दिल्ली बजट 2025 – दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों व मेहनतकश महिलाओं के साथ भाजपा का एक और भद्दा मज़ाक!
प्रियम्वदा
भाजपा सरकार के चुनावी वायदों की हक़ीक़त से इस देश की मेहनतकश आवाम पहले ही परिचित थी। दिल्ली चुनाव में भी इस पार्टी ने आम जनता पर झूठ और जुमलों की बारिश करने में कोई कमी नहीं छोड़ी और सत्ता सँभालते ही अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया।
दिल्ली में 25 मार्च को भाजपा सरकार ने “ऐतिहासिक बजट” पेश किया। इस बजट की ऐतिहासिकता इस बात में है कि भाजपा सरकार के झूठ और मज़दूर-विरोधी, महिला-विरोधी कारनामों को इसमें पहले से कहीं अधिक लच्छेदार भाषा में लाया गया है। मुख्यमन्त्री रेखा गुप्ता ने एक लाख करोड़ के इस बजट को पेश करते हुए इसे महिलाओं के नाम, दिल्ली के लोगों के स्वास्थ्य के नाम और समाज सेवा जैसे मसलों के हवाले करने का गुब्बारा फुलाया। लेकिन हर बार की तरह इस बजट में भी दिल्ली की मेहनतकश आबादी को सिर्फ़ सुहावने सपने ही मिले हैं। असलियत में भाजपा सरकार का यह बजट दिल्ली के मेहनतकशों, महिलाओं के शोषण को बढ़ाने और उनके रहे-सहे अधिकारों को कुचलने की शुरुआत का बजट है।
मोदी सरकार के विकास का नायाब मॉडल : आँगनवाड़ी की योजनाओं के बजट में कटौती कर “सक्षम आँगनवाड़ी” स्कीम होगी लागू!
पिछले 11 सालों के राज में मोदी सरकार ने आँगनवाड़ी की स्कीम में ज़मीनी स्तर पर कार्यरत महिलाकर्मियों के लिए सिवाय घोषणाओं के कुछ भी जारी नहीं किया है! 2018 में दिवाली तोहफ़े के तौर पर आँगनवाड़ीकर्मियों के लिए जो मामूली वृद्धि की घोषणा की थी वो भी जुमला ही साबित हुई। देशभर में कर्मचारी के अधिकार को लेकर संघर्षरत महिलाकर्मियों की माँग भी इस सरकार की प्राथमिकताओं से बाहर है।
पक्के रोज़गार और न्यूनतम मज़दूरी की बात तो दूर, इस सरकार ने आँगनवाड़ीकर्मियों को मिलने वाले मानदेय के बजट को 221 करोड़ से घटकर 206 करोड़ कर दिया गया है। यानी दिल्ली के कुल बजट का मात्र 0.20 प्रतिशत ही महिला एवं बाल विकास परियोजना को दिया गया है। एक तरफ़ मोदी सरकार ‘सक्षम आँगनवाड़ी’ के तहत आँगनवाड़ी केन्द्रों पर वाईफ़ाई, एलईडी स्क्रीन, वॉटर प्यूरिफ़ायर इत्यादि लगाने की योजना बना रही है और दूसरी तरफ़ बजट में कटौती कर रही है। महिलाओं को समृद्ध करने के प्रचार में लाखों रुपये बहा रही है लेकिन महिलाओं को मिलने वाली मज़दूरी की मामूली राशि को बढ़ाने का नाम नहीं ले रही है!
पहले ही इस योजना के तहत कार्यरत महिलाओं की स्थिति और लाभार्थियों को मिलने वाली सुविधाओं की स्थिति बदहाल थी। आँगनवाड़ी केन्द्रों में होने वाले ख़र्चे (जैसे कि रजिस्टर, खिलौने, चटाई इत्यादि) हो या अन्नप्राशन और गोदभराई जैसे सरकारी कार्यक्रमों का ख़र्च हो, यह सब आँगनवाड़ीकर्मियों के मिलने वाले मामूली मानदेय से चलता है। आँगनवाड़ी केन्द्रों में हालात ऐसे हैं कि छोटे बच्चों के बैठने तक का भी समुचित इन्तज़ाम सरकार की तरफ़ से नहीं होता है। पोषाहार पर होने वाले ख़र्च की राशि भी बेहद कम थी जिसकी वजह से पोषाहार की गुणवत्ता और मात्रा, दोनों ही पहले से असन्तोषजनक और अपर्याप्त थी। मोदी सरकार ने एक तरफ तो पोषण अभियान यानी प्रधानमन्त्री पोषण शक्ति निर्माण (पीएम-पोषण) योजना की घोषणा की वहीं दूसरी तरफ़ पूरे पोषण बजट में 68.31% की कटौती कर दी। 2024-25 में इस मद में जहाँ सरकार ने 300.5 करोड़ मुहैया किया था वहीं 2025-26 में अब इसे घटाकर मात्र 95.2 करोड़ रुपये कर दिया गया है। पोषण के बजट में इस घटोत्तरी से न सिर्फ़ सीधे-सीधे दिल्ली की गरीब आबादी को मिलने वाली बची-खुची सुविधाएँ प्रभावित होंगी बल्कि “सक्षम आँगनवाड़ी” जैसी योजनाएँ भी हवा-हवाई साबित होंगी। आबादी के अनुसार देखा जाये तो आँगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या को बढ़ाने की व नए आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं-सहायिकाओं के भर्ती की भी काफ़ी ज़रूरत थी मगर मोदी सरकार “एक लाख करोड़” के बजट में आँगनवाड़ी को मिलने वाली राशि में कटौती करके सक्षम आँगनवाड़ी योजना, पीएम पोषण योजना को लागू करेगी और दिल्ली की जनता को एक बार फिर झूठ और जुमलों की सौगात भेंट करेगी।
असल बात तो यह है कि भाजपा सरकार आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों के गुलामी और शोषण को बढ़ावा देकर उनके “स्वयंसेवा” का “लाभ” उठाना चाहती है। आँगनवाड़ी व आशा के तहत बेहद मामूली मानदेय में काम कर रही महिलाओं के लिए न्यूनतम मज़दूरी तक की व्यवस्था भी इस सरकार के लिए मुद्दा नहीं है।
महिला समृद्धि के शोर-शराबे के पीछे की हक़ीक़त को देखें तो यह समझते देर नहीं लगेगी कि इस बजट के जरिये महिलाओं के हकों-अधिकारों को छीनने, उसमें कटौती करने की शुरुआत यह सरकार कर चुकी है। उन्हें बेरोज़गारी के गड्ढे में ढ़केलकर, मामूली रक़म में गुलामी करवाकर महिला समृद्धि सुनिश्चित करने जैसे नायाब तरीक़े ही भाजपा सरकार के विकास मॉडल की सच्चाई है।
महिला समृद्धि योजना के तहत 2500 रुपये की घोषणा दिल्ली की महिलाओं के साथ एक घटिया मज़ाक से अधिक कुछ नहीं है। महिला समृद्धि, महिला सम्मान और महिलाओं को सशक्त करने की तमाम घोषणाओं में क्यूँ कभी दिल्ली की लाखों बेरोज़गार महिलाओं के लिए पक्के रोज़गार की बात नहीं होती? क्यूँ आँगनवाड़ी और आशाकर्मियों को न्यूनतम मज़दूरी मुहैया कराने की याद मोदी सरकार को नहीं आती? वहीं आज महिलाओं की आबादी का एक बड़ा हिस्सा फैक्ट्रियों, घरों, दफ़्तरों में 3 हज़ार से 5 हज़ार तक की बेहद मामूली मज़दूरी पर और बिना किसी सुरक्षा की गारण्टी पर काम करने को मजबूर है, इन सभी मेहनतकश महिलाओं की माँग मोदी सरकार की योजनाओं का हिस्सा क्यूँ नहीं बनती?
