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बादाम मज़दूरों की 15 दिन लम्बी ऐतिहासिक हड़ताल समाप्त

इस हड़ताल के समापन के साथ दिल्ली के असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की अब तक की विशालतम हड़ताल का समापन हुआ। बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में हज़ारों असंगठित मज़दूरों ने सिद्ध किया कि वे लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं। जाहिर है कि मज़दूर अपनी सभी माँगों को नहीं जीत सके। लेकिन इस हड़ताल का महत्व महज़ इतना नहीं रह गया था कि मज़दूरी कितनी बढ़ती है और कितनी नहीं। एक ऐसे उद्योग में जहाँ मज़दूरों को मालिक और ठेकेदार गुलामों की तरह खटाते थे, उनकी साथ लगातार बदसलूकी की जाती थी और उन्हें इंसान तक नहीं समझा जाता था, वहाँ मज़दूरों ने एक ऐतिहासिक और जुझारू लड़ाई लड़कर इज्जत का अपना हक हासिल किया। मालिकों को पहली बार मज़दूरों की ताक़त का अहसास हुआ और उनकी यह गलतफहमी दूर हो गयी कि मज़दूर उनकी ज़्यादतियों को चुपचाप बर्दाश्त करते रहेंगे और कभी कुछ नहीं बोलेंगे। हड़ताल के अंत के दौर तक मालिक मज़दूरों के सामने हर तरह से झुकने लगे थे। इसके अतिरिक्त, न सिर्फ मालिकों को मज़ूदरों की ताक़त का अन्दाज़ा चला, बल्कि पूरे इलाके में संगठित मज़दूरों की ताक़त एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी।

2000 मज़दूरों ने विशाल चेतावनी रैली निकाली

यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी तादाद में एकजुट होकर करावलनगर के मज़दूरों ने हड़ताल की है। इसके पहले भी कुछ छिटपुट हड़तालें हुई थीं, लेकिन तब बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के मज़दूर एकजुट नहीं हो पाते थे और हड़तालें सफल नहीं हो पाती थीं। बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में यह पहला मौका है जब सभी मज़दूर जाति, गोत्र और क्षेत्र के बँटवारों को भुलाकर अपने वर्ग हित को लेकर एकजुट हुए हैं।

बादाम मज़दूरों के नेता रिहा

करावलनगर इलाके में चौथे दिन भी हज़ारों की संख्या में मज़दूर हड़ताल स्थल पर मौजूद रहे। हड़ताल के जारी रहने से करावलनगर का पूरा बादाम संसाधन उद्योग ठप्प पड़ गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के नवीन ने कहा कि करावलनगर पुलिस थाने के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और मज़दूरों की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ न कराए जाने के कारण यूनियन सीधे पुलिस उपायुक्त, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पास शिकायत दर्ज़ कराएगी और अगर तब भी कार्रवाई नहीं होती है तो फिर हमारे पास अदालत जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। ग़ौरतलब है कि बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष से बादाम मज़दूर अपने कानूनी हक़ों की माँग कर रहे हैं और साथ ही बादाम संसाधन उद्योग को सरकार द्वारा औपचारिक दर्ज़ा दिये जाने की माँग कर रहे हैं। फिलहाल, सभी बादाम गोदाम मालिक गैर-कानूनी ढंग से बिना किसी सरकारी लाईसेंस या मान्यता के ठेके पर मज़दूरों से अपने गोदामों में काम करवा रहे हैं। इसमें बड़े पैमाने पर महिला मज़दूर हैं लेकिन उनके लिए शौचालय या शिशु घर जैसी कोई सुविधा नहीं है। बादाम मज़दूरों को तेज़ाब में डाल कर सुखाए गए बादामों को हाथों, पैरों और दांतों से तोड़ना पड़ता है। उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं और उन्हें टी.बी., खांसी, आदि जैसे रोग आम तौर पर होते रहते हैं। महिला मज़दूरों के बच्चे भी काफ़ी कम उम्र में ही जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में मज़दूरों की जुझारू हड़ताल तीसरे दिन भी जारी

