हरियाणा के धारूहेड़ा में हीरो मोटोकार्प कम्पनी में इमारत गिरने से एक की मौत 5 मज़दूर घायल
औद्योगिक दुर्घटनाओं से बचाव और सुरक्षा इन्तज़ामों के लिए संघर्ष के वास्ते संगठित होना होगा
शाम मूर्ति
28 मार्च को धारूहेड़ा (ज़िला रेवाड़ी) के मालपुरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित दोपहिया वाहन बनाने वाली हीरो मोटोकॉर्प कम्पनी में रात क़रीब 10:30 बजे एक एक्सटेंशन इमारत गिरने से 5 मज़दूर घायल हो गये और एक सुपरवाइजर हाकिम खान की मलबे में फँसे होने से मौत हो गयी। मौक़े पर मौजूद सूत्रों ने बताया कि इमारत गिरने से पहले कम्पनी के एक हिस्से में धमाका हुआ, फिर आग भी लगी थी। मज़दूरों ने यह भी बताया कि इमारत गिरने का कारण इमारत का पूरी तरह जर्जर होना है, जिसके बारे में कई बार कम्पनी प्रबन्धन को बोलने के बावजूद इस पर ध्यान नहीं दिया गया। घटना के बाद दमकल विभाग व राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ़) देर से पहुँचा और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ़) की गाड़ियाँ 29 मार्च शाम को पहुँची थीं। एसडीआरएफ़ व एनडीआरएफ़ की टीम फँसे हुए मज़दूर की लाश को 40 घण्टे बाद ही निकाल पायी। सभी घायल मज़दूरों को पहले ही स्थानीय प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए भेजा गया था, इनमें से दो मज़दूरों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी थी और दो मज़दूर गम्भीर रूप से घायल थे। ऑटोमोबाइल उद्योग अस्थायी मज़दूर यूनियन (AICWU) के साथी घटनास्थल पर मौजूद रहे और मज़दूरों के परिजनों की हर सम्भव मदद करने की कोशिश करते रहे।
कम्पनी में कार्यरत मज़दूरों ने बताया कि इमारत जर्जर हो चुकी थी और कई बार कहने के बाद भी कम्पनी ने इसपर ध्यान नहीं दिया। यह हीरो कम्पनी द्वारा सुरक्षा नियमों के उल्लंघन को साफ़ दर्शाता है। इसी के बाबत ऑटोमोबाइल उद्योग अस्थायी मज़दूर यूनियन (AICWU) द्वारा फ़ैक्ट्रियों में हो रहे सुरक्षा क़ानूनों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई करने की माँग करते हुए डीसी कार्यालय में प्रतिनिधिमण्डल ज्ञापन दिया गया। जिसमें ज़िला प्रशासन से निम्न माँगें की गयीं :
1) सभी कारख़ानों में मानकों के अनुरूप सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम सुनिश्चित किये जायें।
2) सभी कार्यस्थलों पर सुरक्षा क़ानूनों समेत सभी श्रम क़ानूनों को तत्काल सख़्ती से लागू किया जाये।
3) दोषी मालिक/प्रबन्धन व ठेकेदारों के अलावा ज़िम्मेदार लेबर इंस्पेक्टर व श्रम विभाग पर तत्काल सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जाये।
4) हीरो मोटोकॉर्प में हुए हादसे में मृतक मज़दूर के परिवार को 1 करोड़ व घायल मज़दूरों के परिवार को 50 लाख रुपये तत्काल मुआवज़ा दिया जाये।
5) सरकार की तरफ़ से तत्काल राहत राशि पीड़ितों व उनके परिवार के सदस्यों को दी जाये।
