Category Archives: महान शिक्षकों की क़लम से

लेनिन – आर्थिक संघर्ष के पीछे राजनीतिक प्रचार कार्य को भुलाओ मत!

…सभी देशों के मज़दूर आन्दोलन के इतिहास से यह पता चलता है कि मज़दूरों के सबसे अग्रणी संस्तर ही समाजवाद के विचारों को सबसे पहले और सबसे अच्छी तरह ग्रहण करते हैं। इन संस्तरों से ही वे हरावल मज़दूर आते हैं जिन्हें हर मज़दूर आन्दोलन आगे बढ़ाता है, वे मज़दूर जो मज़दूर समूहों का पूरा विश्वास पा सकते हैं, जो सर्वहारा की शिक्षा और संगठन के कार्य में अपना सर्वस्व अर्पित करते हैं, जो पूरी तरह सचेतन रूप से समाजवाद को स्वीकार करते हैं और जिन्होंने स्वतंत्र रूप से समाजवादी सिद्धान्त निरूपित तक कर लिये हैं।

अन्तरराष्ट्रीय सर्वहारा के महान नेता स्तालिन के स्मृति दिवस (5 मार्च 1953) के अवसर पर दो उद्धरण

“स्वतःस्फूर्तता की पूजा करने का सिद्धान्त फैसलाकुन तौर पर मज़दूर वर्ग के आन्दोलन के क्रान्तिकारी चरित्र का विरोधी है; यह मज़दूर वर्ग के आन्दोलन द्वारा पूँजीवाद की बुनियादों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने की लाइन अपनाने का विरोधी है; यह इस पक्ष में होता है कि आन्दोलन सिर्फ़ उन्हीं माँगों की लाइन पर आगे बढ़े जिन्हें “हासिल कर पाना मुमकिन” हो, यानी जो पूँजीवाद के लिए “स्वीकार्य” हों; यह पूरी तरह से “न्यूनतम प्रतिरोध की लाइन” के पक्ष में होता है। स्वतःस्फूर्तता का सिद्धान्त ट्रेडयूनियनवाद की विचारधारा होता है।

सारी दुनिया के मज़दूरों के नेता और शिक्षक कार्ल मार्क्स के जन्मदिवस (5 मई) पर

मज़दूरी की दर अपेक्षाकृत ऊँची होने के बावजूद श्रम की उत्पादन-शक्ति के बढ़ने से पूँजी का संचय तेज़ हो जाता है। इससे एडम स्मिथ की तरह, जिसके ज़माने में आधुनिक उद्योग अपने बाल्य-काल में ही था, कोई यह नतीजा निकाल सकता है कि पूँजी का संचय तेज़ होने से मज़दूर का पलड़ा भारी हो जायेगा, क्योंकि उसके श्रम की माँग बढ़ेगी। इसी दृष्टिकोण से सोचते हुए बहुत-से तत्कालीन लेखकों ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया है कि यद्यपि पिछले बीस वर्षों में अंग्रेज़ पूँजी इंग्लैण्ड की आबादी के मुक़ाबले में बहुत तेज़ी से बढ़ी है, पर मज़दूरी बहुत नहीं बढ़ी।

चीनी क्रान्ति के नेता और मज़दूर वर्ग के महान शिक्षक माओ त्से-तुङ के जन्मदिवस (26 दिसम्बर) के अवसर पर

पिछले बीस साल से ज़्यादा अरसे से हमारी पार्टी रोज़ाना जन-कार्य कर रही है, तथा पिछले दस-बारह वर्षों से वह रोज़ाना जनदिशा की चर्चा कर रही है। हमारा हमेशा यह मत रहा है कि क्रान्ति को विशाल जन-समुदाय पर निर्भर रहना चाहिए और सभी लोगों के प्रयत्नों पर निर्भर रहना चाहिए, तथा महज़ चन्द आदमियों द्वारा आदेश जारी किये जाने का हमने हमेशा विरोध किया है। लेकिन अब भी कुछ साथी अपने काम में जनदिशा को पूरी तरह कार्यान्वित नहीं करते।

फ़ासिस्टों को धूल चटाने वाले मज़दूर वर्ग के महान क्रान्तिकारी नेता और शिक्षक जोसेेफ़ स्तालिन के जन्मदिवस (21 दिसम्बर) के अवसर पर

फ़ासिस्टों को धूल चटाने वाले मज़दूर वर्ग के महान क्रान्तिकारी नेता और शिक्षक जोसेेफ़ स्तालिन के जन्मदिवस (21 दिसम्बर) के अवसर पर

मज़दूरों के क्रान्तिकारी अख़बार के बारे में लेनिन के विचार

हमारी राय में, हमारे कामों की शुरुआत, जिस संगठन को हम बनाना चाहते हैं उसके निर्माण की दिशा में हमारा पहला क़दम, एक अखिल रूसी राजनीतिक अख़बार की स्थापना होना चाहिए। हम कह सकते हैं कि यही वह मुख्य सूत्र है जिसे पकड़ कर हम संगठन का लगातार विकास कर सकेंगे और उसे गहरा और विस्तृत बना सकेंगे।

भारत के नव-नरोदवादी “कम्युनिस्टों” और क़ौमवादी “मार्क्सवादियों” को फ़्रेडरिक एंगेल्स आज क्या बता सकते हैं?

