जनरल नॉलेज का एक सबक
प्रश्न – मजदूर और मालिक में दस अन्तर बताओ

एक पाठक, वाराणसी

उत्तर – 1. मजदूर की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वह अंगूर की तरह सूखकर किशमिश बन जाता है । मालिक की उम्र बढ़ती है तो वह सुअर की तरह चर्बीदार होकर बेडौल हो जाता है तथा लकड़बग्घे की तरह फैक्ट्री से घर और घर से फैक्ट्री दौड़ते-दौड़ते नीरस हो जाता है ।

2. मालिक ‘सुजलां-सुफलां’ गाता है, मजदूर दाल-भात-तरकारी के लिए तरसता है ।

3. मालिक की अदालत कहती है – ‘हड़ताल करना अपराध है।’ मजदूर इस आदेश के खिलाफ भी हड़ताल करता है ।

4. मालिक आजादी के सतावन साल पूरे होने पर जश्न मनाता है तो मजदूर इसकी कब्र खोदने के लिए कुदाल तेज करता है ।

5. मालिक संविधान में संशोधन की बात करता है । मजदूर ‘मजदूर वर्ग के नेतृत्व’ में नयी संविधान सभा बुलाने की मांग करता है।

6. मालिक का लड़का पांच वर्ष की उम्र में फुटबाल खेलता है, मजदूर का लड़का फुटबाल बनाता है ।

7. मालिक गाड़ी में चलता है और मजूदर उसका धुंआ पीता है ।

8. मालिक मेहनतकश को भ्रमित करने के लिए ‘देश की सीमा पर आतंकवाद-आतंकवाद’ का नगाड़ा बजाता है । मजदूर देश के भीतर की स्थिति को उजागर करने के लिए बिगुल बजाता है ।

9. मालिक जोंक होता है और मजदूर मनुष्य ।

10. मनुष्य का नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने शरीर पर चिपके जोंक से छुटकारा पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करे ।

 

 

बिगुल, अक्‍टूबर 2003


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments