हरियाणा में धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों की उड़ रही धज्जियाँ

रमेश खटकड़

कहने को भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है यानी सरकार को किसी भी धर्म विशेष में दख़ल नहीं देनी चाहिए। धर्मनिरपेक्षता का मतलब ही यह होता है कि यह व्यक्ति का निजी मसला है और राजनीति धर्म से अलग रहे। लेकिन हमारे यहाँ तो सभी चुनावी पार्टियाँ  जाति-धर्म, मन्दिर-मस्जिद के नाम पर ही लोगों से वोट लेती हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और पीने के साफ़ पानी की समस्या जैसे मुद्दों को असल मुद्दे ही नहीं समझा जाता। 70 साल की आज़ादी के बाद भी जिस देश (तमाम प्राकृतिक साधन-सम्पन्न) में क़रीब 30 करोड़ नौजवान बेरोज़गार हों और वहाँ रोज़गार कोई मुद्दा ही ना हो और मीडिया दिन-रात हिन्दू-मुस्लिम की फ़ालतू बहस में टाइम पास करता रहे, आये दिन किसान आत्महत्या करते हों, आधी से ज़्यादा महिलाओं में ख़ून की कमी हो तो इस देश के नौजवानों को तय करना है कि वे कैसा समाज चाहते हैं! 

20 अप्रैल को गुड़गाँव के सेक्टर-53 में जुम्मे की नमाज़ पढ़ रहे मुस्लिमों को वहाँ से 6 लफंगों ने हटा दिया। वे जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे और मस्जिद में ही नमाज़ पढ़ने को कह रहे थे और ये सब वो हँसते-हँसते कर रहे थे, उनके हाव-भाव से लग रहा थे कि हंगामा (धक्काशाही) करने वाले हिन्दुत्वादी गुण्डों के पीछे खट्टर-मोदी सरकार खड़ी है और जनता को धर्म के नाम पर बाँटने के हथकण्डे लगातार जारी हैं। ताकि लोग असल मुद्दों को छोड़कर जाति-धर्म के नाम पर कट मरे। वैसे तो इस देश में धर्म के नाम पर आये दिन बड़े-बड़े बाबा शहर के किसी भी पार्क या मैदान में तम्बू गाड़के लाउडस्पीकरों से आमजन की रातों की नींद हराम करते हैं और तमाम मन्दिरों–मस्जिदों-गुरुद्वारों में सुबह-सुबह भयंकर शोर मचाया जाता है,  लेकिन उन पर कोई किसी तरह की बन्दिश नहीं, क़ानून भी है कि कोई ध्वनि-प्रदूषण नहीं करेगा, परन्तु ये क़ानून कहने-भर को है, आये दिन जगराता वाले पूरी गली घेरके सारी रात लोगों की नींद हराम करते हैं। रामपाल, गुरमीत रामरहीम, आशाराम, नारायण सांई आदि बलात्कारी-हत्यारे  बाबाओं के पीछे बीजेपी के अटल बिहारी से लेकर आडवानी, खट्टर, नरेन्द्र मोदी तक जैसे बड़े-बड़े नेता होते हैं और अपने वोट बैंक को पक्का करने में अहर्निश लगे रहते हैं।

