महेश्वर की कविता : वे
वे
जब विकास की बात करते हैं
तबाही के दरवाजे़ पर
बजने लगती है शहनाई
कहते हैं – एकजुटता
और गाँव के सीवान से
मुल्क की सरहदों तक
उग आते हैं काँटेदार बाड़े
वे
जब विकास की बात करते हैं
तबाही के दरवाजे़ पर
बजने लगती है शहनाई
कहते हैं – एकजुटता
और गाँव के सीवान से
मुल्क की सरहदों तक
उग आते हैं काँटेदार बाड़े