ज्ञात हो कि इसी साल मार्च के महीने में ही रेवाड़ी ज़िले में 3 कारख़ानों में आग लगने की घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। हीरो मोटोकॉर्प कम्पनी के अलावा 18 मार्च को धारूहेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में कूलर बनाने वाली एमपीपीएल कम्पनी में भीषण आग लगी थी। 6 मार्च को बावल औद्योगिक क्षेत्र में पेण्ट की कम्पनी पिगमेन्ट प्राइवेट लिमिटेड में आग लगी थी। यह भी ज्ञात रहे कि पिछले वर्ष (2024 में) 16 मार्च को ही धारूहेड़ा में लाइफ़ लॉन्ग कम्पनी में आग लगने से 19 मज़दूरों की मौत हुई थी और 39 मज़दूर बुरी तरह आग से झुलस गये थे। इस घटना पर आयी एक रिपोर्ट के मुताबिक फ़ैक्ट्री में सुरक्षा मानकों की महज़ अनदेखी ही नहीं बल्कि घोर उल्लंघन पाया गया। न ही इस पर कोई सख़्त कार्रवाई की गयी। इतनी बड़ी घटना के बाद भी श्रम विभाग कान में तेल डालकर सोया रहा। अगर पहले ही श्रम विभाग द्वारा इसपर कार्रवाई की गयी होती तो आज ऐसे हादसे नहीं होते। यह बात भी ग़ौरतलब है कि धारूहेड़ा जैसे औद्यौगिक इलाक़े में लाखों मज़दूर काम करते हैं और अक्सर गम्भीर दुर्घटनाएँ होती रहती हैं लेकिन धारूहेड़ा में अभी तक कोई ट्रॉमा सेण्टर व बड़ा अस्पताल नहीं है। इस दुर्घटना को महज़ लापरवाही कहना इस पर आपराधिक लीपापोती के समान है।
आइए ज़रा दुर्घटनाओं के आँकड़ों पर एक नज़र डालें
अर्थव्यवस्था में 8.5 लाख करोड़ रुपये (100 बिलियन डॉलर) की हिस्सेदारी और सकल घरेलू उत्पाद में 7% योगदान और भारत के मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर के कुल उत्पादन के एक तिहाई की हिस्सेदारी वाला भारतीय ऑटोमोबाइल क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप में लगभग एक करोड़ लोगों को रोज़गार देता है। फिर भी ऑटोमोबाइल सेक्टर में फ़िलहाल हो रहे मुनाफ़े़ के बावजूद ऐसे मामले धारूहेड़ा, बावल, आईएमटी मानेसर, बिलासपुर, खेड़की दौला, टपूकेड़ा समेत देश के सभी औद्योगिक क्षेत्रों में बढ़ते जा रहे हैं। महज़ एसएसआई एन.जी.ओ. की क्रश-2024 नामक रिपोर्ट से पता चलता है कि 2016 से हर साल 10,000 हज़ार मज़दूरों के दुर्घटनाग्रस्त होने की जानकारी सामने आयी है। तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तराखण्ड और राजस्थान जैसे अन्य ऑटो क्षेत्र केन्द्रों में भी ऐसी दुर्घटनाएँ व्यापक हैं। वास्तविक संख्या इससे कई गुना ज़्यादा है जो कहीं दर्ज भी नहीं होती है। हरियाणा में आधे से ज़्यादा दुर्घटनाएँ पॉवर प्रेस की वजह से होती हैं। अभी 2024 में भी सबसे ज़्यादा दुर्घटनाएँ पॉवर प्रेस मशीन से हो रही हैं।
पिछले 6 वर्षों में पॉवर प्रेस मशीनों की वजह से विभिन्न अंगों के कुचल जाने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। दुर्घटना की वजहें – 1) डबल स्ट्रोक पॉवर प्रेस में ढीले और टूटे हुए पिन/कुंजी/स्प्रिंग के कारण चोट लगती है; 2) उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने के लिए पॉवर प्रेस में सेंसर अक्सर बन्द कर दिये जाते हैं; 3) पॉवर प्रेस मशीन चलाने वाले अधिकांश श्रमिकों को उचित/पर्याप्त सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराये जाते हैं।
अक्सर दुर्घटनाओं के बाद पॉवर प्रेस मशीन में निरीक्षण तब होता है जब दुर्घटनाएँ हो चुकी होती हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यह भी देखा गया है कि ऑपरेटर अक्सर मशीनों की मरम्मत खु़द ही करते हैं। दूसरा, पॉवर प्रेस मशीनों का रखरखाव ठीक से नहीं किया जाता। तीसरा, केवल सुरक्षा और गुणवत्ता ऑडिट के दिनों में ही स्पष्ट मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी-SoP) का पालन किया जाता है। चौथा, सुरक्षा पर ज़्यादातर प्रशिक्षण सत्र सिर्फ़ काग़ज़ों पर ही होते हैं। पॉवर प्रेस मशीनों पर काम करने वाले मज़दूरों के लिए दुर्घटनाओं में उँगलियों और हाथों का नुकसान हो जाना कोई नयी बात नहीं है, लेकिन फ़ैक्ट्री प्रबन्धन इसकी ज़िम्मेदारी मज़दूरों पर डालकर उन्हें ही दोषी ठहराता है। इसके अलावा लगातार ऊँची ध्वनि और अधिक गर्मी के सम्पर्क में रहने से सिरदर्द, माइग्रेन, सुनने की क्षमता में कमी और कई स्वास्थ्यगत दिक़्क़तें बढ़ जाती हैं। पैरों पर लम्बे समय तक खड़े रहने से नसों का ख़राब होना और पैरों में सूजन जैसी समस्याएँ अक्सर हो जाती हैं। लेथ मशीन पर काम करने वाले मज़दूर लगातार धूल के सम्पर्क में रहते हैं और इससे साँस फूलना, मतली और अस्थमा और फेफड़ों की समस्या जैसी अन्य समस्याएँ होती हैं। समय-समय पर स्वास्थ्य जाँच न होने से शारीरिक समस्याओं का तुरन्त पता नहीं चलता है। ऊपर से स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच समय पर नहीं हो पाती है और समुचित ढंग से इलाज भी नहीं मिल पाता। वहीं मुआवज़े की आगे की प्रक्रिया थकाऊ होने की वजह से मज़दूर पीड़ित रहते हैं। शौचालयों की ख़राब स्थिति या सुरक्षित पेयजल की कमी से जुड़़े मुद्दों पर कहीं चर्चा भी नहीं की जाती है। दोपहर के भोजन/चाय के ब्रेक मज़दूरों का वाजिब हक़ है, लेकिन इसे मज़दूरों पर किया जाने वाला अहसान माना जाता है।
गौरतलब बात यह भी है कि लगभग सभी (लगभग 80%) घायल मज़दूर सप्ताह में 48 घण्टे से अधिक काम करते थे – जो क़ानूनी सीमा है – तथा लगभग 70% मज़दूर सप्ताह में 60 घण्टे से अधिक काम करते थे, उन्हें फैक्ट्री अधिनियम (1948) का उल्लंघन करते हुए क़ानूनी दरों पर ओवरटाइम का भुगतान नहीं किया जाता है।
हरियाणा और महाराष्ट्र समेत ऑटो सेक्टर के तमाम इलाकों में घायल हुए मज़दूर अधिकतर युवा प्रवासी हैं, जो कम शिक्षित हैं और जिनके पास कोई स्थायी नौकरी नहीं है। वहीं महिला मज़दूरों को समान ‘ख़तरनाक मशीनों’ को चलाने के लिए पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है। देश के स्तर पर ख़ुद श्रम व रोज़गार मन्त्रालय के आँकड़ों के अनुसार, साल 2017 और 2020 के बीच, भारत में पंजीकृत कारख़ानों में (महज़ दर्ज) दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन 3 लोगों की मौत हुई और 11 घायल हुए हैं। यानी हर साल औसतन 1,190 मौतों और 4,000 से ज़्यादा मज़दूरों के घायल होने के आँकड़े सामने आये हैं। इसमें मज़दूरों द्वारा की जा रही आत्महत्याएँ शामिल नहीं हैं। इसमें से 80 प्रतिशत हादसे कारख़ानों में होते हैं। हरियाणा से लेकर देशभर के कारख़ानों समेत कार्यस्थलों में सुरक्षा के दावे किये जाते हैं लेकिन सोचने की बात है कि इस तरह की घटनाएँ आख़िर क्यों बढ़ रही हैं?