28 नवम्बर 1820 को सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षक और कार्ल मार्क्स के अनन्य मित्र फ़्रेडरिक एंगेल्स का जन्म हुआ था। द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद और वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धान्तों का कार्ल मार्क्स के साथ विकास करने वाले हमारे इस महान नेता ने पहले कार्ल मार्क्स के साथ और 1883 में मार्क्स की मृत्यु के बाद 1895 तक विश्व सर्वहारा आन्दोलन को नेतृत्व दिया। मार्क्सवाद के सार्वभौमिक सिद्धान्तों को स्थापित करने के अलावा इन सिद्धान्तों की रोशनी में उन्होंने इतिहास, विचारधारा, एंथ्रोपॉलजी और प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे शोध-कार्य किये, जिन्‍हें पढ़ना आज भी इस क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य है।

फ़ैक्टरी-मज़दूरों की एकता, वर्ग-चेतना और संघर्ष का विकास

यह दस्तावेज़ मज़दूरों और कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के अध्ययन के लिए आज भी बेहद प्रासंगिक है। हम यहाँ ‘मज़दूर बिगुल’ के पाठकों के लिए उक्त मसौदा पार्टी कार्यक्रम की व्याख्या का एक हिस्सा प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें इस प्रक्रिया का सिलसिलेवार ब्योरा दिया गया है कि किस प्रकार कारख़ानों में बड़ी पूँजी का सामना करने के लिए एकता मज़दूर वर्ग की ज़रूरत बन जाती है, और किस प्रकार उनकी वर्ग-चेतना विकसित होती है तथा उसके संघर्ष व्यापक होते जाते हैं।

फ़ैक्टरी-मज़दूरों की एकता, वर्ग-चेतना और संघर्ष का विकास

यह दस्तावेज़ मज़दूरों और कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के अध्ययन के लिए आज भी बेहद प्रासंगिक है। हम यहाँ ‘मज़दूर बिगुल’ के पाठकों के लिए उक्त मसौदा पार्टी कार्यक्रम की व्याख्या का एक हिस्सा प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें इस प्रक्रिया का सिलसिलेवार ब्योरा दिया गया है कि किस प्रकार कारख़ानों में बड़ी पूँजी का सामना करने के लिए एकता मज़दूर वर्ग की ज़रूरत बन जाती है, और किस प्रकार उनकी वर्ग-चेतना विकसित होती है तथा उसके संघर्ष व्यापक होते जाते हैं।

गाँव के ग़रीबों का हित किसके साथ है?

बात यह है कि किसान भी तरह-तरह के हैं: ऐसे भी किसान हैं, जो ग़रीब और भूखे हैं, और ऐसे भी हैं, जो धनी बनते जाते हैं। फलतः ऐसे धनी किसानों की गिनती बढ़ रही है, जिनका झुकाव ज़मींदारों की ओर है और जो मज़दूरों के विरुद्ध धनियों का पक्ष लेंगे। शहरी मज़दूरों के साथ एकता चाहने वाले गाँव के ग़रीबों को बहुत सावधानी से इस बात पर विचार करना और उसकी छानबीन करनी चाहिए कि इस तरह से धनी किसान कितने हैं, वे कितने मज़बूत हैं और उनकी ताक़त से लड़ने के लिए हमें किस तरह के संगठन की ज़रूरत है। अभी हमने किसानों के बुरे सलाहकारों का जि़क्र किया था। इन लोगों को यह कहने का बहुत शौक़ है कि किसानों के पास ऐसा संगठन पहले ही मौजूद है। वह है मिर या ग्राम-समुदाय। वे कहते हैं, ग्राम-समुदाय एक बड़ी ताक़त है। ग्राम-समुदाय बहुत मज़बूती के साथ किसानों को ऐक्यबद्ध करता है; ग्राम-समुदाय के रूप में किसानों का संगठन (अर्थात संघ, यूनियन) विशाल (मतलब कि बहुत बड़ा, असीम) है।