मज़दूरों में मालिक-भक्ति की बीमारी

राहुल, लुधियाना से एक मज़दूर।

इस बार शिवरात्रि वाली रात लुधियाना में एक बेहद दर्दनाक घटना घटी। यहाँ का एक कारखाना मालिक हर वर्ष शिवरात्रि वाले दिन ”मज़दूरों के लिए” कोई न कोई कार्यक्रम करवाता है और भण्डारा लगवाता है। इस बार भी उसने ऐसा ही कार्यक्रम रखा था जिसमें उसने भोजपुरी गायक घसारी लाल को बुलाया हुआ था। अधिक भीड़ होने के कारण दुर्घटना हो गयी और करण्ट लगने के कारण तीन आदमियों की मौत हो गयी। घटना के बाद काफी मज़दूरों में कारखाना मालिक के प्रति फिक्रमन्दी छाई हुई थी, किसी को डर था कि मालिक के विरोधी उसे किसी न किसी ढंग से पुलिस केस में उलझायेंगे। किसी-किसी को उसके साथ हमदर्दी हो रही थी कि इतने अच्छे मालिक, जो मज़दूरों का इतना खयाल रखता है, के साथ भगवान ने बुरा किया है। किसी को लग रहा था कि मालिक पर जरूर किसी विरोधी ने कोई जादू-टोना करवाया है। मज़दूरों में मालिकों की भक्ति भावना का यह सिर्फ़ एक उदाहरण है। बहुत सारे मज़दूर हैं जो अक्सर अपने मालिक की प्रशंसा करते हुए नहीं थकते। मैं सोचता हूँ कि क्या कोई मालिक मज़दूरों का खयाल रख सकता है? क्या सच में मालिक मज़दूर के लिए अच्छा आदमी हो सकता है?

अब उपरोक्त घटना को ही लीजिये। अगर यह मालिक मज़दूरों का इतना ही खयाल रखता तो वह मज़दूरों को अच्छा वेतन क्यों नहीं देता? क्या उसे नहीं पता कि मज़दूर मुर्गीखानों जैसे बेहड़ों में बेहद भयंकर स्थिति में रहते हैं? क्या उसे नहीं पता कि आज के महँगाई के समय में मज़दूर अपना और अपने परिवार का पेट कम वेतन में कैसे भरता होगा? दूसरी बात, यह मालिक शिवरात्रि वाले दिन ही मज़दूरों का खयाल क्यों रखता है जबकि मज़दूरों के त्यौहार तो मई दिवस, भगतसिंह और उनके साथियों के शहीदी दिन, महान अक्टूबर क्रान्ति की वर्षगाँठ आदि हैं। ये मालिक उन दिनों के बारे में कोई जानकारी क्यों नहीं देता? इन दिनों को मनाने के लिए तो मालिक मज़दूरों को कोई छुट्टी तक नहीं देते। असल में मालिक मज़दूरों को धर्म के चक्कर में फँसाए रखने के लिए ऐसा करते हैं ताकि मज़दूरों की चेतना विकसित न हो पाए और मज़दूर चुपचाप मालिकों से अपनी लूट करवाते रहें। ऐसे मालिक वर्ष में एक दो भण्डारे, पूजा-पाठ आदि करके मज़दूरों के आगे सच्चे साबित होने का नाटक करते हैं और मज़दूर भी धर्म में अन्धी श्रद्धा होने के कारण मालिक को अच्छा आदमी समझने लगते हैं। लेकिन वे यह नहीं सोचते कि इन भण्डारों और पूजा-पाठ पर जो पैसा मालिक पानी की तरह बहाते हैं वह मज़दूरों द्वारा कारखानों में हाड़तोड़ मेहनत की लूट से आता है। मैं यह भी नहीं समझ पाता कि मज़दूर घसारी लाल जैसे गायकों को सुनने क्यों जाते हैं? पूँजीपतियों के टुकड़ों पर पलने वाले यह घटिया गीत गाने वाले लोग मज़दूरों की जिन्दगी के बारे में कोई बात नहीं करते, मज़दूरों की लूट के बारे में एक भी गीत नहीं गाते और कभी भी मज़दूरों के संघर्षों में शामिल होना तो दूर, मज़दूरों के हक में बयान तक नहीं देते। लेकिन फिर भी मज़दूर इन्हें सुनने के लिए भागे जाते हैं। हमें इन गायकों, फिल्मी अभिनेताओं आदि का भी असल चेहरा पहचानना चाहिये और ऐसों को मुँह नहीं लगाना चाहिये। इसके अलावा सिर्फ मालिक ही नहीं है जो धार्मिक त्यौहारों के समय भण्डारे, पूजा-पाठ, जागरण आदि करके मज़दूरों को मूर्ख बनाने की चाल चलते हैं। मालिकों की दलाली करने वाली बहुत सारी मज़दूर यूनियनें भी ऐसे काम करके मज़दूरों को मूर्ख बनाकर मालिकों की सेवा करती हैं। इनमें कांग्रेस, भाजपा से लेकर और चुनावी सियासत करने वाली माकपा, भाकपा जैसी तथाकथित मज़दूर पार्टियों की यूनियनें भी शामिल हैं।

मज़दूरों को मालिकों की ऐसी नौटंकियों के झाँसे में नहीं आना चाहिए। मालिक की परख करनी हो तो वेतन बढ़वाने, श्रम कानून लागू करवाने और रिहायशी सुविधाओं के लिए मालिक के मुनाफे में से हिस्सा आदि माँगें मालिक के सामने रखकर देखो। तुरन्त मालिक की अच्छाई और कल्याणकारी प्रवृति पर से मुखौटा उतर जाएगा और पूजा-पाठ करने वाले, देवी-देवताओं के भक्त मालिक के भीतर बैठा जानवर जाग उठेगा और पुलिस-शासन-प्रशासन को साथ लेकर मज़दूरों पर टूट पड़ेगा। मालिक मज़दूर के कल्याण के बारे में कभी नहीं सोच सकता। पँजीवादी व्यवस्था की यही सच्चाई है। मालिक सिर्फ मज़दूरों की एकता के आगे झुकता है। मालिक इसी से डरता है और मज़दूरों को एकता न बनाने देने के लिए और बनी हुई एकता तोड़ने के लिए सभी चालें चलता है। मालिक द्वारा पूजा-पाठ, भण्डारे, जागरण आदि करना भी ऐसी चालों में से एक है।

 

मज़दूर बिगुलमई 2012

 


 

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