वास्तव में यह नियमों व मानकों के उल्लंघन का एक आपराधिक मामला है। इस घटना पर हीरो कम्पनी प्रबन्धन पर कोई कार्रवाई न करना या महज़ हल्की धाराओं के तहत कम्पनी के प्रबन्धन को खुला छोड़ देना आने वाले दिनों में और नयी और बड़ी दुर्घटनाओं की ज़मीन तैयार करता चला जाता है। साथ ही ऐसी घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार दोषियों को गिरफ़्तार न करना मालिक वर्ग के प्रति सरकार और राज्यसत्ता की वर्गीय पक्षधरता ही दिखाता है। लगातार सुरक्षा मानकों की अनदेखी और मज़दूरों की मौतों के बावजूद राज्य की जाँच एजेंसियों और सरकारों को क्यों कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता इसे समझना बेहद ज़रूरी है। वास्तव में ऐसे हादसे मालिकों की मुनाफ़े की अन्धी हवस का नतीज़ा है। ये हादसे दर्शाते हैं कि मालिकों के लिए मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं है, इसलिए कारख़ानों में सुरक्षा के इन्तज़ाम नहीं होते।
गुड़गाँव ही नहीं, देशभर के कारख़ाने ‘मौत के कारख़ाने’ बनते जा रहे हैं? आग लगने व भयानक दुर्घटनाएँ लगातार बढ़ने का बुनियादी कारण क्या है? इसे समझे बगैर संघर्ष की दिशा को पहचाना नहीं जा सकता है।
तात्कालिक मुनाफ़े के बावजूद मौजूदा पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था में दूरगामी तौर पर आपसी प्रतियोगिता के चलते औसत मुनाफ़े़ की दर (बीच-बीच में मुनाफ़ा बढ़ने के बावजूद) लगातार घटती है। तब हर मालिक अपने मुनाफ़े को बरक़रार रखने के लिए मज़दूरों से अत्यधिक काम करवाता है और मज़दूरों की ज़रूरत को पूरा करने वाले ख़र्च कम कर देता है। मज़दूरों की सुरक्षा पर ख़र्च उन्हें बेमतलब का ख़र्च लगता है। ऊपर से फ़ासिस्ट मोदी सरकार मालिकों को अपने यहाँ सबकुछ ठीक होने का ख़ुद सर्टिफि़केशन देने की इजाज़त दे रही है। इसी मुनाफ़े से पूँजीपति वर्ग नेता, मन्त्री और सरकारी एजेंसी को अपने हित के लिए इस्तेमाल कर लेता है। इसी वजह से मालिक हर रोज़ अपने मुनाफ़े की अन्धी हवस को पूरा करने के लिए मज़दूरों की जान को जोखिम में डालते हैं। नतीजतन आये दिन ऐसे अमानवीय व ख़तरनाक हादसे बढ़ते जा रहे हैं।
इस सबका ख़ामियाज़ा आज मज़दूर वर्ग को निर्मम असुरक्षित परिस्थितियों में काम करके चुकाना पड़ता है। इसका अन्त लूट, शोषण और दमन पर आधारित मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था के स्थान पर लोगों की ज़रूरतें पूरी करने वाली समाजवादी व्यवस्था क़ायम करने पर ही होगा। लेकिन जब तक ऐसी व्यवस्था क़ायम नहीं होती तब तक क्या किया जाये? अमानवीय मौतों व दुर्घटनाओं से बचाव के लिए तत्काल क्या किया जाना चाहिए? अगर अपने आपको सुरक्षित रखना है तो हमें एकता बनानी होगी। साथ ही हर घटना में सभी मज़दूरों को न्याय मिले इसके लिए लगातार प्रशासन व सरकार पर दबाव बनाये रखना होगा।
भविष्य में भी कारख़ानों में जारी ठण्डी हत्याओं पर रोक लगाने के लिए पहले से तैयारी करनी होगी। यानी हमें अपनी प्रमुख माँगों को व्यापक मज़दूर आबादी के बीच ले जाना होगा, उन्हें जागरूक, लामबन्द और यूनियनों में संगठित करके प्रबन्धन, प्रशासन व सरकार पर लगातार दवाब बनाने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
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