यहाँ मज़दूरों की आवास, पानी व अन्य साझा माँगें भी बनती हैं। इसलिए गरम रोला के संघर्ष को और भी जीवन्त तरीक़े से अन्य पेशों के मज़दूरों के साथ जोड़ने की ज़रूरत है।

मज़दूरों के लिए “अच्छे दिन” शुरू, भाजपा द्वारा श्रमिकों के अधिकारों पर पहला हमला

पूँजीपतियों की लगातार कम होती मुनाफ़े की दर और ऊपर से आर्थिक संकट तथा मज़दूर वर्ग में बढ़ रहे बग़ावती सुर से निपटने के लिए पूँजीपतियों के पास आखि़री हथियार फासीवाद होता है। भारत के पूँजीपति वर्ग के भी अपने इस हथियार को आज़माने के दिन आ गये हैं। फासीवादी सत्ता में आते तो मोटे तौर पर मध्यवर्ग (तथा कुछ हद तक मज़दूर वर्ग भी) के वोट के बूते पर हैं, लेकिन सत्ता में आते ही वह अपने मालिक बड़े पूँजीपतियों की सेवा में सरेआम जुट जाते हैं। राजस्थान सरकार के ताज़ा संशोधन इसी का हिस्सा हैं।

बैक्सटर मेडिसिन कम्पनी में यूनियन बनाने के लिए मज़दूरों का संघर्ष!

गुड़गाँव के आईएमटी मानसेर में दवा कम्पनी बैक्सटर मेडिसिन ने 27 मई 2014 को बिना किसी पूर्व सूचना के ‘ए’ शिफ्ट में ड्यूटी पर आये मज़दूरों में से 17 नेतृत्वकारी मज़दूरों को निलम्बन का पत्र पकड़ा दिया। कम्पनी की तानाशाही के खि़लाफ़ मज़दूरों ने संघर्ष का रास्ता चुना और अपने बाहर निकाले गये साथियों की बहाली के लिए एकजुट होकर प्रशासन के दरवाज़े पर दस्तक दी।

एहरेस्टी के मज़दूरों की एकजुटता तोड़ने के लिए बर्बर लाठीचार्ज

मज़दूरों की एकजुटता को तोड़ने और प्लाण्ट ख़ाली करवाने के लिए कम्पनी ने 31 मई को हरियाणा पुलिस से साँठगाँठ कर मज़दूरों पर बर्बर लाठीचार्ज करवाया, जिसमें 30 से ज़्यादा मज़दूरों को गम्भीर चोटें आयी हैं। इस बर्बर दमन ने साफ़ कर दिया है कि चाहे भाजपा की वसुन्धरा सरकार या कांग्रेस की हुड्डा सरकार, वे तो बस पूँजीपतियों के हितों को सुरक्षित करने का काम कर रहे हैं।