Category Archives: इतिहास

कैसा है यह लोकतन्त्र और यह संविधान किनकी सेवा करता है? (पहली किस्त)

हम जिस सम्प्रभु, समाजवादी जनवादी (लोकतान्त्रिक) गणराज्य में जी रहे हैं, वह वास्तव में कितना सम्प्रभु है, कितना समाजवादी है और कितना जनवादी है? पिछले साठ वर्षों के दौरान आम भारतीय नागरिक को कितने जनवादी अधिकार हासिल हुए हैं? हमारा संविधान आम जनता को किस हद तक नागरिक और जनवादी अधिकार देता है और किस हद तक, किन रूपों में उनकी हिफाजत की गारण्टी देता है? संविधान में उल्लिखित मूलभूत अधिकार अमल में किस हद तक प्रभावी हैं? संविधान में उल्लिखित नीति-निर्देशक सिध्दान्तों से राज्य क्या वास्तव में निर्देशित होता है? ये सभी प्रश्न एक विस्तृत चर्चा की माँग करते हैं। इस निबन्ध में हम थोड़े में संविधान के चरित्र और भारत के जनवादी गणराज्य की असलियत को जानने के लिए कुछ प्रातिनिधिक तथ्यों के जरिये एक तस्वीर उपस्थित करने की कोशिश करेंगे।

कम्युनिस्ट जीवनशैली के बारे में माओ त्से-तुङ के कुछ उद्धरण

कोई नौजवान क्रान्तिकारी है अथवा नहीं, यह जानने की कसौटी क्या है? उसे कैसे पहचाना जाये? इसकी कसौटी केवल एक है, यानी यह देखना चाहिए कि वह व्यापक मज़दूर-किसान जनता के साथ एकरूप हो जाना चाहता है अथवा नहीं, तथा इस बात पर अमल करता है अथवा नहीं? क्रान्तिकारी वह है जो मज़दूरों व किसानों के साथ एकरूप हो जाना चाहता हो, और अपने अमल में मज़दूरों व किसानों के साथ एकरूप हो जाता हो, वरना वह क्रान्तिकारी नहीं है या प्रतिक्रान्तिकारी है। अगर कोई आज मज़दूर-किसानों के जन-समुदाय के साथ एकरूप हो जाता है, तो आज वह क्रान्तिकारी है; लेकिन अगर कल वह ऐसा नहीं करता या इसके उल्टे आम जनता का उत्पीड़न करने लगता है, तो वह क्रान्तिकारी नहीं रह जाता अथवा प्रतिक्रान्तिकारी बन जाता है।

जोसेफ स्तालिन : क्रान्ति और प्रतिक्रान्ति के बीच की विभाजक रेखा

स्तालिन शब्द का मतलब होता है इस्पात का इन्सान – और स्तालिन सचमुच एक फौलादी इन्सान थे। मेहनतकशों के पहले राज्य को नेस्तनाबूद कर देने की पूँजीवादी लुटेरों की हर कोशिश को धूल चटाते हुए स्तालिन ने एक फौलादी दीवार की तरह उसकी रक्षा की, उसे विकसित किया और उसे दुनिया के सबसे समृद्ध और ताकतवर समाजों की कतार में ला खड़ा किया। उन्होंने साबित कर दिखाया कि मेहनतकश जनता अपने बलबूते पर एक नया समाज बना सकती है और विकास के ऐसे कीर्तिमान रच सकती है जिन्हें देखकर पूरी दुनिया दाँतों तले उँगली दबा ले। उनके प्रेरक नेतृत्व और कुशल सेनापतित्व में सोवियत जनता ने हिटलर की फासिस्ट फौजों को मटियामेट करके दुनिया को फासीवाद के कहर से बचाया।

क्रान्तिकारी चीन ने प्रदूषण की समस्या का मुक़ाबला कैसे किया और चीन के वर्तमान पूँजीवादी शासक किस तरह पर्यावरण को बरबाद कर रहे हैं!