वह इसलिए क्योंकि मोदी सरकार महिलाओं के सस्ते श्रम को लूटने में पूँजीपतियों के लिए कोई बाधा पैदा नहीं कर सकती। आँगनवाड़ी, आशा आदि जैसी तथाकथित “सामाजिक स्कीमों” के ज़रिए बच्चों, गर्भवती महिलाओं आदि की देखरेख व पोषण तथा शुरुआती शिक्षा के ज़रिए पूँजीपति वर्ग बहुत-से वे काम बेहद सस्ते में करा लेता है, जो कि बाक़ायदा अच्छा भोजन मुहैया कराने, अच्छी स्वास्थ्य व चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने में सरकार का कहीं ज़्यादा ख़र्च होता। इसके लिए उसे बाक़ायदा समस्त सुविधाओं से लैस देखरेख केन्द्र खोलने पड़ते, मैटर्निटी सेण्टर खोलने पड़ते, अच्छे स्कूल व अस्पताल खोलने पड़ते, उनमें बाक़ायदा वेतनमान पर कर्मचारी रखने पड़ते। लेकिन इस काम को सरकार स्वयं मज़दूरों और आम मेहनतकश आबादी की ही औरतों से कौड़ियों के दाम पर करवा लेती है और अपना ख़र्च कई गुना बचाती है। पूँजीपति वर्ग की सेवा में लगी पूँजीवादी सरकारें चाहे वह भाजपा हो या कोई अन्य चुनावबाज़ पार्टी की सरकार, श्रमशक्ति के मूल्य या उसके पुनरुत्पादन की लागत को कम रखने में अपना योगदान देती है। और यह वह कैसे करती है? जनता से ही अप्रत्यक्ष करों के रूप में पैसा वसूलो! फिर उस पैसे से आम मेहनतकश जनता के घरों की स्त्रियों को कौड़ियों के दाम आँगनवाड़ी कार्यकर्ता या सहायिका या आशा कार्यकर्ता के तौर पर रखो और गुलामों की तरह काम करवाओ! जनता से वसूले जा रहे टैक्स से ही इन “सामाजिक स्कीमों” को चलाओ, और उसमें भी ग़रीब घर के बच्चों को और औरतों को गुणवत्ता वाला भोजन, गुणवत्ता वाली शिक्षा, गुणवत्ता वाली मातृत्व देखरेख, गुणवत्ता वाले देखरेख केन्द्र, और गुणवत्ता वाली चिकित्सा देने के बजाय भुखमरी के स्तर पर रखने वाला भोजन, आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से ही सरकारी शिक्षकों का काम लेकर कामचलाऊ शुरुआती शिक्षा और कामचलाऊ मातृत्व देखभाल मुहैया कराओ! इस तरह से तमाम पूँजीवादी सरकारें (हालाँकि भाजपा इसमें सबसे आगे है!) मेहनतकश वर्गों की स्त्रियों की ही श्रमशक्ति का दोहन करती है और मालिकों की जमात के लिए सारी योजनाएँ लागू करती है।
इसलिए, बजट में चाहे कितनी ही बढ़ोत्तरी क्यूँ न हो जाये, आम मेहनतकश जनता के जीवन में कोई वास्तविक फ़र्क नहीं पड़ने वाला है।
हालाँकि बढ़ते बजट के गुब्बारे में जनता के जीवन से जुड़े क्षेत्रों पर यानी स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन इत्यादि पर कटौती ही की गयी है।
दिल्ली के “ऐतिहासिक” बजट में शिक्षा के लिए मात्र 19,291 करोड़ रुपये दिये गए हैं, परिवहन के लिए 12,952 करोड़ रुपये और स्वास्थ्य के लिए सिर्फ़ 12,893 करोड़ रुपये आवंटित हैं। वहीं स्वास्थ्य सुविधाओं पर ख़र्च बजट का 13 फ़ीसदी भी नहीं है। शिक्षा और स्वास्थ्य बजट में इस नाममात्र की राशि के आवंटन से दिल्ली के सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति और बदतर होगी। इसका नतीजा भी तुरन्त सामने आ गया जब दिल्ली में बच्चों के लिए बने विशेष अस्पताल दादा देव अस्पताल के बजट को सीधे एक करोड़ से कम करके दस लाख कर दिया गया है। आप खुद सोच सकते हैं कि 10 लाख के बजट पर चलने वाले अस्पताल के हालात क्या होंगे? पहले से ही चिकित्सकों और शिक्षकों कि कमी और बुनियादी अवरचनागत सुविधाओं की कमी से जूझते सरकारी अस्पताल और स्कूल की स्थिति और खस्ताहाल होने वाली है।
मोदी सरकार के जनता से किये गए तमाम वायदे हास्यास्पद साबित हुए हैं। दिल्ली चुनाव में इस सरकार ने महिलाओं से यह भी वायदा किया था कि उन्हें होली-दिवाली पर रसोई गैस मुफ़्त उपलब्ध कराया जायेगा। स्थिति अब यह है कि हर महीने रसोई गैस पहले 50 रुपये की बढ़ी हुई कीमत पर ख़रीदो और फिर साल में एक सिलिण्डर मुफ़्त लेने का लाभ उठाओ (अगर योजना जुमला न साबित हुई!)! वहीं अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में जब पेट्रोल-डीजल की कीमत कम हुई तो भाजपा सरकार ने एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ाकर इसे और महँगा कर दिया जिसका परिणाम यह होगा कि लोगों की ज़रूरत की सभी चीज़ों की कीमत बढ़ेगी, महँगाई बढ़ेगी और जनता की ज़ेब पर डाका डलेगा।
इसलिए, भाजपा सरकार के एक लाख करोड़ के बजट और महिलाओं के समृद्धि व सम्मान की योजना से दिल्ली के मेहनतकशों व महिलाओं की स्थिति मे सुधार आना तो दूर उल्टा महँगाई, बेरोज़गारी, ख़राब स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था का “ऐतिहासिक तोहफ़ा” मिलेगा!
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