असल में हमारे देश की जनता अपने तमाम हक़-अधिकारों से कोसों दूर है। मेहनतकश जनता के बच्चे सरकारी अस्पतालों में बिना मूलभूत सुविधाओं के दम तोड़ देते हैं और दूसरी तरफ़ प्राइवेट अस्पताल छोटी-मोटी बीमारी में भी लाखों लूट लेते हैं, सरकारी स्कूलों में देश के स्तर पर लाखों पद ख़ाली पड़े हैं, देश में कोई ऐसा सरकारी कॉलेज नहीं जहाँ सभी टीचर पक्के हों। ट्रेन और सरकारी बसों में सफ़र करो तो भेड़-बकरियों की तरह लोगों को ढोया जाता है। इन सभी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए  भाजपा और संघ देश में दंगों की पूरी तैयारी कर रहे हैं। मोदी और उसकी मण्डली अच्छी तरह जानती है कि उदारीकरण और निजीकरण के दौर (1991-92 में कांग्रेस ने लागू की थी) में आम जनता को कुछ भी हासिल नहीं होगा। पहले 10 साल मनमोहन की सरकार ने अडानी-अम्बानी-टाटा की जमात की सेवा की और अब मोदी सरकार नंगे रूप में गाय और हिन्दुत्व की आड़ में वही काम कर रही है। जनता की ख़ून-पसीने की गाढ़ी कमाई कॉर्पोरेट घराने दिन-दिहाड़े लूट रहे हैं और नेता मन्त्री सब मस्त हैं। आज नेता-मन्त्रियों, अदानियों, अम्बानियों तथा डाकुओं में कोई फ़र्क़ नहीं रह गया है।

जनता को जाति-धर्म के नाम पर आपस में लड़ाकर ही इस लूट और बर्बादी को जारी रखा जा सकता है – यह बात पूँजीपतियों-कॉर्पोरेट घरानों के टुकड़खोर संघी-भाजपा अच्छी तरह से जानते हैं। इसीलिए कोई भी मौक़ा हो, ये जनता को हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर लड़ाते हैं। कभी खुले में नमाज़ तो कभी गाय तो कभी मन्दिर। अभी हरियाणा के हर गाँव में खट्टर-मोदी योगशाला खोल रहे हैं और उनको संघ की पाठशाला बनाने की चाल है क्योंकि हरियाणा के गाँवों में लोग संघियों को सन्देह की नज़र से देखते हैं। ये संघी जानते हैं कि देश में जब नौजवान आपने हक़ों के लिए बग़ावत करेंगे तो हरियाणा के नौजवानों को पहले ही आपस में जाट-ग़ैर जाट और गाय-गोबर के मुद्दे पे आपस में बाँट दो। यह हरियाणा के नौजवानों को फासीवाद के लैठेत बनाने की तैयारी चल रही है। नहीं तो इनको क्या पड़ी है लोगों के लिए योगशाला खोलें, जिस राज्य में स्कूल-कॉलेजों में अध्यापकों और स्टाफ़ के लाखो पद ख़ाली पड़े हों, वहाँ मूलभूत ज़रूरत क्या है जिसे प्राथमिकता में लेकर पूरा किया जाये, यह बताने की ज़रूरत नहीं है!

इसलिए आज यह समझना भी बेहद अहम हो गया है कि अगर गाँवों में फासीवादी गोलबन्दी और प्रतिक्रियावादी आन्दोलन के बरक्स ग्रामीण ग़रीबों के क्रान्तिकारी संगठन खड़े नहीं किये जाते तो आने वाले समय में भयंकर संकट का सामना करना होगा। अभी से ही गाँवों के नौजवानों के क्रान्तिकारी संगठन, जातितोड़क संगठन, ग्रामीण मज़दूरों की यूनियन, खेतिहर मज़दूरों की यूनियन बनाने के साथ-साथ ग़रीब और परिधिगत किसानों के संगठन भी बनाने होंगे। ताज़ा आँकड़े बता रहे हैं कि ये वर्ग आज गाँवों में बहुसंख्यक हैं। मगर वे स्वयं ही क्रान्तिकारी गोलबन्दी नहीं कर सकते हैं। वहाँ क्रान्तिकारी अभिकर्ता की और भी ज़्यादा ज़रूरत है। ऐसे में, क्रान्तिकारी ताक़तों को गाँवों में भी अपने क्रान्तिकारी जनसंगठनों का नेटवर्क तैयार करने और अपना व्यापक सामाजिक आधार बनाने पर कार्य करना होगा।                    

मज़दूर बिगुल, मई 2018


 

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