भारत में बढ़ती नशाखोरी का आलम

रिंकू सिधानी (हरियाणा)

भारत एक युवाओं का देश है। कहा जा रहा है कि युवाओं के दम पर 2020 में दुनिया की “आर्थिक महाशक्ति” बना जा सकता है। लेकिन जिस युवा पीढ़ी के बल को देखकर अन्दाज़ा लगाया जा रहा है। वह ठीक नहीं है। क्योंकि वह युवा आज बेरोज़गारी के चलते आत्महत्या करने को विवश है, वह युवा आज डिग्रि‍याँ लेकर सड़कों पर भटकने के लिए मजबूर है, वह युवा आज दिन-पर-दिन नशे की गिरफ़्त में आ रहा है। युवा तो युवा आज बच्चे भी नशे के शिकार हो रहे हैं। बीड़ी से लेकर शराब तक, छोटा हो या बड़ा नशा हो – देश को अन्दर से खोखला कर रहा है। एक बड़ी आबादी नौजवानों की नशे के जाल में फँस चुकी है। 29 प्रतिशत आबादी विभिन्न प्रकार के नशों की गिरफ़्त में है। इनमें से सबसे अधिक योगदान शराब का है। इसके बाद अफ़ीम, भांग-गांजा का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है। बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू आदि तो समाज में आम बात है, देश में नशे को मिटाने के खि़लाफ़ ढेरों अभियान चल रहे हैं। सरकार से लेकर सामाजिक जन संगठन तक नशे को मिटाने में जुटे हुए हैं। लेकिन ज़मीनी स्तर पर ये अभियान कितने कारगर हैं, इसकी गवाही पीजीआईएमएस के नशा मुक्ति केन्द्र के आँकड़े दे रहे हैं – कि आखि़र स्कूली शिक्षा के साथ ही युवा पीढ़ी नशे के मकड़जाल में किस कदर फँस रही है। पिछले 5 सालों में नशे के कारोबार में इतना इज़ाफ़ा हुआ कि मरीजों की संख्या क़रीब 5 गुना हो गयी। पीजीआईएमएस के नशा मुक्ति केन्द्र में हर दिन 20 से 25 मरीज आते हैं। इन मरीजों में सबसे ज़्यादा शराब पीने वालों की संख्या होती है, तो वहीं अफ़ीम, स्मैक और हेराेईन आदि नशीले पदार्थों का भी ख़ूब सेवन होता है। दिल्ली देश की राजधानी नशों के मामले में 11वें नम्बर पर है, वहीं पंजाब देश का एक ऐसा राज्य है, जो शराब व अन्य नशाें के मामले में पहले पायदान पर है। अभी हाल ही में सामाजिक जनसंगठनों ने नशे (चिटे) के खि़लाफ़ पूरे 7 दिन विरोध किया गया। (काले सप्ताह के रूप में) पंजाब के पढ़े-लिखे नौजवान व प्रगतिशील लोगों ने गाँव व शहरी क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन किया व प्रशासन और सरकार को जि़म्मेदार ठहराया गया। आपको याद होगा कि चुनावी दौर में नशे को बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने वाले कैप्टन अमरिन्दर के सामने सबसे पहले और सबसे बड़ी चुनौती अपने इसी वादे पर खरा उतरने की थी। क्योंकि चुनावी सभाओं से जिस तरह के दावे किये गये थे, उनके मुताबिक़़ सत्ता सँभालने के महज़ 4 हफ़्ते के अन्दर नशे का काम तमाम कर दिया जायेगा। आप अन्दाज़ा इस बात से लगायें कि मुख्यमन्त्री के दफ़्तर से आँकड़े के लिहाज़ से देखें तो सरकार के कमान सँभालने यानी 16 मार्च से लेकर 27 मार्च तक सूबे में कुल 485 लोगों को नशे से जुड़े मामलों में गिरफ़्तार किया गया। इसी समयावधि में 387 मामले दर्ज किये गये और कुल 3 किलो 900 ग्राम हेरोर्इन बरामद हुई। अब भी पंजाब में नशे के आदी लोगों में 18 से 35 साल तक के युवाओं की तादाद 76 फ़ीसदी है। 