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के करावलनगर क्षेत्र में करीब 30 हज़ार मज़दूर परिवार बादाम तोड़ने का काम करते हैं। यह पूरा व्यवसाय देशव्यापी नहीं, बल्कि विश्वव्यापी है। बेहद आदिम परिस्थितियों में गुलामों की तरह खटने वाले ये मज़दूर जिन कम्पनियों के बादाम का संसाधन करते हैं, वे कम्पनियाँ भारत की नहीं बल्कि अमेरिका, आस्‍ट्रेलिया और कनाडा की हैं। ये भारत के सस्ते श्रम के दोहन के लिए अपने ड्राई फ्रूट्स की प्रोसेसिंग यहाँ करवाते हैं। दिल्ली की खारी बावली पूरे एशिया की सबसे बड़ी ड्राई फ्रूट मण्डी है। खारी बावली के बड़े मालिक सीधे विदेशों से बादाम मँगवाते हैं और उन्हें संसाधित करके वापस भेज देते हैं। ये मालिक संसाधन का काम छुटभैये ठेकेदारों से करवाते हैं जिन्होंने दिल्ली के करावलनगर, सोनिया विहार, बुराड़ी-संतनगर और नरेला में अपने गोदाम खोल रखे हैं। इन गोदामों कोई भी सरकारी मान्यता या लाईसेंस नहीं प्राप्त है और ये पूरी तरह से गैर-कानूनी तरह से काम कर रहे हैं। एक-एक गोदाम में 20 से लेकर 40 तक मज़दूर काम करते हैं। इनके काम के घंटे अधिक मांग के सीज़न में कई बार 16 घण्टे तक होते हैं। इन्हें बादाम की एक बोरी तोड़ने पर मात्र 50 रुपये दिये जाते हैं। इनमें महिला मज़दूर बहुसंख्या में हैं। उनके साथ मारपीट, गाली-गलौज और उनका उत्पीड़न आम घटनाएँ हैं।

बादाम तोड़ने वाले 25-25 हज़ार मज़दूर हड़ताल पर

नई दिल्‍ली के करावल नगर इलाके में बादाम तोड़ने वाले मज़दूरों ने हड़ताल की घोषणा कर दी है। ‘बादाम मज़दूर यूनियन’ के बैनर तले इन मज़दूरों के हड़ताल पर जाने से अमेरिका और ऑस्‍ट्रेलिया सहित कई यूरोपीय देशों में बादाम निर्यात प्रभावित हो गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजक आशीष ने कहा कि सरकार ने 1970 में ठेका मज़दूरी क़ानून के तहत जो बुनियादी अधिकार दिए थे उनका यहां कोई पालन नहीं हो रहा है। श्रम क़ानूनों के उल्‍लंघन से यहां के 20 हज़ार से ज्‍़यादा मज़दूर त्रस्‍त हैं। यूनियन के सदस्‍य राहुल ने कहा कि बेहिसाब महंगाई में न्‍यूनतम मज़दूरी भी न मिलने से मज़दूरों के परिवारों के सामने दाल-रोटी की चिंता बढ़ गयी है। लिहाज़ा मज़दूरों ने काम बंद कर दिया है।

बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजकों पर हमला, पुलिस ने गुण्‍डो की जगह संयोजकों को ही गिरफ्तार किया

पुलिस की इस अंधेरगर्दी से पूरे क्षेत्र के मज़दूरों में गुस्‍से की लहर दौड़ गयी। इस पूरे इलाके में क़रीब 25,000 मज़दूर बादाम तोड़ने का काम करते हैं। इन मज़दूरों के ठेकेदार बेहद निरंकुश हैं और क़रीब-क़रीब मुफ्त में मज़दूरों से काम करवाने के आदि हैं। बादाम मज़दूर यूनियन ने गुण्‍डों द्वारा मारपीट और पुलिस की मालिक परस्‍त भूमिका की तीखे शब्‍दों में निंदा की है। यूनियन ने बताया कि कल एक प्रतिनिधिमण्‍डल पुलिस के उच्‍चाधिकारियों से मिलेगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेगा। युनियन का कहना हैकि यदि उन्‍हें न्‍याय नहीं मिला तो वे आन्‍दोलनात्‍मक रुख अपनाने के लिए तैयार रहेंगे।

जाँच समितियाँ नहीं बतायेंगी खजूरी स्कूल हादसे के असली कारण

दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी द्वारा संचालित लगभग 1746 स्कूलों में से 1628 में आग लगने की स्थिति में सुरक्षा के बन्दोबस्त नहीं हैं। 70 प्रतिशत स्कूलों में पीने के पानी और शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। ज्यादातर स्कूलों में प्रति 100 से अधिक छात्रों पर 1 अधयापक है, बहुतेरे स्कूलों के पास कोई बिल्डिंग भी नहीं है और वे टेण्टो में चल रहे हैं। जिस विद्यालय में यह घटना हुई उसमें भी उस दिन करीब 2600 विद्यार्थी थे। स्कूल के टिन शेड में पानी भर गया था। साथ ही ग्राउण्ड भी पानी से भरा था। बाहर निकलने का केवल एक ही गेट था जिस तक पहुँचने के लिए 2600 बच्चों को 4-5 फुट चौड़ी सीढ़ियों से उतरकर जाना था ऐसे में आज नहीं तो कल यह घटना होनी ही थी।