हीरो मोटोकॉर्प के संघर्षरत साथियों का संघर्ष ज़िन्दाबाद !
गुडगाँव-बवाल-धारूहेड़ा-मानेसर के ऑटोमोबाइल सेक्टर में शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों की कड़ी में हीरो के मज़दूरों का नाम भी हुआ शामिल!

गत वर्ष के नवम्बर-दिसम्बर के महीने के बीच हीरो प्रबन्धन ने विमुद्रीकरण का बहाना कर धीरे-धीरे ठेके पर काम कर रहे मज़दूरों की छँटनी शुरू की। पहले कुछ मज़दूरों को निकाला गया और फिर एक साथ पिछले 8-10 सालों तक स्थायी प्रकृति के मुख्य उत्पादन में लगे हुए करीब 1000 ठेका मज़दूरों को काम से निकाल दिया गया। पूरे ऑटोमोबाइल सेक्टर के ठेका मज़दूरों की हालत आज एक जैसी ही है। चाहे वह होण्डा के संघर्षरत मज़दूर हो या हीरो के। पूरी गुडगाँव-बवाल-धारूहेड़ा-मानेसर की औद्योगिक पट्टी में काम करने वाले मज़दूर श्रीराम पिस्टन, बेलसोनिका, डाईकिन, होण्डा, हीरो के प्रबन्धन इसी तरह अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ सालों तक नियमित प्रकृति के काम पर ठेके पर मज़दूरों को रखते है और जब मज़दूर उनके शोषण और अत्याचार से तंग आकर यूनियन बनाने जैसे अपने बुनियादी संवैधानिक अधिकार की माँग करते हैं तो उन्हें काम से निकाल बाहर करते हैं। हीरो का यह प्लाण्ट 1996 में लगा था जिसमें लगभग पिछले 10 सालों से मुख्य उत्पादन पर ठेका मज़दूरों से काम करवाया जा रहा है। कम्पनी ने विमुद्रीकरण की दुहाई देते हुए करीब 1000 मज़दूरों को तो काम से बाहर निकाल ही दिया है और अब अन्दर बचे 200 ठेका मज़दूरों को भी बर्ख़ास्त करने का इरादा रखे हुए है। आई.टी.आई. पॉलीटेकनिक से प्रशिक्षण पाकर सीधे जिस फ़ैक्टरी में कई मज़दूरों ने 10 साल तक काम किया अचानक उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। इस तानाशाही के ख़िलाफ़ हीरो के मज़दूरों ने हीरो मोटोकॉर्प ठेका मज़दूर संघर्ष समिति के बैनर तले ख़ुद को गोलबन्द कर अपने हक़-अधिकारों के लिए संघर्ष का बिगुल फूँक दिया है।

निकाले गये ठेका मज़दूरों का कहना है कि जब तक उन्हें वापिस लिया जाता और उन्हें स्थायी नहीं किया जाता तब तक वो अपना संघर्ष जारी रखेंगे। 2 जनवरी 2017 को हीरो के मज़दूरों ने राजीव चौक गुडगाँव से मिनी सचिवालय तक रैली निकाली और अपनी माँगों का ज्ञापन श्रम उपायुक्त को सौंपा। डी.सी. दफ़्तर के बाहर धरना-प्रदर्शन किया गया जिसमें हीरो के समर्थन में होण्डा, डाईकिन, बेलसोनिका आदि के मज़दूरों, ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन, बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं ने भी शिरकत की। 3 जनवरी को सहायक श्रम आयुक्त के पास मज़दूरों व कम्पनी प्रबन्धन को त्रिपक्षीय बैठक के लिए बुलाया गया। लेकिन श्रम विभाग के अधिकारियों ने बिना मज़दूरों की मौजूदगी में पहले ही कम्पनी के नुमाइन्दो से बातचीत की और उसके बाद मज़दूरों के सामने खानापूर्ति करने के लिए बैठक की गयी जिसका कोई नतीजा नहीं निकला। ज्ञात हो कि इतने साल ठेके पर काम करने के बाद इस देश के श्रम क़ानून के मुताबिक़ श्रमिक को परमानेंट यानी स्थायी कामगार का दर्जा देना पड़ता है। विमुद्रीकरण तो केवल बहाना मात्र है असल में कम्पनी प्रबन्धन यह नहीं चाहता था कि मज़दूरों को स्थायी किया जाये क्योंकि ठेके पर काम कर रहे मज़दूरों से वो अपने मन मुताबिक़ काम ले सकते हैं और किसी भी तरह के मज़दूर आक्रोश को दबाने के लिए उन्हें तुरन्त काम से बाहर किया जा सकता है बिना किसी क़ानूनी पचड़े में पड़े। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी हो जाती है कि 6 साल की अवधि से काम करने वाले मज़दूरों को नहीं निकाला गया। लेकिन प्रबन्धन के इन सब दाव-पेंचों से लड़ने के लिए हीरो के मज़दूरों ने अपनी कमर कस ली है। 3 जनवरी को श्रम विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक असफल होने के बाद 4 जनवरी को डी.सी. कार्यालय के बाहर एक दिवसीय भूख हड़ताल का आयोजन किया गया। मज़दूरों की एक दिवसीय भूख हड़ताल के दबाव के बाद श्रम विभाग ने एक बार फिर 6 जनवरी को कम्पनी मैनेजमेण्ट और ठेका मज़दूरों को बैठक के लिए बुलाया। लेकिन इस बार भी मैनेजमेण्ट मज़दूरों की माँगों को मानने के लिए तैयार नहीं थी।

अपनी माँगों को एक बार फिर उठाते हुए हीरो के मज़दूरों ने 9 जनवरी के दिन गुडगाँव के राजीव चौक से हीरो के कम्पनी गेट तक विशाल रैली निकाली। मज़दूरों ने 9 जनवरी का दिन चुना जिस दिन जापानी अधिकारियों की मौजूदगी में कम्पनी में ऑडिट की जानी थी। इस बीच हीरो के मज़दूरों ने परचा वितरण के माध्यम से इलाक़े के बाक़ी ठेका मज़दूरों को भी उनके इस संघर्ष से जुड़ने का आह्वान दिया क्योंकि आज जो हीरो के मज़दूरों के साथ हो रहा है वो कल उनके साथ भी हो सकता है। हीरो के मज़दूरों के इस जुझारू संघर्ष के दबाव के चलते कम्पनी प्रबन्धन को एक बार फिर श्रम विभाग के अधिकारियों के सामने हीरो के निकाले गये मज़दूरों के साथ बातचीत की टेबल पर आना पड़ा। लेकिन इस मर्तबा भी कम्पनी प्रबन्धन का रुख़ अड़ियल ही रहा और मज़दूरों ने भी साफ़ कर दिया कि जब तक उनकी सारी माँगें नहीं मानी जातीं वो अपना संघर्ष जारी रखेंगे।

अपने संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए हीरो के मज़दूरों के 16 जनवरी 2017 से मिनी सचिवालय, गुडगाँव पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की शुरुआत करने का एलान किया था लेकिन कम्पनी ने मज़दूरों के इस क़दम से घबराकर पुलिस द्वारा उनपर दबाव बनवाया कि वो भूख हड़ताल पर न बैठ पाये। पुलिस ने आनन-फ़ानन में पहले मिनी सचिवालय के सामने बैठने की दी गयी अनुमति को रद्द कर मज़दूरों को वहाँ से उठ जाने को कहा, लेकिन अपने संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए मज़दूरों ने डी.सी. दफ़्तर के सामने बैरी वाले बाग़ में तब तक बैठने का फ़ैसला लिया है जब तक आगे की योजना तय नहीं की जाती।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में इस तरह सालों साल ठेके पर काम करवाने और स्थायी करने का समय आते ही नौकरी से निकाल देने की प्रथा बहुत पुरानी और आम बात है। यह नीति किसी एक फ़ैक्टरी या कम्पनी तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे सेक्टर के पोर-पोर में फैली हुई है। इसीलिए इस कुप्रथा से लड़ने के लिए आज पूरे सेक्टर के ठेका मज़दूरों को न सिर्फ़ हीरो के संघर्ष में उनका समर्थन करने के लिए आगे आना चाहिए बल्कि ख़ुद को एक स्वतन्त्र क्राि‍न्तकारी सेक्टरगत यूनियन के तले गोलबन्द होने की ज़रूरत है। हीरो के मज़दूर अपने संघर्ष को जीत की मंज़िल तक लेकर जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और उनकी जीत से पूरे सेक्टर के मज़दूरों को भी संगठित हो संघर्ष करने की उम्मीद मिलेगी। लेकिन उसके लिए ज़रूरी होगा अपनी लड़ाई को ऑटोमोबाइल सेक्टर की हर फ़ैक्टरी तक लेकर जाना क्योंकि आज जो हीरो में हो रहा है वह कल किसी और फ़ैक्टरी में दूसरे ठेका मज़दूरों के साथ होगा। सारे फ़ैक्टरी मालिक अपनी यूनियन और एसोसिएशनों में ऐसी ही मज़दूर विरोधी तरकीबों को ईजाद कर अपनी फ़ैक्टरी में लागू करते हैं उनका मुकाबला करने के लिए आज मज़दूरों को भी एकजुट होकर संघर्ष करना ज़रूरी है।

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2017


 

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