10 जि़लों में किये गये सर्वे बताते हैं कि राज्य में नशे का इस्तेमाल करने वालों लोगों की संख्या 2 लाख 32 हज़ार के पार है। इसमें ज़्यादा हैरानी की बात यह है कि इसमें 89 फ़ीसदी पढ़े-लिखे और 83 फ़ीसदी कामकाजी लोग थे। अभी भी पंजाब का बड़ा हिस्सा नशे से जूझ रहा है। जो भी पंजाब में नशे के खि़लाफ़ बोलने या लिखने की कोशिश करता है, उसे राजनीतिक नेताओं द्वारा दबाया जाता है। जैसे कि एक-दो साल पहले दिलजीत दोसांझ की फि़ल्म रिलीज हुई थी। जिसका नाम था – उड़ता पंजाब, उसे राजनीतिक नेताओं द्वारा दबाने की कोशिश की गयी। उड़ता पंजाब फि़ल्म में पंजाब में नशे के कारण क्रूर परिस्थितियों को बयान किया गया था, जो राजनीतिक नेताओं को शायद हजम नहीं हो पा रही थीं। इस फि़ल्म का राजनीतिक लोगों ने विरोध किया। हाल ही में पंजाब के मशहूर कलाकार रंजीत बावा द्वारा गाये गये एक गीत – जिसके पंजाबी बोल – “चिटा बेचण सरकाराँ ताईऔं ताँ शरेयाम बिकदा” में साफ़-साफ़ कहा गया कि राजनीतिक लोग नशे के कारोबार को बढ़ावा देते हैं। शायद इसीलिए पंजाब के राजनीतिक लोगों ने इस गीत का विरोध किया। इससे साफ़ पता चलता है कि राजनीतिक लोग नशे के कारोबार चलाते हैं। वैसे तो पंजाब को सोने की चिड़िया व हरित क्रान्ति वाला राज्य माना जाता है, लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ सालों में वहाँ से ड्रग्स के बढ़ते मामलों की ख़बरें आ रही हैं, वे चिन्ताजनक हैं। ख़बरों की मानें तो जहाँ एक तरफ़ पंजाब के स्कूल व कॉलेज के बच्चो में ड्रग्स पीना आम सी बात हो गयी है, वहीं दूसरी तरफ़ ड्रग माफि़याओं के लिए यह मुनाफ़ा कमाने का आसान रास्ता बन गया है। ड्रग्स माफि़या सिर्फ़ मुनाफ़े के लिए कारोबार करते हैं। उन्हें इस बात से कुछ लेना-देना नहीं है कि ड्रग्स से कितने लोग अपनी जि़न्दगी खो बैठते हैं तथा परिवार के परिवार नशे के चलते मिट्टी में मिल जा रहेे हैं। नशे के कारण सड़क दुर्घटनाएँ होना आम बात है। नशा एक ऐसी चीज़़ है जिसका सेवन कर आदमी अधिक उत्तेज़ित होता है और बलात्कार व छेड़छाड़ की घटनाओं को अंजाम देता है। नशे के कारण बहुत-सी चोरी की घटनाएँ सामने आती हैं। क्योंकि नशा आदमी के अन्दर बेकार की बहादुरी पैदा करता है। लेकिन मुनाफ़ाखोर तो सिर्फ़ अपना मुनाफ़ा देखते हैं। पिछले 5 साल में पंजाब के सामाजिक सुरक्षा विभाग ने साल के अन्त में जो आँकड़े दिये। उनके अनुसार पंजाब के गाँव में क़रीब 67 फ़ीसदी घर ऐसे हैं, जहाँ कम से कम एक व्यक्ति नशे की चपेट में है। इसके अलावा हर हफ़्ते एक व्यक्ति की मौत हो जाती है। सिर्फ़ पंजाबी ही नहीं नशे की चपेट में भारत के कई राज्य ऐसे हैं, जो नशाखोरी में अव्वल माने जाते हैं, जैसे अन्तरराष्ट्रीय सीमा से सटे मणिपुर में नशे की खेप तेज़ी से बढ़ रही है। आयेदिन सीमा सुरक्षा बल द्वारा नशे की बड़ी खेप के पकड़ने की ख़बरें आती रहती हैं। जो इस ओर इशारा करती हैं कि ड्रग्स की जड़ें कितनी गहरी हैं। मणिपुर में भी सरकारी आँकड़े कहते हैं कि लगभग 45000-50000 लोग नशे की चपेट में हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि म्यांमार-थाईलैण्ड की सीमाएँ इस राज्य से जुड़ी हुई हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि इस व्यापार में इन देशों से मदद मिलती है। ख़ैर जो भी है मणिपुर का युवा भी तेज़ी से नशाखोरी का शिकार होता जा रहा है। मणिपुर की सीमा से लगे होने के कारण मिज़ोरम भी मणिपुरी की तरह नशाखोरी का शिकार है। मिज़ोरम में भी सबसे ज़्यादा नशीले पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मन्त्रालय द्वारा भारतीय राष्ट्रीय सर्वेक्षण की 2016 की एक रिपोर्ट की मानें तो मिज़ोरम में पिछले चार सालों में क़रीब 48,209 टन नशीली दवाइयाँ ज़ब्त की गयी हैं।

