विदेशों में मज़दूरी कर रही भारतीय महिला मज़दूरों की हालत

यह पत्र हमें मज़दूर बिगुल की पाठक बिन्दर कौर ने भेजा है। बिन्दर कौर सिंगापुर में घरेलु नौकर के तौर पर काम करती हैं, पर मज़दूर बिगुल को व्हाटसएप्प के माध्यम से नियमित तौर पर पढ़ती हैं। तमाम सारे पढ़े-लिखे मज़दूर जो आज बेहद कम तनख़्वाहों पर अलग-अलग काम कर रहे हैं, राजनीतिक तौर पर बेहद सचेत हैं और समय-समय पर बिगुल को पत्र लिखते रहते हैं, फ़ोन करते रहते हैं। ऐसे में हम अन्य साथियों से भी अपील करते हैं कि वो मज़दूर बिगुल को पत्र लिखकर अपने जीवन के बारे में ज़रूर बतायें ताकि देशभर के मज़दूरों को पता चले कि जाति, धर्म, क्षेत्र से परे सभी मज़दूरों की माँगें और हालत एक ही है।
बिन्दर कौर का पत्र हम यहाँ बिना किसी सम्पादन के दे रहे हैं।

कोई कहता है इंगलिश में मेड,
कोई कहता हेलपर,
कोई वरकर तो कोई नौकरानी…
आप लोग हमें बस नाम देते हैं…..
हमारे घर के हालात क्या हैं,
आपको नहीं मालूम,
हमारी भाषा में यहाँ रहने को
बस मजबूरी का नाम देते हैं।

हमारा नाम बिन्दर कौर है, हमारी आयु 25 साल है। हम पंजाब के रहने वाले हैं। हमारे पास भारत में कोई काम नहीं था, इसलिए हम सिंगापुर में काम करने के लिए आये, घर का सारा काम, खाना बनाना आदि करने।
22 सितम्बर 2017 को हम सिंगापुर में आये। हम जैसे-जैसे लड़कियों को मिले, हमें पता चला कि वो कैसे रहती हैं, उनको क्या-क्या सहन करना पड़ता है, यहाँ पर छोटी-छोटी बात पर झगड़ा, गालि‍याँ सहना, आधा भूखा रहना, घर में क़ैद रहना और हमेशा डर के नीचे दबे रहना आम बात है।
एक दिन जब हम ऐजंसी में गये तो हम क्या देखते हैं कि एक लड़की घर से भागकर आयी हुई है। पूछने पर पता चला कि जिस घर में वो काम करती थी, वह घरवाले उसे बहुत परेशान करते थे। जब वो लोग घर में होते थे, तो उससे काम करवाते, जब घर से जाते तो उसे बाँधकर जाते थे, यहाँ तक कि ग़लती होने पर उसे मारते थे, थप्पड या जूते से, उसके बाल पकडकर भी मारते थे। उसका बाहर तो आना-जाना बन्द था ही, उसका फ़ोन तक भी तोड़ दिया गया था। जब एक दिन वे लोग उसे बाँधकर नहीं गये तो वह खिड़की से भाग आयी। उसका पासपोर्ट भी उसके पास नहीं था।
रविवार को सबको छुटटी होती है। हमने रविवार की छुटटी ली, तो बहुत-सी लड़कियों से बात करने का मौक़ा मिला। उनमें से एक लड़की ने बताया कि मुझसे तीन-तीन बार एक दिन में घर साफ़ करवाते हैं। एक और लड़की ने बताया कि एक बार मुझसे कपड़ा जल गया ग़लती से, तो मैडम ने मेरी पीठ पर आईरन बॉक्स लगा दिया। एक और लड़की मिली थी, ऐजंसी में, उसका नाम मनजिन्दर था और वह पंजाब के जलन्धर शहर की थी, वह एमए पास थी, खेलती भी थी, खेलों में उसे गोल्ड मैडल भी मिल चुका है, मजबूरी में सिंगापुर आ गयी, उसने बताया कि, दीदी मुझे ये लोग हमेशा गाली निकाल कर बात करते हैं, कोई ग़लती हो तो बोलते हैं – अनपढ़-गँवार कहीं की, पता नहीं कहाँ से आयी है, पूरा दिन एक काम को 2-2 या 3-3 बार करवाते हैं, छुटटी के पैसे भी नहीं देते, 6 महीने हो गये एक भी छुटटी नहीं दी, बाहर जाते हैं तो लॉक करके जाते हैं।
बेशक ख़ूबसूरत होंगी,
पत्थर और शीशे की इमारतें
लेकिन क़ैद हैं यहाँ
माऐं, बहनें, बेटियाँ…
और क़ैद हैं उनकी आँखों के सपने।
आपकी साथी ,
बिन्दर कौर,
सिंगापुर

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2018


 

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