Category Archives: श्रम क़ानून

Warm Welcome for the Injured Worker Activists by Struggling Workers of Shriram Piston, Bhiwadi

If the millions of automobile workers of NCR region unite themselves in one powerful indpendent sectoral union, the money power and muslce power of the servants of capitalists will be useless and ineffective. The company management and owners as well as the governments are afraid of this very possibility and that is why they are cowardly attacking us. Ajay said that ‘Gurgaon Mazdoor Sangharsh Samiti’ has been participating in this movement and will continue to do so. Ajay said, “We will take legal action against the Shriram Piston management, goons and bouncers who attacked us and also the Ghaziabad Police which colluded with the factory management. This attack is an attack on the movement of struggling workers of Bhiwadi and workers will give a fitting reply to it. If need comes we will organize a demonstration at the central office of Shriram Piston in New Delhi.”

भिवाड़ी के संघर्षरत मज़दूर साथियों ने किया घायल मज़दूर कार्यकर्ताओं का गर्मजोशी भरा स्‍वागत

अगर राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लाखों ऑटोमोबाइल मज़दूर एकजुट हो जायें तो यह पैसे और बाहुबल की ताक़त भी धूल चाटने लगेगी। 26 अप्रैल और 5 मई का हमला दिखलाता है कि मालिकान और उनके तलवे चाटने वाली सरकारें इसी बात से डरती हैं। अजय ने कहा कि ‘गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति’ श्रीराम पिस्‍टन भिवाड़ी के मज़दूरों के संघर्ष में शामिल है और रहेगी और इस आंदोलन के पक्ष में पूरे राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पर्चा वितरण करेगी। जरूरत पड़ी तो श्रीराम पिस्‍टन के केंद्रीय कार्यालय का घेराव भी किया जायेगा जो कि नयी दिल्‍ली में है। साथ ही, इस हमले के विरोध में श्रीराम पिस्‍टन के मालिकों, प्रबंधन, गुण्‍डों और साथ ही गाजियाबाद पुलिस के विरुद्ध मुकदमा किया जायेगा। यह हमला भिवाड़ी के मज़दूरों के आंदोलन पर हमला है और इसका मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा।

श्रीराम पिस्टन (भिवाड़ी) के मज़दूरों का संघर्ष जि़न्दाबाद!

श्रीराम पिस्टन फैक्ट्री की यह घटना न सिर्फ हीरो होण्डा, मारुति सुजुकी और ओरिएण्ट क्राफ्ट के मज़दूर संघर्षों की अगली कड़ी है, बल्कि पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल-भिवाड़ी की विशाल औद्योगिक पट्टी में मज़दूर आबादी के भीतर, और विशेषकर आटोमोबील सेक्टर के मज़दूरों के भीतर सुलग रहे गहरे असन्तोष का एक विस्फोट मात्र है। यह आग तो सतह के नीचे पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक इलाकों में धधक रही है, जिसमें दिल्ली के भीतर के औद्योगिक क्षेत्रों के अतिरिक्त नोएडा, ग्रेटर नोएडा, साहिबाबाद, गुड़गाँव, फरीदाबाद और सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र भी आते हैं।

मालिकों के मुनाफ़े की हवस में अपाहिज हो रहे हैं मज़दूर

ये कुछ ऐसी घटनाएँ हैं जो सामने आ गयी हैं। लेकिन अक्सर ही फ़ैक्टरियों में हादसे होते हैं, मौतों के अलावा अंग कटने की घटनाएँ आम घटती हैं। लेकिन किसी अख़बार या टी.वी. चैनल की सुर्खी नहीं बनती। यहाँ का श्रम विभाग और ई.एस.आई. विभाग अपाहिज, लाचार, मज़दूरों की सुनवाई करके ज़ख़्मों पर मरहम लगाने की जगह उनको चक्कर लगवा-लगवाकर दुखी कर देता है। ऐसा क्यों है? क्योंकि इनकी कोई जवाबदेही नहीं। मज़दूरों में संगठन की कमी है और फ़ैक्टरी मालिक ऊपर तक पहुँच वाले हैं।

कम्बोडिया में मज़दूर संघर्षों का तेज़ होता सिलसिला

कम्बोडिया का यह मज़दूर उभार उस समय आया है जब विश्व पूँजीवाद भीषण आर्थिक मन्दी का शिकार है। मज़दूरों-मेहनतकशों के श्रम को किसी न किसी तरीक़े से अधिक से अधिक निचोड़कर मन्दी से छुटकारा हासिल करने की कोशिशें हो रही हैं। तेज़ी से बढ़ती महँगाई, महँगाई के मुकाबले मज़दूरी का बहुत कम बढ़ना, यहाँ तक कि वेतनों-भत्तों में कटौती होना, सरकार की तरफ़ से मिलने वाली सहूलियतों पर कटौती आदि विश्व पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में छाई मन्दी का ही नतीजा हैं। लेकिन जैसे-जैसे मज़दूरों-मेहनतकशों पर मन्दी का बोझ बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे जनाक्रोश भी बढ़ता जा रहा है। दुनिया के हर हिस्से में मज़दूरों-मेहनतकशों के आन्दोलन बढ़ते जा रहे हैं। कम्बोडिया के मज़दूर आन्दोलन का उभार विश्व मज़दूर आन्दोलन की एक नयी प्राप्ति है। यह साफ़ है कि नारकीय जीवन जैसे हालात में धकेल देने वाले पूँजीपति हुक़मरानों को मज़दूर वर्ग चैन की नींद नहीं लेने देगा।

ओरियण्ट क्राफ़्ट में फिर मज़दूर की मौत और पुलिस दमन

गुड़गाँव स्थित विभिन्न कारख़ानों में आये दिन मज़दूरों के साथ कोई न कोई हादसा होता रहता है। परन्तु ज़्यादातर मामलों में प्रबन्धन-प्रशासन मिलकर इन घटनाओं को दबा देते हैं। मौत और मायूसी के इन कारख़ानों में मज़दूर किन हालात में काम करने को मजबूर हैं, उसका अन्दाज़ा उद्योग विहार इलाक़े में ओरियण्ट क्राफ़्ट कम्पनी में हुई हाल की घटना से लगाया जा सकता है। 28 मार्च को कम्पनी में सिलाई मशीन में करण्ट आने से एक मज़दूर की मौत हो गयी और चार अन्य मज़दूर बुरी तरह घायल हो गये। ज़्यादातर मज़दूरों का कहना था कि घायल लोगों में से एक महिला की भी बाद में मौत हो गयी। लेकिन इस तथ्य को सामने नहीं आने दिया गया।

क्या ‘आम आदमी’ पार्टी से मज़दूरों को कुछ मिलेगा ?

17 फरवरी को भारतीय पूंजीपतियों के राष्ट्रीय संगठन सी.आई.आई. की मीटिंग में केजरीवाल ने असल बात कह ही दी। उसने कहा कि उसकी पार्टी पूंजीपतियों को बिजनेस करने के लिए बेहतर माहौल बनाकर देगी। विभिन्न विभागों के इंस्पेक्टरों द्वारा चेकिंग करके मालिकों को तंग किया जा रहा है, यह इंस्पेक्टर राज खत्म कर दिया जाएगा। उसने तो यह भी कहा कि पूंजीपति तो 24-24 घंटे सख्त मेहनत करते हैं और ईमानदार हैं, लेकिन भ्रष्ट अधिकारी और नेता उन्हें तंग-परेशान करते हैं। पूंजीपतियों की ईमानदारी के बारे में तो सभी मजदूर जानते ही हैं कि वे कितनी ईमानदारी के साथ मजदूरों को तनख्वाहें और पीसरेट देते हैं और कितने श्रम कानून लागू करते हैं। बाकी रही बात श्रम विभाग, इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स आदि विभागों द्वारा चेकिंग की, तो अगर कोई चोर नहीं है, तो उसे अपने हिसाब-किताब की जांच करवाने में क्या आपत्ति है। रोजाना अखबारों में खबरें छपती हैं कि पूंजीपति बिना बिल के सामान बेचते हैं और टैक्स चोरी करके सरकारी खजाने को चूना लगाते हैं। कारखानों द्वारा बिजली चोरी की खबरें भी अखबारों में पढ़ने को मिलती हैं। सोचा जा सकता है कि केजरीवाल के ”ईमानदार” पूंजीपति कितने पाक-साफ हैं। उसने यह भी कहा कि सरकार का काम सिर्फ व्यवस्था देखना है, बिजनेस करना तो पूंजीपतियों का काम होना चाहिए यानी रेलें, बसें, स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी आदि से संबंधित सारे सरकारी विभाग पूंजीपतियों के हाथों में होने चाहिए। जैसाकि अब हो भी रहा है, जिन विभागों में पूंजीपतियों ने हाथ डाला है, ठेके पर भर्ती करके मजदूरों की मेहनत को लूटा है और कीमतें बढ़ाकर आम जनता की जेबों पर डाके ही डाले हैं। तेल-गैस और बिजली के दाम बढ़ना इसी के उदाहरण हैं।

मैट्रिक्स क्लोथिंग, गुड़गाँव में मजदूरों के हालात!