देश की राजधानी दिल्ली भी नशाखोरी का बड़ा अड्डा बन चुकी है! दिल्ली में कुछ इलाक़े ऐसे हैं जहाँ गाजा, चरस, कोकीन का धन्धा तेज़ी से फल-फूल रहा है। इन्हीं जगहों से ड्रग माफि़याओं द्वारा दूसरी जगह पर नशा मुहैया कराया जाता है।

नशाखोरी के खि़लाफ़ मुहिम चलाने का दावा करने वाली दिल्ली सरकार ने पिछले वर्षों में 58 शराब के ठेको के लाइसेंस जारी किये थे, जिसे लेकर विपक्षियों ने ख़ूब हो-हल्ला मचाया। 2016 में दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग की पहल पर कराये गये सर्वे के मुताबिक़़ राजधानी में 70 हज़ार बच्चों को नशे का शिकार पाया गया।

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि सड़कों पर रहने वाले बच्चे ख़तरनाक से ख़तरनाक नशे का सेवन करते हैं। रिपोर्ट यह भी कहती है कि राजधानी में 20 हज़ार ऐसे बच्चे हैं जो कि तम्बाकू खाते हैं। इसके साथ ही नशे के शिकार बच्चों में शराब पीने वाले 9450, भांग-गांजा पीने वाले 5600, हेरोर्इन का सेवन करने वाले 840 और अन्य प्रकार के नशे का सेवन करने वाले 7910 शामिल हैं।

देश के अन्य राज्यों की तरह देखा जाये तो बिहार भी नशाखोरी में पीछे नहीं है। ज़हरीली शराब के कारण लोगों के मरने की ख़बरें इस राज्य से आती रही हैं। हालाँकि बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबन्दी करके नशाखोरी में लगाम कसने की पहल की, लेकिन इसके बावजूद चरस, गाजा जैसे अन्य नशे के साधनों में किसी प्रकार की कोई गिरावट नहीं आयी है। वहाँ के निवासियों की मानें तो इनमें शराबबन्दी के बाद इज़ाफ़ा ज़रूर हो गया है।

गांजे के कारोबार से जुड़े लोग अब ज़्यादा सक्रिय हो गये हैं। नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो के आँकड़े बताते हैं कि साल 2016 में 496.3 किलो गांजा ज़ब्त हुआ था, जबकि साल 2017 (सिर्फ़ फ़रवरी तक) में 6884.47 किलो गांजा ज़ब्त हो चुका है।

देखा जाये तो शराबबन्दी वाले राज्य बिहार में सबसे बड़ा संकट तस्करी का है, जिसके कारण राज्य में नाशखोरी बढ़ रही है और युवाओं का भविष्य खराब हो रहा है।

बिहार की तरह केरल ऐसा राज्य है, जहाँ शराब पूरी तरह से बन्द हैं, लेकिन इसके बावजूद भी यहाँ पर नशाखोरी कम नहीं हुई है। शराबबन्दी के कारण यहाँ अफ़ीम, चरस और कोकीन जैसे मादक पदार्थों का कारोबार बड़े पैमाने पर फल-फूल रहा है। जिसका शिकार केरल के युवा हो रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के इन आँकड़ों से पता चलता है कि ड्रग्स की लत से जुड़ी सबसे ज़्यादा आत्महत्याएँ महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में होती हैं। तीसरे स्थान पर केरल है। इस दक्षिणी राज्य में 475 लोगों ने आत्महत्याएँ की थीं।

नशीले पदार्थों के बारे में अगर हम हरियाणा की बात करें, तो यह भी बाक़ी राज्यों की तरह नशाखोरी से ग्रस्त है। इस राज्य में भी युवा तेज़ी से नशे की चपेट में आ रहे हैं। इसका उदाहरण पिछले साल हुई पुलिस भर्ती में देखने को मिला था, जहाँ कई युवा नशे में लिप्त पाये गये थे। यहाँ तक कि नशे के कारण एक युवा की मौत तक हो गयी थी। अपुष्ट आँकड़ों के मुताबिक़़ हरियाणा सरकार द्वारा पीजीआईएमएस रोहतक में चलाये जा रहे नशा मुक्ति केन्द्र के आँकड़ों के मुताबिक़़ हरियाणा में पिछले 6 वर्षों में नशीले पदार्थों के सेवन करने वाले युवाओं की संख्या में चार गुना बढ़ोत्तरी हुई थी। साफ़ जाहिर है कि मामला बेहद गम्भीर है।

 

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2018


 

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