आज पूरी दुनिया में पर्यावरण बचाओ की चीख़-पुकार मची हुई है। कभी पर्यावरण की चिन्ता में दुबले हुए जा रहे राष्ट्राध्यक्ष, तो कभी सरकार की बेरुख़ी से नाराज़ एनजीओ आलीशान होटलों के एसी कमरों-सभागारों में मिल-बैठकर पर्यावरण को हो रहे नुक़सान को नियन्त्रित करने के उपाय खोजते फिर रहे हैं। लेकिन पर्यावरण के बर्बाद होने के मूल कारणों की कहीं कोई चर्चा नहीं होती। न ही चर्चा होती है उस दौर की जब जनता ने औद्योगिक विकास के साथ शुरू हुई इस समस्या को नियन्त्रित करने के लिए शानदार क़दम उठाए। जी हाँ, जनता ने! इसका एक उदाहरण क्रान्तिकारी चीन है, जहाँ 1949 की नव-जनवादी क्रान्ति के बाद कॉमरेड माओ के नेतृत्व में चीनी जनता ने इस मिथक को तोड़ने के प्रयास किए कि औद्योगिक विकास होगा तो पर्यावरण को नुकसान पहुँचेगा ही।

अदम्य बोल्शेविक – नताशा – एक संक्षिप्त जीवनी

रूस की अक्टूबर क्रान्ति के लिए मज़दूरों को संगठित, शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए हज़ारों बोल्शेविक कार्यकर्ताओं ने बरसों तक बेहद कठिन हालात में, ज़बर्दस्त कुर्बानियों से भरा जीवन जीते हुए काम किया। उनमें बहुत बड़ी संख्या में महिला बोल्शेविक कार्यकर्ता भी थीं। ऐसी ही एक बोल्शेविक मज़दूर संगठनकर्ता थीं नताशा समोइलोवा जो आख़िरी साँस तक मज़दूरों के बीच काम करती रहीं। हम ‘बिगुल’ के पाठकों के लिए उनकी एक संक्षिप्त जीवनी का धारावाहिक प्रकाशन कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि आम मज़दूरों और मज़दूर कार्यकर्ताओं को इससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करण के निर्माण का रास्ता ही मुक्ति का रास्ता है!

महान अक्टूबर क्रान्ति ने यह साबित कर दिखाया कि दुनिया की तमाम सम्पदा का उत्पादक मेहनतकश जनसमुदाय सर्वहारा वर्ग की अगुवाई में और उसके हिरावल दस्ते – एक सच्ची, इंकलाबी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में स्वयं शासन-सूत्र भी सम्हाल सकता है तथा अपने भाग्य और भविष्य का नियन्ता स्वयं बन सकता है। महान अक्टूबर क्रान्ति ने यह साबित किया कि मालिक वर्गों को समझा-बुझाकर नहीं बल्कि उनकी सत्ता को बलपूर्वक उखाड़कर और उनपर बलपूर्वक अपनी सत्ता (सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व) कायम करके ही पूँजीवाद के जड़मूल से नाश की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है और समाजवाद का निर्माण किया जा सकता है।

अदम्‍य बोल्‍शेविक – नताशा एक संक्षिप्त जीवनी (समापन किश्त)

वह बैरकों में अत्यन्त अस्वास्थ्यकर स्थितियों में रहने वाले बच्चों की स्थिति को लेकर विशेष रूप से चिन्तित थीं। वह बच्चों की संगीत सभाओं या छुट्टियों के लिए कुछ घण्टे निकालने के लिए हमेशा तैयार रहतीं। कभी-कभी हज़ार या इससे भी अधिक बच्चे जमा हो जाते। वह उन्हें कहानियाँ सुनातीं, उनसे बातें करतीं। बच्चों के साथ उनके व्यवहार में ज़बर्दस्त धौर्य और उदारता झलकती थी। वह बच्चों की दुर्दशा देखकर नाराज़ थीं और स्थानीय कार्यकर्ताओं और प्रबन्धन के साथ बैठकों में इस मुद्दे पर बहुत ज़ोर देती थीं। बच्चों और मातृत्व की रक्षा के सवाल पर उन्होंने लाल फीताशाही के प्रति किसी तरह के धौर्य का प्रदर्शन नहीं किया और ठोस कदम उठाये जाने की माँग की। पूरे मत्स्य क्षेत्र में जहाँ कहीं भी पार्टी प्रकोष्ठ थे वहाँ नर्सरियों और बच्चों की कालोनियों के गठन के प्रयास किये गये। रेड स्टार ने कई जगहों पर उनके गठन में मदद की।

हिटलर को हराकर दुनिया को फासीवाद के राक्षस से मजदूरों के राज ने ही बचाया था

सच तो यह है कि स्तालिन हिटलर के सत्ता पर काबिज होने के समय से ही पश्चिमी देशों को लगातार फसीवाद के ख़तरे से आगाह कर रहे थे लेकिन उस वक्त तमाम पश्चिमी देश हिटलर के साथ न सिर्फ समझौते कर रहे थे बल्कि उसे बढ़ावा दे रहे थे। स्तालिन पहले दिन से जानते थे कि हिटलर समाजवाद की मातृभूमि को नष्ट करने के लिए उस पर हमला जरूर करेगा। उन्होंने आत्मरक्षार्थ युद्ध की तैयारी के लिए थोड़ा समय लेने के वास्ते ही हिटलर के साथ अनाक्रमण सन्धि की थी जबकि दोनों पक्ष जानते थे कि यह सन्धि कुछ ही समय की मेहमान है। यही वजह थी कि सन्धि के बावजूद सोवियत संघ में समस्त संसाधनों को युद्ध की तैयारियों में लगा दिया गया था। दूसरी ओर, हिटलर ने भी अपनी सबसे बड़ी और अच्छी फौजी डिवीजनों को सोवियत संघ पर धवा बोलने के लिए बचाकर रखा था। इस फौज की ताकत उस फौज से कई गुना थी जिसे लेकर हिटलर ने आधे यूरोप को रौंद डाला थां रूस पर हमले के बाद भी पश्चिमी देशों ने लम्बे समय तक पश्चिम का मोर्चा नहीं खोला क्योंकि वे इस इन्तजार में थे कि हिटलर सोवियत संघ को चकनाचूर कर डालेगा। जब सोवियत फौजों ने पूरी सोवियत जनता की जबर्दस्त मदद से जर्मन फौजों को खदेड़ना शुरू कर दिया तब कहीं जाकर पश्चिमी देशों ने मोर्चा खोला।

बीसवीं सदी की दूसरी महानतम क्रान्ति मेहनतकश जनता के लिए प्रेरणा का अक्षयस्रोत बनी रहेगी!

चीन में क्रान्ति की यह हार चीनी जनता और पूरी दुनिया के सर्वहारा वर्ग के लिए एक भारी धक्का तो है, पर यह इतिहास का अन्त नहीं है। इतिहास का रास्ता ही कुछ ऐसा होता है – चढ़ावों-उतारों से भरा हुआ। अक्सर ऐसा होता रहा है कि रास्ता खोजने वाली महान क्रान्तियाँ हारती रही हैं और आगे की मुकम्मिल विजयी क्रान्तियों के लिए आधार तैयार करती रही हैं। आज की संकटग्रस्त, आक्रामक और मेहनतकश अवाम पर कहर बरपा करने वाली साम्राज्यवादी दुनिया फिर सर्वहारा वर्ग को आमन्त्रण दे रही है कि वह उस पर टूट पड़े और इस बार उसकी कब्र जरा गहरी खोदे। सर्वहारा क्रान्तियों के नये चक्र के लिए – इक्कीसवीं सदी के सर्वहारा यो(ओं के लिए बीसवीं सदी की दोनों महानतम क्रान्तियों – सोवियत क्रान्ति और चीनी क्रान्ति की शिक्षाएँ बहुमूल्य होंगी, ये शिक्षाएं उनका हथियार होंगी।

अदम्‍य बोल्‍शेविक – नताशा एक संक्षिप्त जीवनी ( दसवीं किश्त)

समोइलोवा ने लाखों औरतों – मजदूर और किसान औरतों और तमाम मेहनतकशों को आर्थिक तबाही विरोधी संघर्ष में खींचने के लिए जबरदस्त आन्दोलनात्मक काम किये। उन्होंने सिलसिलेवार पर्चे लिखे, भाषण दिये, ग़ैरपार्टी सम्मेलन आयोजित किये और खतरे से आगाह करते हुए, और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की तबाही के खिलाफ आम जनता को संघर्ष के लिए प्रोत्साहित करते हुए आन्दोलनपरक स्टीमर ‘रेड स्टार’ से वोल्गा और कामा के किनारे-किनारे लम्बी यात्राएँ कीं। अपने आन्दोलनपरक भाषणों में वह सटीक ऑंकड़े देने, सभी सवालों का गहन अध्‍ययन करने और देश के आर्थिक जीवन को संचालित करने वाली सोवियत संस्थाओं को इस काम से जोड़ने में कभी नहीं चूकती थीं। उन्होंने अपने काम में जबरदस्त आर्थिक और प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन किया।