कहने को इस कम्पनी मे जगह-जगह बोर्ड लगे हुए हैं। जो कि मज़दूरों को उनके श्रम कानूनों, उनके यूनियन बनाने के अधिकार से परचित कराते रहते हैं। मगर सारे श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ती रहती हैं। और रही बात यूनियन बनाने की तो ब्रम्हा जी भी वहाँ यूनियन नहीं बना सकते। श्रम कानूनों मे से एक श्रम कानून का बोर्ड हमको यह बताता है। कि आपसे (किसी भी वर्कर से) एक हफ्ते मे 60 घण्टे से ज्यादा कोई काम नहीं ले सकता और ओवरटाइम का दोगुने रेट से भुगतान होगा। इसके उलट व्यवहार मे कम्पनी का नियम यह है कि ओवरटाइम लगाने से कोई मना नहीं कर सकता अगर सण्डे को कम्पनी खुली है तो भी आना पड़ेगा। कम्पनी की इसी मनमानी के चलते अधिकतर मज़दूर काम छोड़ते रहते हैं। और जो नही छोड़ते वो बीमार होकर मजबूरी मे गाँव की राह देखते हैं (सितम्बर 2013 मे 3 मज़दूरों ने छाती दर्द) की वजह से गाँव जाने की छुट्टी ली। अक्टूबर मे 5 नए मज़दूरों ने काम छोड़ दिया। उनकी तबीयत नहीं साथ दे रही थी। जिसमे एक को तो टायफाइड हो गया और एक यह बता रहा था। कि फैक्ट्री के अन्दर जाते हैं तो चक्कर सा आने लगता है व उल्टी सी होने लगती है। खैर ये आँकड़े तो आँखों देखे व कानों सुने हैं, असल हकीकत तो इससे भी भयंकर है ।

ठेका प्रथा उन्मूलन के वायदे से मुकरी केजरीवाल सरकार!

क्या कारण है कि पूरी दिल्ली के सभी औद्योगिक क्षेत्रों में मालिकों और ठेकेदारों के संघ आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल को खुला समर्थन दे रहे हैं? क्या मज़दूरों का शोषण करने वाली ताक़तें, श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले लुटेरे अचानक सदाचारी और सन्त पुरुष हो गये हैं? जी नहीं साथियो! वास्तव में, अरविन्द केजरीवाल अन्दर ही अन्दर इन्हीं पूँजीपतियों और ठेकेदारों के हितों में काम कर रहा है। केजरीवाल जिस भ्रष्टाचार को दूर करने की बात कर रहा है उससे मालिकों और ठेकेदारों को ही फायदा होगा! वह यह चाहता है कि ठेकेदारों-मालिकों को अपने मुनाफ़े का जो हिस्सा घूस-रिश्वत के तौर पर नौकरशाहों, इंस्पेक्टरों, श्रम विभाग अधिकारियों को देना पड़ता है, वह न देना पड़े! इससे मालिकों के वर्ग का ही लाभ होगा। लेकिन जिस भ्रष्टाचार से मज़दूर पीड़ित है, उसके बारे में केजरीवाल और उसकी आम आदमी पार्टी की सरकार चुप है। और श्रम मन्त्री गिरीश सोनी ने साफ़ तौर पर बोल भी दिया कि केजरीवाल सरकार को ठेकेदारों और मालिकों के हितों की सेवा करनी है, मज़दूरों के लिए ठेका उन्मूलन क़ानून पास करने से उसने सीधे इंकार कर दिया। यानी ठेका उन्मूलन के वायदे से केजरीवाल सरकार खुलेआम मुकर गयी!

मेहनतकश जन जागो! अपना हक लड़कर माँगो!!

‘गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति’ का मानना है कि आज हमें एक ओर सेक्टरगत यूनियनें (जैसे कि समस्त ऑटोमोबाइल मज़दूरों की एक यूनियन, समस्त टेक्सटाइल मज़दूरों की एक यूनियन, आदि) बनानी होंगी जो कि समूचे सेक्टर के मज़दूरों को एक साझे माँगपत्रक पर संगठित करें। वहीं हमें समूचे गुड़गाँव-मानेसर के इलाके में मज़दूरों की एक इलाकाई मज़दूर यूनियन भी बनानी होगी, जो कि इस इलाके में रहने वाले सभी मज़दूरों की एकता कायम करती हो, चाहे वे किसी भी सेक्टर में काम करते हों। ऐसी यूनियन कारखानों के संघर्षों में सहायता करने के अलावा, रिहायश की जगह पर मज़दूरों के नागरिक अधिकारों जैसे कि शिक्षा, पेयजल, चिकित्सा आदि के मुद्दों पर भी संघर्ष करेगी। जब तक सेक्टरगत और इलाकाई आधार पर मज़दूरों के ऐसे व्यापक और विशाल संगठन नहीं तैयार होंगे, तब तक उस नग्न तानाशाही का मुकाबला नहीं किया जा सकता है, जोकि हरियाणा में मज़दूरों के ऊपर थोप दी गयी है।