• April 26, 2025

    हैदराबाद की एक मज़दूर बस्ती नन्दा नगर में मज़दूरों की ज़िन्दगी की जद्दोजहद की एक तस्वीर

    इस बस्ती में स्थानीय तेलुगूभाषी मज़दूरों के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से आने वाले प्रवासी मज़दूर भी बड़ी संख्या में रहते हैं। यहाँ रहने वाले पुरुष कुशल मज़दूरों को 8 से 10 घण्टे काम के लिए औसतन 30 दिन के काम के बदले 12 से 15 हज़ार का वेतन मिलता है। जबकि स्त्री मज़दूरों को महज़ 8 से 12 हज़ार वेतन मिलता है। अकुशल मज़दूरों को इससे भी कम तनख़्वाह मिलती है। आसमान छूती महँगाई के दौर में गैस सिलिण्डर, राशन–सब्ज़ी, बच्चों की शिक्षा, दवा -इलाज का ख़र्च पूरा करना मज़दूर परिवारों के लिए बेहद मुश्किल होता है। मज़दूरों को एक छोटे से कमरे के लिए 5 से 6 हज़ार रुपये किराये के देने पड़ते हैं। इस प्रकार मज़दूरों का आधा वेतन तो किराया देने में ही निकल जाता है और बाक़ी सभी ख़र्चों के लिए शेष आधा वेतन ही बचता है। इस वजह से मज़दूरों को हर महीने आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है।

  • March 31, 2025

    शहीदे-आज़म भगतसिंह आज देश के मज़दूरों, ग़रीब किसानों और मेहनतकशों को क्या सन्देश दे रहे हैं?...

    भारत के मज़दूरो, ग़रीब किसानो, आम मेहनतकशो और आम छात्रो व युवाओ! तुम चाहे किसी भी धर्म, जाति, नस्ल, क्षेत्र या भाषा से रिश्ता रखते हो, तुम्हारे राजनीतिक व आर्थिक हित समान हैं, तुम्हारी एक जमात है! तुम्हें लूटने वाली इस देश की परजीवी पूँजीवादी जमात है जिसमें कारख़ाना मालिक, खानों-खदानों के मालिक, ठेकेदार, धनी व्यापारी, धनी किसान व ज़मीन्दार, दलाल और बिचौलिये शामिल हैं! ये जोंक के समान इस देश की मेहनतकश अवाम के शरीर पर चिपके हुए हैं! ये ही इस देश की मेहनत और कुदरत की लूट के बूते अपनी तिजोरियाँ भर रहे हैं! इनके जुवे को अपने कन्धों से उतार फेंको! इसके लिए संगठित हो, अपनी क्रान्तिकारी पार्टी का निर्माण करो! केवल यही शहीदे-आज़म भगतसिंह की स्मृतियों को इस देश के मेहनती हाथों का सच्चा क्रान्तिकारी सलाम होगा, उनको सच्ची आदरांजलि होगी : एक ऐसे समाज का निर्माण करके जिसमें सुई से लेकर जहाज़ बनाने वाले मेहनतकश वर्ग उत्पादन, समाज और राज-काज पर अपना नियन्त्रण स्थापित करेंगे, परजीवी लुटेरी जमातों के हाथों से राजनीतिक और आर्थिक सत्ता छीन ली जायेगी, जो मेहनत नहीं करेगा उसे रोटी खाने का भी अधिकार नहीं होगा, दूसरे की मेहनत की लूट का हक़ किसी को नहीं होगा, जिसमें, भगतसिंह के ही शब्दों में, मनुष्य के हाथों मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा।

  • March 30, 2025

    क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षणमाला – 24 : मार्क्सवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र के सिद्धान्त – खण...

    पूँजीपति पूँजी लगाता है, माल ख़रीदता है, और फिर माल को उससे ज़्यादा क़ीमत पर बेचता है, जितनी क़ीमत पर उसने उसे ख़रीदा था। यानी, सस्ता ख़रीदना और महँगा बेचना। यह आम तौर पर पूँजी का सूत्र है। महज़ इस सूत्र से ही अभी हम बेशी मूल्य के स्रोत को और इस प्रकार मुनाफ़े के स्रोत को नहीं जान पाते हैं। यह सूत्र केवल संचरण के क्षेत्र में होने वाले औपचारिक रूपान्तरणों को ही अभिव्यक्त करता है। यानी, मुद्रा द्वारा माल का रूप लेना और फिर माल द्वारा मुद्रा का रूप लेना। यहाँ अभी हमें बेशी मूल्य के पैदा होने की पूरी प्रक्रिया के बारे में कुछ भी पता नहीं चलता है क्योंकि इस सूत्र में उत्पादन के क्षेत्र में होने वाले सारभूत परिवर्तनों के बारे में हमें अभी कुछ नहीं बताया जाता है, यानी बेशी मूल्य के उत्पादन के बारे में, मूल्य-संवर्धन के बारे में कुछ नहीं बताया जाता है। वह हमें केवल औद्योगिक पूँजी के समूचे परिपथ को देखकर ही पता चलता है।

  • March 29, 2025

    छावा : फ़ासीवादी भोंपू से निकली एक और प्रोपेगैण्डा फ़िल्म

    पहला तथ्य तो यही है कि यह फ़िल्म किसी ऐतिहासिक घटना पर नहीं बल्कि यह शिवाजी सावन्त के एक उपन्यास पर बनी है। लेकिन इसे पेश ऐसे किया जा रहा है जैसे कि यह इतिहास को चित्रित कर रही है। दूसरा, अगर ऐतिहासिक तथ्यों पर ग़ौर करें, तो यह बात तो स्पष्ट तौर पर समझ में आ जाती है कि औरंगज़ेब और शिवाजी के बीच की लड़ाई कोई धर्म-रक्षा की लड़ाई नहीं थी बल्कि पूरी तरह से अपनी राजनीतिक सत्ता के विस्तार की लड़ाई थी। शिवाजी की सेना में कितने ही मुस्लिम सेनापति मौजूद थे, साथ ही औरंगज़ेब की सेना और दरबार में हिन्दू मन्त्री, सेनापति और सैनिक भारी संख्या में मौजूद थे। औरंगज़ेब का मकसद अगर सभी को मुसलमान बनाना होता, तो ज़ाहिरा तौर पर पहले वह अपने दरबार और अपनी सेना में अगुवाई और सरदारी की स्थिति में मौजूद हिन्दुओं को मुसलमान बनाता। धर्मान्तरण का जब कभी उसने इस्तेमाल किया तो वह भी राजनीतिक वर्चस्व और अहं की लड़ाई का हिस्सा था, न कि इस्लाम का राज भारत में क़ायम करने की मुहिम।

  • February 27, 2025

    कुम्भ में भगदड़ : भाजपा के फ़ासीवादी प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ी जनता

    ऐसे किसी भी धार्मिक आयोजन में सरकार की भूमिका केवल व्यवस्था और प्रबन्धन की हो सकती है, लेकिन फ़ासीवादी भाजपा सरकार यहाँ आयोजक बनी बैठी है और ऐसी अपनी फ़ासीवादी मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रोजेक्ट के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। आज ज़रूरत है कि भाजपा और संघ परिवार के इस फ़ासीवादी प्रोजेक्ट की सच्चाई को लोगों तक पहुँचाया जाये और लोगों को उनकी ज़िन्दगी के असली सवालों पर लामबन्द किया जाये।